पकार पुण्यं परमार्थ चिन्त्यं
परोपकारं परमं पवित्रं
परम हंस रुपं प्रणवं परेशं
प्रणम्यं प्रण्म्यं निखिलं त्वमेवं ।।1।।
गुरु मंत्र में प्रदर्शित ‘पकार’ बीज का अर्थ है पूर्णता की पराकाष्ठा जीवन में सर्वोच्चता परमार्थ चिंतन, परोपकार तथा जीवन की पावनता प्रणव स्वरुप परमेश्वर के स्वरुप को प्राप्त करना तथा परमहंस की गति को प्राप्त करके गुरुमय होना अतः दिव्य विभूति भगवत पूज्यपाद निखिलेश्वरानन्द प्रणम्य एवं सर्व स्तुत्य है।
रम्या सुवाणी दिव्यंच नेत्रं
अग्निं त्रिरूपं भवरोग वैद्यं
लक्ष्मी च लाभं भवति प्रदोजे
श्री राजमान्यं निखिलं शरण्यम ।।2।।
‘रकार’ बीज की साधना से वाणी में रमणीयता नेत्रों में दिव्यता तथा शरीर तथा मन के भीतर अग्नि त्रय के जागरण माध्यम से समस्त रोगों का शमन तथा भवरोग से मुक्ति अन्नत ऐश्वर्य प्राप्ति संभव होती है रकार बीज की साधना राज मान्यता तथा निखिल की शरणागति प्रदान करती है।
महामानदं च महामोह निघ्नं
महोच्चं पदं वै प्रदानं सदैवं
महनीय रूपं मधुराकृतिं तं
महामण्डलं तं निखिलं नमामि ।।3।।
‘मकार’ बीज माधुर्य का सूचक है मकार बीज की साधना से जीवन में माधुर्य तथा परमानन्द की उपलब्धि होती है समस्त मोह बंधन को दूर करके महोच्च पदवी प्रदान करती है, इस बीज मंत्र की साधना से साधक मधुर आकृति एवं महनीय रूप युक्त तथा समस्त लोकों में महिमा मन्डित होता है, ऐसे निखिल तत्व का मैं नमन करता हूं।
तत्व स्वरूपं तपः पूतदानं
तारुण्य युक्तिं शक्तिं ददाति
तापत्रयं दूरयति तत्वगर्भं:
तमेव तत्पुरुषमहं प्रणम्यं ।।4।।
‘तकार’ बीज की साधना से तत्व मसि रूप वेद महावाक्य की उपलब्धि संभव होती है क्योंकि तत्व ज्ञान में इस साधना का अत्यधिक महत्व है अपने स्वरूप ज्ञान के लिए इसमें तरुणता की शक्ति, ताप त्रय की विमुक्ति तथा रहस्य मय ज्ञान को साधक प्राप्त करता है उस परम पुरुष गुरुदेव निखिल को बाराम्बार नमन करता हूं।
विभाति विश्वेश्वर विश्वमूर्तिं
ददाति विविधोत्सव सत्व रूपं
प्राणालयं योग क्रिया निदानं
विश्वात्मकं तं निखिलं विधेयम् ।।5।।
‘वकार’ बीज की साधना से सम्पूर्ण ब्रह्माण्डमय गुरुत्व शक्ति की प्राप्ति होती है तथा इसी जीवन में आनन्दमयता पूर्ति और क्रिया योग के उस गुहय तत्व को उदघाटित करके समस्त ब्रह्माण्ड में विचरण करते हुए निखिलमय हो जाता है।
यशस्करं योग क्षेम प्रदं वै
योगश्रियं शुभ्रमनन्तवीर्यं
यज्ञान्त कार्य निरतं सुखं च
योगेश्वरं तं निखिलं वदेन्यम् ।।6।।
‘यकार’ बीज की साधना से योग के यम नियम आदि अष्टांग योग को सम्पन्न करते हुए यशस्वी पुरूष योगक्षेम की चिन्ता से रहित योग के समस्त आयाम को पूर्ण करते हुए अनन्त शक्ति युक्त होकर यज्ञ विद्या को सर्वांग रुप से प्राप्त करता है तथा योगेश्वर निखिल के ब्रह्ममय स्वरूप में अधिष्ठित हो जाता है।
निरामयं निर्मल भाव भाजनं
नारायणस्य पदवीं समुदारभावं
नवं नवं नित्य नवोदितं तं
नमामि निखिलं नवकल्प रुपम् ।।7।।
‘नकार’ बीज की साधना से साधक रोग रहित सात्विक बुद्धि से युक्त शास्त्र सम्मत नारायण स्वरूप को प्राप्त करके नित्य नवीन जीवन के प्रत्येक क्षण को जीता हुआ कल्पान्त तक गुरुदेव निखिल की शरणागति को प्राप्त करता है।
श्रासं महापूरित रामणीयं
म्हालयं योगिजनानु मोदितं
श्री कृष्ण गोपीजन वल्लभं च
श्रसं रसज्ञं निखिलं वरेण्यम् ।।8।।
