पाश्चात्य विद्वान् ‘कीरो’ ने भी ‘‘पंचांगुली साधना’’ की थी, जिससे उसे फ़लकथन में अपूर्व सिद्धि प्राप्त हुई— उसने भातर में आकर इस ज्ञान को प्राप्त किया और पंचांगुली साधना के कारणी उसकी पुस्तक पूर्ण प्रमाणिक मानी जाती है।
मनुष्य स्वभावतः इसी बात के लिए उत्सुक रहता है, कि वह अपने भविष्य को जान सकें। अनेकों रहस्यमय प्रश्न उसके मानस में उठते रहते हैं – क्या ऐसी कोई शक्ति ब्रह्माण्ड में है, जिसका सम्बन्ध हमसे स्थापित हो? क्या ऐसी कोई युक्ति है, जिसके माध्यम से हम अपना भूत, भविष्य और वर्तमान स्पष्ट रूप से देख सकें ? ऐसे अनेकों प्रश्न उसके मानस पटल पर अंकुरित होते रहते है।
संसार में जितने भी पुरुष या स्त्रियां हैं, उनके हाथों की लकीरें में भी उनका भूत, भविष्य और वर्तमान छिपा होता है, आवश्यकता होती है उस शक्ति के माध्यम से, उन सूक्ष्म रेखाओं को पढ़कर ब्रह्माण्ड से सम्पर्क स्थापित करने की, क्योंकि जब तक ब्रह्माण्ड में व्यापत अणुओं से हमारी आत्म-शक्ति का सम्बन्ध नहीं होगा, तब तक हम कालज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते—- तभी हमें पहले की, अब की और आने वाले समय की घटनाओं का पूर्णतः ज्ञान प्राप्त हो सकता है।
मंत्र और यंत्र ही ऐसी दो अक्षय निधियां हैं, जिनके माध्यम से अपने जीवन में परिवर्तन लाया जा सकता है और सुखी, सफ़ल एवं सम्पन्नता युक्त जीवनयापन किया जा सकता है। सभी की उत्सुकता का केन्द्र ‘भविष्य’ का ज्ञान अर्जित करने के लिए ‘‘पंचांगुली साधना’’ सर्वश्रेष्ठ मानी गई है, जिसके माध्यम से अपने या किसी भी व्यक्ति के भूत, भविष्य और वर्तमान को आसानी से जाना जा सकता है। पंचांगुली देवी कालज्ञान की देवी हैं, जिनकी साधना कर साधक होने वली घटनाओं व दुर्घटनाओं का पूर्वानुमान हो जाता है तथा इसी साधना के द्वारा हस्त विज्ञान में पारंगत हुआ जा सकता है और भविष्यवक्ता बना जा सकता है।
पंचांगुली साधना के माध्यम से सामने वाले को देखकर उसका भविष्य पूर्णरूप से ज्ञान हो जाता है, वह स्वयं भी जीवन की रक्षा आप कर सकता है, किसी भी व्यक्ति के भविष्य के प्रत्येक क्षण को अक्षरशः जान सकता है, ओर घटित होने वाली दुर्घटनाओं की पूर्व जानकारी देकर उन्हें सावधान कर सकता है। इस साधना को सिद्ध करना जीवन की श्रेष्ठता है तथा किसी भी साधना को करने से पूर्व इस साधना को अवश्य ही कर लेना चाहिए, जिससे कि साधना के अन्तर्गत रह गई त्रुटियों और आने वाली अड़चनों को सुगमता से दूर किया जा सके।
साधना विधि:
1- इस साधना को करने के लिए ‘‘पंचांगुली यंत्र व चित्र’’ तथ ‘‘स्फ़टिक माला’’, जो प्राण-प्रतिष्ठा युक्त एंव मंत्र-सिद्ध हो, प्रयोग करना आवश्यक होता है।
2- यह साधना शुक्ल पक्ष की किसी भी द्वितीया, पंचमी, सप्तमी या पूर्णमासी को ही जा सकती है।
3- यह साधना प्रातः कालीन है, इसे ब्रह्म मुहूर्त में ही करना चाहिए।
4- इस साधना केा किसी एकांत स्थल या पूजा कक्ष में ही, जहां शोर न हो, सम्पन्न करना चाहिए। यह सात दिन की साधना है।
5- पीले आसन पर पूर्व दिशा की ओर मुख करके, पीले वस्त्र धारण कर तथा गुरु चादर ओढ़ कर बैठ जायें।
