वैसे तो उत्साह चैतन्यता प्रत्येक मनुष्य में आती-जाती है, परन्तु ऐसे भाव स्थायी नहीं होते, व्यक्ति के मन में अनेक भावों को उमड़ना-घुमड़ना अक्सर बना रहता है। लेकिन साधनात्मक क्रियाओं के द्वारा व्यक्ति अपूर्व आत्मविश्वास से युक्त हो सकता है और जब ऐसा होगा तो उसके चेहरे पर ओज, उमंग, आह्लाद, प्रसन्नता स्वतः झलकने लगती है।
पारिवारिक जीवन में उक्त सुस्थितियों की कामना प्रत्येक मनुष्य करता है, परन्तु यह सुखपूर्ण स्थितियाँ सभी के भाग्य में नहीं होती। मनुष्य इन सुभावों की प्राप्ति के लिये निरन्तर कर्मशील बना रहता है, परन्तु उसे निराशा ही हाथ आती है क्योंकि ऐसे घर-परिवार में पितृ दोष हावी होते हैं और इसीलिये परिवार में किसी भी सदस्य का भाग्योदय नहीं हो पाता है।
चन्द्रमा मन का कारक व शीतलता का प्रतीक है। स्त्रीत्व ग्रह होने के कारण इस ग्रह की प्रबलता से मनुष्य के स्वभाव में कोमलता, मधुरता, भावना, शीतलता आदि गुण आते है। साथ ही शारीरिक पुष्टि, राज योग, चित्त, माता-पिता तथा सम्पति की वृद्धि में सहायक होता है, जिससे जीवन में चन्द्र पूर्णिमामय होता है।
पितरों का आशीर्वाद प्राप्त कर जीवन को भाग्योदयमय निर्मित करने हेतु 18 सितम्बर चन्द्रग्रहण पर्व युक्त पितृ पक्ष प्रतिपदा पर सद्गुरूदेव जी साधकों हेतु पूजा, साधना युक्त चन्द्रमौलीश्वर के 1008 मंत्रों से हवन सम्पन्न कर चन्द्रेश्वर भाग्योदय पितृ शांति सर्व सुखदा प्राप्ति दीक्षा प्रदान करेंगे। जिससे पितृ दोष व कालसर्प दोष के निवृत्ति से जीवन भाग्योदय पूर्ण बन सकेगा। साथ ही पारिवारिक जीवन में पति-पत्नी में मधुरता, दाम्पत्य जीवन में अनुकूलता, सुयोग्य वर-वधू की प्राप्ति में सहायक होगा।
जब तक मनुष्य की आकांक्षायें पूरी नहीं होगी तब तक वह मुक्त नहीं होगा, इसलिये इच्छाओं का दमन करना नहीं अपितु उन्हें यत्न पूर्वक पूर्ण करना पुरूषार्थ है। जीवन में धन हो, वैभव हो, ऐश्वर्य हो, आज्ञाकारी संतान हो, सुमधुर सुलक्षणा पत्नी हो, विपुल सम्पदा हो यही मनुष्य की कामना रहती है और यही भौतिक दृष्टि से यही पूर्णता है। मनुष्य की पहली आवश्यकता है कि वह अपने आपको आध्यात्मिक प्रबलता बनाये, तब ही वह भौतिक पूर्णता प्राप्त कर सकता है।
जीवन में योग-भोगमय सुमंगलमय स्थितियों के विस्तार हेतु मनुष्य अपने पूर्वजों से आशीर्वाद प्राप्त कर अपने प्राणश: चेतना को जाग्रत करना होगा। अतः वर्ष का अंतिम सूर्यग्रहण महापर्व युक्त सर्व पितृ अमावस्या के सुयोग 02 अक्टूबर को सद्गुरूदेव जी सूर्यग्रहण तेजस्विता सहस्त्र लक्ष्मी दीक्षा प्रदान करेंगे। जिसके फलस्वरूप सूर्य के तेज समान ज्ञान, बल, बुद्धि, प्रज्ञा, चेतना से अभिभूत हो कर जीवन सहस्त्र स्वरूप में सुख-सौभाग्य, धन-धान्य, मान-सम्मान, समृद्धि से परिपूर्ण हो सकेंगे। जिससे जीवन पूर्ण आनन्दमय होने के साथ-साथ योग-भोग, उमंग, जोश युक्त बन सकेगा।
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