जहां बहती जीवन की रसधाार है वह शिव स्वरूप है, वहां जीवन का आनन्द है, जीवन की वहां अमृत्यु है, वहां जीवन में वृद्धि है, इसलिये शिव को विश्वनाथ कल्प’ कहा गया है। शिवरात्रि मास भगवान भोलेनाथ, शिव का मास है, जिसमें सही पूजा साधना करने से भगवान शंकर सारी इच्छाओं को पूर्ण कर देते हैं यदि जीवन में शिवत्व प्राप्त करना है, तो शिवरात्रि पर्व से अधिक कोई भी सिद्ध मुहूर्त नहीं है इस पुण्य मुहूर्त की प्रतीक्षा केवल साधु योगियों को ही नहीं हर साधक स्त्री-पुरुष सबको रहती है, इस मास का आनन्द कुछ और भी है ? वसंतोत्सव फ़ुहारों से भरा यह मास मन और शरीर के भीतर एक विशेष उत्साह आवेग, चेतना जगाता है।
शिव की तो महिमा ही निराली है, प्रसन्न हुए तो कुबेर को देवताओं का कोषाध्यक्ष बना दिया, रावण की नगरी को सोने की बना दिया, अश्विनी कुमारों को सारी आयुर्वेद विद्या सौंप दी, महामृत्युंजय स्वरूप होकर भीषण से भीषण रोग की समाप्ति शिव कृपा साधना से ही प्राप्त होती है। जीवन में श्रेष्ठता शिवतत्व के माध्यम से ही प्राप्त हो सकती है, शिवरात्रि में सम्पन्न किया जाने वाला हर प्रयेाग सौभाग्यदायक ही रहता है।
जहां शिव है वहां लक्ष्मी है –
माता पार्वती, शक्ति स्वरूप जगदम्बा है जो कि शिव का ही स्वरूप हे, माता गौरी स्वयं अन्नपूर्णा, लक्ष्मी स्वरूप हैं शिव की पूजा साधना करने से लक्ष्मी साधना का ही फ़ल प्राप्त होता है, और सभी देवताओं में अग्र पूज्य गणपति तो साक्षात शिव पुत्र हैं, जो सभी प्रकार के विघ्नों, अड़चनों, बाधाओं को समाप्त करने वाले देव हैं। शिव की साधना से गणपति साधना का ही साक्षात फ़ल प्राप्त होता है, इसीलिए कहा गया है कि जहां शिव है वहां सब कुछ है और जिसने शिवत्व प्राप्त कर लिया, उसने जीवन में पूर्णत्व प्राप्त कर लिया, उसके लिए कठिन से कठिन कार्य भी सरल बन जाता है। यदि देखा जाय तो भगवान शिव की साधना गृहस्थ साधाकों के लिए अत्यन्त उपयोगी है, क्योंकि भगवान शिव समस्त बाधाओं का निराकरण करने में समर्थ हैं। पूर्णतः निर्लिप्त और निराकार होते हुए भी भगवान शिव पूर्ण गृहस्थ हैं, इसी कारण एक और जहां वे योगियों के इष्ट हैं, वहीं दूसरी ओर गृहस्थों के भी आराधय देव हैं। भगवान शिव की आराधना प्रत्येक वर्ग करता है – ‘गृहस्थ’ इस कामना के साथ, कि उसे पूर्ण रूप से गृहस्थ सुख प्राप्त हो सकते, ‘सि्त्रयां’ अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए, ‘कन्याएं’ श्रेष्ठ पति की प्राप्ति के लिए वहीं दूसरी और ‘योगी’ पूर्णत्व प्राप्ति के लिए उनके ब्रह्मस्वरूप की आराधना करते हैं।
