इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुये भौतिक और आध्यात्मिक जीवन के लिये महत्वपूर्ण और शीघ्र फलदायी साधनाये प्रस्तुत की जा रही है। जिससे साधक अपने जीवन के सभी क्षेत्रें में अपना वर्चस्व स्थापित कर सके। साथ ही निरंतर उर्ध्वगामी बन सके। कहा जाता है शक्ति सम्पन्न व्यक्ति अपने अधिकार को हर हाल में प्राप्त करता ही है। ऐसी है प्रखर पौरूषता की विशिष्ट साधनाये।
शक्ति की अधिष्ठात्री माँ आद्या शक्ति की उपासना वर्ष में चार बार चैत्र, आषाढ़ अश्विन तथा माघ माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक नौ दिन सम्पन्न की जाती है। साधनात्मक दृष्टि से प्रत्येक नवरात्रि का विशेष महत्त्व है। जिसमें साधक साधना को सम्पन्न कर अपनी मनोकामनाओ की पूर्ती कर सकता है।
शक्ति उपासना का मूल चिंतन जीवन में नूतन परिवर्तन लाना है। जिसका तात्पर्य है प्रकृति के स्वभाव अर्थात् निद्रा, आलस्य, तृष्णा, कामवासना, अज्ञान, मोह, क्रोध पर विजय कैसे प्राप्त की जाये? महिषासुर रूपी राक्षस अर्थात् उक्त सभी दुर्गुण को नाश करने के लिये शक्ति के गुण सद्बुद्धि, बोध, लज्जा, पुष्टि, शांति, श्रद्धा कान्ति, सद्वृत्ति, स्फूर्ति, दया, परोपकार आदि गुणों का विकास आवश्यक है। इस प्रकार मनुष्य जीवन सभी गुणो का संयोग है। अविद्या रूपी अवगुणों को शक्ति साधना के द्वारा मिटाना और सद्गुणों को धारण करना ही शक्ति साधना का महत्व है।
नवरात्रि एक उत्सव पर्व नहीं है, यह कल्प है, व्यक्ति के जीवन में एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जिसमें वह अपने आप को उर्ध्व स्थिति में ले जा सकता है। माँ भगवती कभी अपने भक्तों की परीक्षा नहीं लेती, वह उन्हें अपनी अभय मुद्रा में वर ही प्रदान करती है और नवरात्रि कल्प इसका सबसे सुन्दर चेतना काल है। जो साधक नवरात्रि में माँ दुर्गा की आराधना श्रद्धा-भाव से करता है, उसके सारे विघ्न का नाश होता है। धन और समृद्धि शंकर और भवानी के आशीर्वाद से सर्व सुखों की प्राप्ति होती है साथ ही आयु, आरोग्यता, धन, संतान प्राप्ति की कामनायें पूर्ण होती है।
सांसारिक जीवन में मलिन और दरिद्रता पूर्ण स्थितियो से निजात पाने और नवशक्ति स्वरूप के मूल तत्व की प्राप्ति शक्ति आराधना, उपासना से ही संभव है। सुख, स्वास्थ्य, धन, मान-सम्मान या आत्म उद्धार जो कुछ भी चाहे वह शक्ति तत्व से ही सम्भव है। मंत्र जप, पूजा, ध्यान, साधना आदि का आश्रय लेने पर जीवन में अत्यन्त श्रेष्ठमय स्थितियो की प्राप्ति होती है। इसी हेतु नवरात्रि के पावन दिव्य महापर्व पर गृहस्थ जीवन मे आने वाले अनेकों समस्याओं का निदान कर सकते है। आवश्यक है साधक को अपने मनोभावों के अनुरुप साधनाये सम्पन्न करने की। इस बात का विशेष ध्यान रखे कि साधना, दीक्षा के माध्यम से गृहस्थ जीवन में अनुकूल स्थितियों में निरन्तरता बनी रहती है और साधक दिन-प्रतिदिन श्रेष्ठता का वरण करता हुआ अपने जीवन को सर्व सुखमय बनाने की क्रिया पूर्णता से सम्पन्न कर पाता है।
वर्तमान समय में संतान सुख के मायने बदल गये है, संतान सुख केवल संतान प्राप्ति तक सीमित नहीं रह गया है। पहले के समय में किसी भी तरह संतान का जन्म होना ही संतान सुख माना जाता था, क्योंकि पहले के लोग अपने माता-पिता की उपेक्षा नहीं करते थे। परन्तु बदलते परिवेश में स्थितियां बिल्कुल बदल गयी है। अब संतान प्राप्ति से अधिक अपने संतान से जुड़े रहना और अपने संतान द्वारा उचित मान-सम्मान, प्रेम मिलना ही दुष्कर हो गया है।
