गुरु पूर्ण चिन्त्यै सदैव क्रियात ।
स सुखोदभवा दुखा सदैव चिन्त्यम् ।।
पशुओं और मनुष्यों में कोई विशेष अंतर नहीं है, जो कार्य मनुष्य करते हैं, वही कार्य पशु भी करते हैं। पशु सांस लेता है और मनुष्य भी सांस लेता है।
ब्रह्मानन्दं परम सुखदं केवलं ज्ञान मूर्तिं,
द्वन्द्वातीतं गगन सदृशं तत्वमस्यादि लक्ष्यं।
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधी साक्षिभूतं,
भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुं तं नमामि।।
द्वन्द्वातीतं, जहां कोई द्वन्द्व नहीं है, जहां कोई भय नहीं है, जहां मृत्यु का भय नहीं है, जहां मृत्यु झपट्टा मार नहीं सकती, क्योंकि राम नहीं मरे, तो आप भी नहीं मर सकते, क्योंकि कृष्ण नहीं मरे, तो आप भी नहीं मर सकते, क्योंकि गौतम बुद्ध नहीं मरे, क्योंकि महावीर नहीं मर सके, तो आप भी नहीं मर सकते।
क्यों नहीं – – – – राम का नाम तो आपको ज्ञात है कि एक रामचन्द्र जी थे, जो दशरथ जी के पुत्र थे, इतना तो आपको भी ज्ञात है, पर दशरथ जी के पिता का नाम क्या था, वह आपको ज्ञात नहीं है। उनके दादा जी का नाम क्या था, वह आपको ज्ञात है ही नहीं। क्योंकि वह मर गए, राम मरे नहीं—-राम मरे नही, इसलिए आज भी हमें उनका नाम याद है पर राम के दादा जी—-वे मर गए। आपको आपके पिता जी का नाम ज्ञात है, इतना मुझे ज्ञान है और दादा जी का नाम भी मालूम है, यह भी मुझे ज्ञात है, पर आपमें से पचास प्रतिशत लोगों को परदादा का नाम मालूम नहीं है और परदादा के पिता का नाम आप में से किसी को मालूम नहीं हैं।
जब चार पीढ़ी पहले ही आदमी मर गया, तो चार पीढ़ी बाद आप भी मर जायेंगे। आपके बेटे आपका नाम याद रख लेंगे, आपके पोते आपका नाम याद रख लेंगे, अगले पोतों के बेटे आपका नाम याद नहीं रखेंगे, क्योंकि आपने परदादा का नाम याद रखा ही नहीं—-आदमी इतनी जल्दी मर जाता है।
और नहीं मरे, इसलिए बिचारा बहुत कोशिश करता है और पत्थर पर लिख देता है लक्ष्मी नाथ मार्ग, कुछ नहीं तो मर जाने के बाद लक्ष्मी नाथ मार्ग तो याद रखेंगे। कोई ताजमहल बनाकर मर जाता है, कोई मन्दिर बनाकर मर जाता है, कोई धर्म ध्वजा लगा कर मर जाता है। यह इसलिए कि शायद मेरे मरने के बाद भी मैं जिन्दा रह सकूं। बाकी यह सब लक्ष्मी नाथ मार्ग लिखकर के और पट्टी लगाकर के—घर के बाहर कौशल्या भवन लिखने से तो कौशल्या जिन्दा नहीं रह सकती—वह तो आपकी बहु आएगी और कौशल्या हटाकर के सुमित्र भवन लिख देगी, फि़र तुम क्या करोगे?
