भगवान शिव ने माता पार्वती को योगिनी साधना के विषय में उपदेश दिया। जब पार्वती ने भगवान शिव से पूछा, कि देवताओं के लिये तो स्वर्ग में सभी प्रकार के सुख उपलब्ध है, समस्त प्रकार की इच्छायें पूर्ण होती है, जबकि पृथ्वी लोक में रहने वाले मनुष्यों की सभी इच्छायें पूर्ण नहीं हो पाती और वे अपनी अपूर्ण इच्छाओं के जाल में उलझे जन्म-मरण के चक्र में फंसे रहते हैं। अतः आप ऐसा उपाय बतायें, जिससे मनुष्य भी देवताओं के समान तेजस्वी और पराक्रमी बन सके और अपनी समस्त प्रकार की इच्छाओं को पूर्णता प्रदान करते हुये दिव्यता के पथ पर अग्रसर हो सके।
भगवान शिव ने उत्तर दिया-योगिनी साधना ही एकमात्र ऐसा उपाय है जिसके माध्यम से मनुष्य अपनी समस्त प्रकार की इच्छाओं को पूर्णता देते हुये भौतिक और आध्यात्मिक उपलब्धियों को प्राप्त कर सकते है। यह साधना समस्त प्रकार की अतृप्त इच्छाओं को पूर्ण करने वाली होती क्योंकि ये मेरी ही शक्ति का स्वरूप है। शिव-पार्वती के इस संवाद से स्पष्ट हो जाता है कि मानव जीवन में योगिनी साधना का महत्त्व क्या है? योगिनियां तो तंत्र साधनाओं की आधारभूत देवियां हैं, अपूर्व सौन्दर्य की स्वामिनी होने के साथ ही साथ उन्हें तंत्र के गोपनीय और दुरूह रहस्यों का भी ज्ञान होता है। ये मात्र नारी आकृति ही नहीं होती, अपितु पूर्ण चैतन्यता से आपूरित एक विशिष्ट सौन्दर्य की स्वामिनी होती है और इनके नेत्रों में समाई होती है।
अत्यन्त गौर वर्ण, विद्युतीय आभा सा दैदीप्यमान मुखमण्डल चराचर को सम्मोहित सी करती झील सी गहरी काली आँखे और उनमें लहराती मादकता और करूणा का एक अनोखा संगम, पारद भक्षण और पारद कल्प से प्राप्त चिरयौवन के फलस्वरूप सदैव षोडश वर्षीया साहचर्य जिसे प्राप्त हो जाता है, उसके जीवन में असम्भव जैसा कोई शब्द रह ही नहीं जाता, क्योंकि दिव्य आभा से आपूरित अत्यन्त तेजस्वी सौन्दर्यता इन के अन्दर समाई होती है।
जीवन में सौन्दर्य-आकर्षण के साथ ही साथ शीतलता, ओज, तेज, आनन्द, सभी को अपने वशीभूत् करने की तीव्र चेतना होनी ही चाहिये। तभी तो जीवन में शीतलता और शांति की पूर्णता आती है। सौन्दर्य, आकर्षण, वशीभूत करने की चेतना, शीतलता, चांद की तरह ही चेहरे पर मंद-मंद ओज इन सब के संयोजन से ही जीवन में पूर्णता का भाव आता है।
जीवन में हास्य, विनोद, आनन्द व तृप्ति प्राप्त हो जाना कोई सामान्य सी बात नहीं है वह तो जीवन की श्रेष्ठतम उपलब्धि है, जिसे प्राप्त करने के लिये विशिष्ट क्रियाओं को सम्पन्न करना पड़ता है। तब जाकर जीवन में मधुरता, उत्साह का संचार निरन्तर बना रहता है। वैसे तो उत्साह, चैतन्यता प्रत्येक मनुष्य में आती-जाती रहती है, परन्तु ऐसे भाव स्थायी नहीं होते। जीवन में सम्पूर्ण रूप से रस, आनन्द, कर्म शक्ति की पूर्ति और वशीकरण आकर्षण शक्ति से युक्त होना अनिवार्य है, क्योंकि इनके द्वारा ही गृहस्थ जीवन का आधार तैयार होता है, साथ ही आकर्षण के द्वारा व्यक्ति परिवार, समाज, कार्य क्षेत्र प्रत्येक स्थल पर अपना व्यक्तित्व प्रभाव बनाये रखने में सफल होता है। इन सभी के साथ ही जीवन में उत्साह, उमंग, उर्जा का परस्पर बना रहना भी आवश्यक है।
