शिव की तो महिमा ही निराली है, प्रसन्न हुए तो कुबेर को देवताओं का कोषाध्यक्ष बना दिया, रावण की नगरी को सोने की बना दिया, अश्विनी कुमारों को सारी आयुर्वेद विद्या सौंप दी, महामृत्यंजय स्वरूप होकर भीषण से भीषण रोग की समाप्ति शिव कृपा साधना से ही प्राप्त होती है। जीवन में श्रेष्ठता शिवत्व के माध्यम से ही प्राप्त हो सकती है, श्रावण मास में सम्पन्न किया जाने वाला हर प्रयोग सौभाग्यदायक ही रहता है।
जहां शिव हैं वहां लक्ष्मी है माता पार्वती, शक्ति स्वरूप जगदम्बा है जो कि शिव का ही स्वरूप है, माता गौरी स्वयं अन्नपूर्णा, लक्ष्मी स्वरूप हैं शिव की पूजा साधना करने से लक्ष्मी साधना का ही फल प्राप्त होता हैं और सभी देवताओं में अग्र पूज्य गणपति तो साक्षात शिव पुत्र हैं जो सभी प्रकार के विघ्नों, अड़चनों, बाधाओं को समाप्त करने वाले देव हैं। श्रावण मास की साधना से गणपति साधना का भी साक्षात फल प्राप्त होता है, इसीलिये कहा गया है कि जहां शिव हैं वहां सब कुछ है और जिसने शिवत्व प्राप्त कर लिया, उसने अपने जीवन में पूर्णत्व प्राप्त कर लिया, उसके लिये कठिन से कठिन कार्य भी सरल बन जाता है।
यदि देखा जाय तो भगवान शिव की साधना गृहस्थ साधकों के लिये अत्यन्त उपयोगी है, क्योंकि भगवान शिव समस्त बाधाओं का निराकरण करने में समर्थ हैं। पूर्णतः निर्लिप्त और निराकार होते हुए भी भगवान शिव पूर्ण गृहस्थ हैं, इसी कारण एक और जहां वे योगियों के इष्ट हैं, वहीं दूसरी ओर गृहस्थों के भी आराध्य देव हैं। भगवान शिव की आराधना प्रत्येक वर्ग करता है- ‘गृहस्थ’ इस कामना के साथ, कि उसे पूर्ण रूप से गृहस्थ सुख प्राप्त हो सके, ‘स्त्रियां’ अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिये, ‘कन्याएं’ श्रेष्ठ पति की प्राप्ति के लिए, वहीं दूसरी ओर ‘योगी’ शिवत्व प्राप्ति के लिये उनके ब्रह्मस्वरूप की आराधना करते हैं।
भगवान शिव सिर्फ एक रूप में ही नहीं, अपितु विभिन्न रूपों में साधक की मनोकामनाओं की पूर्ति करते हैं। वे एक ओर तो कुबेराधिपति हैं, वहीं महामृत्युंजय स्वरूप में विभिन्न रोगों के हर्ता हैं, औढरदानी बन कर रंक को राजा बनाने की सामर्थ्य रखते हैं, दूसरी ओर स्वयं रमजान में रहते हुये, भस्म लपेटे हुये उसी प्रकार से आनन्दित रहते हैं, जिस प्रकार वे कैलाश पर्वत पर भगवती पार्वती के साथ रहते हैं। इन्हीं भगवान शिव की आराधना कर योगी परमानन्द की प्राप्ति करते हैं।
भगवान शिव अपनी भक्तवत्सलता के कारण ही सभी के प्रिय देव हैं, तभी तो उन्हें देवाधिदेव महादेव कहा गया है। इसी कारण तो जहाँ प्रत्येक दैवीय शक्ति के लिये वर्ष में एक या दो दिन का निर्धारण किया गया है, वहीं भगवान शिव की आराधना के लिये पूरा एक मास निर्धारित है। वह मास है-‘श्रावण’ जिस माह में जिस किसी भी साधक को कोई बाधा हो उसे भगवान शिव की आराधाना की जाय, वह निश्चित रूप से दूर होती ही है।
भगवान शिव की उपासना करना विश्व का सर्वाधिक प्राचीनतम कृत्य है और यदि शिव उपासना शाम्भवी विद्या द्वारा की जाय, तो वह अत्यन्त फलप्रदायक होती हैं। इसके महत्व का आभास एक बात से ही हो जाता है, कि यदि शाम्भवी विद्या किसी को ज्ञात है, तो उसके स्पर्श से प्राणी इक्कीस कुलों के साथ मुक्ति प्राप्त कर लेता है,फिर जिस क्षेत्र में शाम्भवी विद्या का साधक रहता है, उस क्षेत्र के निवासी व उसके सेवकों की बात ही क्या है?