भगवान शिव सिर्फ एक रूप में ही नहीं, अपितु विभिन्न रूपों में साधक की मनोकामनाओं की पूर्ति करते हैं। वे एक और तो कुबेराधिपति हैं, वही महामृत्युजंय स्वरूप में विभिन्न रोगों के हर्ता है, औढ़रदानी बन कर रंक को राजा बनाने की सामर्थ्य रखते हैं, दूसरी ओर स्वयं श्मशान में रहते हुए, भस्म लपेटे हुए उसी प्रकार से आनन्दित रहते है, जिस प्रकार वे कैलाश पर्वत पर भगवती पार्वती के साथ रहते हैं। इन्हीं भगवान शिव की आराधना कर योगी परमानन्द की प्राप्ति करते हैं। भगवान शिव अपनी भक्तवत्सलता के कारण ही सभी के प्रिय देव हैं, तभी तो उन्हें देवाधिदेव महादेव कहा गया है। महाशिवरात्रि पर्व पर जिस किसी भी उद्देश्य से भगवान शिव की आराधना की जाये, वह निश्चित रूप से पूर्ण होती ही है।
भगवान शिव की उपासना करना विश्व की सर्वाधिक प्राचीनतम क्रिया है और यदि शिव उपासना शाम्भवी विद्या द्वारा की जाय, तो वह अत्यन्त फ़लप्रदायक होती हैं। इसके महत्व का आभास एक बात से ही हो जाता है, कि यदि शाम्भवी विद्या किसी को ज्ञात है, तो उसके स्पर्श से प्राणी इक्कीस कुलों के साथ मुक्ति प्राप्त कर लेता है। महाभारत युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए श्री कृष्ण की आज्ञा से अर्जुन ने महाशिवरात्रि की अवसर पर रक्त कण कण शिव तत्व स्थापना साधना सिद्ध की। जिसके फ़लस्वरूप वह अजय और विजय हो सके।
प्रत्येक वर्ष फ़ाल्गुन वर्ष की त्रयोदशी को महाशिवरात्रि पर्व सम्पन्न होता है। इस दिन जहां भगवान शिव का अत्यन्त प्रिय नक्षत्र श्रवण है। जो मकर रात्रि पर चन्द्रमा होने के कारण श्रेष्ठतम योग बन जाता है। सम्पूर्ण वर्ष में केवल तीन रात्रि को ही महत्व दिया गया है।
1- नवरात्रि – जो कि भगवती दुर्गा का चेतन्य दिवस है।
2- कालरात्रि – जिसे दीपावली की रात्रि कहा जाता है, और लक्ष्मी का चैतन्य दिवस है।
3- शिवरात्रि – जो कि भगवान महादेव का चैतन्य दिवस है और प्राणश्चेतना युक्त पर्व है
यह हमारा सौभाग्य है कि हमें अपने जीवन में शिवरात्रि से सम्बन्धित पर्व सम्पन्न करने का अवसर मिला है। भगवान शिव की असीम कृपा है कि उन्होंने आपके हृदय भाव में पूर्णतः स्थापित होने तथा आपको चेतना युक्त और विश्व विजय श्री प्रदान करने के लिए भगवान शिव की नगरी वाराणसी में महामृत्युंजय अभिषेक सम्पन्न कर अपने जीवन को असत् से सत् की ओर, तमस से प्रकाश की ओर तथा मृत्यु से अमृत्यु की ओर अग्रसर होने की क्रिया को पूर्णता दे सके।
भगवत्पाद शंकराचार्य ने स्वयं एक स्थान पर विवेचन करते हुए कहा है कि अन्य सभी देवता है, परन्तु भगवान शिव तो स्वयं महादेव है, वे देवताओं के भी देवता है, ऐसा हो ही नहीं सकता, कि भगवान शिव की साधना या आराधना की जाय, और उनके द्वारा फ़ल प्राप्ति संभव न हो। जीवन में सारे कार्य छोड़ कर शिव की साधना तो सम्पन्न करनी ही चाहिए, क्योंकि वह मृत्युंजयी देवता है वह शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता है, वे मनोवांछित वरदान देने वाले देवता है।
