शुभाशीर्वाद !
स्वामी सच्चिदानन्द समस्त वेदों व शास्त्रों के ज्ञानी थे जिन्होंने अपने असीम ज्ञान से अलौकिक गुरु शिष्य परम्परा का संचार किया। इन्होंने कभी भी अपने भक्तों से मुंह नहीं मोड़ा। वे सदैव अपने भक्तों से सुख-दुःख, सफ़लता-विफलता व आध्यात्मिक जीवन के हर उतार-चढ़ाव में एक स्तम्भ की तरह खड़े रहकर अपने शिष्यों का उद्धार किया। इसी परम्परा को आगे ले जाते हुए, उनके श्रेष्ठ शिष्य व मेरे पिता स्वामी नारायण श्रीमाली जो स्वयं सर्व साधनाओं के धनी व ऊर्जा के प्रतीक है। जिन्होंने अपनी भौतिक व पारिवारिक जीवन के सभी कर्त्तव्यों को पूर्ण रूप से पूरा किया।
उन्होंने देश-विदेश में अपने भक्तों को जीवन का मार्गदशर्न किया। और अपनी लीलाओं से सम्पूर्ण विश्व को मोहित किया। और ऐसा मार्ग बतलाया जो सामान्य मनुष्य को उच्च कोटि का संन्यासी व साधनाओं का योगी बना सके और अपनी पारिवारिक जीवन की समस्त क्रियाओं को सुचारु रूप से पूर्ण कर सके। इन्होंने ज्ञान साधनाओं व मंत्र यंत्र विज्ञान का पूरें विश्व में ऐसा सर्जन किया जिससे आज भी सम्पूर्ण विश्व लाभ उठा रहा है।
सद्गुरु देव स्वामी नारायण ने 1994 में ऊधर्वपात क्रिया द्वारा मुझे ऐसी शक्ति का संचार कर दिया जिससे उनके भक्तों व आने वाली युवा पीढ़ी को सक्षम कर सकूं व उन्हें साधनाओं में सफ़लता से जीवन का सर्वागीण मार्ग प्रशस्त हो सकें।
यह पत्रिका एक माध्यम है। जिससे में सद्गुरु की ऊर्जा का सर्जन उनके समस्त भक्तों में कर सकूं। यह मेरा दृढ़ संकल्प रहेगा कि परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्द के भक्तों का उद्धार हो – मंजुल महोत्सव बद्रीनाथ धाम में शुक्ल पक्ष के पावन मुहूर्त पर अपने समस्त शिष्यों व साधकों को शक्तिपात द्वारा श्रेष्ठ सांसारिक योगी बनने की दीक्षा व अपने स्वयं की ऊर्जा व शक्ति का बोध होगा।
आप सभी इस पावन अवसर का लाभ उठाए व गुरु लीला से श्रेष्ठ योगी व साधक बनें।
आपका अपना
कैलाश चन्द्र श्रीमाली
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