दर्शनात् स्पर्शनात् तस्य त्रिसप्तकुलसंयुताः।
जना मुक्तिपदं यान्ति किं पुनस्तत्परायणः।।
इतने अधिक महत्व के कारण ही इस विद्या को अत्यधिक गोपनीय रखने का आदेश है-
गुह्याद् गुह्यतरा विद्या न देया यस्य कस्यचित्।
एतश्ज्ञानं वसेद् यत्र स देशः पुण्यभाजनम्।।
अर्थात यह विद्या गुह्याति गुह्यतर है, जिसे किसी सामान्य व्यक्ति को बताना ही नहीं चाहिये, यह ज्ञान जहाँ है, वह क्षेत्र पुण्य क्षेत्र है तथा वहां के निवासी पुण्यात्मा हैं।
शाम्भवी विद्या के बारे में अनेक धर्मग्रंथो यथा श्रीमद्भगवतद्गीता, पातंजल योगसूत्र, हठयोग प्रदीपिका तथा घेरण्ड संहिता में वर्णन प्राप्त होता है। घेरण्ड संहिता में इस विद्या के महत्व प्रतिपादित करते हुए उद्धृत है- शाम्भवीं यो विजानाति स च ब्रह्म न चान्यथा अर्थात शाम्भवी विद्या जानने वाला स्वयं ब्रह्म (शिव) स्वरूप हो जाता है।
उपरोक्त विवेचन से शाम्भवी विद्या का महत्व और गोपनीयता पूर्ण स्पष्ट हो रहा है। इसलिये शास्त्रनुसार शाम्भवी विद्या के जानकार गुरू के बारे में भी स्पष्ट निर्देश प्राप्त होता है-
इश्टिः स्थिरा यस्य विनैव इज्यं, वायुः स्थिरो यस्य विना प्रयत्नम्।
चित्तं स्थिरं यस्य विनावलम्बं, स एव योगी स गुरूः स सेव्यः।।
ऐसे सिद्ध गुरू के द्वारा ही शाम्भवी विद्या का ज्ञान प्राप्त करना चाहिये, क्योंकि इस विद्या के जानकार गुरू सामान्य दिखते हुए भी अध्यात्मतः शिव के पूर्ण अंशस्वरूप होते हैं। शाम्भवी विद्या को आदिशक्ति उमा स्वरूपिणी कहा गया है और शाम्भु में आविर्भूता भी कहा गया है-
आदिशक्ति रूपा चैवा भक्तो जन्वती पुरा।
अधुना जन्मसंस्कारात् त्वमेको लब्धावानसि।।
व्यक्ति भगवान शिव की अराधाना कर अपने जीवन में सब कुछ प्राप्त कर लेता है, चाहे वह उसकी धन सम्बन्धी समस्या हो या रोग मुक्ति, कुटुम्ब सुख प्राप्ति या फिर पौरूषता से सम्बन्धित हो।
संन्यासी इष्ट प्राप्ति हेतु वाक सिद्धि व साधनाओं में श्रेष्ठता प्राप्ति हेतु भगवान शिव की साधना को सम्पन्न करते हैं।
प्रथम सोमवार को संकल्प अनुसार निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति हेतु साधना की जानी चाहिये।
द्वितीय सोमवार को निम्न उद्देश्यों की पूर्ति हेतु साधना प्रयोग सम्पन्न की जानी चाहिये।
यह सोमवार अद्भूत ही है शुष्क जीवन में सम्पूर्ण रस वर्षा के लिये इस दिवस की साधना निष्फल जा ही नहीं सकती, ऐसे सिद्धिकारक दिवस को भगवान शिव की पूर्ण साधना उपासना करने वाला साधक धन धान्य हो जाता है निम्न कार्यो की पूर्ति हेतु इस सोमवार का प्रयोग किया जाना चाहिये।
चतुर्थ सोमवार को आप यह प्रयोग सम्पन्न करें
श्रावण साधना
चारों सोमवार का प्रयोग सम्पन्न करने के लिये साधकों की सुविधा हेतु श्रावण मास सर्व कामना सिद्धि पैकेट बनायें गये हैं, अतः साधक पत्रिका प्राप्त होते ही तत्काल सूचित कर दें, जिससे उचित समय पर उन्हें यह पैकेट भेजा जा सके। इसके अतिरिक्त पूजन के लिये निम्न सामग्री एकत्र कर लें- सफेद आसन, जल पात्र गंगा जल, चांदी या स्टील की प्लेट, कुंकुम, चावल, केसर, बिल्व पत्र, पुष्प, पुष्प माला, दूध, दही, घी, चीनी, शहद, नारियल, मौली या कलावा, यज्ञोपवीत, अबीर गुलाल, अगरबत्ती, कपूर, घी का दीपक, नैवेद्य हेतु दूध का प्रसाद, पांच फल, इलायची।
साधना प्रयोग
