1 जो बाग-बगीचों में लगाया जाता है। बागों में लगाये जाने वाले आँवले भी दो प्रकार के होते हैं-
बीजू- बीज से लगे हुये।
कलमी- जो कलम द्वारा लगाये जाते हैं।
2 जंगली जो खुद ब खुद पैदा होते रहते हैं।
1 बीज द्वारा उगाये गये।
2 इसके फल छोटे होते हैं।
3 इसमें प्रायः रेशेदार, कम गूदावाले और बड़ी गुठली होती है।
4 इसका वृक्ष मध्यम आकार के 20 से 40 फुट तक ऊँचा होता है।
1 कलम द्वारा लगाये गये।
2 इसके फल बड़े होते है।
3 इसमें बहुत गूदा, रेशा-रहित और छोटी गुठली वाला होता है।
4 इसका वृक्ष बीज वाले पेड़ से छोटा होता है। तथा कुछ विशेष लम्बी शाखायुक्त फैलावदार होते हैं।
आयुर्वेद निघण्टु ग्रंथों में जंगली आँवले को ही क्षुद्रामलक, काष्ठधात्री, कर्कट आदि नामों से अभिहित किया गया है। आँवले को जीवन रक्षक कहा गया है। इसका स्वाद खट्टा, तीखा और कसैला होता है। इसकी प्रकृति ठंडी है। अम्लता के कारण यह रूचिकर होता है। भोजन के स्वाद के लिये चटनी, अचार, मुरब्बा से लेकर स्वास्थ्य के लिये औषधि तक में इसका प्रयोग अनेकों प्रकार से किया जाता है। इसके गुणों पर दृष्टिपात करने पर यह वस्तुतः जीवन रक्षक ही सिद्ध होता है।
जिस शक्ति के आधार पर शरीर का स्वास्थ्य और जीवन शक्ति निर्भर रहती है, वह आँवले में पर्याप्त मात्र में प्राप्त हो जाती है। अब वैज्ञानिक परीक्षणों में भी पाया गया है कि इसके सेवन से रक्तसंचार में कमी होने के कारण आने वाली सुस्ती तथा कमजोरी नहीं आ पाती और रक्त संचार समुचित गति से होता रहता है। यह कारण है कि इसके सेवन से असामयिक बुढ़ापा नहीं आता तथा अंत तक शरीर मे चुस्ती और शक्ति बनी रहती है। यह तृप्तिदायक, क्षुधाकारी, बलवर्धक, रोगनाशक, रक्तशोधक, स्वास्थ्यवर्द्धक, आयुवर्द्धक, कफ, पित्तनाशक एवं लाभकारी है। इसी शक्ति के कारण वृद्धों, गर्भवती महिलाओं और बच्चों के लिये इसे आवश्यक बताया गया है। इसमें विटामिन सी संतरे से तो लगभग 20 गुना अधिक होता है।
आँवला केवल स्वादिष्ट, स्वास्थ्यवर्द्धक फल ही नहीं, यह उत्तम औषधि भी है। इसका सेवन करने से अनेकों रोगों से मुक्ति हो जाती है। इसका नियमित सेवन करते रहने से रक्त, उदर, मानसिक, वीर्य, वातादि विकारों में लाभ होता है तथा चर्म, पांडु, वात, प्रदर, क्षय, बहुमूत्र, अजीर्ण, अतिसार, वात, आँख आदि के रोग होने का भय नहीं रहता।
आँवला का त्रिफला चूर्ण सर्वविदित है। इसमें सबसे अधिक गुणकारी एवं प्रमुख आँवला ही होता है। अजीर्ण, कब्ज, दस्त, अतिसार, अग्रिमांद्य में इसके सेवन से स्थायी लाभ होता है। त्रिफला को घी के साथ मिलाकर सेवन करने से आँखों की ज्योती, शरीर की शक्ति और मुख की कान्ति में वृद्धि होती है।
इसके चूर्ण को भिगोकर इसके पानी से बालों को धोने से बालों की जड़ें मजबूत होती हैं। बाल काले, चमकीले और लम्बे होते हैं तथा बालों के रोगों का नाश होता है, जैसे असमय में ही पकना, झड़ना आदि। आँवले के चूर्ण के पानी से आँखों को प्रतिदिन प्रातः धोने से दृष्टि दोष में लाभ होता है और आँखो की बिमारी होने का डर नहीं रहता। चूर्ण के पानी से शरीर पर उबटन करने से शरीर कान्ति युक्त बनता है। चमड़ी में झुर्रियाँ नहीं पड़ती और चर्म रोगों का नाश होता है। आँवले के चूर्ण को शहद के साथ सेवन करने से पित्त जनित शूल में लाभ होता है।
