इस दुनिया में एक बात ख्याल रखनी जरूरी है कि कोई भी चीज अगर लाभ लाती हो तो अपने साथ ही हानियां भी लाती है। यह हम पर निर्भर होता है कि हम हानियों को न चुनें, लाभ को चुन लें। और कोई भी चीज जो हानि लाती है, अपने साथ लाभ भी लाती है। यह हम पर निर्भर होता है कि हम लाभ को चुन लें, हानियों को न चुनें, ज्ञानी व्यक्ति यहां जहर को औषधि बना लेते हैं और यहां नासमझ औषधि को भी जहर बना लेते हैं। हम ऊंचे उड़े। हमारे महावीर, हमारे बुद्ध, हमारे कृष्ण अपने पंख आकाश की आखिरी ऊंचाइयों तक फैलाए। लेकिन हम बहुत नीचे गिरे। यह एक साथ घटना घटी। सबसे ऊंचे पुरूष हमने पैदा किए और सबसे नीचा समाज हमने पैदा किया। और कारण था हमारी चालबाजी।
भारत अकेला देश है जहां मोक्ष की बात होती हैं। यह स्वर्ग और नरक से ऊपर की बात है। स्वर्ग और नरक में तो द्वंद्व शेष है, अभी अद्वैत समाप्त नहीं हुआ। अभी पाप-पुण्य, अभी कृत्य की दुनिया चल रही है कि मैंने पाप किया, पुण्यात्मा को भ्रांति होती है कि मैंने पुण्य किया। असाधु समझता है मैं असाधु हूं, साधु समझता हैं मैं साधु हूं, लेकिन दोनों समझते हैं कि मैं कुछ हूं। अभी नेति-नेति का जन्म नहीं हुआ। न यह, न वह। मैं इन दोनों का साक्षी हूं, सिर्फ दृष्टा मात्र। जैसे दर्पण में प्रतिबिंब बने, ऐसा कोरा दर्पण हूं। इस कोरे दर्पण की अवस्था तक पश्चिम के धर्मों को उठना है। पूरब के धर्म इस कोरी अवस्था तक उठे हैं। इसका लाभ भी था, इसकी हानि भी थी।
संसार सराय है घर नहीं। हमारा आना किसी और लोक से है। और हमें जाना भी किसी और लोक है। जो इतना स्मरण रख सके, वह सराय में भी रहे तो भी सराय छूती नहीं है। वह जल में कमल-वत हो जाता है। और जल में कमल-वत हो जाना ही संन्यस्त भाव है। संसार छोड़ कर भागते है। जाग कर इतना ही जानता है कि यह हमारा घर नहीं है। रात भर का बसेरा है, रैन-बसेरा, सुबह हुई, उड़ जाएंगे। ऐसी प्रतीति सतत् बनी रहे, ऐसा भाव सघन होता रहे, तो समाधि दूर नहीं है, तो साधनाओं की पूर्णता दूर नहीं है तो हमारे इष्ट, सद्गुरुदेव दूर नहीं है।
प्रकाश पूर्णता है, अंधकार बंधन है। अंधकार इसलिए बंधन है कि अंधकार में अहंकार निर्मित होता है। अंधकार बंधन है, क्योंकि अंधकार में हम जो भी करते हैं गलत होता है। चाहते हैं दरवाजा मिले, दीवाल मिलती है। राह खोजते हैं, टकराते है। जिनको प्रेम भी देना चाहते हैं उनसे भी कलह ही होती है, प्रेम कहां! पुण्य करने जाते है, पाप हो जाता है। जिसने नींद छोड़ दी, जो भी जाग जाए, फिर वह स्त्री हो कि पुरूष हो, कोई अंतर नहीं है। जागने की बात है। सोए हुए सब है कोई सोए-सोए भाग भी सकता क्या है। आप सभी ने अक्सर कई बार नींद में भी अपने आप को भागते हुए देखा होगा। लेकिन नींद में भागा हुआ आदमी कही भाग पाता है कहा जाएगा? जिस पलंग पर पड़ा है उसी पर सुबह अपने को पाएगा। रात भर भागते रहो, ट्रेनों में सवार करो, हवाई जहाजों में यात्राएं करो, सुबह जब आंख खुलेगी तो पाओगे जहां थे वही हो। नींद में भागने से भी कोई कही पहुंचता नहीं। जागने वाले को इंच भर भी चलना नहीं होता- और पहुंच जाता है! क्योंकि जो जागा उसने जाना कि जागने में ही पूर्णता प्राप्ति की क्रिया है। जागते ही मैं परमात्मा हूं। सोते ही मैं अंहकार हूं। जागते ही मैं आत्मा हूं।