इस तरह से जिन्दा नहीं रह सकते, यह सम्भव नहीं है, यह तरीका नहीं है, यह अपने आप से छल कर रहे हैं कि इस से हम जिन्दा रह जाएंगे, इस से जिन्दा नहीं रह सकते। राम ने ऐसा कोई पट्टा नहीं लगाया था, कृष्ण ने ऐसा कोई बोर्ड नहीं लगाया था कि बोर्ड लगाने से जीवित रहेंगे। गौतम बुद्ध ने ऐसा कोई पट्टा या बोर्ड नहीं लगाया था मगर वे फि़र भी जिन्दा हैं, आपको और मुझको उनके नाम मालूम हैं, संसार के 27-28 देशों में भगवान बुद्ध अपने शिष्यों के बीच जिन्दा हैं, वे मरे नहीं, शरीर मर गया, जब वह व्यक्ति जिन्दा है, तब आप भी जिन्दा रह सकते हैं।
और जिन्दा रह सकते हैं साधनाओं के माध्यम से, क्योंकि राम ने भी तेरह वर्जों तक जंगल में रह कर के योगी और संन्यासियों के बीच में साधनाएं सीखीं, सांदीपन आश्रम में कृष्ण ने साधनाएं सीखीं, भगवान बुद्ध भी साधना के माध्यम से जीवित रह सके, भगवान महावीर साधना के माध्यम से जीवित रह सके, शंकराचार्य जीवित रहे, गोरखनाथ जीवित रहे, तो आप भी साधना के माध्यम से जीवित रह सकते हैं।
मन्दिर में जाने से- – – -मन्दिर में जाना चाहिए, मैं यह नहीं कह रहा कि मन्दिर में नहीं जाना चाहिए, दान देना चाहिए, गरीबों की सेवा करनी चाहिए, कथा सुननी चाहिए, प्रवचन सुनना चाहिए, पैसा कमाना चाहिए, यह सब जरुरी है गृहस्थ के लिए, मगर इसके माध्यम से जीवित नहीं रह सकते, इसके माध्यम से आप पूर्णता प्राप्त नहीं कर सकते- – – -और अगर पूर्णता प्राप्त नहीं है तो जीवन में श्रेष्ठता भी नहीं हैं।
यह साधना- – -साधना एक अलग चीज है, उपदेश एक अलग चीज है, राम नाम का मंत्र जप एक अलग चीज है। आप अगर यह कहें कि हरे राम, हरे कृष्ण की पच्चीस मालाएं कर लीं- – -और भक्ति का तात्पर्य यह है कि मैं प्रभु चरणों में निमग्न हूं, प्रभु से प्रार्थना है कि दर्शन दें, किन्तु यह कोई जरुरी नहीं कि वह दर्शन दें ही, आप प्रार्थना कर सकते हैं। एक भिखारी आपके पास आया और उस भिखारी ने गिड़गिड़ा कर, आंख में आंसू भर कर कहा – मैं बहुत भूखा हूं, मेरे बच्चे बहुत भूखे हैं, पांच रुपये दे दो, यदि आपको दया आयेगी तो आप दे देंगे, दया नहीं आई तो आप नहीं देंगे, यह तो आपकी इच्छा पर निर्भर करता है- – – और दूसरा एक व्यक्ति आपके सामने तन कर खड़ा होता है कि मैं बहुत भूखा हूं, मुझे पांच रुपये चाहिये और हर हालत में चाहिये, तो आप सोचेंगे कि इसको दे ही देना चाहिये और आप दे देते हैं।
जब भक्ति करते हैं तो कोई जरुरी नहीं है कि आपकी भक्ति में इतनी गहराई हो कि प्रभु आपको पूर्णता दे ही दें, पर साधना में यह आवश्यक है कि उसके माध्यम से पूर्णता मिलेगी ही, क्योंकि ऐसा हो ही नहीं सकता कि आप साधना करें और उसमें पूर्णता नहीं मिले, ऐसा हो ही नहीं सकता कि आप साधना करें और आपके जीवन के अभाव दूर नहीं हो। – हम साधना कब करे? साधना तब हो पाएगी जब आपके जीवन के अभाव दूर हो पायेंगे। आपके पास खाने को रोटी नहीं है, तो साधना नहीं हो सकती, पेट में रोटी नहीं है, यदि आप आंख बंद कर के बैठ जायें और सोचे साधना पूरी हो जाय, कैसे होगी?
