सभी देवों के वे समन्वित रूप होते हैं, सर्व देवमय होने के कारण प्रथम आराध्य एवं पूजनीय हैं। वे परमेश्वर के साक्षात मूर्तरूप हैं, मानव रूप में वे समस्त साधनाओं के सूत्रधार कहे जाते हैं। साधनाओं में सफलता के लिए अन्य साधनाओं से पूर्व गुरु साधना अपेक्षित होती है। कई बार साधकों को अनेक प्रयासों के बाद भी सफलता नहीं मिल पाती, कोई अनुभूति भी नहीं होती, इस स्थिति में भी गुरु के प्रति पूर्ण श्रद्धा एवं समर्पण की भावना तथा दृढ़ निष्ठा होनी चाहिए।
गुरु के प्रति अन्तरंगता एवं तादात्म्य न होने से कभी भी सफलता सम्भव ही नहीं होगी। साधनाओं में सफलता के लिए निरन्तर गुरु चिन्तन, गुरु मंत्र का जप होते रहना चाहिए, यही सफलता का मूल मंत्र है। साधना में शीघ्र सफलता के लिए गुरु कृपा प्राप्त करने का सतत् प्रयास करना चाहिए। मन वचन और कर्म से जो भी पाप दोष हुए हैं या होते हैं, उनके शमन के लिए उपाय करते रहना चाहिए। यह विशिष्ट गुरु पूजन निखिल जयंती के इस पावन पर्व पर किया जाना चाहिए।
साधक प्रातः स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करके पूर्व दिशा या उत्तर दिशा की ओर मुख करके पीला आसन बिछाकर उस पर आकर्षक नवीन चैतन्य गुरु चित्र स्थापित करें। दीप और अगरबती जला लें। अब पूजन प्रारम्भ करें-
पवित्रीकरण
बाएं हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ से तीन बार अपने ऊपर जल छिड़कते हुए पवित्रीकरण करें-
ऊँ अपवित्रः पवित्रे वा सर्वावस्था गतोऽपि वा
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं सः बाह्याभ्यन्तरः शुचिः।
संकल्प
दाहिने हाथ में जल लेकर निम्न संकल्प करें-
ऊँ अद्य एतस्य ब्रह्मणो द्वितीय परार्द्धे श्वेतवाराह कल्पे
जम्बूद्वीपे भरतखण्डे पुण्यक्षेत्रे अमुक गोत्रोत्पन्नोऽहं
(अपना गोत्र बोलें) अमुक शर्माहं (अपना नाम बोलें)
सर्वारिष्ट निवृत्ति पूर्वकं सकल मनोकामना सिद्धि
निमित्तं श्री गुरुदेव प्रीत्यर्थं सर्व साधना सफलता निमित्तं
च विशिष्ट गुरु पूजनम् अहम् करिष्ये।
ऐसा बोलकर जल को भूमि पर छोड़ दे।
रक्षा विधान
बाएं हाथ में जल लेकर दाएं हाथ से अपने चारों ओर निम्न मंत्र को पढ़ते हुए जल छिड़कें।
ऊँ गुरुर्वै महाशान्तिकं।। ऊँ आशां बध्नामि।।
ऊँ गुरुर्वै दिशां बध्नामि।। ऊँ गुरुर्वै बंधं बध्नामि।।
ऊँ गुरुर्वै मायां बध्नामि।।ऊँ गुरुर्वै सर्व मायां
बध्नामि।। ऊँ गुरुर्वै जनान् बध्नामि।।
ऊँ गुरुर्वै बन्धं बध्नामि कुरु कुरु नमः।।
गणपति पूजन
समस्त विघ्नों के नाश के लिए भगवान गणपति का पूजन करें-
ऊँ गं गणपतये नमः।। गणपतिं आवाहयामि
स्थापयामि पूजयामि नमः।। स्नानं, धूपं, दीपं, पूष्पं,
नैवेद्यं च निवेदयामि ऊँ गणाधिपतये नमः।।
दोनों हाथ जोडें-
गजाननं भूत गणाधिसेवितं
कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणं
उमा सूतं शोक विनाश कारकं
नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजं।।
कलश स्थापन
साधक अपनी बायीं ओर कुंकुंम से स्वस्तिक बनाकर जल से भर कर पूर्ण घट स्थापित करें। उसमें कुंकुंम अक्षत, सुपारी और पुष्प डाल दें। उसके बाद कलश के चारों ओर कुंकुंम से निम्न संदर्भ पढ़ते हुए चार बिंदी लगायें-
ऊँ पूर्वे ऋग्वेदाय नमः।। ऊँ उत्तरे यजुर्वेदाय नमः।।
ऊँ पश्चिमे अथर्ववेदाय नमः।। ऊँ दक्षिणे सामवेदाय नमः।।
