शास्त्रों में अष्ट लक्ष्मी का विशेष महत्व है, नीचे प्रत्येक साधक के नित्य पूजा में शामिल होने वाले ऐसी अष्ट महालक्ष्मी का ध्यान स्पष्ट किया गया है जिसे साधकों को अपनाना चाहिये, कुछ नहीं तो नित्य एक बार इन आठों महालक्ष्मियों का ध्यान उच्चारित कर लेना चाहिये यदि कोई साधक संस्कृत का उच्चारण भली प्रकार से नहीं कर पाता हो तो उसे चाहिये कि वह नीचे हिन्दी में दिये हुये अर्थ को पढ़कर भी अष्ट लक्ष्मी का ध्यान और चिन्तन कर सकता है तथा अपने जीवन में पूर्ण धन, यश, मान, पद, प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकता है।
हरेः समीपे कर्त्तव्या लक्ष्मीस्तु द्विभुजा नृप।
दिव्यरूपाम्बुजकरा सर्वाभरणभूषिता।।
अर्थ- राजन । दिव्य स्वरूपा, हाथ में कमल धारण करने वाली, समस्त आभूषणों से विभूषित दो भुजावाली लक्ष्मी को भगवान श्रीहरि के समीप स्थापित करना चाहिये। (इनके ऐसे स्वरूप का ध्यान करना चाहिये)
लक्ष्मीः शुक्लाम्बरा देवी रूपेणाप्रतिमा भुवि।
पृथक् चतुर्भुजा कार्या देवी सिंहासने शुभा।।
सिंहासने स्याः कर्त्तव्यं कमलं चारूकर्णिकम्।
अष्टपत्रं महाभागा कर्णिकायां सुवस्थिता।।
विनायकवदासीना देवी कार्या चतुर्भुजा।
बृहभलं करे कार्यें तस्याश्च कमलं शुभम्।।
भक्षिणे यादवश्रेष्ठ केयूरप्रान्तसंस्थितम्।
वामे मृतघटः कार्यस्तथा राजन् मनोहरः।।
तस्या अन्यौ करौ कार्यों विल्वशखंधरौ द्विज।
आवर्जितकरं कार्ये तत्पृष्ठे कुंजरद्वयम्
देव्याश्च मस्तके कार्यें पद्मं चापि मनोहरम्।
अर्थ- श्वेत वस्त्र धारण करने वाली, भूतल पर अनुपम सौन्दर्यशालिनी, शुभमयी चतुर्भुजा लक्ष्मी देवी को सिंहासन पर पृथक स्थापित करना चाहिये, उनके सिहासन पर सुन्दर कर्णिका से युक्त अष्टदल कमल बनाना चाहिये उस कर्णिका पर महाभागा लक्ष्मी स्थित हो विनायक की भांति बैठी हुई देवी को चार भुजावाली बनाना चाहिये यादव श्रेष्ठ। उनके दाहिने हाथ में केयूरपर्यन्त स्थित विशाल नालवाला सुन्दर कमल धारण करना चाहिये तथा राजन! बांये हाथ में मनोहर अमृतपूर्ण कलश स्थापित करे द्विजवार उनके अन्य दोनो हाथों में बेल और शंख धारण करना चाहिये उनके पृष्ठ भाग में टेढे सूडवाले दो गजराजों को स्थापित करे और देवी के मस्तक पर भी मनोहर कमल स्थापित करना चाहिये। (इनके ऐसे स्वरूप का ध्यान करना चाहिए)
कोल्हापुरं विनान्यत्र महालक्ष्मीर्यदोच्यते।
लक्ष्मीवत्सा तदा कार्या सर्वाभरणभूषिता।।
दक्षिणाधः करे पात्रमूर्ध्वें कौमोदकीं ततः।
वामोर्ध्वें खेटकं चैव श्रीफलं तदधःकरे।।
विभ्रती मस्तके लिंगं पूजनीय विभूतये।