हिटलर का नाम सुना होगा, वह एक बहुत खतरनाक राजा रह चुका है और लाखों लोगों का कत्ल करवा चुका है। उसने एक प्रयोग किया था, उसने देश के पांच मौलवियों और पांच पंडितों को बुलाया और पूछा – भगवान कैसे होते हैं? तुम्हारे खुदा कैसे होते हैं? उन्होंने कहा – खुदा कैसे होते हैं, ईश्वर कैसे होते हैं, यह तुम्हें कैसे बतायें, हिटलर, वह राम के रुप में धनुष-बाण लिए हुए हैं, बांसुरी लिए हुए होते हैं। नहीं—नहीं! भगवान तो एक ही तरह का होगा, पचास तरह के थोड़े ही होते हैं, वे तो कपड़े अलग-अलग पहिने हुए हैं। मौलवी जी आप बताइये – खुदा कैसा होता है? ‘ उन्होंने कहा – हम आपको समझा चुके हैं, अलग-अलग होते है। भगवान मुरली लिए भी हो सकते है और धनुष-बाण लिए भी हो सकते है और भी कई रुपों में हो सकते है। भगवान नटवर नागर भी होते है, दुर्गा, भवानी, जगदम्बा भी हो सकती है, हाथ में तलवार लिए अष्ट भुजावाली भी हो सकती हे।
नहीं ऐसा नहीं होता, मुझे तो आप सब मिलकर यह बताइये कि राम कैसा होता है? ईश्वर कैसा होता है? खुदा क्या है? वह कैसा होता है? एक ही तो होगा, ब्रह्मा तो एक है। वे नही समझा सके, तो उसने उन्हें कैद में डाल दिया उन पांच मौलवियों को और पांच पण्डितों को कैद में डाल दिया। पीने के लिए पानी ही दिया गया, खाना दिया ही नहीं। एक दिन बीत गया, तो मौलवियों ने खुदा की इबादत की, एकदम से घुटने टेक कर के, पण्डितों ने भी राम-राम, कृष्ण-कृष्ण किया। दो दिन बीत गए, अब क्या होगा, यह तो बहुत बदमाश है और सुबह हुई, सुबह होने के बाद उन्होंने नमाज़ पढ़ी, इबादत की, पूजा की और उस दिन भी शाम हो गई और दूसरे दिन शाम होते ही पांच बार नमाज पढ़ना भूल गए, दो बार नमाज पढ़ना शुरू किया, उन्होंने कहा – खाना तो आना चाहिए, बिना खाने के कैसे चलेगा? यह कोई तरीका हुआ? हमनें कोई पाप किया था क्या? उसने फि़र पानी भिजवा दिया उस कैद में, वहां रोशनी भी नहीं थी।
तीसरा दिन भी हो गया, अब वे चीखने लगे कि पहले खाना दीजिए, बाकी सब बात बाद में, यह सब तुम क्या कर रहे हो? हम लोगों को क्यों कैद किया है? अब वे बेचारे पांचों नमाज तो भूल गए और रोटी-रोटी करने लगे। पण्डित भी राम, कृष्ण सब भूल गए, उस दिन भी रोटी नहीं दी गई। चौथा दिन भी पूरा बीत गया और पांचवा दिन हो गया, तो वे एकदम पस्त। अब वे आंख बन्द करें, तो सामने गोल-गोल रोटी दिखाई दें, उस मुसलमान को भी और हिन्दु को भी। हिटलर ने उनको फि़र बुलाया और पूछा-ईश्वर कैसा होता है? ईश्वर गोल-गोल होता है, फ़ूला हुआ, रोटी जैसा मुसलमानों का खुदा भी वैसा ही हुआ और हिन्दुओ का ईश्वर भी वैसा ही हो गया। -और अगर तुम्हारे पेट में रोटी नहीं है, मैं तुम्हें साधना सिखाऊंगा, तो तुम्हें साधना की शक्ल भी रोटी की तरह ही दिखाई देगी।
इसलिए साधना के माध्यम से तुम्हारे जीवन के अभाव दूर होने चाहिए—जब जीवन के अभाव दूर होंगे, तब हमारे जीवन में पूर्णता आ पायेगी—आवश्यक है, क्योंकि हम गृहस्थ में हैं । यदि हम साधू होते, तो बच्चा! कुछ नहीं, मैं तुम्हें कह दूंगा अच्छा कुछ नहीं, यह घरबार क्या है? चलो मेरे साथ, चलो हरिद्वार तट पर। अरे महाराज! आप तो लंगोट लगाए हुए हैं, ठीक है, मगर मेरे घर में बच्ची हो गई है, पहले उसकी शादी करनी है। तुम्हारी कोई बच्ची नहीं है, तुम्हें क्या मालूम दुनियादारी क्या चीज है? साधू को मालूम नहीं है, भगवे वस्त्र पहिनने वाला नहीं बता सकता कि घर में जो लड़की चौबीस साल की हो गई, वह कितनी परेशानी है, वह नहीं समझ सकता, यह आप समझ सकते हैं।