पित्त रोग होने पर उसे शांत करने के लिये आँवले के चूर्ण में घी और मिश्री मिलाकर सेवन करने से लाभ होता है। सूखा आँवला, चिमक की जड़, छोटी हरड़, सेंधानमक तथा पीपल को समभाग लेकर सबको पीसकर चूर्ण बनाकर लेने से ज्वर दूर हो जाता है। नाक से खून गिरता हो तब सूखे आँवले को घी में तलकर पीसने और उसे मस्तक पर लेप करने से खून बंद हो जाता है। लू लगने पर आँवले का शर्बत लेना चाहिये। गर्मी में आँवले का नियमित सेवन करते रहने से लू लगने का भय नहीं रहता। इस अकेले के सेवन करते रहने से दाँतों के रोग, मसूड़ों की कमजोरी, छोटे बच्चों के दस्त, दाँत निकलते समय के कष्ट, बच्चों की कमजोरी तथा शारीरिक विकास का रूक जाना आदि में बड़ा ही लाभदायक प्रभाव होता है। चर्मरोगों की जलन आँवले के पानी से स्नान करने से शांत होती है और चर्म रोग समाप्त हो जाता हैं।
आँवले का रस शहद के साथ सेवन करने से शरीर में संचित मल साफ हो जाता है और उदर रोगों की शिकायत नहीं होती। इससे शरीर को शक्ति मिलती है। भोजन ठीक तरह से पच जाता है। रक्त अतिसार की बीमारी शहद, दूध और घी में आँवले का रस मिलाकर लेने से समाप्त होती है। मठे के साथ आँवले का रस पीने से प्रमेह की बीमारी नष्ट होती है।
आँवले का मुरब्बा ठंडा, मस्तिष्क और शरीर के अवयवों को शक्ति देने वाला तरावटी, रूचिकर होता है। इसकी चटनी दाह, कफ और पित्त आदि को शांत कर इससे होने वाले रोगों तथा विकारों से रक्षा करती है। आँवले के साथ ब्राह्मी को पीसकर चटनी बनाकर खाने से स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है। इससे मानसिक तरावट बनी रहती है। गर्मी के दिनों में शीतलता बनी रहती है। मानसिक गर्मी बढ़ने नहीं पाती। बालों को शक्ति मिलती है, वे काले बने रहते हैं। उदर रोगों से रक्षा होती है। आँवले को आग में भूनकर उसके साथ नमक छिड़कर खाने से भोजन को पचाने की शक्ति बढ़ती है और मानसिक स्फूर्ति बनी रहती है।
नियमित रूप से आँवले का सेवन करते रहने से रक्त शुद्ध होता है। शरीर में कोई घाव हो जाने पर घाव को शीघ्र भरने की क्षमता प्रदान करता है तथा घावों से बहने वाले खून शीघ्र ही बंद हो जाते है। घाव पकने नहीं पाता। बचपन से ही नियमित सेवन करने वालों की वीर्य विकारों में रक्षा होती है। इससे मानसिक उत्तेजना और गर्मी की शांती होती रहती है। इससे इंद्रिय संयम करने की शक्ति मिलती है।
आँवले की फसल मौसमी है। अतः यह साल भर ताजा नहीं मिल सकता। इससे सुखाकर रख देने से सालभर लाभ लिया जा सकता है। आँवले उबालकर सुखा कर रख देने से सुरक्षित रहते हैं। बिना उबाले भी सुखाकर रखे जा सकते हैं। करीब 3-4 माह तक उन्हें ताजे रखने के लिए उबाले गये पानी में नमक मिलाकर उसमें ताजे आँवले को रख कर समय-समय पर धूप देते रहने से ताजे बने रहते हैं। यहां ये बात उल्लेखनय है कि आँवले को उबालने या सुखाने पर भी उसमें पाये जाने वाले पौष्टिक तत्व नष्ट नहीं होते। वे ताजे फल के समान ही स्वाभाविक अवस्था में बने रहते हैं। कीमत की दृष्टि से यह अन्य फलों की अपेक्षा बहुत ही सस्ता, किन्तु सर्वाधिक गुणकारी होता है।
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