इसीलिए ईश्वरीय कृपा, देव कृपा और गुरु कृपा तो प्रत्येक मनुष्य को प्राप्त होती है। मनुष्य ही अपने बुद्धि, मन, विचार के द्वारा कर्म और भाग्य का संयोग करा सकता है। जब सद्गुरु की कृपा होती है अर्थात् वे भाग्य का द्वार खोलते हैं तो मनुष्य को अपनी कर्म शक्ति पूर्ण रूप से जाग्रत रखनी चाहिए। भगवान कृष्ण ने कहा है- कर्मण्येवाधिकारसते मा फलेषु कदाचन—- अर्थात मनुष्य हर कार्य को फल की इच्छा से ही नहीं करे। वह निष्ठा पूर्वक अपना कर्त्तव्य करता रहे, कर्म में निरन्तरता बनाये रखता है, तो उसे परिणाम की अवश्य प्राप्ति होती है। उसका भाग्य अवश्य जाग्रत होता है। दुर्भाग्य से सौभाग्य तक की यात्रा कर्म और भाग्य के सहयोग की यात्रा है।
अक्षय तृतीया का पावन पर्व-भाग्योदय सिद्धि लक्ष्मी दिवस है। ऐसे शुभ दिवस पर जब सद्गुरुदेव अपनी ऊर्जा तरंगें प्रवाहित करते हैं तो शिष्य को उन ऊर्जा तरंगों को पूर्ण रूप से ग्रहण करना चाहिये। यह इस दिवस की महानता है और उससे भी बड़ी इस दिवस पर सद्गुरु की महानता और कृपा है कि ऐसी महा दीक्षा अपने शिष्यों और साधकों को प्रदान कर रहे हैं।
कर्म और भाग्य का संयोग हर व्यक्ति के जीवन में पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं होता, यह तो केवल गुरु कृपा ही होती है जिसके फलस्वरूप शिष्य, साधक को यह वरदान मिलता है। सद्गुरुदेव अपने शिष्य को शक्तिपात दीक्षा के माध्यम से यह विशेष कृपा प्रदान करते हैं। इस बार अक्षय भाग्योदय सिद्धि लक्ष्मी दीक्षा हेतु, अक्षय तृतीया का चयन गुरुदेव ने इसीलिये किया क्योंकि यह दिवस शिवरात्रि, नवरात्रि से भी बढ़कर लक्ष्मी का दिवस है। यह दिवस जीवन में अक्षय तत्व समाहित करने का दिवस है। जब जीवन में क्षय रूक जाता है और कार्य में वृद्धि होने लगती है तो भाग्य भी जाग्रत होता है। व्यक्ति आर्थिक, भौतिक, सामाजिक, आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होता है। इस दिन प्राप्त की हुई दीक्षा व्यक्ति के जीवन को चैतन्य कर देती है, उसमें सामर्थ्य भर देती है।
आप घर बैठे हैं या यात्रा में है, यह मत सोचिये की गुरुदेव आपके साथ नहीं है। गुरु तो दिव्य तरंगों के माध्यम से सदैव अपने शिष्य के साथ रहते ही हैं। शिष्य अपनी तरंगें जाग्रत कर वह भाव ग्रहण कर सकें यह क्षमता, यह भावना, यह श्रद्धा, यह विश्वास उनमें उत्पन्न होना ही चाहिये।
पांच पत्रिका सदस्य बनाने पर ‘अक्षय भाग्योदय सिद्धि लक्ष्मी दीक्षा’ उपहार स्वरूप प्रदान की जायेगी।
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