इस प्रकार कलश पर चारों वेदों की स्थापना करके अक्षत, पुष्प, धूप, दीप से पूजन करें।
गुरु चित्र पूजन
इसके बाद सामने स्थापित गुरु चित्र का पंचोपचार (स्नान, धूप, दीप, पुष्प और नैवेद्य) से पूजन करें-
स्नानं समर्पयामि श्री गुरु चरणेभ्यो नमः।।
(चित्र को साफ वस्त्र से पौंछे)
धूपं, दीपं, पुष्पं, नैवेद्यं निवेदयामि
श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः।।
गुरु प्रार्थना करें-
गुरु र्ब्रह्मा गुरु र्विष्णुः गुरु र्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् पर ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।।
निखिल चैतन्यगुरु यंत्र और सद्गुरु सम्मोहन माला को सामने किसी प्लेट पर स्थापित करें और उसके चारों दिशाओं में मंगल हेतु चार सुपारी रखें।
विनियोग
दाहिने हाथ में जल लेकर निम्न मंत्र को पढ़ें-
ऊँ अस्य श्री गुरु मंत्रस्य दक्षिणामूर्ति ऋषिः,
गायत्री छन्दः, श्री गुरुदेवता प्रीत्यर्थे जपे विनियोग।।
कुंकुंम से बिन्दी लगायें, इसके बाद कलश के जल से यंत्र को स्नान करायें तथा निम्न मंत्र बोलें-
ऊँ गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति, नर्मदे
सिन्धु कावेरि स्नानार्थं प्रतिग्रह्यताम।।
वस्त्रं समर्पयामि नमः।। तिलकं नैवेद्यं निवेदयामि
नमः।। अक्षतान् समर्पयामि नमः।। धूपं दीपं दर्शयामि
नमः।। पुष्प मालां समर्पयामि नमः।।
इसके बाद निम्न मंत्रों का उच्चारण करते हुए यंत्र पर एक-एक पुष्प चढ़ाएं-
ऊँ भवाय नमः पादौ पूजयामि।।
ऊँ श्रीगुरुचरणकमलेभ्यो नमः पादौ पूजयामि।।
ऊँ परम गुरुभ्यो नमः पादौ पूजयामि।।
ऊँ परात्पर गुरुभ्यो नमः पादौ पूजयामि।।
ऊँ पारमेष्ठि गुरुभ्यो नमः पादौ पूजयामि।।
ऊँ मृडाय नमः पादौ पूजयामि।।
ऊँ सर्वाज्ञानहराय नमः पादौ पूजयामि।।
दाहिने हाथ में जल लेकर निम्न मंत्र को बोलते हुए यंत्र पर पुष्प चढ़ाएं-
ऊँ गुरवे नमः आवाहयामि स्थापयामि।।
ऊँ परम गुरवे नमः आवाहयामि स्थापयामि।।
ऊँ परात्पर गुरवे नमः आवाहयामि स्थापयामि।।
ऊँ पारमेष्ठि गुरवे नमः आवाहयामि स्थापयामि।।
ऊँ परम गुरवे नमः आवाहयामि स्थापयामि।।
दोनों हाथों में पुष्प, अक्षत, कुंकुंम लेकर निम्न मंत्र बोलकर यंत्र के ऊपर समर्पित करें-
ऊँ सर्व शास्त्रार्थं तत्वज्ञं निखिलेश्वरानन्दम्
आवाहयामि स्थापयामि।। ऊँ परमानन्द रूपेण
परमहंस स्वामी सच्चिदानन्दं आवाहयामि स्थापयामि।।
ऊँ ब्रह्मण्य रूपेण वेदव्यासं आवाहयामि स्थापयामि।।
ऊँ पूर्णत्व प्रदाय चतुर्मुखं ब्रह्माणं आवाहयामि
स्थापयामि नमः।।
फिर सद्गुरु सम्मोहन माला से निम्न मंत्र का 11 माला मंत्र जप करें-
दोनों हाथों में पुष्प लेकर पुष्पांजलि अर्पित करें-
ऊँ परमहंसाय विद्महे महातत्वाय धीमहि तन्नो हंसः
प्रचोदयात्।। ऊँ महादेवाय विद्महे रूद्रमूर्तये धीमहि
तन्नो रूद्रः प्रचोदयात्।। ऊँ गुरुदेवाय विद्महे परम
ब्रह्मणे धीमहि तन्नो गुरुः प्रचोदयात्।। श्री
गुरुचरणकमलेभ्यो नमः पुष्पांजलिं समर्पयामि नमः।।
गुरु आरती सम्पन्न करें और सभी को प्रसाद वितरण करें, चरणामृत ग्रहण करें। सवा माह तक यंत्र को पूजा गृह में स्थापित कर दें, प्रति दिन सामान्य पूजन करें। सवा माह के बाद यंत्र व माला नदी में विसर्जित कर दें।
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