इस शक्ति भाव को जाग्रत करना है, एकाग्र भाव से ‘‘पराम्बा मां भगवती’’ की साधना द्वारा जो जगत की आधार शक्ति है, और जो शिव की शक्ति हैं। कुण्डलिनी जागरण के दिव्य भाव की प्रक्रिया प्रारम्भ हो सकती है हर एक के भीतर, यदि उसमें लगन है, इच्छा शक्ति और संकल्प के साथ आगे बढ़ने की कामना है। नवरात्रि पर्व सोये हुए भाग्य को जगाने का पर्व है, क्योंकि भाग्य का लेख केवल शक्ति सम्पन्न होकर ही नवीन रूप से लिखा जा सकता है। पराम्बा शक्ति मां भगवती का सबसे प्रबलतम स्वरूप है – ‘‘मां काली’’, और जब मां काली अपना वरद्हस्त साधक पर रखती हैं, तो वह अपने जीवन में सांसारिक चक्रव्यूह को भेदते हुए जीवन में बढ़ता ही चला जाता है अपने लक्ष्य की ओर तीव्र गति से। मां काली की सिद्धि से, मार्ग के कांटे बन जाते हैं – पुष्प और बाधाएं बन जाती हैं – साधारण रेत के कण। शत्रु हो जाते हैं – निर्जीव और उदित होता है – पराक्रम भाव।
साधना करनी है महाकाली की, जो कि चामुण्डा हैं, महामाया है, अम्बिका, दुर्गा, कालरात्रि हैं। इस नवरात्रि में महालक्ष्मी, जो त्रिभुवन मोहिनी देवी हैं, जिनकी माया से ही यह संसार गतिमान हे, उस महालक्ष्मी का आव्हान करना हे, नमन करना है, इस विशेष नवरात्रि महोत्सव में, जिनके स्वरूप हैं – श्री, पद्मा, कमला, लक्ष्मी। नवरात्रि महोत्सव में पराम्बा महाशक्ति के ‘‘महा सरस्वती’’ स्वरूप का आव्हान कर अपने भीतर आरोहित करना है, जो महाविद्या, महावाणी भारती, वाक्ब्राह्मी वागेश्वरी ज्ञान बुद्धि वृद्धि हैं, जिनकी कृपा से साधक जीवन में उस शक्ति को प्राप्त करता है, जिससे उसका यश चारों दिशाओं में फ़ैलता है तथा उसे ‘वाक् सिद्धि’ एवं ‘वशीकरण सिद्धि’ प्राप्त होती है। वास्तव में नवरात्रि तो शतअष्टोतरी साधना सिद्धि पर्व है, जब शक्ति के 108 स्वरूपों का आव्हान कर उन्हें चैतन्य किया जाता है।
एक तरह से देखा जाय, तो मंत्र मानव जीवन की उपलब्धियों के प्रदाता है और साधना इसका सर्वश्रेष्ठ मार्ग जब साधना और कर्म का समन्वय होता है और वह भी विशेष मुहूर्त में, विशेष व्यक्तित्व के सान्निध्य में, तो साधक के उदात्त जीवन का निर्माण स्वतः ही सम्भव हो जाता है निश्चय ही यह नवरात्रि का पर्व व्यक्ति में नवीन प्राणश्चेतना जाग्रत करता ही है और एक दिशा निर्देश करके ‘‘असतो मा सद्गमय’’ की ओर उसको सुप्रेरित करता है। नवरात्रि का तात्पर्य है – नव + रात्रि, यानि जीवन में कुछ न्यूतन व्याप्त गहन अंधकार को समाप्त कर प्रकाश की ओर अग्रसर होना और जीवन में कुछ नया घटित हो जाना, जो दूसरों से अलग हो, ऊर्जा और शक्ति से आवलम्बित हो।
जगज्जननी मां दुर्गा अपने आराधकों को अपनी प्राणस्विता, तेजस्विता, ऊर्जस्विता प्रदान कर उनके जीवन को धन्य कर देती हैं, क्योंकि मां अपने पुत्र को कभी असहाय या अशक्त नहीं देख सकती, यदि साधक शक्ति की आराधना करता है, तो मां को सर्व शक्तिदायिनी स्वरूप में उसके हृदय, उसके प्राणों व तन-मन में समाहित होना ही पड़ता है। यदि उस शक्ति को अपने भीतर समाहित करने की प्रक्रिया ज्ञात हो तो, क्योंकि एक शिशु जानता है कि मां की आराधना या आवाहन कैसे किया जाता है, जिससे उसे सब कुछ छोड़कर आने के लिए विवश होना ही पड़ता है, क्योंकि मां करुणा, ममत्व और स्नेह की प्रतिमूर्ति होती है।
