यह गुरु पूर्णिमा वर्ष में पड़ने वाला एक पर्व मत समझ लीजिएगा। यह गुरु पूर्णिमा तो वर्षों ही नहीं युगों में पडने वाला अवसर बनने जा रहा है। जिनके सौभाग्य के क्षण आ गये होंगे वे ही दौडते हुये आकर गुरुदेव की बांहों में समा सकेंगे।
पूज्य गुरुदेव स्पज्ट कहते हैं कि बहुत शास्त्र रचे जा चुके हैं बहुत मार्ग बनाये जा चुके हैं, किन्तु जो पग-पग पर जीवन धड़क रहा है उसे पहचानना कोई नहीं सिखा सका। यही कारण है वैमनस्य, विषाद, तनाव और परस्पर घृणा का, और जीवन की यह शैली केवल गुरुदेव ही अपने संस्पर्श से सिखा सकते हैं।
आपने यदि उस शिशु का आनन्द देखा हो जो उसे किसी नयी वस्तु को देखने पर मिलता है या किसी मां के आनन्द को छलकते देखा हो, परखा हो जो उसे अपने अबोध शिशु को समझाने पर आता है, तो ठीक वहीं सम्बन्ध है गुरु शिष्य के मध्य। हम अपनी भौतिक, वासना में डूबी आंखों से भले ही इस आनन्द को समझना भूल गये हों किन्तु इस आनन्द की स्थिति से मुख नहीं मोड़ सकते और मुख मोड़ कर पाया भी क्या उदासी और नैराश्य। तृप्ति नहीं मिली। यही तृप्ति आपके जीवन में आ सके, यही हमारी शुभकामना है। इसी के लिए निमंत्रण है। कल को आप जब इस अनूठे प्रेम को छक्कर पी लेंगे तो फि़र आप भी नियंत्रण भेजेंगे दूसरों को। शुभकामना भेजेंगे सभी को।
क्योंकि यह ऐसा ही अमृत है कि जिसने छक कर पी लिया वह बांटे बिना नहीं रह सकता। आपके बांटने के ढंगों में अन्तर हो सकता है, आपकी शैली अलग हो सकती है। हो सकता है आप नाचते हुए बांटे, जैसा कभी मीरा ने इस अमृत को और राजमहल छोड़ कर सड़कों पर बांटने निकल पड़ी। हो सकता है आपके मन में कोई चिंगारी फ़ूट उठे और आप कबीर की तरह इस समाज की कुरीतियों पर प्रहार कर बैठें। हो सकता है आपकी वाणी अवरूद्ध हो जाये, आप कुछ बोल ही न पायें केवल आपकी आंखों से अश्रुपात ही होता रहे।
हो सकता है आप अपनी इस पत्रिका का प्रचार प्रसार करके बांटे, या यह भी हो सकता है कि आप केवल गुमसुम रह कर खोई-खोई आंखों से इस विश्व को अपार करूणा से निहारते ही रह जायें। कई स्थितियां संभव हैं किन्तु प्रत्येक रूप में आपके अन्दर से अमृत का प्रवाह दूसरे के हृदय पर होगा ही क्योंकि यह अमृत पूज्य गुरुदेव प्रदत्त है संभव है आप आपके इस बांटने को कोई ना समझे, किन्तु आप जिस अलौकिक आनन्द के साक्षीभूत बनेंगे वह तो केवल युगों युगों में कुछ एक को ही मिल पाता है। कई मीरा, कई कबीर, कई सूरदास, कई तुलसी नहीं होते। प्रत्येक युग में कोई कोई बिरला ही होता है आप क्यों न उस बिरलों में से एक हों।
जब इस समाज की एक इकाई दूसरी इकाई को बांटने ही लगेगी तो सचमुच यह धरा छोटी पड़ जायेगी प्रेम के विस्तार को। यही हमारा स्वप्न है। हमारी संस्था को पूज्य गुरुदेव ने सिद्धाश्रम साधक परिवार का नाम दिया है।
