माला के बिना पुरूष का स्वरूप तथा स्त्री का रूप अधूरा सा लगता है। इस सब के पीछे एक विशेष शास्त्रीय विवेचन है। माला मंत्र-तंत्र और यंत्र का संयुक्त रूप होकर साधना में अभीष्ट फ़ल प्रदान करने वाली होती है। जीवन के सारे विधानों में माला का विशेष वर्णन आता है। यह सब एक विशेष क्रिया का स्वरूप है, आप भी अपने जीवन में अपनाईये मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त स्फ़टिक माला और देखिये कितना विशेष परिवर्तन होता है जीवन में—
मंत्र साधना में माला का विधान वैदिक काल से चला आ रहा है। योग अभ्यास तथा मन को केंद्रित करने का सबसे सशक्त माधयम माला ही है। माला का विधान हिंदू धर्म के साथ-साथ बौद्ध, जैन, सिक्ख के अतिरिक्त ईसाई धर्म और मुस्लिम धर्म में भी पूर्णतः आता है। माला द्वारा योगाभ्यास एशिया से ही पूरे विश्व में फ़ैला है और धीरे-धीरे अन्य धर्मों ने इसे अपना लिया। हिंदू धर्म में विभिन्न प्रकार की मालाओं का विधान प्राप्त होता है। इसमें मुख्यतया रूद्राक्ष माला, श्वेत चंदन माला, रक्त चंदन माला तथा हकीक माला और तुलसी माला का विधान प्राप्त होता है। सामान्यतः माला में 108 मनके होते हैं लेकिन हिंदू तथा बौद्ध धर्म के योगियों द्वारा 27 तथा 54 मनकों की माला का भी विधान आता है। माला के संबंध में यह सत्य है कि इसको धारण करने तथा हाथ में लेने से ही एक शक्ति का चक्र बनता है। प्राचीन काल से ही माला का प्रयोग योगाभ्यास के लिये तनाव को दूर करने के लिये तथा मानसिक शांति एवं चिंताओं को मुक्त करने के लिये किया जाता रहा है। माला एक ऐसा ठोस साधन है जिसके माध्यम से निरंतर प्रार्थना और मंत्र जप करने से ध्यान में एकाग्रता आती है। माला का प्रभाव इतना अधिक तीव्र होता है कि जैसे ही साधक माला लेकर अपने हाथ से उसे फि़राना प्रारंभ करता है तो उसी समय मन में एक शांति प्रारंभ हो जाती है। श्वास की गति नियन्त्रित हो जाती है और साधक का ध्यान एक मनके से दूसरे मनके चलने पर केंद्रित हो जाता है और जब यही सामान्य क्रिया किसी मंत्र के साथ की जाती है तो माला के साथ वह मंत्र जपने से उसका आध्यात्मिक प्रभाव, भौतिक प्रभाव अत्यंत तीव्र हो जाता है। इसीलिये सारे धार्मों में माला का विधान आया है।
बौद्ध धर्म के अनुसार मनुष्य के जीवन में 108 प्रकार के विचारों का प्रभाव निरंतर चलता रहता है जो इसे संसार चक्र में दुःखों के सागर में बार-बार ठेलते रहते हैं और 108 मनकों की माला द्वारा दुःखों से पार पाया जा सकता है। यह 108 की संख्या बौद्ध धर्म में विशेष स्थान रखती है। एक आख्यान के अनुसार बुद्ध के जन्म होने पर 108 ब्राह्मणों को उनका भविष्य कथन करने के लिये आमंत्रित किया गया था। बर्मा में भगवान बुद्ध के 108 पद चिन्ह हैं।
