तंत्र शास्त्रों में लक्ष्मी की पूजा कमला स्वरूप में की जाती है
और लक्ष्मी से सम्बन्धित पूर्ण तंत्र को कमला तंत्र कहा जाता है।
वास्तव में ही लक्ष्मी की साधना तंत्र मार्ग से ही सम्भव है और यह कमला साधना द्वारा सहज सम्भव है। कमला तंत्र में तो स्पष्ट रूप से बताया गया है, कि जीवन में अतुलनीय धन-वैभव प्राप्त करने के लिये कमला साधना आवश्यक है, क्योंकि इस साधना के द्वारा ही जीवन में वह सब कुछ प्राप्त हो सकता है, जो कि आज के मनुष्य को चाहिये।
सबसे बड़ी बात यह है कि कमला साधना एक तरफ जहाँ पूर्ण मानसिक शांति और सिद्धि प्रदान करती है, वहीं दूसरी ओर इसके माध्यम से अतुलनीय वैभव और अनायास धन प्राप्ति होती रहती है। तंत्र में इसके द्वादश नाम स्पष्ट हुये हैं। यदि कोई साधक केवल इन द्वादश नामों का उच्चारण नित्य कर लेता है, तो भी उसे सिद्धि प्राप्त हो जाती है। फिर कोई विशेष लक्ष्मी पर्व पर एक बार भली प्रकार से कमला साधना सम्पन्न कर लेता है, तो उसके जीवन में किसी प्रकार का कोई अभाव रह ही कैसे सकता है। कमला के द्वादश नाम निम्नवत् है-
1- महालक्ष्मी, 2- ऋणमुक्ता, 3- हिरण्मयी, 4- राजतनया, 5- दारिद्रय हारिणी, 6- कांचना, 7- जया, 8- राज राजेश्वरी, 9- वरदा, 10- कनकवर्णा, 11- पासना, 12- सर्वमांगल्य युक्ता।
यदि तांत्रिक दृष्टि से कमला साधना सम्पन्न की जाती है, तो निश्चित ही साधक आश्चर्यजनक उपलब्धियाँ अनुभव करने लगता है, जो तंत्र के क्षेत्र में थोड़ी बहुत भी रूचि रखते हैं, वे कमला तंत्र के नाम से परिचित हैं, और वे यह भी जानते हैं कि यह तंत्र कितना महत्त्वपूर्ण और दुर्लभ है। एक प्रकार से देखा जाये तो कमला तंत्र सर्वथा गोपनीय ही रहा है, मगर जो साधक पूर्ण निष्ठा के साथ इस कमला तंत्र को सिद्ध कर लेता है, उसके जीवन में समस्त सुख, वैभव और सौभाग्य प्राप्त हो जाता है। दरिद्रता तो हमेशा-हमेशा के लिये समाप्त हो जाती है, अनायास धन प्राप्ति की सम्भावनायें बन जाती है, और साधक अपने जीवन में सभी दृष्टियों से पूर्णता प्राप्त करता हुआ सही अर्थों में वैभव युक्त बन जाता है।
इस वर्ष 01 नवम्बर 2024 को लक्ष्मी पूजन पर्व है, साधकों को चाहिये कि वे प्रातः काल उठकर स्नान कर अपने पूजा स्थान में बैठ जायें और फिर साधना प्रारंभ करें। साधना प्रारंभ करने से पूर्व पूजन सामग्री अपने सामने रख दें, जिसमें जलपात्र, केसर, अक्षत, नारियल, फल, दूध का बना प्रसाद, पुष्प आदि हो। कमला साधना में अष्टगंध का प्रयोग ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है, अतः साधकों को चाहिये कि वे पहले से ही अष्टगंध प्राप्त कर उसे घोल कर अपने सामने रख लें।
अब कमला यंत्र को जल से फिर पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर) से स्नान कराकर पुनः शुद्ध जल से धोकर लकड़ी के बाजोट पर पीला वस्त्र बिछा कर इस यन्त्र को स्थापित करें। फिर साधक अलग पात्र में गणपति की स्थापना करें। दूसरे बाजोट पर नवग्रहों को स्थापित करें और फिर एक थाली रख कर उस पर नया पीला वस्त्र बिछा दें, कपड़े के ऊपर सिन्दूर से सोलह बिन्दियां लगायें सबसे ऊपर चार फिर उनके नीचे चार-चार बिन्दियां चार पंक्तियों में, इस प्रकार कुल 16 बिन्दियां लगा कर प्रत्येक बिन्दी पर एक-एक लौंग तथा इलायची रख कर फिर इसका अष्टगंध से पूजन करें और हाथ जोड़ कर निम्न ध्यान का उच्चारण करें-
