आदिकाल से मानव की यही अभिलाषा रही है, कि उसका जीवन उदात्ततम बने, कमनीय बने—- लेकिन मानव जीवन कल्पना नहीं है, अपितु यथार्थ है, समस्याओं से घिरा हुआ है, जिसका हल ढूढ़ना सामान्य व्यक्ति के बस में नहीं है। मानव इस धरा पर जब जन्म लेता है, तब वह असंख्य तारों के समूह में एक तारे की भांति ही पूरे विश्व के मनुष्य समूहों में से ही एक होता है इस पृथ्वी पर से हमें जितने तारा समूह दिखते है, क्या उनमें से सभी का नाम हमें ज्ञात है ? – नहीं।
सामान्यतः सिर्फ कुछ एक का ही नाम हमें मालूम है। अब प्रश्न यह है, कि ऐसा क्यों है ? इसके उत्तर को विस्तार से समझाये तो बहुत विशद व्याख्या हो जायेगी, किन्तु कुछ वाक्यों में कहे, तो इस प्रश्न का उत्तर है – वे गिने-चुने तारा या नक्षत्र अपने आपमें कुछ विशेषता लिए हुए है, उनकी विशेषताओं से हमें लाभ मिलता है, तो उनके नाम हमें याद है, ठीक इसी प्रकार कुछ मनुष्य भी विशेषता लिए हुए होते है और इसी कारण उनके नाम हम सभी को याद रहते हैं। यदि कुछ मनुष्य इस प्रकार से विशेषता युक्त हो सकते है, तो हम क्यों नहीं हो सकते ? यदि हम चाहें, तो हम भी अपने व्यक्तित्व को ऐसा बना सकते है, जिससे पूरा विश्व लाभान्वित हो और तब लोगों के मन, मस्तिष्क और होठों पर हमारा नाम अंकित हो ही जायेगा।
यदि ऐसा संभव है, तो वह कौन सी क्रिया हैं, जिसके माध्यम से ऐसा होना संभव है ? यह प्रश्न प्रत्येक व्यक्ति के मन में उठता ही है, कुछ ऐसा कर बैठते है, तो कुछ हताश-निराश हो जाते है, कुछ छोड़ो जो है सो है – ऐसी बात सोच लेते है ओर ऐसे लोगों का हस्त्र ठीक उसी प्रकार होता है, जिस प्रकार सूर्योदय होने पर तारों के समूह विलीन हो जाते है अर्थात् व्यक्ति बिना किसी विशेषता के मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। यदि देखा जाये, तो वास्तव में मानव अपने जीवन को सामान्य रूप में ही जी पाता है, वह अपने जीवन आदिकाल से मानव की यही अभिलाषा रही है, कि उसका जीवन उत्तम बने, कमनीय बने—- लेकिन मानव जीवन कल्पना नहीं है, अपितु यथार्थ है, समस्याओं से घिरा हुआ है, जिसका हल ढूढ़ना सामान्य व्यक्ति के बस में नहीं है।
वह अपने जीवन में लक्ष्य की पूर्णता का समावेश नहीं कर पाता। प्रत्येक व्यक्ति के मन की आकांक्षा है, कि उसके जीवन में पूर्णता का समावेश हो, उसका व्यक्तित्व पूर्ण तेजस्वी हो, वह अन्य लोगों के लिये प्रेरणा बन सके। लेकिन यथार्थतः उसे यह सब प्राप्त करने के लिये अत्यन्त कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है—– और मानव जीवन की विशेषता ही यही है, कि वह इन कठिनायों का सामना करें। प्रत्येक मानव के अपने जीवन में एक सुनहरा अवसर प्राप्त होता है, जब वह अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है और इसके लिए वह विभिन्न कार्यों को अंजाम देता है तथा साथ ही साथ देवों की उपासना भी करता है, अपने व्यक्तित्व को तेजस्वी बनाने हेतु।
लेकिन वह निर्णय नहीं कर पाता, कि किस देव की उपासना करें, जिससे वह अपने व्यक्तित्व को तेजस्विता प्रदान कर सके। अपने इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये आवश्यक हो जाता है, कि वह सूर्य साधना करे, जिससे सूर्य के समान तेजस्विता तथा प्रखरता को स्वयं में समाहित कर सकें तथा जीवन में समृद्धता प्राप्त कर सके।
यह तो सर्वविदित है, कि सूर्य के तेज से ही सम्पूर्ण भू-मण्डल आलोकित होता है। ये ऐसे देव है, जो प्रत्यक्षः स्वयं ही हमें अपनी कृपा से अनुग्रहित करते है। यही कारण है कि वेदों में, पुराणों में, आगमादि ग्रंथों में भी सूर्य साधना करने के लिए कहा गया है।
‘पद्म पुराण’ में वर्णन मिलता है, कि सूर्य की साधना करने पर भगवान श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब ने कुष्ठरोग से मुक्ति पाई थी।