बुद्ध के उपदेशों के 108 खण्ड हैं और प्रत्येक खण्ड जीवन की स्थिति का विवेचन करता है। चीन के श्वेत पगोड़ा में जो वहां की राजधानी बीजिंग में स्थित है उसके चारों और 108 स्तम्भ बने हुए हैं। बुद्ध धर्म में दुष्कर्म करने वाले व्यक्तियों के लिये 108 प्रहारों का विधान है उसी आधार पर मन के 108 अशुद्ध विचार निकाल कर पूर्ण निर्मल चित्त होने के लिये 108 क्रियाओं का विधान आता है।
चीन में बुद्ध धर्म के फ़ैलने के साथ ही माला द्वारा जप और उसे धारण करने की क्रिया प्रारंभ हुई एक पूर्ण चीनी माला में 108 मनके होते हैं जिसे तीन भागों में अलग-अलग रंग तथा रूप में बाँट दिया जाता है। इसी प्रकार वहां एक 18 मनकों की छोटी माला का भी प्रचार है। यह 18 मनके बुद्ध के 18 प्रमुख शिष्य जिन्हें लोहानस् कहा जाता है उनका प्रतिनिधित्व करते हैं। इस माला को ‘‘सुचु’’ कहा जाता है। इसे धारण करने का यह तात्पर्य है कि मैं भगवान बुद्ध के साथ उनके द्वारा मनोनीत 18 गुरूओं को प्रार्थना प्रणाम करते हुए हृदय में स्थापित करता हूं।
सिख धर्म में भी माला का पूर्ण विधान है और यह माला मनको की ना होकर 108 गांठों की बनी हुई होती है। इसी प्रकार सिख धर्म में लौह मनकों की बनी माला का विधान है जो लौहे के तार द्वारा ही आपस में जुड़ी होती है। लेकिन सबसे मुख्य माला एक कड़े के रूप में होती है जिसमें 27 मनके होते हैं और यह मनके ‘‘लौहेना सिमरना’’ कहे जाते हैं।
शाक्त साधक अथवा शक्ति की उपासना करने वाले साधक किसी मृत व्यक्ति के दांत की माला बनाकर भी धारण करते हैं। इसी प्रकार सर्प अस्थियों की बनी माला का प्रयोग तंत्र साधना, रोग निवारण तथा सर्पदंश दोष दूर करने के लिये की जाती है। यह भी माना जाता है कि सर्प अस्थियों की माला हाथ में लपेटने से रोगी शीघ्र ठीक हो जाता है। इसी प्रकार शाक्त संप्रदाय के साधक अण्डाकार मनकों की बनी एक माला धारण करते हैं, तथा कई विशेष साधनाओं में हकीक माला का विशेष विधान आता है। मूंगा माला हनुमान साधक, भैरव साधक विशेष रूप से धारण करते हैं।
मुख्य रूप से माला 5 प्रकार की होती हैं। इस सब मालाओं का विधान शास्त्रों में आता है।
1- रूद्राक्ष माला
रूद्राक्ष माला में सामान्यतः 108 रूद्राक्ष फ़ल होते हैं। तथा इसमें सर्वश्रेष्ठ रूद्राक्ष फ़ल का मेरू कहा जाता है। रूद्राक्ष माला का प्रयोग व्यक्तित्व के संपूर्ण विकास के लिये, स्वास्थ्य एवं आर्थिक उन्नति प्राप्त करने के लिये, मन की स्थिरता एवं ध्यान एकाग्र करने हेतु तथा शत्रुओं और प्रतिद्वन्दियों पर विजय प्राप्त करने के लिये होता है।
2- स्फ़टिक माला
इस माला में भी 108 मनके तथा एक मनका मेरू मनका होता है। स्फ़टिक माला का उपयोग मुख्यतया मानसिक शांति आध्यात्मिक उन्नति के लिये किया जाता है। साथ ही इसका उपयोग व्यक्तित्व विकास, आकर्षण क्षमता में वृद्धि, सौन्दयर्ता, सौभग्य, तेजस्विता, प्रखरता और बुद्धि एवं ध्यान के विकास के लिये होता है।
3- रूद्राक्ष-स्फ़टिक मिश्रित माला
