भारत ही नहीं अपितु पूरा संसार अब इस बात को स्वीकार करने लगा है कि स्वर विज्ञान को समझ कर मानव असम्भव कार्यों को भी सम्भव कर सकता है, इसके माध्यम से मानव अपने अन्दर छिपी हुई अलौकिक शक्तियों का सम्पूर्ण विकास कर प्रक़ृति से पूर्ण अनुकूलता स्थापित करता हुआ, वह सब कुछ सम्भव कर सकता है, जो सामान्य रूप से असम्भव कहा जाता है।
प्रस्तुत लेख में स्वर विज्ञान की उन गोपनीय क्रियाओं को स्पष्ट किया जा है जो कि आपके अन्दर छिपी हुई अलौकिक शक्तियों को प्रत्यक्षतः स्पष्ट करने में सक्षम है।
स्वर विज्ञान या स्वरोदय का तात्पर्य है नासिका से निकलने वाले स्वर को नियम पूर्वक चलाने की क्रिया का ज्ञान होना। जो नासिका से वायु निकलती है वह शरीर के अन्दर छिपी हुई समस्त शक्तियों का दूसरे प्रकार से विस्फोट है, इस निकलने वाले वायु की गतिविधियों से यह जान सकते हैं कि मानव की क्षमता और पूर्णता किस मात्र में और किस प्रकार की है।
भारतीय ग्रन्थों में स्वर विज्ञान की प्रशंसा करते हुए कहा गया गया है
शत्रुं हन्यात स्वर बले तथा मित्र समागमः ।
लक्ष्मी प्राप्तिः स्वर बले कीर्तिः स्वर बले सुखम ।।
अर्थात स्वर के बल को जान कर कार्य करने से व्यक्ति शत्रुओं का नाश कर सकता है, हजारों की भीड़ में से मित्र को पहचान सकता है, धन सम्पत्तियों का ढेर लगा सकता है और इस क्रिया को जान कर यश, कीर्ति एवं सुख प्राप्त कर सकता है।
भगवान शिव ने स्वयं स्वर शास्त्र की प्रशंसा करते हुए कहा है
श्रृणत्वं कथितं देवि, देहस्य ज्ञानमुत्तमम ।
येन विज्ञान मात्रेण सर्वज्ञत्वं प्रजायते ।।
अर्थात शरीर में रह कर निकलने वाले स्वर को जानने से व्यक्ति भूत, भविष्य और वर्तमान को जान कर पूर्ण सर्वज्ञ हो सकता है।
सन्सार में सभी प्राणी आक्सीजन के माध्यम से ही जीवित रहते हैं। यह प्राण वायु, आक्सीजन, श्वांस लेने पर नासिका के माध्यम से शरीर में प्रवेश करती है और पूरे शरीर तथा शरीर के सभी चक्रों को स्पर्श करती हुई नासिका के माध्यम से ही शरीर से बाहर निकल जाती है।
नासिका के भीतर से जो श्वांस निकलती है उसको स्वर कहते हैं। यदि यह वायु बायें नथुने से बाहर निकलती है तो उसे बांया स्वर तथा दाहिने नथुने से निकलती है तो दाहिना स्वर कहते हैं। यदि दोनों नथुनों से समान गति से प्राण वायु बाहर निकलती हो तो उसे मध्यम स्वर कहते हैं।
दाहिने स्वर को सूर्य स्वर और बायें स्वर को चन्द्र स्वर भी कहा जाता है।
अब विश्व के सभी उन्नत देश ये एहसास करने लग गये हैं कि जीवन में स्वर का अत्यधिक महत्व है। स्वर मानव एक प्रकार से पथ प्रदर्शक है, वह आने वाले खतरे को पहले से ही बता देता है। वह इस बात को भी समझा देता है कि जिस कार्य के लिये वह जा रहा हैं वह कार्य सम्पन्न होगा या नहीं।
अधिकारी के पास जाते समय, लेन देन प्रारम्भ करते समय या ऐसे सैकड़ों कार्य हैं जिसमें हम सफ़लता चाहते हैं, उसमे मिलने वाले फ़ल का संकेत स्वर हमें पहले ही बता देते हैं।
जर्मनी के प्रसिद्ध वैज्ञानिक रूडानी ने स्पष्ट रूप से कहा है कि मेरे जीवन की सफ़लता का रहस्य स्वर विज्ञान है। इसके माध्यम से मैं यह पता लगा लेता हूं कि यह कार्य इस समय करना ठीक रहेगा या नही। रूस, अमरीका जैसे कई अन्य विकसित देश भी स्वर विज्ञान का लोहा मानने के लिये मजबूर हो गये हैं।
यह अलग बात है कि जिनकी बुद्धि और आधुनिकता को सन्निपात हो गया हो, वह तो प्रत्येक ज्ञान और विज्ञान पर उंगली उठाता ही है, परंतु भारत ही नहीं, विश्व के प्रमुख वैज्ञानिक यह अनुभव करने लगे हैं कि यह भारतीय स्वर विज्ञान अपने आप में पूर्ण है। इसके माध्यम से सब कुछ जाना जा सकता है, यही नही अपितु उस व्यक्ति के शरीर में क्या क्या सम्भावनायें हैं उसके बारे में पूरी तरह से जाना जा सकता है।