आज के वातावरण में समाज में बहुत ही तेजी से माता-पिता की उपेक्षा करने वाली संतानों की भरमार लगती जा रही है। संतान किसी भी रूप में हो पुत्र हो अथवा पुत्री दोनों में ही यह प्रवृतियां होने लगी है। पुत्र से जहां उपेक्षित होने का भय बना रहता है, वहीं पुत्रियों द्वारा सामाजिक प्रतिष्ठा पर आघात होने का भय होता है। समाज के बदलते इस परिवेश में स्वयं का सशक्त और साधनात्मक शक्तिमय ऊर्जा से युक्त होना अति आवश्यक है। अन्यथा जीवन का अन्तिम पड़ाव अत्यन्त कष्टकारी हो जाता है और सम्पूर्ण जीवन में जो कष्ट नहीं होता है, वह जीवन के अन्तिम पड़ाव में सहन करने के लिये व्यक्ति विवश हो जाता है। इस हेतु साधक को अभी से अपने संतान में ऐसे सुसंस्कारमय बीज का रोपण करना चाहिये, जिससे वह स्वयं का और अन्यत्र अपने माता-पिता के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह कर सके।
इस साधना से साधक अपने जीवन को पूर्ण रूप से सकारात्मक बनाने के लिये जीवन के नकारात्मक पक्षों पर प्रहार कर उन्हें अपने अनुकूल बनाने में समर्थ हो जाता है। उसकी संतान सभी सुसंस्कारों से युक्त ज्ञान, बुद्धि, बल शक्ति, वाक्चातुर्यता के साथ उनके आज्ञा पालन की भावना में वृद्धि होती है। जिससे वास्तविक रूप से पूर्ण गृहस्थ सुख की प्राप्ति होती है।
नवरात्रि के रात्रि काल में स्नानादि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर ले, सामने लाल आसन की चौकी पर महागौरी शक्ति यंत्र और गणपती कार्तिकेय जीवट स्थापित कर पंचोपचार पूजन सम्पन्न करे, पश्चात् भगवान शिव-गौरी से सर्व संतान सुख की प्रार्थना कर महागौरी संतान सुख प्राप्ति माला से 7 माला मंत्र जप सम्पन्न करे।
मंत्र जप पश्चात् जीवट को धारण करे व माला को तोड़ कर अग्नि में प्रज्ज्वलित कर दें, जिससे संतान में व्याप्त कुसंस्कार भस्मीभूत हो सके यंत्र को पूजा स्थान में ही रहने दे। एक माह बाद जीवट व यंत्र को किसी मंदिर में अर्पित करे।
नवरात्रि में की गयी साधना पूजा से पूरे वर्ष साधक का जीवन प्रकाशित, ऊर्जावान रहता है। इन्ही स्थितियों से लक्ष्मीवान की चेतनाओं से आपूरित होता है। साथ ही यश, प्रसिद्धि, उन्नति, कामना पूर्ति की प्राप्ति सम्भव हो पाती है। यह सौभाग्य, सुन्दरता, श्रेष्ठ गृहस्थ जीवन प्रदान करने की नव शक्ति का भाव है। भगवती लक्ष्मी भोग, यश, सम्मान की अधिष्ठात्री देवी है। इनकी साधना से ही जीवन में सभी भौतिक व आध्यात्मिक सुख सुविधाओं की प्राप्ति होती है। गृहस्थ जीवन को सुचारू रूप से गतिशील रखने के लिये नित्य नूतन वस्तुओं की आवश्यकता पड़ती है। यह सब केवल और केवल भगवती लक्ष्मी पूजन साधना से ही सम्भव है। जिनमें देवी की नव शक्तियां विभूति, नम्रता, कान्ति, तुष्टी, कृति, उन्नति, पुष्टी तथा ऋद्धि सिद्धि से जीवन युक्त होता है।
इस साधना को सम्पन्न करने से लक्ष्मी का आगमन स्थायी रूप से साधक के जीवन में होता ही है। इस साधना के प्रभाव से शीघ्र ही धनागमन के नये-नये स्त्रोत खुलते है, व्यापार में वृद्धि होने लगती है। लक्ष्मी शक्ति नवदुर्गा साधना से व्यक्ति के जीवन के समस्त पूर्व जन्मकृत पाप दोषों का नाश होकर व्यक्ति सौभाग्यता से युक्त होता है।