यदि भूख हो, तो उसको साधू नहीं समझ सकता, क्योंकि वह तो कहीं पर भी खड़े होकर आशीर्वाद दे देंगे, उनको लोग घी, पकवान खिला देंगे, वे हम से मोटे-ताजे, लाल सुर्ख हैं, उनका चेहरा पिचका हुंआ है ही नहीं और हमारे गाल पिचके हुए हैं। कोई साधू संन्यासी भूखा नहीं मर रहा है, सभी एकदम लाल सुर्ख, अंगारे की तरह बैठे हैं, और हम बहुत पीले पड़े हुए हैं, दुःखी हैं और तनाव में हैं, इसलिए कि उनको मुफ्त की रोटीयां मिल जाती हैं—-और हमें उसके लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है, बड़ी मुश्किल से दो रोटी का जुगाड़ हो पाता है।
इसलिए साधना का तात्पर्य यह है कि हमारे जीवन में जो भी अभाव हो, अगर जीवन में बहुत ज्यादा रोग हैं, तो मैं साधना कितनी भी बताऊं, आपको सफ़लता मिल ही नहीं सकती, क्योंकि आप साधना कर ही नहीं सकते, खांसी करेंगे या साधना करेंगे। अगर पुत्र नही है, तो भी आप साधना नहीं कर पाएंगे, क्योंकि मन में एक टेन्शन है। लड़की बड़ी है तो भी साधना में ध्यान नहीं लग पायेगा । घर में पत्नी लड़ाई-झगड़ा कर रही है या पति लड़ाई-झगड़ा कर रहा है और मैं कहूंगा तो अभी आप आंख बंद कर के बैठेंगे—– तो मैंने पहले ही कहा था – मत जाओ वहां कुछ नहीं सिखाते, फ़ालतू में आंख बंद कर के बैठ गए, दुकान जाना है या नहीं, क्या कर रहे हो तुम—और लड़ाई झगड़ा।
इसलिए साधना के उस “लोक में जो मैंने पहली बार आपके सामने कहा, उसका तात्पर्य यह है कि उस साधना के माध्यम से गुरु उनकी उन समस्याओं का निवारण करें, जो उनके जीवन के अभाव हैं। अगर वह जीवन के उन अभावों को दूर करता है, तभी वह गुरु है, उपदेश देकर चले जाने वाला गुरु नहीं हो सकता —- वह तो उनकी रोजी-रोटी का साधन है, क्योंकि मैं तुम्हें उपदेश दूंगा और तुम मुझे पांच, दस, पचीस रुपये भेंट चढ़ाओगे ही चढ़ाओगे, इस प्रकार दिन में सौ-दो सौ रुपये चढ़े, महीने में आठ हजार रुपये तो कलक्टर को भी नहीं मिलता, मुझे तो मिल जाएगा। मुझे तो काम करना नहीं पड़ता, आपको तो दुकान में भी बैठना पड़ता है। मैं तो आपसे गप्पे मार कर आठ हजार रुपये कमा लूंगा, क्योंकि तुम पांच-पांच रुपये तो चढ़ाओगे ही, इतने लोग चढ़ाओगे, तो रोज के दो हजार रुपये हो ही जायेंगे—इससे अभाव दूर नहीं हो सकते, उसको गुरु नहीं कह सकते।
गुरु वह है जो आपकी समस्याओं को समझे, गुरु वह है जो आपकी तकलीफ़ों में साथ हो। गुरु वह है जो आपकी तकलीफ़ों को दूर करने के लिए उस साधना को समझाए, उस मंत्र को समझाए, जिसके माध्यम से वे तकलीफ़ें दूर हो सकें। आपके प्रयत्नों से तकलीफ़ें दूर नहीं हो सकती—होती तो आप कर लेते, फि़र मेरे पास आते ही नहीं। आपके प्रयत्नों से ही आपकी गरीबी दूर हो जाय या कर्जा दूर हो जाय, तो फि़र आप मेरे पास क्यों आयेंगे, तो फि़र गुरु के पास आने की जरुरत ही क्या है?आप पैंतालिस साल मेहनत कर के देख चुके हैं, आप सब कुछ कर के देख चुके हैं।
पैंतालिस साल कर के देख लिया कि बेटा कहना नहीं मान रहा है, आप भले ही कितना समझायें, बेटा आपका कहना नहीं मानेगा। लड़का नहीं पढ़ रहा है, तो नहीं पढ़ रहा है। घर में पति-पत्नी में लड़ाई-झगड़े हैं, तो हैं। बीमारी अगर है तो आप सैकड़ों बार दवा ले चुके हैं, अब आपके प्रयत्नों से और डॉक्टरों के प्रयत्नों से बीमारी नहीं मिट रही है, तो क्या तरीका है। वह तरीका यह है कि सही गुरु हो, जो आपकी समस्याओं को समझ सके, और वह खुद पूर्ण हो, यदि वह खुद ही अधूरा होगा, तो आपको क्या देगा ? जो खुद ही आपसे पांच रुपये की याचना रखेगा, तो वह आपको सम्पन्न बनायेगा भी कैसे ?
