जन्म से 40 दिन तक सुबह-शाम दो आनी भार शहद चटाने से बालकों को वराध रोग नहीं होता।
मोरपंख की भस्म एक ग्राम, कालीमिर्च का चूर्ण एक ग्राम। इनको घोंटकर छः मात्र बनायें। जरूरत के अनुसार दिन में एक-एक मात्र तीन-चार बार दें। वराध में लाभ होगा।
हल्दी का नस्य देने से तथा एक ग्राम शीतोपलदि चूर्ण पिलाने से अथवा अदरक व तुलसी का रस शहद के साथ देने से खांसी में लाभ होता है।
सोंठ को दूध अथवा पानी में घिसकर पिलाने से कफ़ निकल जाता है।
बाल रोगों में हल्दी व सैंधा नमक शहद अथवा दूध के साथ चाटने से बाल को उल्टी होकर वराध में राहत मिलती है। यह प्रयोग एक वर्ष से अधिक की आयु वाले बालक पर ही करें।
पीपल की छाल और ईंट पानी में एक साथ घिसकर लेप करने से फ़ुन्सियां मिटती हैं।
हल्दी, चंदन, मुलहठी व लोधर का पाउडर मिलाकर या किसी एक का भी पाउडर पानी में मिलाकर लगाने से फ़ुन्सी मिटती है।
तुलसी के पत्तों का रस शहद में मिलाकर मसूढ़े पर घिसने से बालक के दांत बिना तकलीफ़ के आने लगते है।
मुलहठी का चूर्ण मसूढों पर घिसने से दांत जल्दी निकलते हैं।
त्रिफ़ला या मुलहठी का चूर्ण तीन घंटे से अधिक समय तक पानी में भीगोकर फि़र थोड़ा-सा उबालें व ठण्डा होने पर मोटे कपडे से छानकर आंखों में डालें। इससे समस्त नेत्र रोगों में आशातीत लाभ हेाता हैं। यह प्रतिदिन ताजा बनाकर ही प्रयोग में लें तथा सुबह का जल शाम तक उपयोग में न लेवें।
हिचकी में धीरे-धीरे प्याज सुँघाने से लाभ होता है।
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