उच्चकोटि के तांत्रिक ग्रन्थों में बताया गया है कि चाहे किसी भी देवी या देवता की साधना की जाये, सर्व प्रथम गणपति और काल भैरव की पूजा आवश्यक है। जिस प्रकार से गणपति समस्त विघ्नों का नाश करने वाले हैं, ठीक उसी प्रकार से भैरव समस्त प्रकार के शत्रुओं का नाश करने में पूर्ण रूप से सहायक हैं।
कलियुग में बगलामुखी, छिन्नमस्ता या अन्य महादेवियों की साधनाएं तो कठिन प्रतीत होने लगी हैं, यद्यपि ये साधनाएं शत्रु संहार के लिए पूर्ण रूप से समर्थ और बलशाली हैं, परन्तु ‘काल भैरव साधना’ कलियुग में तुरन्त फलदायक और शीघ्र सफलता देने में सहायक है। अन्य साधनाओं में तो साधक को फल जल्दी या विलम्ब से प्राप्त हो सकता है, परन्तु इस साधना का फल तो हाथों हाथ मिलता है। इसीलिए कलियुग में गणपति, चण्डी और भैरव की साधना पूर्ण रूप से महत्वपूर्ण मानी गईं हैं।
आज का जीवन जरूरत से ज्यादा जटिल और दुर्बोध बन गया है, पग पग पर कठिनाइयां और बाधाएं आने लगी हैं। अकारण ही शत्रु पैदा होने लगते हैं और उनका प्रयत्न यही रहता है कि येन-केन-प्रकारेण लोगों को तकलीफ दी जाये या उन्हें परेशान किया जाये। इससे जीवन में जरूरत से ज्यादा तनाव बना रहता है।
इसीलिए आज के युग में अन्य सभी साधनाओं की अपेक्षा भैरव की साधना को ज्यादा महत्व दिया जाने लगा है।
‘देवयोपनिषद्’ में भैरव साधना क्यों की जानी चाहिए, इसके बारे में विस्तार से विवरण है। उनका सारा मूल तथ्य निम्न प्रकार से है-
1- जीवन के समस्त प्रकार के उपद्रवों को समाप्त करने के लिए।
2- जीवन की बाधाएं, परेशानियों और कष्टों को दूर करने के लिए।
3- जीवन के नित्य दुःखों और मानसिक तनावों को समाप्त करने के लिए।
4- शरीर स्थित रोगों को निश्चित रूप से दूर करने के लिए।
5- आने वाली बाधाओं और विपत्तियों की पहले से ही हटाने के लिए।
6- जीवन के और समाज के शत्रुओं को समाप्त करने और उनसे बचाव के लिए।
7- शत्रुओं की बुद्धि भ्रष्ट करने के लिए और शत्रुओं को परेशानी में डालने के लिए।
8- जीवन में समस्त प्रकार के ऋण और कर्जों की समाप्ति के लिए।
9- राज्य से आने वाली बाधाओं या अकारण भय से मुक्ति के लिए।
10- जेल से छूटने के लिए और मुकदमों में शत्रुओं को पूर्ण रूप से परास्त करने के लिए।
11- चोर भय, दुष्ट भय और वृद्धावस्था से बचने के लिए।
12- समस्त प्रकार के उपद्रवों से रक्षा के लिए।
इसके अलावा अकाल मृत्यु न हो, या किसी प्रकार का एक्सीडेन्ट न हो अथवा हमारे बालकों की अल्प आयु में मृत्यु न हो, आदि के लिए भी ‘काल भैरव साधना’ अत्यन्त महत्वपूर्ण मानी गई है।
इसीलिए तो शास्त्रों में कहा गया है, कि जो चतुर और बुद्धिमान व्यक्ति होते हैं, वे अपने जीवन में काल भैरव साधना अवश्य ही करते हैं। जो वास्तव में ही जीवन में बिना बाधाओं के निरन्तर उन्नति की ओर अग्रसर होना चाहते हैं, वे काल भैरव साधना अवश्य करते हैं। जो अपने जीवन में यह चाहते हैं, कि किसी भी प्रकार से राज्य की कोई बाधा या परेशानी न आये, वे निश्चय ही भैरव साधना सम्पन्न करते हैं। जिन्हें अपने बच्चे प्रिय हैं, जो अपने जीवन में रोग नहीं चाहते, जो अपने पास बुढ़ापा फटकने नहीं देना चाहते, वे अवश्य ही काल भैरव साधना सम्पन्न करते हैं।
उच्चकोटि के योगी, सन्यासी तो काल भैरव साधना करते ही हैं। जो श्रेष्ठ बिजनेस मैन या व्यापारी हैं, वे भी अपने पण्डितों से काल भैरव साधना सम्पन्न करवाते हैं। जो राजनीति में रूचि रखते हैं और अपने शत्रुओं पर विजय पाना चाहते हैं, वे भी अपने विश्वस्त तांत्रिकों से काल भैरव साधना सम्पन्न करवाते हैं। मेरा यह अनुभव रहा है, कि जीवन में सफलता और पूर्णता पाने के लिए काल भैरव साधना अत्यन्त आवश्यक और महत्वपूर्ण है।