शक्ति तो वह शस्त्र है, जिससे माध्यम से किसी भी महासंग्राम को आसानी से जीता जा सकता है, अगर ऐसा न होता, तो नवरात्रि रची नहीं जाती, शक्ति साधनाओं का कोई विशेष महत्व ही नहीं होता। इस बार नवरात्रि ऐसी ही श्रेष्ठतम साधनात्मक शक्ति को अपने साथ लेकर आ रही है, जिस शक्ति के अजस्त्र स्त्रोत में साधकों के हृदय को आप्लावित करके पावनतम कर देने की प्रक्रिया सम्पन्न होगी, क्योंकि पहली बार नवरात्रि की इस पावन बेला में पूज्य गुरुदेव की अनुकम्पावश, जो साधनाएं नवीन और उत्कृष्ट है, वे साधक जो सफ़लता की आकांक्षा लिए हुए अत्यन्त उत्सुक और श्रद्धानवत हैं, उन्हें पूर्णता देने के लिए ये सहायक सिद्ध होगी। इस साधना शिविर में इन विशिष्ट साधनाओं और दीक्षाओं को प्राप्त कर, प्रत्येक साधक अपने जीवन को उज्जवल कर उसे पूर्णरूप से सार्थक कर सकता है।
प्रतिपदा “शुक्र वारेन उभा नक्षत्र योर्विता।
मीन चन्द्रे शुभारम्भ नवरात्रि पूर्ण सिद्धिः।।
प्रखर ज्योतिषी एवं स्वामी एकात्मानन्द के अनुसार – ‘‘यदि किसी भी वर्ष में आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को शुक्रवार हो, प्रतिपदा नक्षत्र हो, मीन का चन्द्रमा हो और नवरात्रि प्रारम्भ होती हो, तो वह अपने-आप में पूर्ण सिद्धिप्रद नवरात्रि कहलाती है।’’ इस बार कई वर्षों के बाद ऐसा मुहूर्त उदित होने जा रहा है, जो एक संयोग ही कहा जा सकता है। जब मातृशक्ति की बात आती है, तो स्वतः ही किसी भी शक्ति उपासक के नेत्रों व हृदय में अत्यन्त आह्लाद के साथ मां दुर्गा का मनोहारी बिम्ब प्रस्तुत होने लगता है।
जब सभी ग्रह एक ही केन्द्र पर एकत्र हो, तब अद्वितीय क्षण का निर्माण होता है, और उस विशेष क्षण में की गई साधनाएं और ली गई दीक्षाएं साधक के जीवन को फ्रुल्लित और विकसित करके सौभाग्य प्रदान करती ही हैं। यदि उन क्षणों का लाभ उठा लिया जाय, तो मां दुर्गा अपने त्रिगुणात्मक स्वरूप में पूर्ण श्रृंगार युक्त हो सर्व सौभाग्यदायिनी होती है। प्रत्येक पुरुष के अन्दर त्रिगुणात्मिका प्रकृति, जो सत्व, रज, तम तीनों गुणों की सूचक है, सुप्त अवस्था में होती है, यह नवरात्रि शिविर का इस सुसुप्तावस्था को चैतन्यावस्था तथा अधोगामी जीवन को ऊधर्वगामी बनाने का उचित अवसर है, जो सद्गुरुदेव की कृपा व उनके विशेष अनुकम्पा ही कही जा सकती है। नवरात्रि का यह साधना शिविर मानव में निहित शक्तियों के प्रस्फ़ुटन की क्रिया से युक्त है, और इस क्रिया का ज्ञान तो गुरु की उपस्थिति से ही प्राप्त हो सकता है। प्रायः सभी मनुष्यों को स्वयं अपनी अन्तःचेतना का ज्ञान नहीं होता, उन्हें तो सिफऱ् अपने बाह्य अंगों का ही ज्ञान होता है, परन्तु जो शक्ति उन बाह्य अंगों को संचालित करती है, उसका प्रत्यक्ष दर्शन गुरु के बिना नहीं किया जा सकता।