इस माला में एक मेरू मनका तथा 108 अन्य मनके होते हैं जिसमें 54 मनके रूद्राक्ष के तथा 54 मनके स्फ़टिक के होते हैं। इस माला में क्रमानुसार एक मनका रूद्राक्ष का तथा एक मनका स्फ़टिक का होता है। इस माला का प्रभाव ऊपर लिखे गये रूद्राक्ष माला तथा स्फ़टिक माला के संयुक्त प्रभाव के अनुसार होता है।
4- श्वेत चंदन माला
इस माला में सफ़ेद चंदन की लकड़ी को काट कर उसके छोटे-छोटे टुकड़े बनाकर उन्हें गोलाकार रूप दे दिया जाता है। और इसमें 108 मनके तथा एक मेरू मनका होता है। इस माला को अत्यंत पवित्र माना जाता है तथा नित्य प्रति की साधना में इसका प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त आकर्षण और वशीकरण प्रभाव उत्पन्न करने के लिये भी यह माला श्रेष्ठ मानी गयी है।
5- रक्त चंदन माला
यह माला लाल रंग के चंदन वृक्ष से बनाई जाती है। तथा इसका प्रयोग भी नित्य प्रति के मंत्र जप में किया जाता है। इसके साथ ही अपने व्यक्तित्व का प्रभाव दूसरों पर उत्पन्न करने के लिये किया जाता है। एक प्रकार से श्वेत चंदन माला और रक्त चंदन माला में कोई विशेष अंतर नहीं है। लेकिन शास्त्रों के अनुसार उग्र स्वभाव वाले व्यक्ति को श्वेत चंदन की माला तथा शांत स्वभाव वाले व्यक्ति को रक्त चंदन माला धारण करनी चाहिए।
6- तुलसी माला
इस माला में भी 108 मनके ही होते हैं। तथा यह पवित्रतम तुलसी वृक्ष की लकड़ी से बनाई जाती है। इस माला का प्रयोग नित्य मंत्र जप के साथ-साथ अपने आध्यात्मिक स्तर को उच्च बनाने के लिये किया जाता है। इस माला को धारण करने मात्र से एक विशेष प्रकार की मानसिक शांति तथा मोक्ष की ओर मार्ग मिलता है। तुलसी माला धारण करने से व्यक्ति धीरे-धीरे भौतिक इच्छाओं से ऊपर उठता है और संसार के दुखों से निवृति का मार्ग प्राप्त होता है। इसके साथ ही यह माला व्यक्ति में अनासक्ति के भाव का विकास करती है। और मोह माया, सांसारिक इच्छाओं से मनुष्य ऊपर उठ कर ध्यान एवं समाधि के मार्ग पर प्रशस्त होता है।
इन मालाओं के अतिरिक्त मूंगा माला तथ हकीक माला का भी शास्त्रों में विशेष विधान आया है। तांत्रिक साधनाओं में इन दोनों प्रकार की मालाओं का उपयोग किया जाता है।
स्फ़टिक माला क्या है ?
रूद्राक्ष, तुलसी, चंदन माला वनस्पतियों से प्राप्त होती है। वहीं स्फ़टिक प्रकृति में फ़ैले हुए हजारों खनिज इत्यादि की तरह एक विशेष प्रकार का पत्थर होता है। यह पत्थर अत्यंत चमकीला, आभावान तथा प्रकाश को ग्रहण कर उसे पुनः फ़ैलाने की क्षमता रखने वाला होता है। स्फ़टिक अन्य खनिज अर्थात् हीरा, नीलम, माणिक्य, पुखराज, गोमेद की तरह ही पृथ्वी पर पाया जाने वाला पत्थर होता है। लेकिन यह पत्थर समुद्र के तल पर स्थित होता है तथा समुद्र के भीतर चलने वाले चक्र से यह स्वच्छ होता हुआ चमकीला बन जाता है। इस प्रकार यह पृथ्वी का ही एक अंग होने के कारण इसमें पृथ्वी तत्व मुख्य रूप से है। अन्य रत्न जो कि एक प्रकार से पत्थर ही होते हैं विशेष ग्रहों के प्रभाव से युक्त रहते हैं केवल विशेष प्रकार की रश्मियाँ ही ग्रहण करते हैं। लेकिन स्फ़टिक पत्थर सब प्रकार की रश्मियों को ग्रहण कर उन्हें संग्रहीत कर पुनः उस ऊर्जा को संचारित करता है।