नाम भले ही डरावना और तीक्ष्ण हो, परन्तु काल भैरव अत्यन्त सौम्य और रक्षा करने वाले देवता हैं। जिस प्रकार से हमारे बॉडी गार्ड लम्बे डील-डौल वाले भयानक और बन्दूक या शस्त्र साथ लेकर चलने वाले होते हैं, पर उनसे हमें भय नहीं लगता अपितु उनकी वजह से उलटे हम निशि्ंचत हो जाते हैं, उसी प्रकार से काल भैरव भी हमारे जीवन के बॉडी गार्ड की तरह हैं। वे हमें किसी प्रकार से तकलीफ नहीं देते अपितु हमारी रक्षा करते हैं और हमारे लिये अनुकूल स्थितियां पैदा करते हैं।
साधना विधि
यों तो शास्त्रों में 52 भैरव बताये गये हैं और उन सब की साधनाएं अलग-अलग तरीके से दी गई है। मैं यहां पर उन 52 भैरवों में प्रमुख काल भैरव साधना को स्पष्ट कर रहा हूं।
काल भैरवाष्टमी सोमवार 25 नवम्बर को है। साधक स्नान कर लाल धोती धारण कर लें। यदि सर्दी का एहसास हो तो कन्धों पर भी लाल धोती डाल सकते हैं या लाल कम्बल ओढ़ सकते हैं। इसी प्रकार साधिकाएं लाल साड़ी धारण कर सकती हैं।
फिर साधक लाल आसन बिछा कर दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर बैठ जाये और सामने लकड़ी का एक बाजोट रख दे। उस पर लाल वस्त्र बिछा दे और बाजोट पर स्टील की थाली रख दे। फिर इस थाली के मध्य में कुंकुम से या ज्यादा अच्छा यह है कि सिन्दूर से अपनी उंगली से ‘‘ऊँ भं भैरवाय नमः’’ लिख दे। फिर इस थाली के मध्य में ‘‘काल भैरव महायंत्र’’ को स्थापित कर दे।
इसके बाद उस यंत्र को प्राण प्रतिष्ठित करना चाहिए और ऐसा प्राण प्रतिष्ठा युक्त ‘काल भैरव महायंत्र’ अपने आप में ही दुर्लभ, महत्वपूर्ण तथा सोने की खान के समान होता है। जिसके घर में इस प्रकार का महायंत्र होता है, वास्तव में ही वह व्यक्ति सौभाग्यशाली होता है और वह अपने जीवन में बिना किसी अड़चनों या बाधाओं के, अपनी मंजिल तक पहुंचने में सक्षम हो पाता है।
ऐसा महायंत्र उस थाली में स्थापित कर के, उस यंत्र पर सिन्दूर की 52 बिन्दियां लगायें, जो कि 52 भैरव का प्रतीक हैं। फिर उस पर लाल पुष्प चढ़ायें और चावलों को सिन्दूर में रंग कर भैरव पर चढ़ायें। इस प्रकार का पूजन कार्य करते समय ‘‘ऊँ भं भैरवाय नमः’’ मंत्र का उच्चारण करते रहें। इस प्रकार संक्षिप्त पूजा सम्पन्न करने के बाद भैरव के सामने एक कटोरी में घी और गुड़ मिला कर भोग लगायें और तेल का दीपक जला दें। फिर उसके सामने निम्न स्तोत्र मंत्र का 51 बार पाठ करें। यह अपने आप में स्तोत्र होते हुए भी मंत्र के समान प्रभावदायक है, इसीलिए इसको स्तोत्र मंत्र कहा गया है, इसमें मूंगे की माला का प्रयोग किया जाता है।
यं यं यं यक्षरूपं दश दिशि वदनं
भूमिकम्पायमानं। सं सं सं संहारमूर्तिं शिरः मुकुट
जटाशेखरं चन्द्रबिम्बम्।। दं दं दं दीर्घकायं विकृत
नख मुखं उर्ध्वरोमं करालं। पं पं पं पापनाशं
प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम्।।
उपरोक्त स्तोत्र मंत्र का 51 बार पाठ करने के बाद साधक आसन से उठ जाये पर भैरव के सामने जो भोग लगा हुआ है वह रहने दे और तेल का दीपक बराबर जलते रहना चाहिए।
उसी दिन रात्रि को लगभग 9 बजे के बाद वह भोग जहां तीन रास्ते मिलते हो, वहां ले जाकर रख दे और वह दीपक भी वहीं पर रख दें। यदि दीपक ले जाते समय मार्ग में बुझ जाये तो वहां तीन रास्तों पर वह दीपक रख कर पुनः माचिस से जला सकते हैं और फिर लौट कर आ जायें। दीपक और भोग रखने के बाद पीछे मुड़ कर नहीं देखें और घर में आ कर स्नान कर कपड़े बदल ले।
इस प्रकार यह साधना सम्पन्न होती है। माला को जल में प्रवाहित कर दें। ‘काल भैरव महायंत्र’ को घर में किसी भी स्थान पर रख सकते हैं। यह महायंत्र निश्चय ही घर की, व्यापार की, शरीर की, परिवार की और बाल बच्चों की सभी दृष्टियों से पूर्ण रक्षा करता है।
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