भगवान राम जब रावण से युद्ध करते हुए उसे पराजित न कर सके, तो चिन्ता में पड़ गये, कि इस महाबली महातेजस्वी व्यक्ति को किस प्रकार से युद्ध में हराया जाय। राम को इस प्रकार चिन्तित देख कर अगस्त ऋषि उनके पास जाकर बोले – ‘राम! मैं आपको एक साधना बता रहा हूं, आप उसे सम्पन्न कर फिर युद्ध करें, तो आप अवश्य ही अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल होंगे। तत्पश्चात् ऋषि अगस्त ने सूर्य साधना विधान बताया। इस प्रकार यह देखने में आता है, कि सूर्य की साधना करना अत्यधिक श्रेष्ठ है, सूर्य की आराधना कर देवता भी लाभान्वित हुए हैं।
‘ऋग्वेद’ के प्रथम मंडल में कहा गया है, कि सूर्य सभी चर्म रोगों के विनाशक है, इसीलिये प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में उठना लाभदायक कहा गया है। स्वर विज्ञान के अनुसार सूर्योदय से पहले जागकर जिस ओर का स्वर चल रहा हो उस ओर का हाथ अपने मुंह पर फेर कर उसी ओर के पैर को पहले धरती पर रखें, तो मनुष्य के दुर्दिन समाप्त होते हैं। प्रतिदिन सूर्यदेव को अर्घ्य देना भी शास्त्रों में मानव जीवन के लिए कल्याणकारी माना गया है, क्योंकि इससे भगवान सूर्य प्रसन्न हो कर अपने उपासक को धन, धान्य, आरोग्य, तेज, बल, विद्या, कान्ति आदि गुणों को प्रदान करते हैं।
यदि सूर्य साधना पूर्ण विधि-विधान से की जाय, तो व्यक्ति अपने जीवन को तेजस्वी और चेतनायुक्त बना सकता है। वैसे तो यह साधना कभी भी की जा सकती है, किसी भी रविवार को की जा सकती है, किन्तु इसे यदि इस वर्ष ज्येष्ठ शुक्ल रविवार सूर्य सिद्धि दिवस 09 जून 2013 के शुभ अवसर पर इस साधना को सम्पन्न करे, तो सहस्त्रगुना अधिक लाभ प्राप्त होता है। भगवान सूर्य की साधना करने पर साधक के शब्दकोश से असंभव शब्द निकल जाता है। इसीलिए तो यह साधना अलौकिक साधना है।
इस साधना में आवश्यक सामग्री ‘सूर्य यंत्र’ और ‘सूर्य माला’ है। यह साधना किसी भी रविवार को प्रातः सूर्योदय से पूर्व आरम्भ कर दें। यह साधना तीन दिवसीय साधना है। साधक श्वेत वस्त्र धारण करें तथा साधना वाले दिन नमक तथा तेल न लें, संभव हो तो फलाहार पर ही रहें।
लकड़ी के बाजोट पर सफेद रंग का वस्त्र बिछा कर उस पर केसर से सूर्य की आकृति बनाएं। तत्पश्चात् उस पर एक ताम्रपत्र में ‘सूर्य यंत्र’ को स्थापित करें। सूर्य यंत्र का पूजन अक्षत, पुष्प तथा कुंकुंम से करें। यंत्र के समक्ष पीले चावल की ढेरी बनाकर ‘सूर्य माला’ स्थापित करें, फिर उसका संक्षिप्त पूजन करें।
भगवान सूर्य का सर्वज्ञता, सृष्टिकर्ता, कालचक्र प्रणेता रूप में ध्यान करते हुए यह प्रार्थना करें।
सर्व मंगल मांगल्यं, सर्व पाप प्रणाशनम्।
चिन्ता शोक प्रशमनम्, आयुर्वर्धन उत्तमम्।।
रशिम मन्तं समुवन्तं, देवासुर नमस्कृतम्।
पूज्यस्व विवस्वन्तं, भास्करं भुवनेश्वरम्।।
और लाल पुष्प यंत्र पर चढ़ाये। धूप व दीप प्रज्ज्वलित करें। सूर्य माला से निम्नलिखित मंत्र की 60 माला प्रतिदिन मंत्र जप करें –
साधना की समाप्ति पर भगवान सूर्य को अर्घ्य देकर उनकी प्रदक्षिणा करें। अगले रविवार को यंत्र तथा माला किसी मंदिर में चढ़ा दें तथा फिर नदी में प्रवाहित कर दें।
इस साधना का यह मंत्र अत्यंत तेजस्वी और अद्वितीय हैं। यह मंत्र न केवल साधक अपने भीतर के सूर्य को जाग्रत करने के लिए तथा बाहर के सूर्य के साथ तादात्मय स्थापित करने के लिए प्रयोग कर सकता हैं। साथ ही इसके द्वारा पुंषवन संस्कार से मां के गर्भ में सूर्य की किरणों का प्रवेश कराया जाता हैं जिससे गर्भ मजबूत हो तथा बालक में सभी दृष्टियों से पूर्णता एवं श्रेष्ठता आ सके।
सौभाग्यमय स्त्री को गर्भ धारण से पूर्व अथवा गर्भस्थ काल में पुंषवन चैतन्य शक्तिपात दीक्षा अवश्य प्राप्त करनी चाहिए।
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