फिर अपने सामने ‘ऊँ नमः शिवाय’ मंत्र से लक्ष्मी पर शंख स्थापित करें और पुष्प तथा अक्षत अपने सिर पर चढ़ा लें।
इसके बाद ताम्र पात्र पर अंकित ‘कमला यंत्र’ को जहाँ सोलह बिन्दियां लगाई है, उसी पर पूर्ण श्रद्धा के साथ स्थापित करें, और अष्टगंध से इस यंत्र पर सोलह बिन्दियां लगा दें। ये सोलह बिन्दियां सोलह लक्ष्मी की प्रतीक मानी जाती हैं।
इसके बाद दोनों हाथों में पुष्प तथा अक्षत लेकर निम्न मंत्र से अपने घर में भगवती कमला का आवाह्न करते हुये यंत्र पर पुष्प, अक्षत समर्पित करें-
इसके बाद साधक सामने शुद्ध घृत का दीपक लगावें उसका पूजन करें तत्पश्चात् सुगन्धित अगरबत्ती प्रज्जवलित करें, ऐसा करने के बाद साधक इस यंत्र पर कुंकुंम समर्पित करें, पुष्प तथा पुष्प माला पहनाये, अक्षत चढ़ावें तथा नैवेद्य का भोग लगावें। सामने ताम्बूल, फल और दक्षिणा समर्पित करें।
तत्पश्चात् साधक को चाहिये कि वह निम्न दुलर्भ कवच का पांच बार पाठ करे जो महत्वपूर्ण है, इसके द्वारा उस यंत्र का साधक के प्राणों से सीधा सम्बन्ध स्थापित हो जाता है और साधना सम्पन्न करने पर साधक को ओज, तेज, बल, बुद्धि तथा वैभव प्राप्त होने लग जाता है।
इस कवच का उच्चारण सनत्कुमार ने भगवती लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिये किया था। कमला उपनिषद् में भी इस लघु कवच का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण प्रयोग है-
वास्तव में ही यह कवच जो कि ऊपर स्पष्ट किया गया है, यह अपने आप में महत्त्वपूर्ण है, यदि साधक नित्य इसके ग्यारह पाठ करता है, तो भी उसके जीवन में धन, वैभव, यश, सम्मान प्राप्त होता रहता है।
प्रयोग में इसका पाँच पाठ करें, फिर ‘कमला माला’ का पूजन करना चाहिये। यह कमला माला विशेष मंत्रों से सिद्ध और सूर्य उपनिषद से संगुफित होती है, जो कि वास्तव में ही अत्यन्त महत्त्वपूर्ण मानी गयी है।
इसके बाद साधक घी के सोलह दीपक लगा लें, फिर निम्न कमला मंत्र की सोलह माला मंत्र जप उसी आसन पर बैठ कर करें-
जब सोलह माला मंत्र जप हो जाये तब भगवती लक्ष्मी की विधि-विधान के साथ आरती सम्पन्न करें और उस कमला यंत्र को पूजा स्थान में ही स्थापित रहने दें तथा कमला माला को इस यंत्र के सामने या यंत्र के ऊपर स्थापित कर दें। भविष्य में जब भी कमला मंत्र का जप करना हो तो इसी कमला माला से उपरोक्त मंत्र की एक माला फेरें।
वस्तुतः यह मंत्र और यह तांत्रिक प्रयोग अपने आपमें ही दुर्लभ और महत्वपूर्ण है, साधकों को चाहिये कि वे अवश्य ही इस साधना को सम्पन्न करें और अनुभव करें कि आज के युग में भी साधनायें कितनी शीघ्र और अचूक फल प्रदान करने में समर्थ है।
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