मैं उम्मीद करुं कि आप मुझे दस रुपये भेंट चढ़ाएंगे, तो मैं आपको क्या सम्पन्न बनाऊ्रंगा ? मैं तो खुद भिखारी हूं, कैसे करुंगा ? मुझमें खुद साधना की पूर्णता होनी चाहिए । जो मैं कह रहा हूं, वह इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि हमारे जीवन की उन समस्याओं का निराकरण साधना से ही हो सकता है। शास्त्रों में एक ही “लोक, एक ही मूल चिन्तन है –
पूर्वै मतां पूर्व मदैव तुल्यं ज्ञानोर्थवापरितं भवतं सदैव,
चिन्त्योवमेव भवतं परिपूर्ण पूर्णं ।
पूर्णो त्वदां भवत पूर्ण मदैव पूर्णं ।।
अलग-अलग मंत्र-जप और मंत्रों के माध्यम से उस दैवी सफ़लता को प्राप्त करना, जिसके माध्यम से हम जीवन में पूर्णता प्राप्त कर सकें, उसको साधना कहते हैं । लक्ष्मी साधना के माध्यम से लक्ष्मी प्राप्त हो सकती है और सरस्वती साधना से हमें विद्या प्राप्त हो सकती है । हम तो मनुष्य हैं, मनुष्यों के माध्यम से, मनुष्यों की सहायता से हम पूर्णता प्राप्त नहीं कर सकते, साधना नहीं कर सकते । साधना के लिए यह जरुरी है कि हम उन देवताओं से परिचित हों । आप देवताओं का मंत्र-जप करें, देवता आपसे परिचित हैं कि नहीं ? आप राम जी को भेंट चढ़ा देते हैं, राम जी आप से परिचित हैं कि नहीं, यह आपको ज्ञान नहीं । दोनों का बराबरी का सम्बन्ध होने से, पानी से पानी मिलेगा, घी से घी मिलेगा, तेल से तेल मिलेगा ।
साधना के द्वारा ईश्वर से आपका सम्बन्ध स्थापित होगा, वह आपको पहिचानेंगे, आप उनको पहचानेंगे। इसलिए इस “लोक में बताया गया है, उस मंत्र को, जो लक्ष्मी से संबंधित मंत्र है, जो सरस्वती से सम्बन्धित मंत्र है, जो भगवान शिव से सम्बन्धित मंत्र है, उस मंत्र का नित्य जप करें, और पूर्णता के साथ करें, तो निश्चित ही आपके और उनके बीच की दूरी कम होगी।
जब दूरी कम होगी, तो निश्चय ही वे पूर्ण हैं, इसलिए हमने उनको भगवान कहा है, इसलिए उनको लक्ष्मी कहा है, इसलिए उनको सरस्वती कहा है, इसलिए उनको शिव कहा है, ब्रह्मा कहा है, विज्णु कहा है, जो कुछ शब्द कहे, इसलिए कि उस विशेष तथ्य के वे पूर्णता प्राप्त योगी हैं, देवता हैं, उनसे वह चीज प्राप्त हो सकती है। एक करोड़ पति से हम सौ-हजार रुपये प्राप्त कर सकते हैं, क्योंकि वह करोड़पति है। लक्ष्मी अपने-आप में करोड़पति है, अरबपति है, असंख्य धन का भण्डार है उसके पास, उससे हम धन प्राप्त कर सकते हैं, मगर जब आपके और उनके बीच की दूरी कम हो जाये—और वह दूरी कम होने की स्थिति है साधना और साधना का तात्पर्य है – मंत्र जाप, और मंत्र का तात्पर्य है – उन शब्दों का चयन, जिन्हें देवता ही समझ सकते हैं। मैं अभी आपको ईरान की भाषा में या चीन की भाषा में बताऊं और आधे घण्टे तक बोलूं, आप नहीं समझेगें।