सम्मोहन वशीकरण युक्त जीवन प्रत्येक व्यक्ति का अधिकार है, जिसे उसे प्राप्त करना ही चाहिये। सौन्दर्य, सम्मोहन भाग्य से नही क्रियाओं के द्वारा प्राप्त होता है। इसके लिये यदि हम सही दिशा में प्रयास करे तो यह निश्चित है, आकर्षण शक्ति की चेतना हमारे भीतर अवश्य विद्यमान होगी और हम किसी को भी अपने अनुकूल बनाने में सफल होंगे। आज के समय में आकर्षण, सम्मोहन हमारी अनिवार्यता है, क्योंकि इस चेतना पर हमारा सामाजिक, पारिवारिक, व्यापारिक, प्रशासनिक आदि अनेक नित्य आने वाले कार्यो की सफलता-असफलता का रहस्य छिपा होता है।
आकर्षण शक्ति सफलता के लिये आधार रूप में होती है। यदि हम प्रभावशाली व्यक्तित्व से भरे नहीं है भयभीत, नर्वस, संकोच से युक्त है तो हम अपनी बात भी किसी को सही ढ़ग से बता नहीं पाते। वही आकर्षण युक्त व्यक्ति अपनी बात तो रखता ही है, असमंजस्य की स्थिति में भी अपनी सूझ-बूझ कर कार्य को सम्पन्न करता है। योगिनी साधना के माध्यम से उनका जीवन प्रसन्नता, उमंग, उत्साह, सौन्दर्य, सम्मोहन, आकर्षण, काम शक्ति, ओज-तेज युक्त व्यक्तित्व से पूर्ण होता है और जीवन के प्रति नवीन दृष्टिकोण के स्वामी बन जाते है।
योगिनी एकादशी के चेतनावान क्षणों में षोडश योगिनी साधना के माध्यम से साधक-साधिकाये सौन्दर्य सम्मोहन शक्ति से युक्त होंगे, साथ ही जीवन में काम तत्व, उमंग, जोश, उत्साह, वशीकरण आकर्षण, मधुरता, कोमलता, शीतलता, ओज चेतना से युक्त हो सकेंगे। जिससे जीवन सभी स्वरूपों से रस पूर्ण निर्मित होगा व जीवन योग और भोग युक्त बन सकेगा।
साधना विधानः योगिनी एकादशी 5 जुलाई शिव शक्ति सोमवार की प्रातः काल स्नानादि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजा स्थान में लकड़ी के बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाकर योगिनी यंत्र और सौन्दर्य जीवट व योगिनी माला स्थापित कर पंचोपचार पूजन कर योगिनी का ध्यान करे-
महामंत्रमयी देवी देवगन्धर्व सेविता।
योगिभिश्चेव संपूज्या मंगला च आकर्षणा।
सर्ववश्यंकरी काम शक्तिः सौन्दर्य प्रदाये।
सर्वसंमोहिनी चैव कुंजरेश्वरी योगिनी गामिनी।।
सौन्दर्य जीवट को बायें हाथ मे लेकर पूर्ण शांत भाव से अपनी मनोकामनायें व्यक्त कर योगिनी माला से निम्न मंत्र का 7 माला मंत्र जप सम्पन्न करे।
साधना समाप्ति के बाद सभी सामग्री को किसी मंदिर या गुरू चरणों में अर्पित करे।
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