विज्ञान वास्तविक सुख देने में अक्षम है। देह का कायाकल्प होना कोई साधारण बात नहीं होती, यह तो ज्ञान द्वारा ही सम्भव हो सकता है और ज्ञानियों ने इन सब प्रश्नों का हल अपनी कठोर साधना व तपस्या से ढूंढ निकाला है। जब उनके घोर परिश्रम से प्राप्त इन गूढ़ रहस्यों का अर्थ आज हमें सहज रूप में प्राप्त हो रहा है, तो कोई उसके महत्व को समझ नहीं पा रहा है। मनुष्य के भौतिक जीवन में कोई एक समस्या नहीं होती, कोई एक रोग नहीं होता, जिससे छुटकारा पाया जा सके, उसके गृहस्थ जीवन में तो अनेक प्रकार की बाधाएं, व्याधियां होती हैं, जो उसके उन्नति की ओर बढ़ते कदम को रोक लेती है। इसके फ़लस्वरूप मानव-जीवन व्यर्थ सा लगने लगता है, क्योंकि जब तक व्यक्ति रोग मुक्त नहीं होगा, तब तक वह पूर्णरूप से स्वस्थ नहीं कहला सकता। किन्तु जुकाम, खांसी, कैंसर आदि को ही रोग नहीं कहते, अपितु विभिन्न परेशानियां, बाधाएं आदि भी व्यक्ति के लिए किसी रोग से कम नहीं होती, जब तक व्यक्ति पूर्ण पौरुष युक्त न हो, तब तक उसका व्यक्तित्व अधूरा है, अपूर्ण है।
ज्योतिषानुसार व्यक्ति के जीवन में कुछ ग्रह ऐसे भी होते है, जिनका दुष्प्रभाव पड़ने पर वे उस व्यक्ति को रोगी बना डालते है, फि़र चाहे वह व्यक्ति लाख उपाय कर ले, वह ठीक नहीं हो पाता। हजारो-लाखों रुपये उसके इलाज में खर्च हो जाते हैं, उसके बावजूद भी वह स्वस्थ नहीं पाता और सभी तरह के इलाज होम्योपैथिक, ऐलोपैथिक या आयुर्वेदिक करवा कर जब वह थक जाता है, तब मृत्यु का स्मरण होते ही उसके मन में भय और शोक व्याप्त हो जाता है, जिसकी वजह से वह समय से पहले ही भय ग्रस्त और मृत्यु के प्रति आशंकित हो जाने के कारण मृत्यु की गोद में चला जाता है।
यदि रोगी अपने महत्वपूर्ण क्षणों में से थोड़ा-सा समय निकाल कर मंत्र-जप करें, जो कि विशेष शक्ति युक्त हो, और जिसको यदि विशेष मुहूर्त में किया जाए, तो उसके महत्वपूर्ण लाभ उस रोगी को स्वस्थ और सुखमय जीवन प्रदान कर देते हैं। व्यक्ति इतनी मेहनत, दौड़-धूप और परिश्रम करने पर भी रोगमुक्त नहीं हो पाता, वह अपने-आप को अस्वस्थ ही महसूस करता है, क्योंकि आये दिन की उलझने, परेशानियां, तनाव उसे रोगी बन देते हैं।
आज जबकि अधिकतर बीमारियों का इलाज विज्ञान ने ढूंढ निकाला है, किन्तु सभी बीमारियों का इलाज विज्ञान के पास आज भी नहीं है। इसीलिए जहां विज्ञान भी अपने घुटने टेक देता है, वहीं से ज्ञान का प्रारम्भ होता है। ज्ञान से तात्पर्य यहां उस मूल क्रिया-पद्धति से है, जो व्यक्ति को सुखमय जीवन प्रदान करती है। ज्ञान का तात्पर्य यहां उस ईश्वरीय शक्ति से है, उस मंत्र-बल से है, जिसके माध्यम से कुछ भी सम्भव हो सकता है।