इस पत्रिका के माध्यम से निरन्तर निरन्तर जीवन के अंधकार रूपी बंधन को किसी तरह से समाप्त किया जाये और जीवन में हमें प्यार प्रेम आनन्द कैसे प्राप्त हो यही क्रिया साधना के रूप में बताई जाती है। जिससे की हम अक्सर भागते ही रहते है और लक्ष्य और मंजिल कैसे प्राप्त होगी। इसके बारे में सामान्य रूप से अपने गुरु से मार्ग दर्शन लेकर जो जीवन के मर्म उद्देश्य है उन्हें हम निश्चित रूप से प्राप्त कर सके। जीवन में जाग्रतता का भाव निरन्तर बना रहे। तभी हम परमात्मा के माध्यम से और गुरु के माध्यम से सभी सोपानो को आत्मसात कर सके। अपने आप को श्रेष्ठता से युक्त बनाने के लिए आवश्यक है कि नित्य कुछ समय अपने लिए भी निकाले और आत्म विवेचन करे कि अपने विचारों की मलिनता को समाप्त करने के लिए कितना मैं सक्रिय हूं और इसके लिए मेरा ईश्वर के प्रति, इष्ट के प्रति, गुरु के प्रति कितना सम्पर्कित हूं। इसी हेतु नित्य 15 मिनट निकालकर पत्रिका अवश्य पढ़े। तो आपको लक्ष्यों की प्राप्ति का मार्ग दर्शन अवश्य प्राप्त होगा। जब आप प्रेरित होगे तो दूसरों को भी प्रेरणा दे सकेंगे।
हमारी इन सप्तपुरीयों में श्रेष्ठतम उज्जैन की पावन भूमि महाकाल स्वरूप है अर्थात् सांसारिक व्यक्ति यहा आकर काल को भी पूर्णरूपेण वश में कर सकता है, क्षिप्रा नदी जो कि मोक्षदायिनी चेतना शक्तियुक्त है जो हमारे पाप दोषों को धोती है। इसी हेतु वर्ष का सर्वश्रेष्ठ शिवरात्रि महापर्व 26, 27 फरवरी 2014 महाकालेश्वर शक्तिपीठ उज्जैन की तपो भूमि पर ‘महा त्रिपुर सुन्दरी मंदिर प्रागंण, क्षिप्रा तट उज्जैन’ में महाकाल इन्द्राक्षी धन वैभव महामृत्युजंय साधना महोत्सव सम्पन्न होगा। आपके जीवन में ऐसी दिव्यतम साधनात्मक क्रिया सद्गुरुदेव के आशीर्वाद से सम्पन्न हो रही हैं। इसी हेतु कामदेव अप्सरा सौन्दर्य प्राप्ति दीक्षा, शिव गौरी सौभाग्य वृद्धि अघोर दीक्षा और रावणकृत स्वर्ण लक्ष्मी प्राप्ति दीक्षा के साथ प्रत्येक साधक व्यक्तिगत रूप से स्व रूद्राभिषेक सम्पन्न करेंगे। भगवान सदाशिव और माता गौरी के परिणय दिवस पर आप सपरिवार उज्जैन में पधारकर शिव स्वरूप कैलाश गुरुदेव और गौरी स्वरूपा वन्दनीय माताजी के सानिध्य में दीक्षायें प्राप्त करेंगे, तो गृहस्थ जीवन में भोग रहे संताप, दुःख, रोग-कष्टों से निश्चित रूप से निजात प्राप्त हो सकेगी और हम अपने जीवन में इन काल रूपी बाधाओं से पूर्णरूपेण मुक्त होकर अपने आप को शिव-गौरी सौभाग्य शक्ति युक्त बनाने में सक्षम हो सकेंगें।
अपने जीवन को अन्तंसः रूप में आनन्दमय और हर्षोल्लास युक्त बनाने की क्रिया के लिए आवश्यक है कि हम भी जीवन में नृसिंहमय बन सके अर्थात् नर रूप में सिंह बन सके। जिससे की जो जीवन में भय-डर कूप-मडूकता की स्थितियां है वे समाप्त हो सके और जीवन पूर्ण आनन्द, रस, ओज की चेतना से युक्त होने पर ही आने वाला नववर्ष संवत् 2071 हर दृष्टि से पूर्णमिदम् बन सके। इसी हेतु होली महोत्सव कैलाश सिद्धाश्रम जोधपुर 15-16 मार्च को रस आनन्द से सरोबार करने का पर्व होली महोत्सव संपन्न होगा। जिससे बगलामुखी-धूमावती सायुज्य नृसिंह साधना की चेतना प्राप्त हो सकेगी। ऐसे महोत्सवो को गुरुदेव के सानिध्य में मनाने से जीवन उत्सवमय बनने की ओर अग्रसर होता है। जीवन को सिंहयुक्त जाज्वल्यमान चेतनायुक्त बनाने के मौके दबे पांव आते हैं। जब भी ऐसा सुअवसर प्राप्त हो उसे पूर्णतया जीवन में उतारने की क्रिया प्रारंभ कर देनी चाहिए।
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