सर्वप्रथम स्नान कर शुद्ध सफेद धोती पहन कर पूर्व दिशा की ओर मुंह कर बैठ जायें और अपने बायें हाथ में जल ले कर दाएं हाथ से शरीर शुद्धि की प्रार्थना करते हुये जल छिड़कें, फिर सामने रखे कलश की प्रार्थना करते हुये जल छिड़के, फिर सामने रखे कलश को चावल की ढे़री पर स्थापित कर उसके चारों ओर कुंकुम या केसर की चार बिंदिया लगा दें, यह घट स्थापन सभी तीर्थों का प्रतीक है, तत्पश्चात् कलश में से थोड़ा सा जल अपने हाथ में लेकर संकल्प करें- मैं अपना नाम, गोत्र तथा शहर का नाम लें अपने गुरू को साक्षी रखते हुए अपनी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु श्रावण मास साधना सम्पन्न कर रहा हूं, भगवान शिव मेरा पूजन सफल करें।
इसमें जिन जिन कार्यो की पूर्ति का विवरण दिया हो या आपकी जो भी इच्छा हो, उसका उच्चारण कर सकते हैं, या मन में बोल सकते हैं।
गणेश पूजन
फिर सामने स्टील या चांदी की प्लेट में कुंकुम से स्वास्तिक बनाकर गणपति को स्थापित करें यदि गणपति की मूर्ति नहीं है तो एक सुपारी रख कर उसे गणपति मान कर उस पर जल चढ़ा कर पोंछ कर केसर लगाकर, सामने नैवेद्य और फल रख दें, ऊपर पुष्प चढ़ावें और फिर हाथ जोड़कर गणपति का रिद्धि-सिद्धि सहित आह्वान करें और एक माला ‘ऊँ गं गणपतयै नमः।’ मंत्र का जप करें।
फिर गणपति को किसी अलग स्थान में स्थापित कर दें और सामने पात्र में ‘सर्वकाम्य सिद्धि यंत्र’ को स्थापित करें, इससे पहले ही एक श्रेष्ठ शिव चित्र को रख दें और उसे जल से पोंछ कर, केसर लगाकर पुष्प लगाकर पुष्प माला पहना देनी चाहिये।
पात्र में ‘सर्वकाम्य सिद्धि यंत्र’ के साथ-साथ ‘साफल्य प्राप्ति रूद्राक्ष’, ‘कल्पवृक्ष वरद’, ‘सिद्धि प्राप्ति युक्त गोमती चक्र’, ‘रिद्धि-सिद्धि यंत्र’ तथा ‘सर्वकाम्य सिद्धि विग्रह’ को भी रख देना चाहिये।
फिर शुद्ध जल में थोड़ा सा कच्चा दूध और गंगा जल मिलाकर ‘ऊँ नमः शिवाय’ मंत्र का उच्चारण करते हुए इन सब पर जल चढ़ावें, पतली-पतली धार से लगभग पांच मिनट तक चढ़ाते रहें, साथ ही दूध, घी, शहद, शक्कर, पंचामृत जल से भी स्नान करावें,फिर शुद्ध जल से धो लें, फिर इन सभी विग्रहों को बाहर निकाल कर शुद्ध वस्त्र से पोंछ लें और अलग पात्र में स्थापित कर लें, तत्पश्चात् इन सभी विग्रहों पर निम्न मंत्र पढ़ते हुए केशर या कुंकुम लगावें।
नमस्सुगन्धादेहाय ह्यबन्यफ़लदायिने।
तुभ्य गन्धान् प्रदास्यामि चानकासुरभन्जन।।
इन सभी पर धीरे-धीरे पुष्प की पंखुडि़यां डालते हुए ‘ऊँ नमः शिवाय शिव’ मंत्र का जप करते हुए इन्हें सिद्धि युक्त बनावें। इसके पश्चात् भगवान शिव पर और इन सभी यंत्रं पर अबीर गुलाल और अक्षत चढ़ावें तथा पुष्प और पुष्प माला समर्पित करें।
इसके बाद सर्वकाम्य सिद्धि पैकेट में जो ‘रूद्राक्ष माला’ है, उसके द्वारा मंत्र जप करें, इसमें रूद्राक्ष माला सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, इसके 11 माला जप इन यंत्र और विग्रह के सामने करना आवश्यक है।
यह सभी मंत्र अद्वितीय हैं और महत्वपूर्ण हैं यह हम लोगों का सौभाग्य है कि हमारे जीवन काल में ऐसा महत्वपूर्ण अवसर उपस्थित हुआ है, जिसका हम पूरा-पूरा लाभ उठा सकते हैं। प्रत्येक सोमवार का मंत्र जप करने के बाद इन सभी यंत्र को अलग पात्र में रख देना चाहिये और नित्य इनके सामने सुबह शाम अगरबत्ती व दीपक लगाकर दिन में एक बार ‘ऊँ नमः शिवाय’ मंत्र की एक माला अवश्य करनी चाहिये। इस दिन सिद्ध किये हुए यंत्र को पूजा स्थान में लाल वस्त्र में बांध कर किसी स्थान पर रख देना चाहिये।
भगवान शिव तो सर्वाधिक दयालु और तुरन्त वरदान देने वाले महादेव हैं, अतः इन प्रयोगो एवं साधनाओं का फल तुरन्त प्राप्त होता है और साधक शीघ्र ही मनोवांछित सफलता प्राप्त करने में सफल हो पाता है।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,