सूर्य ग्रहण गुरूवार 01:42 PM से 06:41PM कुल अवधि 04:59 समय तक
समुद्र मथंन के समय दैत्य ने छल से अमृत पान किया तब भगवान विष्णु ने सुद्रर्शन चक्र से दैत्य का सिर धड़ से अलग कर दिया सिर वाला हिस्सा राहू स्वरूप में व धड़ वाला हिस्सा केतु कहलाया। राहू व केतु समय-समय पर चंद्रमा व सूर्य को जकड़ने की प्रक्रिया करते हैं। इसी के प्रभाव से ग्रहण काल निर्मित होता है। अतः ग्रहण काल में केवल साधना, पूजा, मंत्र जप, हवन, दीक्षा स्वरूप क्रियायें आत्मसात् करने से जीवन में राक्षसी वृद्धि स्वरूप राहु-केतु का भाव समाप्त हो जाता है। उक्त साधनात्मक क्रियाओं के फलस्वरूप देवस्वरूप सुस्थितियों का विस्तार होता है।
शनि जयन्ती शक्ति युक्त सूर्य ग्रहण पर्व पर हम अपने गुरू के ज्ञान चेतना से सूर्य की ऊर्जा अपने अन्दर समाहित कर, उस सूर्य तेजस्व गुरू आत्म ऊर्जा को अपने अन्दर समाहित कर अपने जीवन को अन्धकारमय स्वरूप अनेक कुस्थितियों को समाप्त कर सके जिससे की शनि ग्रह की चेतना व सूर्य तेजस्विता की ऊर्जा से सम्पूर्ण जीवन प्रकाशमय सद्चिन्तन स्वरूप सद्गुरू कृपा से प्राप्त कर सके।
ब्रह्माण्ड में घटित होने वाली प्रत्येक क्रिया का प्रभाव मानव जीवन पर पड़ता है। जिस प्रकार ऋतु परिवर्तन होने पर हमारे भाव, विचार, क्रियाओं, रहना, खाना-पीना आदि में परिवर्तन होता रहता है। उसी तरह ब्रह्माण्ड में घटने वाली घटना से उत्पन्न हो रही तरंगे मानव जीवन को पूर्णता से प्रभावित करती है। जो व्यक्ति जितना अधिक चेतनावान, सजग, जागृत होता है, वह व्यक्ति उतना ही अधिक जीवन में सुस्थितियों को आत्मसात् कर पाता है। साधक एक किसान की भांति है, जो चेतनावान मुहुर्त, सिद्ध दिवस, महापर्व आदि की महत्ता को गंभीरता से समझते हुये, उसके अनुसार अपनी साधनात्मक बीज का रोपण कर लेता है, समय आने पर जब वह बीज वृक्ष बनता है, तब उसे उस वृक्ष की साधनात्मक ऊर्जा स्वरूप सुफल की प्राप्ति संभव हो पाती है व साधनात्मक ऊर्जा शक्ति से विषमताओ पर प्रहार कर, न्यूनताओ का शमन कर उसे भय मुक्त, अवरोध मुक्त, बाधा मुक्त जीवन प्रदान करती है। इसीलिये ऐसे दिव्य चैतन्य क्षणों का सद्-उपयोग साधक को अपने जीवन में निरन्तर करते रहना चाहिये।
निरन्तर प्राप्त हो रही न्यूनतायें पुत्र-पुत्री का आज्ञाकारी न होना, पति-पत्नी में कलह, कलिष्ट रोग, मानसिक तनाव, परिवार में विरोध, निरन्तर शत्रु भय, अचानक आने वाली बाधाओं के निस्तारण में हमारी जीवट शक्ति का बहुत बड़ा हिस्सा इस प्रकार की समस्याओं से जूझने में ही व निराकरण में ही व्यय हो जाता है, हम अपने जीवन में जो कुछ नूतन सृजन करना चाहते हैं, उसका अंश मात्र भी प्राप्त नहीं कर पाते और एक प्रकार से सारा जीवन हाय-तौबा, अवसाद्-निराशा तथा मानसिक संताप में ही समाप्त हो जाता है।