श्री विश्वेश्वर ज्योर्तिंग वाराणसी (बनारस) या काशी में विराजमान है। प्रलय काल में भगवान शंकर ने इस नगरी को अपने त्रिशूल पर धारण कर सृष्टि विनाश से बचा लिया। इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने सृष्टि उत्पन्न करने की कामना से तपस्या करके आशुतोष को प्रसन्न किया और उनके नाभि कमल से ब्रह्मा उत्पन्न हुए। जिन्होंने सारे संसार की रचना की। अगस्तय मुनि ने विश्वनाथ की बड़ी आराधना की थी और इन्हीं की अर्चना से श्री वशिष्ठ जी तीनों लोकों में पुजित हुए तथा राज ऋषि विश्वामित्र ब्रह्मर्षि कहलाये। भगवान विश्वनाथ मंदिर की स्थापना शंकर के अवतार आद्यि शंकराचार्य ने स्वयं अपने कर कमलों से की थी।
शिव पुराण में स्पष्ट रूप से बताया गया है, कि यदि जीवन में रक्त कण कण शिव तत्व स्थापन युक्त ‘महामृत्युंजय विश्वनाथ चैतन्य दीक्षा’ प्राप्त हो जाय तो, हजार काम छोड़ कर के भी इस दीक्षा को प्राप्त करना ही चाहिए क्योंकि यह जीवन का दुर्लभ और अद्वितीय क्रिया है, जिसके हजार हजार पुण्यों का उदय होता है उसे ही जीवन में यह दीक्षा प्राप्त होती है। इस दीक्षा से द्वादश लाभ तो तुरन्त ही प्राप्त होने लग जाते है शिव पुराण में स्पष्ट रूप से बताया है, कि जो तार्किक है, जो अज्ञानी है, जो अविश्वासी है, और जो मूढ़ है, उनको भी चैलेन्ज है, कि वे इस दीक्षा को प्राप्त कर हाथों हाथ इसका फ़ल अनुभव कर सकते है, कि कलियुग में भी यह दीक्षा अपने आप में प्रामाणिक है, कलियुग में भी शीघ्र सिद्धिदायक मंत्र है और कलियुग में भी साधनाएं है, आवश्यकता है समय पर सही ढंग से गुरु के मार्गदर्शन में इन दीक्षाओं को प्राप्त कर अपने आप को मृत्युंजयी रूपी शिव स्वरूप विश्वनाथमय बना सकें।
शिव पुराण के अनुसार वे द्वादश लाभ निम्न प्रकार से है –
1- इस दीक्षा को प्राप्त करने से साधक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विजयी होता है, और हर स्थान पर सफ़लता प्राप्त करता है।
2- भगवान शिव वैद्यनाथ है, जिनकी साधना से जीवन में समस्त रोग समाप्त होते है, और पूर्ण निरोगता का अनुभव करता है।
3- भगवान शिव मृत्युजंयी देवता है जिसकी साधना से अकाल मृत्यु समाप्त होती है, फ़लस्वरूप जीवन में दुर्घटना या मृत्यु की आशंका नहीं रहती।
4- भगवान शिव शक्तिमान स्वरूप है, जिनकी साधना से शरीर में ऊर्जा, बल, साहस और सक्षमता प्राप्त होती है ।
5- भगवान शिव पूर्ण गृहस्थ स्वरूप है, जिसकी साधना से गृहस्थ जीवन में अनुकूलता प्राप्त होती है और सुखमय गृहस्थ जीवन बनता है।
6- शिव अपने आप में देवत्व पूर्ण है अतः यदि कुंवारी कन्या इस महाशिवरात्रि को साधना सम्पन्न करती है तो निश्चय ही उसे शीघ्र ही योग्य वर की प्राप्ति होती है।
7- भगवान शिव के सेवक कुबेर है, अतः भगवान शिव को कुबेराधिपति कहा गया है, इनकी साधना करने से पूर्ण रूप से लक्ष्मी प्राप्त होती है।
8- भगवान शिव पुत्र प्रदान करने में श्रेष्ठतम देवता है यदि संतानहीन स्त्री इस महाशिवरात्रि को भगवान शिव की साधना करती है तो ठीक समय पर निश्चय ही उसे योग्य संतान की प्राप्ति होती है।
