भगवान धनवन्तरी की पूजन, साधना धनतेरस पर सम्पन्न की जाती है। लक्ष्मी का आगमन उसी घर में होता है जहाँ स्वच्छ निर्मल हृदय व स्वस्थ शरीर हो। इसीलिये दीपावली पूजन के एक दिन पूर्व धनत्रयोदशी पर धनवन्तरी पूजन सम्पन्न किया जाता है। हम पारद लक्ष्मी के माध्यम से जीवन को ऐश्वर्यमान बना सकते है
ऋणरोगादि दारिद्रयं पापं च अपमृतयवः।
भय शोममनस्तापा नश्यन्तु मम सर्वदा।
हे महालक्ष्मी! मेरी ऋण रोगादि बाधाएं, दारिद्रय, पाप, अपमृत्यु (अकाल-मृत्यु) भय एवं समस्त ताप आदि सदा के लिये नष्ट हो, जिससे कि मैं सर्वदा सुख भोगूं।
आदिकाल से लक्ष्मी मानव जाति के लिये ही नहीं देवताओं के लिये भी वरदान स्वरूप ही रही है। एक प्रकार से देखा जाय तो लक्ष्मी सम्पूर्ण जीवन के सौभाग्य का आधार है। सतयुग, त्रेतायुग या द्वापर युग, प्रत्येक युग में लक्ष्मी का महत्व लोगों ने स्वीकार किया है समुद्र मंथन के समय जब लक्ष्मी प्रकट हुई तो विष्णु ने लक्ष्मी का ही वरण किया। महर्षि वशिष्ठ, विश्वामित्र, शंकराचार्य आदि जितने भी ऋषि हुए है, उन्होंने लक्ष्मी की साधना की, एक ही प्रकार से लक्ष्मी साधना नहीं की, अपितु लक्ष्मी के प्रत्येक स्वरूप को साधना के द्वारा प्राप्त किया, क्योंकि लक्ष्मी 108 प्रकार की होती है, जैसे धन लक्ष्मी, यशोलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी, बल लक्ष्मी, सौभाग्य लक्ष्मी आदि, इसीलिये ये ऋषि अद्वितीय और मूर्धन्य बन पाये, इस लेख में चर्चा का मुख्य विषय धन लक्ष्मी है, क्योंकि आज के समाज के लिये यही मुख्य उपास्या लक्ष्मी है।
प्राचीन काल में लोगों की मूलभूत आवश्यकता बहुत कम थी, साधारण जीवन जीने में ही आनन्द का अनुभव उन्हें होता था इसके लिये विशेष आपा-धापी चाहते भी नहीं थे। उनका लगाव शरीर की अपेक्षा आत्मा से अधिक था, किन्तु वर्तमान समय में जीवन की आवश्यकता ही एक मात्र धन लक्ष्मी पर सिमट कर रह गई है, जिसे किसी भी तरह से इसे प्राप्त करना जीवन का सौभाग्य बन गया है।
विश्वामित्र ने लक्ष्मी की आराधना करके उन से विनय की, किन्तु लक्ष्मी ने उनकी प्रार्थना सुनने से इंकार कर दिया, फिर उन्होंने स्वरचित मंत्रों द्वारा साधना सम्पन्न की। इसके फलस्वरूप लक्ष्मी अपने पूर्ण सहस्त्र रूपों में उनके आश्रम में स्थापित हुई। भगवान राम और श्री कृष्ण ने भी लक्ष्मी साधना के द्वारा अपने राज्य को समृद्धि युक्त बनाया।
यह स्पष्ट है कि लक्ष्मी से सम्बन्धित साधना व्यक्ति के जीवन की आवश्यक साधना है, लेकिन यह सदैव ध्यान रखना चाहिये कि धन का संग्रह अनैतिक कार्यो के लिये नहीं किया जाये। किसी गलत रास्ते से या किसी को धोखा देकर धन का संचय करना अधर्म है। धनवान बनना कोई बुरा नहीं है किन्तु धन को पूर्ण सम्मान, मान-मर्यादा शास्त्रीय नियमों के अनुकूल विचारों के द्वारा परिश्रम से प्राप्त करना चाहिये, कई बार अत्यधिक परिश्रम के बाद भी हमारे सभी उपाय व्यर्थ पड़ जाते है, परिश्रम धरे रह जाते है, ऐसी स्थिति में ही धनदा लक्ष्मी की साधना करनी चाहिये। इसमें अवश्य ही सफलता प्राप्त होगी, क्योंकि पूज्य गुरूदेव पथ प्रदर्शक के रूप में आपके पास सदैव उपस्थित है, जैसे भी हो अपने सौभाग्य को जगाने का प्रयास अवश्य ही करना चाहिये।