अर्थ- कोल्हापुर के अतिरिक्त अन्यत्र जब महालक्ष्मी का नाम लिया जाय तब वहाँ उन्हें लक्ष्मी की भांति समस्त आभूषणों से भूषित करना चाहिये, उनके दाहिने भाग के निचले हाथ में पात्र और उसके ऊपर वाले हाथ में कौमोद की गदा तथा बाये भाग के ऊपर वाले हाथ में ढ़ाल और उससे निचले हाथ में श्रीफल (वेल) धारण कराना चाहिये वे मस्तक पर लिंग धारण करती हैं, ऐसी देवी का विभूति के लिये पूजन और ध्यान करना चाहिये।
पाशाक्षमालिकाम्भोजसृणिमिर्वामसौम्ययोंः
पद्मासंस्थां घ्यायेत श्रियं त्रैलौक्यमातरम्
अर्थ- जो भगवती दक्षिण एवं वाम हस्तो में पाश, अक्षमाला, कमल और अंकुश धारण किये हुये है तथा पद्मासन पर स्थित है, उन त्रैलोक्यमाता महालक्ष्मी का ध्यान करना चाहिये।
वीरलक्ष्मीरितिख्याता वरदाभयहस्तिनी।
ऊध्वंपद्मद्वयौ हस्तौ तथा पद्मासने स्थिता।
अर्थ- जो पद्मासन पर स्थित रहती है और जिनके ऊपर के दोनों हाथों में कमल विद्यमान रहते हैं और नीचे के हाथों में वरद और अमयमुद्रा सुशोभित होती है, वे देवी वीरलक्ष्मी नाम से विख्यात है। (उनका ध्यान करना चाहिये)
दक्षिणे त्वमयं विद्धि ”त्तरे वरदं तथा।
उरू पद्मदलाकारी वीरश्रीमूर्तिलक्षणम्।।
अर्थ- जो दाहिने हाथ में अभय मुद्रा तथा बायें हाथ में वरद मुद्रा धारण करती है और जिनकी जांघे कमलदल की सी आकार वाली है, यही वीरलक्ष्मी की मूर्ति का लक्षण है। (ऐसे स्वरूप का ध्यान करना चाहिये)
पाशाकंशाक्षसूत्रवराभयरदापद्मपात्रहस्ता कार्य।
अर्थ- अष्टभुजा वीरलक्ष्मी के हाथों को पाश, अंकुश, अक्षसत्र, वरदमुद्रा, अभयमुद्रा, गदा कमल और पात्र से युक्त बनाना चाहिये। (इनके ऐसे स्वरूप का ध्यान करना चाहिये)
वन्दे लक्ष्मीं परशिवमयीं शुद्धजाम्बूनदामां
तेजोरूपां कनकवसनां सवंभूषोज्ज्वलागीं
बीजापूरं कनकलशं हेमपद्मं द्धाना
माद्यां शक्ति सकलजननी विष्णुवामार्कसंस्थाम्
अर्थ- जो परमोन्कृष्ट कल्याणमयी, शुद्ध, स्वर्ण की सी आभावाली तेज स्वरूपा, सुनहरे वस्त्र धारण करने वाली समस्त आभूषणों से सुशोभित अगंवाली हाथों में बिजौर नीबू, स्वर्ण घट और स्वर्ण कमल धारण करने वाली, समस्त जीवों की माता तथा भगवान विष्णु के वामांकं में स्थित रहने वाली है, उन आद्या शक्ति की वन्दना और (ध्यान) करता हूँ।
ऊपर मैंने अष्ट महालक्ष्मी और उनका ध्यान दिया है, प्रत्येक साधक को चाहिये कि इनका पाठ करे और यदि वे नित्य एक बार भी इसका उच्चारण करते है तो उसके जीवन में किसी भी प्रकार की दरिद्रता और कर्ज और धन हानि व्याप्त नहीं होती।
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