पितरेश्वरों की शक्ति सूक्ष्म शरीर होने के कारण अत्यन्त विशाल बन जाती है, वे शक्ति एवं सिद्धि के निश्चित स्वरूप बन जाते है, उत्तम होने के कारण स्वास्थ्य, वायु, गर्भ आदि कार्यों के नियन्त्रक बन जाते है, वे अपनी शक्ति से आने वाली घटनाओं को स्पष्ट रूप से देख सकते है, यदि उनकी पूर्ण कृपा रहती है, तो वे अपनी संतानों को ऐसा मार्ग दिशा दे सकते हैं, जिसमें कम से कम बाधाएं हों, ऐसा कार्य करने को प्रवृत्त कर सकते हैं, जिससे सम्पूर्ण उन्नति हो, व्यक्तित्व में तेज उत्पन्न कर सकते हैं, उनके लिये कोई भी कार्य असम्भव नहीं रहता है, आवश्यकता केवल इस बात की है, की वे पूर्ण रूप से प्रसन्न हो।
इस विशेष ‘‘पारिवारिक अशांति निवारक पितरेश्वर पूर्ण कृपा प्राप्ति उन्नति वृद्धि दीक्षा ’’ में सबसे बड़ा माध्यम भावना है, अपनी समस्त इच्छाओं, कर्तव्यों को भावना के रूप में प्रकट कर देने से पितरेश्वर अत्यधिक प्रसन्न होते है, उनके प्रति पूर्ण रूप से सम्मान देते हुये, सहयोग की कामना ही इस दीक्षा का विशेष लक्ष्य है, जहाँ व्यक्ति नहीं पहुँच सकता है, वहाँ भावना पहुँच सकती है, और जहां भावना होती है, वही सफलता एवं सिद्धि है, शुद्ध भावना के कारण ही अधिक से अधिक सहयोगी बन पाते है। इस दीक्षा के माध्यम से साधक अपने जीवन में अपने पूर्वजों का मार्गदर्शन, सहयोग एवं शक्ति प्राप्त कर सकते है, जिससे साधक का जीवन एवं व्यक्तित्व शक्तिमय हो जाता है, श्राद्ध दिवसों में अपने पितरेश्वरों के प्रति श्रद्धा भक्ति प्रकट करने हेतु प्रत्येक साधक को यह दीक्षा अवश्य ग्रहण करनी चाहिये।
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