साधना विधि
नवरात्रि के किसी भी दिवस पर रात्रिकाल में स्नानादि से निवृत होकर शुद्ध धुले हुये लाल वस्त्र धारण कर पूजा स्थान में उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुंह कर लाल आसन पर बैठ जाये, अपने सामने बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाकर उसके ऊपर तांबे की थाली रख कर उस पर कुंकुंम से स्वस्तिक बनाकर नवदुर्गा शक्ति यंत्र और जीवट को स्थापित करे। पूर्ण मनोभाव से संकल्प लेकर पूजन सम्पन्न करे व लक्ष्मी माला से निम्न मंत्र का 9 माला मंत्र जप सम्पन्न करे-
साधना समाप्ति के बाद नवरात्रि काल में निम्न मंत्र का 9 बार उच्चारण करते रहे। साधना सामग्री को नवरात्रि के पूर्णता पर लाल कपडे़ में बांध कर किसी मन्दिर या गुरू चरणों में अर्पित करे।
जीवन की तीन महाशक्तियां इच्छा, ज्ञान और कर्म का पूर्ण प्रभाव मनुष्य के प्रारब्ध पर निर्भर होता है। जिसे भाग्य कहा गया है, जब ज्ञान, कर्म और भाग्य का संयोग होता है तो व्यक्ति निश्चय ही अपने जीवन में बाधाओं से मुक्ति पाकर भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों पक्षों को उज्ज्वल कर लेता है। जीवन तो सभी व्यक्ति जीते है लेकिन भाग्य का संयोग सभी के साथ नहीं बनता।
जीवन में अनेक पक्ष होते है, प्रत्येक पक्ष को साध लेना सरल कार्य नहीं होता है। एक स्थिति में सफलता मिलने के बाद दूसरी स्थिति में सफलता पाने की चुनौती सामने आती है, जिसकी पूर्ति करना कोई दोष युक्त कार्य भी नही। जीवन में धन प्राप्ति, स्वास्थ्य, पारिवारिक सुख, शत्रु बाधा निवारण, राज्य सम्मान, विदेश यात्र योग, संतान सुख इत्यादि ऐसे चौदह रत्न है, जिनकी प्राप्ति से जीवन में सभी सुखो की प्राप्ति होती है। जिसे सर्व दुर्गति नाशक के नाम से वर्णित किया गया है, जिसके द्वारा जीवन की प्रारम्भिक स्थितियों को सुधारने के साथ ही साथ जीवन की भावी योजनाओं की पूर्ति भी हो सके।
इस साधना की मूलशक्ति माँ गौरी लक्ष्मी हैं, क्योंकि उन्हें सौभाग्य शक्ति दायिनी कहा गया है और सौभाग्य के जाग्रय होने पर कर्म प्रभाव प्रकाशिनी लक्ष्मी तत्व पूर्ण रूप से सक्रिय हो पाता है। इस साधना में माता गौरी को आधार बनाकर सर्व दुर्गति नाशिनी की क्रिया पूर्ण की जाती है। जो अपने वरदायिनी स्वरूप में जीवन को धन, ऐश्वर्य, सुख-सम्पन्नता, संतान सुख, कार्य-व्यापार वृद्धिमय चेतना से आप्लावित करती है। एक प्रकार से यह साधना महा लक्ष्मी स्वरूप में अपने एक हजार आठ वर्णित स्वरूपो के साथ पूर्ण कृपालु हो जाती है और विशेष साधनात्मक रूप से उनको चिर स्थायित्व किया जा सकता है।
नवरात्रि की रात्रि स्नानादि से निवृत होकर साधना में प्रवृत हो, सामने पीले आसन पर सर्व दुर्गती नाशक कात्यायनी यंत्र और गुटिका स्थापित कर घी का बड़ा दीपक प्रज्ज्वलित करे और फिर यंत्र, गुटिका का कुंकुम, अक्षत, पुष्प एवं नैवेद्य से पूजन सम्पन्न कर निम्न मंत्र का सर्व सफलता प्राप्ति माला से 5 माला मंत्र जप करे।
मंत्र जप उपरान्त दुर्गा आरती सम्पन्न करें। साधना समाप्ति के बाद सभी सामग्री को किसी मंदिर या गुरू चरणों में अर्पित करे। जीवन की दुर्गतियों के विनाश और सर्व सौभाग्य प्राप्ति की यह साधना विशिष्ट फल प्रदायक है।
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