मनुष्य मूलतः पृथ्वी का ही भाग है और इसी तत्व से उसमें मानसिक तथा शारीरिक स्थायित्व आता है। इस प्रकार स्फ़टिक पृथ्वी तथा अन्य तत्वों से, ग्रहों से ऊर्जा ग्रहण कर मनुष्य में पुनः संचारित करने की शक्ति रखता है। एक प्रकार से यह ‘‘पॉंवर हाउस’’ है जो ऊर्जा को ग्रहण कर नियन्त्रित कर, उसे इस प्रकार से प्रवाहित करता है व्यक्ति उस ऊर्जा को ग्रहण कर सके और देह की ऊर्जा में गुणात्मक परिवर्तन कर सके। यहां तक की उच्च कोटि के शिवलिंग स्फ़टिक शिवलिंग होते हैं जिसके सामने बैठने मात्र से एक ऊर्जा भाव संचारित होता है और जब इसी ऊर्जा भाव संचारित होता है और जब इसी स्फ़टिक के मनकों को मनुष्य धारण करता है तो उसे एक दिव्य शक्ति प्राप्त होती है। उसके भीतर की सोई हुई शक्तियां जाग्रत हो जाती हैं। भीतर की शक्तियां और ईश्वर की ब्रह्माण्डीय शक्ति का मिलन बिंदु स्फ़टिक ही है।
भारत वर्ष में सर्वश्रेष्ठ स्फ़टिक गुजरात में खंभात की खाड़ी में पाया जाता है। यह स्फ़टिक एकदम साफ़, पारदर्शी तथा चमकीला होता है जिसको निरंतर एक टक देखना भी मुश्किल हो जाता है और उसकी सब दिशाओं से किरणें निकलती हुई प्रतीत होती हैं। सामान्यतः स्फ़टिक कांच जैसा ही दिखाई देता है। लेकिन कांच कृत्रिम रूप से बना हुआ होता है जब कि स्फ़टिक पृथ्वी में स्वनिर्मित एक पत्थर है जिसको हाथ में लेते ही एक ऊर्जा का आभास होता है। भगवान श्रीकृष्ण और श्री विष्णु के गले में धारण स्फ़टिक माला ही है जिसे वैजयंती माला कहा जाता है।
स्फ़टिक माला में बड़े पत्थरों को काट कर उन्हें गोलाकार, अष्टकोणीय अथवा अन्य प्रकार का रूप दे दिया जाता है। चार कोणों वाले स्फ़टिक की माला धारण नहीं की जाती है क्योंकि उससे ऊर्जा केंद्रिय भूत नहीं होती। सारे मनकों को एक साथ पिरोया जा सकता है तथा एक मनके और दूसरे मनके के बीच में गांठ भी लगाई जा सकती है।
सामान्यतः धारण करने वाली माला में 108 मनके होते हैं तथा एक मनका मेरू होता है जिसे गुरू भी कहा जाता है, सुमेरू भी कहा जाता है। माला कहीं से भी प्राप्त की जा सकती है लेकिन गुरू द्वारा प्रदत्त माला में विशेष शक्ति होती है क्योंकि गुरू अपने आशीर्वाद से अपनी शक्ति से माला को चैतन्य करते हैं और चैतन्य माला का उपयोग साधना में करना चाहिए।
यदि स्वयं माला बनाऐ तो मनकों को धागे में पिरोते समय गुरू मंत्र या गायत्री मंत्र का जप अवश्य ही करना चाहिए। जब गुरू से माला प्राप्त हो तो यह आवश्यक है कि माला को दोनों हाथ में लेकर अपनी प्राण ऊर्जा से फ़ूंक मारनी चाहिए। शास्त्रीय विधान के अनुसार माला प्राप्त होते ही माला को दोनों हाथ में लेकर हाथ बंद कर मस्तिष्क पर स्पर्श कराया जाता है। माला धारण करने से पहले माला को हाथ में लेकर निम्न मंत्र का उच्चारण अवश्य करना चाहिए-
हृीं माले माले महा माले! सर्व-तत्व-स्वरूपिणि!
