1- शारीरिक रोग,
2- मनसिक रोग और
3- दैविक रोग
शारीरिक रोगों में सैकड़ों प्रकार की व्याधियां हैं, और इन व्याधियों या बिमारियों को जितना ही ज्यादा दूर करने का प्रयत्न करते हैं उतने ही ज्यादा अस्पताल खुलते हैं, उतने ही ज्यादा डाक्टरों की भीड़ बढ़ने लगी है, और उतना ही ज्यादा विविध प्रकार के रोगों कि उत्पत्ति होने लगी है।
इसलिए केवल मात्र चिकित्सा के माध्यम से जीवन के समस्त दैहिक रोगों को समाप्त नहीं किया जा सकता है, इसके लिए जरूरी है, कि कुछ अन्य उपाय भी किए जाने चाहिए, जिससे कि इन समस्याओं का समाधान हो सके। दूसरे प्रकार के रोग मानसिक रोग हैं, जिन में चिंता, भय, शत्रु-भय, तनाव और विविध प्रकार के मानसिक रोग हैं। ज्यों-ज्यों स्वार्थमयता बढ़ती हैं त्यों-त्यों व्यक्ति ज्यादा जटिल बनता जा रहा है, त्यों-त्यों मानसिक उपद्रव या मानसिक रोग भी बढ़ता जा रहा है और एलोपैथी अन्यथा आयुर्वेद में इन रोगों को समाप्त करने की कोई औषधि या कोई उपाय नहीं हैं।
तीसरे प्रकार के रोग दैविक रोग है, जो अचानक मानव के जीवन में आ जाते हैं, जैसे बाढ़, जरूरत से ज्यादा कर्जा हो जाना, सूखा पड़ना, एक्सीडेंट हो जाना आदि।
इन तीनों प्रकार में से किसी भी प्रकार का कोई भी रोग हो उसके दुःख और तनाव को तो मनुष्य को ही झेलना पड़ता है, और इसके लिए वह विविध उपाय, इलाज तथा औषधियों का सेवन तो करता ही है, परन्तु इससे उसकी समस्याओं का समाधान नहीं हो पाता।
और यह बात सत्य है कि जब तक हम अपने जीवन में मंत्रों का आधार स्वीकार नहीं करेंगे, तब तक इस प्रकार कि दैविक, दैहिक या भौतिक समस्याओं, बाधाओं अथवा रोगों पर नियंत्रण प्राप्त नहीं कर सकते, और जब तक ये रोग हमारे जीवन में हैं, तब तक जीवन सुखी और आनंद से व्यतीत नहीं हो सकता।
वैसे तो इस प्रकार के रोगों को समाप्त करने में शास्त्रें में कई प्रकार के उपाय, विधियाँ और प्रयोग दिए हैं, परन्तु बटुक भैरव प्रयोग इनमें सर्वश्रेष्ठ अद्वितीय है, क्योंकि यह प्रयोग मात्र रोगों को समाप्त करने और समस्त प्रकार की व्याधियों को नियंत्रित करने के लिए ही हैं।
अनुभव में यह आया है, कि चाहे किसी भी प्रकार का रोग हो, चाहे किसी भी प्रकार की समस्या हो या बाधा हो, यदि हम बटुक भैरव प्रयोग का उपाय करते हैं, तो निश्चय ही उसी क्षण से उस रोग में अनुकूलता प्राप्त होने लग जाती है, और देखते ही देखते रोग समाप्त हो जाते है।
मेरे अनुभव में यह आया है कि चाहे कितना ही भीषण रोग हो, और चाहे उसके लिए हमने कितने ही उपाय किये हो, फि़र भी यदि वह रोग नियंत्रण में नहीं आ रहा हो तो, बटुक भैरव प्रयोग के माध्यम से निश्चय की उसमें अनुकूलता और सफ़लता प्राप्त हो जाती है।
जैसे कि मैंने बताया, कि वह रोग चाहे शारीरिक हो, बुखार, तपेदिक, टी-बी-, कैंसर, पेट के रोग, डायबटीज, हृदय के रोग या किसी भी प्रकार के रोग हों, तो उन सभी रोगों पर यह प्रयोग राम बाण की तरह प्रभाव डालता है।
यहीं नहीं अपितु यदि मानसिक परेशानी हो, या राज्य बाधा हो, हमारे प्रयत्न करने पर भी उस राज्य बाधा का कोई समाधान नहीं निकल रहा हो, या आने वाली आश्ंका हो, और मन भयभीत हो अथवा शत्रुओं का भय हो, या अपने सामने मृत्यु दिखाई दे रही हो, तब भी ये प्रयोग निश्चय ही लाभदायक हैं। इसके अलावा इस प्रयोग का सबसे बड़ा लाभ यह है कि वर्तमान में भले ही कोई बाधा या रोग न हो, वर्तमान में भले ही कोई समस्या या अड़चन न हो, परन्तु इस प्रयोग को सम्पन्न करने से भविष्य में भी आने वाली बाधा या अड़चन अपने आप ही नष्ट हो जाती है, और किसी प्रकार की समस्या या तनाव नहीं रहता। इस प्रयोग की सबसे बड़ी खूबी यह है कि आने वाले अशुभ दिनों का शमन यह पहले