किसी भी व्यक्ति की दुर्बलता व शरीर की विकृति उसके सम्पूर्ण व्यक्तित्व को समाप्त कर डालती है। अपने शरीर, मन और सम्पूर्ण व्यक्तित्व को सजाने, संवारने और निखारने के लिए किसी विशिष्ट दैवी शक्ति की आवश्यकता प्रत्येक व्यक्ति को पड़ती ही है। व्यक्ति असमय ही पड़ी चेहरे की झुर्रियों, आंखों के नीचे स्याह, बाल पक जाने आदि को देख बड़ा ही दुःखी और व्यथित हो जाता है, क्योंकि उसे समय से पहले ही अपने भीतर बुढ़ापे के लक्षण नजर आने लगते है।
मानव-जीवन की तीन ही अवस्थाएं होती है – 1 बाल्यावस्था, 2 यौवनावस्था, 3 वृद्धावस्था और हर व्यक्ति को इन तीनों अवस्थाओं से गुजरना ही पड़ता है। इसीलिए जब वह बुढ़ापे के लक्षण अपने अन्दर देखता है, तो उसे अपनी मृत्यु का भी आभास होने लगता है, जो उसे अन्दर तक झकझोर देती है।
क्या ऐसा संभव नहीं कि वृद्धावस्था पुनः यौवनास्था में बदल जाये और हम फि़र से पूर्ण स्वस्थ, निरोगी, भय रहित दिखाई दें और अपने जीवन का आनन्द ले सके ? यह प्रश्न हर व्यक्ति के मानस-पटल में हर क्षण उमड़ता-घुमड़ता रहता है, पर क्यों ? —- क्योंकि हर कोई यही चाहता है, कि वह अपने जीवन में हर क्षण यौवनवान बना रहे सके, हरदम उसके चेहरे पर एक तरोताजगी, नूर और तेजस्विता झलकती हुई दिखाई दे, वह हर क्षण मस्ती में डूब सके, आनन्द से सराबोर हो सके, क्योंकि जब तक जीवन में उत्साह, उमंग, आनन्द और मस्ती नहीं होगी, तब तक जीवन पूर्ण नहीं कहला सकता।
‘‘धनवन्तरी’’ ने भी स्पष्ट शब्दों में प्रमाण के साथ कहा है – ‘‘वृद्धावस्था को यौवनास्था में बदला जा सकता है’’, और ऐसा तब सम्भव हो सकता है, जब शरीर का पूर्णरूप से कायाकल्प हो, जिसे ‘‘नारायण कल्प’’ के सिद्ध होने पर प्रत्येक साधक कर सकता है, और उसमें सफ़लता भी प्राप्त कर सकता है, क्योंकि यह अपने आप में एक श्रेष्ठतम प्रयोग है। नारायण कल्प – वह प्रक्रिया, जिसके द्वारा वह अपनी सड़ी-गली, जर्जर काया के बदले में एक सुन्दर, सुगठित और आकर्षक काया को मात्र मंत्र- बल की शक्ति द्वारा पुनः प्राप्त करने में सक्षम हो सकता है, किन्तु इसके लिए आवश्यकता है – संयम की। आवश्यकता है – ‘‘नारायण कल्प मंत्र’’ और ‘‘यंत्र’’ के प्रति श्रद्धा की। आवश्यकता है – उसके प्रति पूर्ण आस्था और विश्वास की।
क्योंकि मंत्र-बल द्वारा इस ‘‘नारायण कल्प’’ से ऐसी ऊर्जा का संचरण होता है, जो रोगी के हृदय के भीतर, उसके रोम-रोम को आभा युक्त कर, उस साधक का उस मंत्र और यंत्र के देवता से सामंजस्य स्थापित कर देती है, जिसके फ़लस्वरूप वह निरोगी हो जाता है, तथा उसकी सम्पूर्ण देह में ‘‘कायाकल्प’’ की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है और वह पूर्ण स्वस्थ और यौवनवान बन जाता है।