चतुर्वर्गस्तवयि न्यस्तस्तस्मान् मे सिद्धिदा भव।।
अर्थात् हे माला महामाला आप जगत की सब वस्तुओं का स्वरूप हैं और मुझे अपने जीवन में चतुर्वर्ग धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष प्राप्त हो और इस प्रकार मैं जीवन में पूर्ण सफ़लता प्राप्त करूं।
जिस साधना के लिये माला का प्रयोग किया जाता है उस साधना के बीज मंत्र का उच्चारण प्रत्येक मनके पर 11 बार अवश्य करना चाहिये। सामान्य रूप से माला दो प्रकार की होती है। एक धारण करने वाली माला और दूसरी जप माला।
धारण करने वाली माला को भी शयन से पहले उतार कर अपने तकिये के नीचे रख देना चाहिए। जप माला को पूजा स्थान में अथवा किसी अन्य शुद्ध स्थान में रखना चाहिए।
मंत्र जप के समय गुरू मनके अर्थात् सुमेरू की गणना नहीं की जाती है और सुमेरू मनके पर मंत्र जप नहीं किया जाता। माला से मंत्र जप करने का एक विधान है और इसी विधान से मंत्र जप करने से साधना में सफ़लता प्राप्त होती है। जप में माला को दाहिने हाथ में रख कर मंत्र जप करना चाहिए तथा अंगूठे और मध्यमा अनामिका अंगुली से मंत्र जप करना चाहिए। मंत्र जप के समय माला हृदय के सामने होनी चाहिये तथा जब मंत्र जप प्रारम्भ करें तो गुरू मनके सुमेरू से प्रारम्भ कर पुनः सुमेरू तक मंत्र जप करना चाहिये तथा कभी भी एक माला मंत्र जप के पश्चात् दूसरी माला मंत्र जप करते समय सुमेरू को नहीं लांघना चाहिए। पुनः हाथ को घुमाकर जिस मनके पर 108 वार मंत्र जप किया था उसी मनके से पुनः प्रारम्भ करना चाहिए। यद्यपि माला 108 मनकों की होती है लेकिन गणना में 100 की संख्या ही मानी जाती है। अर्थात् 10 माला मंत्र जप सहस्त्र अर्थात् 1000 मंत्र जप संख्या ही मानी जाती है।
गुरू मंत्र का जप स्फ़टिक माला से संपन्न करना चाहिए इसलिये स्फ़टिक माला को गुरू रहस्य सिद्ध माला भी कहा गया है।
विशेष-
विभिन्न प्रकार के रत्न धारण करने हेतु मनुष्य ज्योतिषियों की सलाह लेता और कई बार कुछ रत्न उसे उचित प्रभाव देते हैं अनुचित प्रभाव भी दे सकते हैं लेकिन श्रेष्ठ स्फ़टिक माला में किसी भी प्रकार का अनुचित प्रभाव प्राप्त नहीं होता है। सदैव श्रेष्ठ प्रभाव ही प्राप्त होता है। मनुष्य जीवन में सबसे बड़ी इच्छा यही रहती है कि उसे मानसिक शांति प्राप्त हो। मन में एकाग्रता आये। वह सही निर्णय ले सके। अपने कार्यों को उचित रूप से संपन्न कर सके। दैवीय शक्तियां ऊर्जा रूप में उसे प्राप्त हों। ब्रह्माण्ड की शक्ति को अपनी शक्ति के साथ समन्वय कर सके।
इन सब के लिये स्फ़टिक माला ही सर्वश्रेष्ठ माला मानी गयी है। यह माला ही अपने आप में अद्वितीय सिद्धिदात्री माला है। बस धारण करने से पहले इतना अवश्य ध्यान रखें कि यह मंत्र सिद्ध, प्राण प्रतिष्ठित हो अन्यथा माला शक्ति माला न होकर एक चमकदार वस्तु बन कर रहा जाती है।
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