ही कर देता है। जीवन में आने वाली समस्या या कठिनाइयों को यह पहले ही समाप्त कर देता है। और इस प्रयोग कि यह विशेषता है कि इसके सम्पन्न करने से आगे के समय में न तो अकाल मृत्यु का भय होता है, न अचानक विपत्ति या बाढ़ की समस्या रहती है और न किसी प्रकार का तनाव, कष्ट, या समस्या आने की सम्भावना होती है क्योंकि इस प्रयोग में यह विशेषता है कि जहां यह वर्तमान जीवन को अनुकूल और सुखद बनाने में सहायक है, वहीं दूसरी ओर आने वाले समय के कष्टों, बाधाओं और अड़चनों को भी दूर करने में पूर्ण रूप में सहायक हैं।
बच्चों की रक्षा के लिए, वृद्धों की दीर्घायु के लिए घर की बिमारी को समाप्त करने के लिए, आने वाली राज्य बाधाओं और आशंकाओं को दूर करने के लिए यह प्रयोग अपने आप में अद्वितीय है, इस प्रयोग को कर्ज में कभी भी मंगलवार के दिन सम्पन्न किया जा सकता है।
इस प्रयोग को पुरूष या स्त्री कोई भी सम्पन्न कर सकता है। यह गलत धारणा है कि हनुमान साधना या भैरव साधना स्त्री नहीं कर सकती। शास्त्रों में स्पष्ट रूप से विधान है कि जो साधना या प्रयोग पुरूष कर सकता है, वह साधना या प्रयोग स्त्री भी कर सकती हैं।
इस साधना को सम्पन्न करने से पहले साधक को चाहिए कि वह स्नान कर सफ़ेद धोती धारण कर ले, यदि स्त्री साधिका हो तो सफ़ेद साड़ी पहन ले, और बाल धोकर पीठ पर खुले रहने दे। यह एक दिन की साधना है, इसके लिए पीले आसन का ही प्रयोग किया जाता है। दक्षिण दिशा की ओर मुंह कर यह साधना संपन्न करनी चाहिए।
इसके लिए मंत्र सिद्धि रोगशमानार्थ प्रयोग से सिद्ध बटुक भैरव महायन्त्र की विशेष आवश्यकता होती है, क्योंकि यह महायंत्र स्वयं के लिए ही नहीं, अपितु पूरे परिवार के कल्याण के लिए अनुकूल एवं सुखदायक है। अतः पत्रिका कार्यालय से सम्पर्क स्थापित कर इस प्रकार का महायंत्र समय से पहले ही मंगवाकर रख लेना चाहिए, जिससे कि समय पर इसका उपयोग किया जा सके।
इसके बाद सामने एक लकड़ी के बाजोट पर नीले रंग का कपड़ा बिछा दे, और उस पर तांबे का पात्र स्थापित कर दें, और उसमें इस महायंत्र को स्थापित कर दे। स्थापित करने से पूर्व एक अलग पात्र में इस महायंत्र को जल से स्नान करवाए, इसके बाद दूध, दही, शहद और शक्कर से स्नान कर पुनः शुद्ध जल से स्नान करा कर, धो कर, पोंछकर स्थापित करना चाहिए और यंत्र पर 11 सिंदूर की बिंदियां लगानी चाहिए।
इस महायंत्र को स्नान कराते समय या पोंछते समय ‘‘बं बटुकाय भैरवाय नमः’’ शब्द का उच्चारण करते रहना चाहिए। इसके बाद इस महायंत्र के सामने पांच तेल के दीपक लगा दे। जिसमें किसी भी प्रकार के तेल का प्रयोग किया जा सकता है और सामने एक पात्र में घी और गुड कटोरी में रखकर भैरव को भोग लगा देना चाहिए।
इसके बाद साधक हाथ में जल लेकर संकल्प करे कि मैं अमुक गोत्र, अमुक पिता का पुत्र, अमुक नाम का साधक अपने घर के और परिवार के समस्त रोग, दुःख, दैन्य, दरिद्रता, कष्ट और अड़चनों को समाप्त करने के लिए यह प्रयोग सम्पन्न कर रहा हूं। ऐसा कह कर हाथ में लिया हुआ जल छोड़ दे।
इसके बाद काली हकीक माला से निम्न मंत्र की 11 माला मंत्र जप वही आसन पर बैठे बैठे करें।
जब 11 माला जंत्र जप पूरा हो जाए, तब यदि संभव हो तो किसी ब्राह्मण कुमार को घर बुलाकर भोजन करा दे, या किसी मंदिर में भोजन सामग्री जा कर रख दे और भैरव को जो भोग लगाया हुआ हैं वह गली के किसी कुत्ते को खिला दे, क्योंकि भैरव का वाहन कुत्ता या श्वान होता है।
इसके बाद साधक स्नान कर ले, और अपने दैनिक कार्य में लग जाए। यह प्रयोग मात्र एक दिन का है और इसे दिन को या रात्रि को भी सम्पन्न किया जा सकता है।
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