यों तो प्रत्येक प्राणी चौबीसों घण्टे श्वांस प्रश्वांस लेता रहता है, परन्तु वैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष निकाला है कि एक स्वर लगभग एक घण्टे तक चलता रहता है। यदि मानव स्वभाविक अवस्था में है तो यह स्वर प्रवाह लगभग इतने समय तक एक नथुने से चलता है, फि़र दूसरे नथुने से स्वर प्रवाह होता है, परन्तु यदि कोई संकट आ रहा हो या कोई बाधा उपस्थित होने वाली हो या कोई शुभ कार्य सम्पन्न होने वाला हो तो यह स्वर प्रवाह बीच में ही परिवर्तित हो जाता है। इस स्वर प्रवाह के माध्यम से यह जाना जा सकता है कि जिस कार्य के लिये हम जा रहे हैं या फि़र हम जिस कार्य को प्रारम्भ करने जा रहे हैं वह कार्य सम्पन्न होगा या नही।
जिस समय दाहिना स्वर चल रहा हो उस समय यदि निम्न कार्य प्रारम्भ किये जायें तो उसमें निश्चित सफ़लता प्राप्त होता है। यदि इस प्रकार के कार्य प्रारम्भ करते समय विपरीत स्वर चल रहा हो तो कुछ समय रुक जाना चाहिए और जब अनुकूल स्वर चलते लगे, तभी वह कार्य प्रारम्भ करना चाहिए।
नीचे वो कार्य प्रस्तुत किये जा रहे हैं जिन्हें दाहिने स्वर के चलते समय करने पर अनुकूल प्रभाव प्राप्त होता है।
जिस समय बांया स्वर चल रहा हो उस समय यदि निम्न कार्यों को प्रारम्भ किये जायें तो उसमें निश्चित सफ़लता प्राप्त होती है।
जब दोनों नथुनों से बराबर श्वांस निकल रही हो तो उस समय कोई भी सान्सारिक कार्य नहीं करना चाहिए। ऐसे समय में प्रारम्भ किये हुए कार्य में बाधाएं अवश्य ही आती हैं। ऐसा स्वर चलने पर यात्रा, भवन निर्माण, ग़ृह प्रवेश आदि कार्यों को नहीं करना चाहिये।
जब मध्यम स्वर चल रहा हो तो प्रभु का ध्यान, प्राणायाम अथवा समाधि लगाई जाये तो उस में सफ़लता मिलती है।
स्वर विज्ञान के माध्यम से हम बिना औषधि लिये भी पूर्ण स्वस्थ और चिरयौवन बने रह सकते हैं। आप स्वयं इस प्रयोग के प्रभाव देख कर आश्चर्यचकित रह जायेंगे।
उदर विकार
जिनको अजीर्ण या कब्ज की शिकायत हो या फि़र जिनका पेट गड़बड़ रहता हो उन्हें भोजन तभी करना चाहिये जब उनका दाहिना स्वर चल रहा हो और भोजन के बाद जब बांया स्वर चल रहा हो तो तब पानी पियें तो इससे पुराना उदर विकार भी समाप्त हो जाता है।
ज्वर
यदि बुखार हो, तो उस समय जो भी स्वर चल रहा हो, उसे बन्द कर के दूसरा स्वर चलाने के प्रयत्न करें और ऐसा तब तक करते रहें जब तक ज्वर उतर ना जाये।
दमा
जब दमे का दौरा प्रारम्भ हो और श्वास फ़ूलने लगे तो उस समय जो भी स्वर चल रहा हो उसे एकदम बन्द कर दें तो पांच सात मिनट में ही आराम मिल जायेगा।
दर्द
छाती या पीठ में कहीं पर भी दर्द हो तो उस समय जो स्वर चल रहा हो उसे पूर्णतः बन्द कर दें तो दर्द समाप्त हो जाता है।
स्वरोदय से कार्य सिद्धि
स्वर को समझ कर कार्य किया जाये तो अवश्य ही सफ़लता प्राप्त होती है। नीचे हम विविध कार्यों को बता रहें हैं जिनको प्रारम्भ करने से पहले अगर स्वर विज्ञान की सहायता ली जाये तो उसमें सफ़लता प्राप्त होती ही है।
भाग्योदय
प्रातः काल उठते समय बिस्तर पर आंख खुलते ही जो स्वर चल रहा हो, उसी ओर का हाथ अपने चेहरे पर फ़ेरें, पलंग से नीचे उतरते समय धारती को उसी हाथ से स्पर्श कर प्रणाम करें और उसी स्वर की तरफ़ वाले पैर को पहले धरती पर रखें। यदि ऐसा किया जाये तो पूरा दिन भाग्योदयकारक होता है और प्रत्येक कार्य सफ़ल होते हैं।