जीवन में संशय, दुःख, पीड़ा, व्याधि, बाधा, शोक, भय यही तो रोग के मूल कारण हैं, जिनकी वजह से व्यक्ति हर क्षण अस्वस्थ और वृद्ध दिखाई देता है और जब तक रोग की इस मूल जड़ को ही उखाड़ कर नहीं फ़ेंका जाएगा, तब तक व्यक्ति स्वस्थ हो ही नहीं सकता। किन्त अपने-आप में पूर्णरूप से रोग मुक्त, भय रहित हुआ जा सकता है, अपने-आप को पूर्ण स्वस्थ बनाया जा सकता है, और वह भी मंत्र-जप द्वारा।
मंत्र शक्ति तथा विधिवत सम्पन्न किये गये प्रयोग का उस साधक के चित पर इतना अधिक प्रभाव पड़ता है कि वह उसी क्षण से अपने शरीर को हल्का अनुभव करने लगता है और कुछ ही समय के अतंराल के बाद वह स्वतः ही स्वस्थ और सुन्दर दिखने लगता है, उसका धीरे-धीरे कायाकल्प हो जाता है।
जब व्यक्ति चारों तरफ़ से हताश और निराश हो जाता है, तब वह ईश्वर की शरण में जाता है, और उनकी पूजा-आराधना कर अपने सुखमय जीवन की कामना करने लगता है, परन्तु यह संशय उसके मन में रहता ही है, कि शायद पूर्ण हो जाए। यदि उसी पूजा को, उसी आराधना को एक विधिवत तरीके से कर, रोग मुक्त, स्वस्थ एवं सुखी होने की कामना की जाए, तो वह इस ‘‘नारायण कल्प’’ द्वारा अवश्य ही सम्पन्न हो सकती है। तब व्यक्ति या साधक ज्यादा सुन्दर और पूर्णरूप से स्वस्थ हो जाता है, तब वह औरों से ज्यादा सुखी व सम्पन्न दिखने लगता है, क्योंकि उसके शरीर का पूर्ण कायाकल्प जो हो जाता है।
सामग्री: नारायण यंत्र, नारायण चक्र, पीली हकीक माला।
दिवस: 16 मई 2012 बुधवार, ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष, एकादशी या अन्य किसी भी बुधवार को प्रातः काल या रात्रि में अपनी सुविधानुसार कभी भी इस प्रयोग को किया जा सकता है। विधिा: 16 मई को ही अथवा एक दिन पहले अर्थात् 15 मई को साधक अशोक के दो पत्ते तोड़कर ले आए, फि़र अपने पूजा स्थान में स्नान कर पीले आसन पर बैठे तथा अपने सामने चौकी पर पीला वस्त्र बिछा कर कुंकुंम या रोली से ¬लिखकर ‘‘नारायण यंत्र’’ स्थापित करें। अशोक के पत्तों पर हल्दी घोल कर निम्न यंत्र अंकित करें, यंत्र लिखने के लिए अशोक की लकड़ी या पीपल की लकड़ी की बनी हुई कलम प्रयोग करें, यंत्र इस प्रकार बनाये:- इन पत्तों को यंत्र के ऊपर रख दे तथा उस पर ‘‘नारायण चक्र’’ रखें। पीले पुष्प और पीले रंगे हुए चावलों से संक्षिप्त पूजन करे तथा दैनिक साधना विधि के अनुसार न्यास सम्पन्न कर ध्यान करें –
उद्यत्-प्रद्योतन-शत-रूचिं तप्त-हेमावदाभम्,
पार्श्व-द्वन्द्वे जलधिा-सुतया विश्व-धात्र्या च जुष्टम्।
नाना-रत्नोल्लसित-विविधाकल्पमापीत-वस्त्रम्,
विष्णुं वन्दे दर-कमल-कौमोदीकी-चक्र-पाणिम्।।
इस प्रकार ध्यान कर भगवान नारायण से अपनी मनोकामना पूर्ण करने की प्रार्थना करें तथा ‘पीली हकीक माला’ से निम्न मंत्र का 5 माला मंत्र जप सम्पन्न करें –
मंत्र-जप सम्पन्न करने के पश्चात् पूजन सामग्री – यंत्र, चक्र तथा माला को पीले रंग के कपड़े की पोटली में बांधकर नदी में विसर्जित कर दें।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,