‘सामवेद की एक ऋचा में धनदा लक्ष्मी की आराधना करते हुऐ लिखा है जिस प्रकार कल्पवृक्ष समस्त इच्छाओं को पूरा करता है, आप भी उसी प्रकार हमारे जीवन की समस्त कामनाओं की पूर्ति करें।
‘धनंजय संचय’ में वर्णन है कि जो व्यक्ति अपने जीवन में धन ऐश्वर्य व सम्पन्नता प्राप्त करना चाहता है, उसे चाहिये कि श्रेष्ठ गुरू के द्वारा अपने साधना कक्ष में पारद क्रियमाण शिवलिंग ईशान कोण में तथा भगवती धनदा लक्ष्मी की स्थापना अग्नि कोण में करनी चाहिये।
‘‘पारदेश्वरी कच्छप लक्ष्मी’’ की दीक्षा आत्मसात् करने से कच्छप की भांति निरंतर गतिशील रहते हुये धन, वैभव, का जीवन में आगमन बना रहता है। पारदेश्वरी कच्छप लक्ष्मी के पूजन से निम्न लाभ स्वतः प्रातः होने लगते है-
आर्थिक बाधाएं दूर होती है, नवीन लाभ प्राप्त होते है।
नौकरी में आने वाली कठिनाईयां दूर होती है।
यदि पदोन्नति में बाधा हो तो वह दूर होती है।
यदि व्यापार में आयकर से सम्बन्धित कठिनाई हो तो वे कठिनाईयां दूर होती है।
जीवन के समस्त भोग प्राप्त होते है।
समाज में सम्मान व यश प्राप्त होता है।
पूर्ण पुरूषत्व प्राप्त होता है, यदि संतान प्राप्ति में अथवा वंश वृद्धि में बाधा रही हो तो वह बाधा समाप्त होती है।
ऊपर लिखे लाभों के अलावा
अन्य ऐसे कई लाभ है जो धनदा लक्ष्मी की साधना से प्राप्त होते है। व्यक्ति अपने जीवन के सम्पूर्ण भोगों को भोगता हुआ धर्म, अर्थ काम की पूर्णता को प्राप्त कर इस साधना के द्वारा मोक्ष भी प्राप्त करता है। आवश्यकता इस बात की है कि पूर्ण विधि विधान एवं इसके गुढ़ रहस्यों को पूज्य गुरूदेव द्वारा प्राप्त करके ही साधना प्रारम्भ करे।
साधना विधि
साधक को प्रातः स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण कर धनत्रयोदशी के दिन पूर्व की तरफ मुंह कर सफेद (सफेद या ऊनी) आसन पर बैठ जाना चाहिये। अगरबत्ती व दीपक लगा लें। संक्षिप्त गुरू पूजन सम्पन्न कर षोडशोपचार द्वारा भगवती धनदा लक्ष्मी का पूजन सम्पन्न करें।
मूर्ति स्थापना से पूर्व साधना कक्ष को साफ करके फूल माला व तोरण द्वारा सजा लें अब पूजा स्थान पर अग्नि कोण में एक थाली में स्वस्तिक बना कर लक्ष्मी का स्थापन करें। पूजन सम्पन्न करके धनदा मणिमाला से निम्न मंत्र की पांच माला जप 11 दिन तक करें।
इस प्रकार यह प्रयोग सम्पन्न होता है। वास्तव में यह मंत्र अत्यन्त महत्वपूर्ण है। आर्थिक उन्नति, व्यापारिक समृद्धि, जीवन की सुख समृद्धि तथा आध्यात्मिक उन्नति लक्ष्मी की साधना से प्राप्त होती ही है। तीन दिवसीय साधना सम्पन्न कर दीक्षा प्राप्त करें
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