6- फि़र एक बाजोट पर ‘पंचांगुली देवी का चित्र व यंत्र’ स्थापित कर दें। यंत्र को किसी ताम्र प्लेट में रखें।
7- यंत्र पर कुंकुम से ‘स्वास्तिक’ का चिन्ह बनायें
8- सगसं पहले गणपति का ध्यान करें, फि़र संक्षित गुरु-पूजन करें।
9- पूजन के पश्चात् षोछशोपचार विधि से यंत्र का विधिवत पूजन करें –
ध्यान:
ऊँ भूर्भुवः स्वः श्री पंचांगुलीं देवीं धयायामित।
आवाहन:
ऊँ आगच्छागच्छ देवेशि त्रैलाक्य तिमिरापहे। क्रियमाणां मया पूजां गृहाण सुरसत्तमे।।
ऊँ भूर्भुवः स्वः श्री पंचांगुली देवताभ्यो नमः आवाहनं समर्पयामि।
आसन:
रम्यं सुशोभनं दिव्यं सर्व सौख्य करं शुभम्। आसनंच मया दत्तं गृहाण परमेश्वरि।।
ऊँ भूर्भुवः स्वः श्री पंचांगुली देवताभ्यो नमः आसनं समर्पयामि।
स्नान:
गंगा सरस्वती रेवा पयोष्णी नर्मदा जलैः। स्नापिताऽसि मया देवि तथा शान्ति कुरुष्व मे।।
पयस्नान:
कामधेनु समुत्पन्नं सर्वेषां जीवनं परम्। पावनं यज्ञ हेतुश्च पयः स्नानार्थमर्पितम्।।
दधिस्नान
पयसस्तु समुद्भूतं मधुराम्लं शशिप्रभम्। दधयानीतं मया देवि स्नानार्थ प्रति गृह्यताम्।।
मधुस्नान
तरुपुष्प समुद्भूतं सुस्यादु मधुरं मधु। तेजः पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रति गृह्यताम्।।
घृत स्नान
नवनीत समुत्पन्नं सर्वसन्तोष कारकम् घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थ प्रति गृह्यताम्।।
शर्करास्नान
इक्षुसार समुद्भूता शर्करा पुष्टिकारिका। मलापहारिका दिव्या स्नानार्थ प्रति गृह्यताम्।
वस्त्र
सर्वभूषाधिके सौम्ये लोक लज्जा निवारणे। मयोपपादिते तुभ्यं वाससी प्रति गृह्यताम्।।
गन्ध
श्री खण्ड चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्। विलेपनं सुरश्रेष्ठि चन्दनं प्रति गृह्यताम्।।
अक्षत
अक्षताश्च सुरश्रेष्ठि कुकुमाक्ता सुशोभिता। मया निवेदिता भक्तया गृहाण परमेश्वरि।।
पुष्प
ऊँ माल्यादीनि सुगंधीनि मालत्यादीनि वै विभे। मयोपनीतानि पुष्पाणि प्रीत्यर्थं प्रति गृह्यताम्।।
दीप
साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निनां योजितं मया। दीपं गृहाण देवेशि त्रेलोक्य तिमिरापहे।।
नैवेद्य
नैवेद्यं गृह्यतां देवि भक्तिं में ह्यचला कुरु। ईप्सिलं मे वरं देहि परत्रेह परां गतिम्।।
दक्षिणा
हिरण्यगर्भ गर्भस्थं हेमबीजं विभाविसोः। अनन्त पुण्य फ़लदमतः शांतिं प्रयच्छ मे।।
विशेषार्घ्य
नमस्ते देवदेवेशि नमस्ते धारणीधरे। नमस्ते जगदाधारे अर्घ्यं च प्रति गृह्यताम्।
वरदत्वं वरं देहि वांछितं वांछितार्थदं। अनेन सफ़लार्घेण फ़लादऽस्तु सदा मम।
गतं पापं गतं दुःखं गतं दारिद्र्यमेव च। आगता सुख सम्पत्तिः पुण्योऽहं तव दर्शनात्।।
10- हाथ में जल लेकर मंत्र-जप करने का संकल्प करें।
11- निम्नलिखित पंचांगुली मंत्र का ‘स्फ़टिक माला’ से 7 दिन तक एक-एक माला मंत्र-जप करें।
12- मंत्र-जप करने का समय निर्धारित होना चाहिए।
13- साधना-समाप्ति के पश्चात समस्त सामग्री को किसी नदी या कुएं में विसर्जित कर दें।
14- जप काल में ध्यान रखने योग्य बातें –
इस प्रकार पूर्ण विश्वास के साथ की गई साधना से मंत्र की सिद्धि होती ही है तथा उस साधक को भूत, भविष्य एवं वर्तमान की सिद्धी हो जाती है।
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