परिवार शब्द का जोड़ना महत्वपूर्ण है क्योंकि हम सब देह गत रूप से नहीं अपितु आत्मगत रूप से भाई बहिन ही हैं। हमारा चिंतन भी तो सम्पूर्ण विश्व को एक परिवार सदृश्य मानने का ही रहा है। जीवन की उसी विराटता पर ले जाने की पाठशाला है अपनी यह सस्था। हमारा आज का परस्पर प्रेम ही कला हमारी सीमायें विस्तारित कर इस देश के परे ले जायेगा। गुरु पूर्णिमा एक शास्त्रोक्त पर्व तो है ही, गुरु जो देव हैं, उनकी वंदना करने का, उनकी अभ्यर्थना करने का। किन्तु वे गुरु से भी अधिक हमारे पिता हैं और गुरू पूर्णिमा केवल एक ही पर्व नहीं।
यह तो उनके पुत्रों-पुत्रियों का उनके चरणों में बैठने का अवसर है। यह परिवार की बात है और यही हमारी पूर्णिमा मनाने का अर्थ है। यही गुरुदेव का भी संदेश है। उन्हें व्यक्ति पूजा नहीं चाहिए। जो अलौकिक व्यक्तित्व होते हैं वे इस तरह की भावनाओं से बहुत ऊंचे उठे होते हैं। उनका तो यह स्वप्न है कि गुरुत्व धारण करें।
आनन्द का, प्रेम का विस्तार कर सकें। यह गुरु पूर्णिमा केवल फ़ल-फ़ूल भेंट करने चरण स्पर्श करने तक ही सीमित न रह जाये ऐसी तो कई गुरु पूर्णिमा हो चुकी। वास्तिविक गुरु पूर्णिमा तो वह है कि आपको ही पूर्ण चन्द्र सदृश्य बनकर इस अंधियारे पाख को समाप्त कर उजियारा लाना है।
जिनका कद हिमालय से भी ऊंचा होता है, जिनके अन्दर समुद्र से भी अधिक गहराई होती है, वे ही इस तरह की बात कह सकते है। आज के युग में जब गुरुपद एक प्रतिस्पर्धा का विजय बन गया हो तब आप ही सोचिए जो व्यक्तित्व इतने दम-खम से कहता हो कि मैं एक नहीं अनेक शंकराचार्य पैदा कर दूंगा उसमें कितना अधिक ओज कितना अधिक साहस और समाज के प्रति कितनी तड़प है कि काश! किसी प्रकार से यह परिवेश बदले, नये वातावरण का सृजन हो! शिष्य के नाते आपका इतना दायित्व तो बनता ही है कि आप उपस्थित तो हो। गुरुदेव इससे अधिक आपके ऊपर कोई भार या दायित्व आरोपित भी नहीं करते।
वे केवल आपसे आपकी उपस्थिति की अपेक्षा करते है। शेष सब कुछ वे खुद की घटित कर देने का वायदा करते हैं। जो युगान्तरकारी व्यक्तित्व होते हैं वे समाज को दिशा देकर दिव्यलोक में विलीन से हो जाते हैं। पीछे रह जाती हैं वेदना, पछतावा। अभी तो समय है। अभी आप अपने सम्पूर्ण जीवन में परिवर्तन कर सकते हैं। यह ऐसे ही क्षण हैं।
जब पेड़ फ़ूलों से लदा हो तभी उसके नीचे बैठकर सुगंधित हो लीजिए। कल सुबह तो फ़ूल झड़ जायेंगे फि़र यह बात नहीं रह जायेगी। माला तो वृक्ष पर लगे फ़ूलों को चुन कर ही बनाई जाती है। जमीन पर गिरे पुष्पों की माला नहीं बनाई जाती। आप आज ही स्मृतियों मधुर क्षणों के पुष्पों को लेकर गुरु रूपी वृक्ष से चुन-चुन कर एक माला गूंथना आरम्भ कर दीजिए।
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