9- भगवान शिव को दुष्टदलन कहा गया है, शत्रुओं का नाश करने में ये समर्थ और श्रेष्ठ देवता है अतः इनकी साधना करने से शत्रु अपने आप समाप्त होने लगते है और जीवन में शत्रुओं का भय नहीं रहता।
10- भगवान शिव भाग्य के अधिपति देवता माने गये है जिनका भाग्योदय नहीं हो रहा हो या जिनके जीवन में दुर्भाग्यता हो अथवा जीवन में कार्य भली प्रकार से सम्पन्न नहीं हो रहे हो तो उन्हें अवश्य ही भगवान शिव की साधना सम्पन्न करनी चाहिए।
11- भगवान शिव सम्पूर्ण स्वरूप है अतः शिवरात्रि के अवसर पर यदि दीक्षा प्राप्त की जाये तो उनके अत्यन्त भव्य दर्शन संभव होते है, जिससे कि साधक के जीवन में सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते है।
12- भगवान शिव मोक्ष प्रदायक देवता है, इसीलिए जो भगवान शिव की आराधना या साधना करता है मृत्यु के बाद उसे निश्चय ही ‘‘शिव लोक’’ प्राप्त होता है।
रक्त कण कण शिव तत्व स्थापन दीक्षा प्राप्त करने से शिव की शक्तियों, दस महाविद्याओं की साधना, भैरव तंत्र सिद्धि, अघोर सिद्धि, रिद्धि-सिद्धि, शुभ-लाभ युक्त गणपति, संतान प्राप्ति, रसेश्वर महामृत्युंजय युक्त व्यक्तित्व बनता है।
कार्य विष्णुः क्रिया ब्रह्मा कारणां तु महेश्वरः।
प्रयोजनार्थ रुद्रेण मूर्तिरिका त्रिधा कृता।।
विष्णु कार्य है, ब्रह्मा क्रिया है और महेश्वर कारण है, संसार के प्रयोजन के अर्थ के लिए भगवान रुद्र ने अपने एक ही स्वरूप को तीन रूप में विभक्त किया है।
भगवान शंकर की पूजा, साधना अर्चना, अभिषेक, सम्पन्न करेन हेतु हर साधक तत्पर ही रहता है, क्योंकि भगवन शंकर तेजोमय, समस्त श्रेष्ठ कर्मों को सम्पन्न करने वाले समस्त द्रव्यों के स्वामी एंव विद्या आदि के कारण हैं, अज्ञेय और अगम्य हैं, तथा सभी के लिए सर्वत्र कलयाणकारक हैं, भगवान सदाशिव जो भोले नाथ भी हैं रसेश्वर भी हैं, नटराज भी है, शक्ति से सदैव युक्त है। सृष्टि की उत्पति से संहार तक केवल शिव ही शिव है। चाहे सगुण रूप से मूर्तिमान रूप में उपासना की जाए अथवा निर्गुण रूप में शिव लिंग रूप में उपासना की जाए, वे तो केवल बिल्व पत्र और अविरल जलधार, दुग्ध धारा से प्रसन्न होने वाले देव है, और ऐसे देवों के देव महादेव की उपासना, साधना और अभिषेक के लिए महाशिवरात्रि से महान् कोई पर्व नहीं हो सकता।
दस महाविद्या दिक्षा शत्रुहन्ता भैरव दिक्षा, महामृत्युजंय दीक्षा, शिवगौरी सौभाग्य वृद्धि दिक्षा, शिवत्व अष्टलक्ष्मी साथ लगें प्रपत्र में पांच सदस्य बनाने पर आप कोई भी शक्तिपात दिक्षा स्वयं अपस्थित होकर अथवा फ़ोटो से प्राप्त कर सकते हैं।
इस प्रकार का दुर्लभ संयोग वाराणसी में 19, 20 फ़रवरी 2012 सर्व सिद्धि प्रदायक महाशिवरात्रि साधना शिविर सम्पन्न होगा।
शिविर स्थलः कमलाकर चौबे, आदर्श सेवा इन्टर कॉलेज, ईश्वर गंगी, वाराणसी रेल्वे स्टेशन से 3 कि-मी-, विश्वनाथ मन्दिर से 2 कि-मी- की दूरी पर
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