मनोवांछित कार्य में सफ़लता
मनोवांछित कार्य की सफ़लता के लिए घर से बाहर जाते समय जो भी स्वर चल रहा हो, यदि उसी ओर के पैर को बढ़ा कर अपनी यात्रा प्रारम्भ की जाये तो आप जिस भी कार्य के लिये जा रहे हैं उस में सफ़लता अवश्य मिलती है।
वशीकरण
जिस व्यक्ति से आपको मिलना हो या फि़र जिस किसी से भी आपको काम हो, उसके घर जा कर आपका जो स्वर चल रहा हो, उसी ओर उस व्यक्ति को बिठा कर यदि बात की जाये तो स्वतः वशीकरण हो जाता है और आप जो भी बात कहते हैं वह व्यक्ति उसी बात के लिये तैयार हो जाता है। अपने अधिकारी, मित्र आदि से बात करते समय अपने आप को इस प्रकार से खड़े रखना चाहिये कि सामने वाला व्यक्ति उसी तरफ़ हो जिस तरफ़ का आपका स्वर चल रहा हो।
नौकरी के लिये, बड़े आदमी से मिलते समय,न्यायालय में खड़े होते समय इस स्वर विज्ञान का उपयोग लेना चाहिये।
स्त्री वशीकरण
स्त्री वशीकरण के लिये जब आपका बांया स्वर चल रहा हो तो स्त्री को अपने दाहिनी ओर रख कर बात कही जाये तो निश्चित ही कही हुई बात का उस पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है और वह बात मान लेती है।
चिर यौवन प्राप्ति
प्रातः काल उठ कर स्नान आदि से निबट कर बैठ जायें और जो भी स्वर चल रहा हो उसे रोक कर उसके विपरीत तरफ़ के स्वर को चलाये। ऐसा नित्य पन्द्रह बीस बार करने से व्यक्ति निरोग रहता है और चिर यौवन को प्राप्त होता है।
भविष्य दर्शन
अधिकांश मनुष्य अपने भविष्य को जानने का इच्छुक होता है। स्वर विज्ञान के माध्यम से भविष्य में होने वाली घटनाओं को जाना जा सकता है।
सफ़लता-असफ़लता
यदि कोई व्यक्ति यह प्रशन करे कि मेरा अमुक कार्य सम्पन्न होगा कि नहीं या फि़र मुझे अमुक कार्य में सफ़लता मिलेगी कि नहीं, उस समय आपका जो स्वर चल रहा हो, उसी स्वर की ओर यदि वह खड़ा हो कर प्रश्न करता है तो यह समझना चाहिये कि उसका कार्य अवश्य सफ़ल होगा और यदि वह विपरीत स्वर की ओर खड़ा हो कर प्रश्न करे तो यह निर्णय लेना चाहिये कि कार्य में असफ़लता ही प्राप्त होगी।
इसी प्रकार रोग, यात्रा, विवाह, व्यापार आदि से सम्बन्धित प्रश्न करने पर भी भविष्य दर्शन उत्तर दिया जा सकता है। वास्तव में ही स्वर विज्ञान अपने आप में पूर्ण और प्रामाणिक विज्ञान है। इसकी सहायता ले कर व्यक्ति प्रत्येक द़ृष्टि से परिपूर्ण हो सकता है।
जब दुर्घटना टली
अमरीका के प्रसिद्ध वैज्ञानिक मिजनोर कई वर्षों से स्वर विज्ञान पर कार्य कर रहे हैं और उन्होंने यह सिद्ध कर दिया है कि यह अपने आप में पूर्ण विज्ञान है। मनुष्य के शरीर की संरचना ईश्वर ने अत्यन्त ही कुशलता से की है, शरीर स्वयं आने वाले खतरों को बता देता है।
एक दिन जरूरी काम से मिजनोर को हिलवर्ट जाना था, जो पहाड़ी पर बसा है, जाना जरूरी था, पर मिजनोर का स्वर सही नहीं चल रहा था, उधर घडी की सूइयां बराबर सरक रही थी।
भारी मन से मिजनोर कार लेकर रवाना हुए और पहाड़ी के आधे रास्ते को पार किया तो उसका विपरीत स्वर और जोरों से चलने लगा। ऐसा लगने लगा कि जैसे कुछ ही समय में अनिष्ट घटने वाला है।
मिजनोर ने कार एक तरफ़ खड़ी कर दी, मुश्किल से दो मिनट बीते होंगे कि ऊपर से आते हुए ट्रक का संतुलन बिगड़ गया और पूरी सड़क को विपरीत दिशा से पार करता हुआ खाई में जा गिरा। यदि उस समय मिजनोर कार में उसी सड़क से चल रहा होता, तो निश्चय ही उसकी कार ट्रक की चपेट में आ जाती और उसके परिवार की म़ृत्यु निश्चित थी।
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