‘रा’ बीज की साधना से महारास की उपलब्धि होती है जिस प्रकार भगवान कृष्ण गोपियों के साथ रासलीला की उसी तरह साधक भी योग के माध्यम से अपने इष्ट के साथ रसपूर्ण होकर निखिल स्वरूप में अभिसिक्त होता है।
यां यां विधेयां मायार्थ रूपां
ज्ञात्वा पुनर्मुच्यति शिष्य वर्गः
सर्वार्थ सिद्धिं प्रददाति शुभ्रां
योगेन गम्यं निखिलं प्रणम्यम् ।।9।।
इस द्वितीय ‘यकार’ की साधना से माया के स्वरूप को जानकर शिष्य बंधान मुक्त होकर सभी श्रेष्ठतम सिद्धियों को प्राप्त करके योगियों के द्वारा गम्य वन्दनीय निखिलेश्वर स्वरूप के रहस्य को प्राप्त करता है।
निरंजनं निर्गुण नित्य रूपं
अणोरणीयं महतो महन्तं
ब्रह्म स्वरुपं विदितार्थ नित्यं
नारायणं च निखिलं त्वमेवम् ।।10।।
‘ण्कार’ बीज के माध्यम से साधक नादब्रह्म को प्राप्त करके निरंजन तथा निर्गुण ब्रह्म स्वरूप को प्राप्त करता है तथा अणु से अणु और महान रहस्मय ब्रह्माण्ड को जानकर नारायण स्वरूप को प्राप्त करता है।
यज्ञ स्वरूपं यजमान मूर्ति
यज्ञेश्वरं यज्ञ विधि प्रदानं
ज्ञानाग्नि हूतं कर्मादि जालं
याजुष्यकं तं निखिलं नमामि ।।11।।
‘यकार’ बीज की साधना से साधक यज्ञ के वास्तविक स्वरूप को प्राप्त करके अनन्त भेद प्रभेदों को जानकर अपने शुभ अशुभ आदि कर्म रूपी हवि को ज्ञान रूपी अग्नि में आहूति देकर बंधन मुक्त हो जाता है तथा यज्ञ की साक्षात मूर्ति निखिल स्वरूप में समाहित हो जाता है।
गुत्वं गुरुत्वं गत मोह रूपं
गुहृाति गुहृां गोप्तृत्व ज्ञानं
गोक्षीर धावलं गूढ प्रभावं
गेय च निखिलं गुण मन्दिरं तम् ।।12।।
‘गुकार’ बीज अपने आप में अद्वितीय है इसकी साधना से साधक मोह रहित होकर गुरु तत्व को प्राप्त करके गुरुमय हो जाता है तथा गोदुग्ध के समान निर्मल ज्ञान को प्राप्त करके गूढ शास्त्र ज्ञान को प्राप्त करता है तथा आनन्दमय युक्त जीवन व्यतीत करता है।
रुद्रावतारं शिवभावगम्यं
योगाधिरुढिं ब्रह्माण्ड सिद्धिं
प्रकृतिं वसित्वं स्नेहालयं च
प्रसाद चित्तं निखिलं तु ध्येयम् ।।13।।
‘रुकार’ बीज की साधना से साधक शिव भाव को प्राप्त करके योगमय होकर ब्रह्माण्ड के दिव्य सिद्धियों को प्राप्त करता है तथा प्रकृति के वशीभूत होकर स्नेह युक्त होकर जीवन को अमृतमय बना देता है।
योगाग्निना दग्ध समस्त पापं
शुभा शुभं कर्म विशाल जालं
शिवा शिवं शक्तिमयं शुभं च
योगेश्वरं च निखिलं प्रणम्यं ।।14।।
इस बीज की साधना से योगरूपी अग्नि में समस्त पाप समूह को दग्ध करके शुभा शुभ कर्म जाल से मुक्त होकर शिव और शक्ति रूप की साधना करके योगेश्वर निखिल स्वरूप को प्राप्त करके दिव्यतम बन जाता है।
नित्यं नवं नित्य विमुक्त चितं
निरंजनं च नरचित मोदं
ऊर्जस्वलं निर्विकारं नरेशं
निरत्रपं वै निखिलं प्रणम्यं ।।15।।
‘नकार’ बीज की साधना से चिंता मुक्त होकर साधक नित्य नवीन जीवन जीता हुआ सभी मोह बाधाओं से रहित सभी प्राणियों को आनन्द देता हुआ अनन्त ऊर्जा युक्त निर्विकार और मनुष्यों में श्रेष्ठ होकर, निखिल के आनन्दमय स्वरूप का ध्यान करता हुआ पूर्णता युक्त जीवन व्यतीत करता है।
मातृ स्वरूपं ममतामयं च
मृत्युञजयं मानप्रदं महेशं
सन्मंगलं शोक हरं विभुं तं
नारायणमहं निखिलं प्रणम्यं ।।16।।
‘मकार’ बीज की साधना से साधक मातृत्व गुण से युक्त होता है तथा प्रत्येक प्राणियों में दया करने वाला मृत्यु के भय से रहित मंगल स्वरूप, शोक से रहित नारायण की साक्षात स्वरूप को प्राप्त करता है तथा दिव्यतम इस मानव जीवन को सार्थक करता है।
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