मानव जीवन पर ग्रहों का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। उन ग्रहों में भी शनि एक प्रबल ग्रह माना गया है। शनि जीवन की विषम स्थितियों के निर्माणकर्ता हुआ करते है। शनि की साढे़ साती या शनि की महादशा में धन का अपव्यय अधिक होने लगता है, अनेक तरह की बीमारियां, क्लेश, परिवार के सदस्यों में मतभेद का विस्तार होता रहता है, छोटी-छोटी बातों पर मनमुटाव हो जाता है, रिश्तों में दरार पड़ जाती है, साथ ही डर-भय अल्प आयु की स्थितियो का विस्तार निरन्तर बना रहता है।
अतः इस ज्येष्ठ कृष्ण पक्षीय अमावस्या तिथि युक्त रोहिणी नक्षत्र के दिवस पर शनि जयन्ती महापर्व पर निर्मित हो रहे वृहस्पति दिवस पर सूर्य ग्रहण की चेतना को आत्मसात् करने से जीवन की उपरोक्त विषमतायें सूर्य तेज के फलस्वरूप भस्म हो सकेंगी। श्रेष्ठ समय का ही सदुपयोग कर साधक जीवन को सर्व सौभाग्य शक्ति युक्त बना सकता है। ग्रहण की महत्ता इसलिये सर्वाधिक है, क्योंकि इस समय इस प्रकार का गुरुत्वाकर्षण प्रभाव पैदा होता है, जो साधना से प्राप्त होने वाले फल को कोटि गुना बढ़ा देता है। ग्रहण काल के दौरान किये गये मंत्र जप सामान्य रूप से किये गये लाखों-लाखों जपों के बराबर होते है, उस दिन दी गई एक आहुति भी हजार आहुतियों के समान फल देती है।
जिस मार्ग से पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाती है, उसी मार्ग के आस-पास की नक्षत्र गोल में समस्त ग्रहों का भी मार्ग है। आकाश मंडल में स्थित ग्रहों की गति के अनुसार सूर्य ग्रहण के प्रभाव से ही जीवन में भाग्योदय उन्नति की सुस्थितियो निर्मित होती है। अतः ज्येष्ठ माह के रोहिणी नक्षत्र युक्त शनि जयन्ती पर्व पर पूर्णता से आच्छादित सूर्य ग्रहण पूर्णता से दृष्टिगोचर होगा, क्योंकि भगवान शनि सूर्य के ही पुत्र है अतः ऐसे साधनात्मक पर्व को पूर्ण चेतन्यता से आत्मसात् करे तो कोटि-कोटि गुणा सुलाभ की अवश्य ही प्राप्ति होती है।
सूर्य ग्रहण का तात्पर्य ही श्रेष्ठता को आत्मसात् करना है। सूर्य ग्रहण का शुभ समय 10 जून गुरूवार 01:42 PM से 06:41 PM कुल अवधि 04:59 समय तक निर्दिष्ट रहेगा। अतः सद्गुरूदेव कैलाश श्रीमाली जी द्वारा उक्त विशिष्ट सूर्य ग्रहण जो की सद्गुरू पर्व पर सूर्य ग्रहण समय में साधना, पूजा, अर्चना, ध्यान, मंत्र जप अभ्यर्थना, साधना, हवन के साथ दीक्षा LIVE स्वरूप में प्रदान करेंगे। जिससे दीर्घायु जीवन, सन्तान सुख, धन लक्ष्मी, अखण्ड सौभाग्य, कार्य व्यापार वृद्धि स्वरूप अनेक सुस्थितियों का जीवन में विस्तार हो सकेगा। साथ ही शनि ग्रह की महादशा का प्रभाव क्षीण हो सकेगा क्योंकि यह महापर्व शनि जयन्ती तेजस्विता युक्त है। साथ ही सूर्य अपनी शौर्य, तेजस्विता, प्रचण्डता और सौन्दर्य के लिये प्रसिद्ध है, इसीलिये सूर्य व्यक्ति को समस्त भौतिक, गृहस्थ सुखो व आध्यात्मिक चेतना ऊर्जा से युक्त कर दिव्य साधनाओं में सिद्धि प्रदान करता है।
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