साधना शिविरों के पीछे गुरुदेव की मात्र यही भावना रहती हे, कि कोई भी व्यक्ति या साधक अपने जीवन में अधूरा या पीडि़त न रह जाय, कदाचित् इसी भावना का स्मरण कराने के लिए गुरुदेव नवरात्रि की पावन बेला में शिष्यों को वह चैतन्यता प्रदान करते है, जो उनके जीवन के समस्त अभावों को दूर कर सके, क्योंकि प्राचीन काल से ही इस भावना को पूर्ण करने के उद्देश्य ही इस शक्ति पर्व का विधान रचा गया है, जो शास्त्र सम्मत है।
सही साधक वही होता है, जो परिस्थितियों से जूझकर भी इस अवसर का लाभ उठा ले, जो अपने परिवार व समाज की परवाह किये बिना, कंटीले रास्तों को लांघता हुआ इन विशिष्ट क्षणों को चूके नहीं और अपने जीवन को संवारने के लिए निरन्तर गतिशील बना रहे, वस्तुतः ‘‘शक्ति’’ की प्राप्ति गतिशील साधक को ही होती है, भाग्य का रोना रोने वाले या असहाय बनकर गिड़गिड़ाने वाले को नहीं। यह नवरात्रि साधक के भीतर उस चैतन्य शक्ति को जाग्रत करने का पर्व है, जो उसे समर्थ क्षमतावान बनाकर उसके जीवन को निर्द्वन्द्वकर देती है। जब साधक स्वयं यह कह उठता है – ‘‘मुझमें वह क्षमता वह सामर्थ्य, वह शक्ति है, जिसके बल पर मैं अपने जीवन की अपूर्णताओं को सद्गुरुदेव की कृपा से पूर्णतामय बदल सकता हूं।’’ साधक में इस भावना को जाग्रत होना उसके जीवन की पूर्णता का प्रतीक है। जिसको चूकना जीवन की न्यूनता ही कही जा सकती है।
इस बार नवरात्रि 23 मार्च से आरम्भ हो रही है और हमने प्रथम विशेष तीन दिनों का ही नवशक्ति साधना शिविर, कैलाश सिद्धाश्रम, दिल्ली में रखा है, नव संवत् 2069 का प्रारम्भ ही देश के हृदय स्थल दिल्ली से होना ही अपने आप में वर्ष की पूर्णता का भाव है। इसलिए इस बार नवरात्रि में दस महाविद्याओं से युक्त शक्तिपात दीक्षाए और इनसे सम्बन्धित पूर्ण प्रत्यक्ष साधना प्रयोग सम्पन्न होगे।
नवशक्ति साधना शिविर 23, 24, 25 मार्च 46 कपिल विहार, पीतमपुरा, दिल्ली।
बगलामुखी शक्ति साधना शिविर 26, 27 मार्च देमार जिला धमतरी छतीसगढ़।
चन्द्रहासिनी दुर्गा शक्ति साधना शिविर 28, 29 मार्च चन्द्रपुर जिला जांजगीर।
दुर्गाष्टमी लक्ष्मी साधना शिविर 31 मार्च जबलपुर।
जिस प्रकार कोई भी वृक्ष अपने-आप में चाहे वह कितना भी फ़ैला हुआ हो, मूल रूप से तो उसकी जड़ें ही हैं, जो पतली-पतली हजारों तरफ़ फ़ैली होती हैं, इन दिनों में सम्पन्न होने वाली साधनाएं भी अपने-आप में पूरी साधनात्मक जड़ें है, जो पूर्ण ब्रह्माण्ड में फ़ैली हुई है, जिसके ऊपर नवरात्रि के दिन टिके है, अतः इसी कारण वश इस नवरात्रि का अत्यधिाक महत्व है।
नवरात्रि के ये दिवस अपने में चार युगों के प्रतीक है, क्योंकि पहली बार कई वर्षों बाद ऐसे श्रेष्ठ योग निर्मित हो रहे है, जिसके प्रभाव से आने वाला जीवन अपने-आप में पूर्णता की ओर अग्रसर का महायोग है, वह दिव्य अलौकिक शक्ति साधकों को प्रदान करने के लिए, यह कोई आवश्यक नहीं कि नवरात्रि के नौ दिनों तक साधना की जाय, यह तो उस सक्षम पुरुष, जो मार्ग दर्शक के रूप में हमारे सामने अडिग होकर के निश्चित ही साधाकों को पूर्णता देने के लिए खड़े है, उनकी चैतन्यता और तपस्यांश के माधयम से ऐसी क्रिया सम्पन्न होती है, पीछे भी इस तरह की कई क्रियाए क्रियान्वित हुई है, जो अपने-आप में उस समय आश्चर्यजनक थी, किन्तु जो हमारे सामने आज सामान्य रूप से उपस्थित है, इसीलिए यह नवरात्रि साधाकों के दुर्भाग्य के द्वार को खोलकर सौभाग्य प्रदान करने वाला स्वर्णिम अवसर है, और यही पूज्य गुरुदेव का साधकों के अनुरोध पर निश्चित और आखिरी मन्तव्य हैं, क्योंकि वे उस ग्रह योग के क्षण विशेष को पकड़ने में समक्ष है, जो ऋषि युग के वर्तमान में अन्यतम शक्तिपात आदि अनन्त साधनात्मक प्रक्रियाओं के अद्वितीय वेता है, प्रणेता है और कर्ता हैं।
जिससे आप पूज्य गुरुदेव की तेजस्विता को जानकर भी अनजान न बन जाये और उनके द्वारा बताये मार्ग का अनुसरण करने से वंचित न हो जाये। क्योंकि गुरुदेव का प्रत्येक कार्य महत्वपूर्ण होता है, निश्चित ही उनकी यह प्रक्रिया उस समय साधक को ज्ञात नहीं हो सकती, वह तो कालांतर में ही फ़लित होने पर उपादेय और श्रेय रूप में उसको विदित होता है।
शुक्र उभा नक्षत्र वेध युक्त सर्वेग्रहा एकत्व पूर्ण युक्ताः।
नवरात्रि प्रारम्भ पूर्ण मेवत्व अद्भुत योग समान्विता।
यदि आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को शुक्रवार हो, उतरा भाद्रपद नक्षत्र हो और शेष नक्षत्र भी वेदयुक्त हो और सभी ग्रह ज्योतिषीय दृष्टि से एकायुक्त हो तो ऐसे समय में नवरात्रि का आना, उसमें भाग लेना और साधना सम्पन्न करना, इस दृष्टि से यह अपने-आप में अद्भुत योग ही कहा जा सकता है, और इस बार कई सालों के बाद ही ऐसा योग वापिस आया है, इसलिए यह नवरात्रि हमारे जीवन में सौभाग्य प्रदायक है, क्योंकि ऐसा योग अगली बार आये या न आये और यदि आये तो उस समय का हम उपयोग कर पायें या नहीं, यह निश्चित नहीं कहा जा सकता, इसलिए इस योग का हम जितना लाभ उठा पायें, उतना कल्याणकारी सिद्ध होगा।
जब ऐसा दिव्य सौभाग्य हमारे सामने नवरात्रि शिविर के रूप में उपस्थित है, तो ऐसी स्थिति में सभी तर्कों को छोड़कर अनुकूल निर्णय लेना ही साधक के लिए हितकारक है। नवरात्रि में पूज्य गुरुदेव द्वारा साधकों की न्यूनताओं और अभावों को देखते हुए ये दिव्यतम प्रयोग उनके कष्टों के उन्मूलन के लिए तथा भौतिक एवं आध्यात्मिक कामना पूर्ति हेतु सम्पन्न करवाये जायेंगे, जो इस प्रकार है –
1 भगवती जगदम्बा बिम्बात्मक प्रत्यक्ष सिद्धि दीक्षा।
2 शत्रुओं पर वज्र की तरह प्रहार करने वाली बगलामुखी दीक्षा।
3 इन्द्राणी महालक्ष्मी सिद्धि दीक्षा।
4 सम्पूर्ण मनोवांछित कामना सिद्धि दीक्षा।
5 ब्रह्म तत्व प्राप्ति ब्रह्मर्षि प्रयोग।
6 समस्त साधना सिद्धियों में सफ़लता प्राप्ति प्रयोग।
7 गुरु हृदयस्थ धारण प्रयोग।
8 जीवित जाग्रत चैतन्य सिद्धाश्रम प्राप्ति प्रयोग।
9 तारा अष्ट लक्ष्मी चैतन्य दीक्षा।
निश्चित ही ये दीक्षाए और साधनाएं असाधारण है, देव दुर्लभ है, जो हमें पूज्य गुरुदेव की करुणावशाद प्राप्त होगी, इनके महत्व को समझते हुए, शिविर में भाग लेना जीवन के अद्वितीय एवं स्वर्णिम क्षण ही कहे जो सकते हैं।
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