यह कोई जरुरी नहीं कि जो जन्म से आपके गुरु हैं, वे जिन्दगी भर आपके गुरु रहें। भगवान दत्तात्रेय के तो चौबीस गुरु थे। भगवान राम के छह गुरु थे, पहले गुरु वशिष्ठ थे, फि़र विश््वामित्र हुए । उनसे दीक्षा प्राप्त की, शस्त्र विद्या सीखी, फि़र गर्ग हुए, अत्रि हुए, कणाद हुए, पुलसत्य हुए । कृष्ण के भी सांदीपन और द्रोण दो गुरु थे । गुरु वह जो ज्ञान दे सके, जहां से भी ज्ञान प्राप्त हो सके और उनके माध्यम से आप उस मंत्र को, उस साधना को, जो आप पूजा-पाठ करतें हैं, वह करें, जो भक्ति आप कर रहें हैं वह करें, मगर दस साल भक्ति करने के बाद भी समस्यायें नहीं सुलझ पाएंगी ।
उसका रास्ता अलग है, कनाट प्लेस का रास्ता अलग है, करोल बाग का रास्ता अलग है, करोल बाग जाना चाहें, तो करोल बाग जाएंगे और यदि कनाट प्लेस जाना चाहें तो उसके लिए फि़र दूसरा रास्ता चुनना पड़ेगा, और जब चुनेंगे तब वहां पहुंच पायेंगे, और तभी यह समस्यायें दूर हो पायेंगी । दूसरी सीढ़ी उस ब्रह्मत्व को प्राप्त करने की है, और तीसरी सीढ़ी अपने आप में पूर्ण आनन्दमग्न होने की क्रिया है, ये तीनों सीढि़यां साधना के माध्यम से सम्भव है । इस छोटे से प्रवचन में यह सब कुछ सम्भव नहीं था कि मैं आपको साधना की बारीकियां समझाता, फि़र भी मेरी कुछ पुस्तकें हैं जिनके माध्यम से आपको साधना का प्रारम्भिक ज्ञान हो सकता है, अपने जीवन के अन्य क्रियाकलाप करते हुए भी, भक्ति करते हुए भी ।
मैं भक्ति के बारे में इतना ही अच्छा बोल सकता था, जितना साधना के बारे में बोला है। मैं वेद पर भी, उपनिष्द पर भी, पुराण पर भी और ब्रह्म पर भी बोल सकता था जो आपको समझ में ही नहीं आता । जो बहुत उच्चकोटि के विद्वान होते हैं, उनके बीच में ब्रह्मत्व का उपदेश भी देता हूं । ब्रह्म क्या है ? ब्रह्म की क्या उपस्थिति है, वह बोल सकता था, मगर आपके जीवन में जो आवश्यक है, उसके बारे में मुझे बोलना था और बोला ।
मैं तो चाहता हूं कि आपके जीवन में कोई अभाव रहे ही नहीं, भौतिक भी, आध्यात्मिक भी, दोनों ही दृष्टियों से आप पूर्णता प्राप्त करें —- आप अपने जीवन में वह सब कुछ प्राप्त करें, जिसको धर्म कहा गया है । आपके हाथों में इतना पैसा आये कि आप मन्दिर बनवा सकें, देवालय बनवा सकें, स्कूल बनवा सकें और अर्थ की प्राप्ति हो, आप सम्पन्न हो सकें । काम की प्राप्ति हो, आपको पत्नी, पुत्र, बन्धु-बान्धव, सुख – सौभाग्य, ऐश्वर्य सब कुछ मिले —- और जब यह सब कुछ होगा, तो आप बहुत शांति के साथ मोक्ष को प्राप्त कर सकेंगे । मगर इन सब के लिए गुरु की भी आवश्यकता है, इसलिए – गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवो महेश्वरः, गुरुः साक्षात् परब्रह्म —- वह परब्रह्म दिखाई नहीं दे रहा, मगर यदि गुरु है, तो परब्रह्म है, यदि पाखण्डी है, तो परब्रह्म नहीं हो सकता ।
गुरु पाखण्डी हो सकते हैं, छलिये हो सकते हैं, धोकेबाज हो सकते हैं, विश्वासघाती हो सकते हैं, आपको लूटने वाले भी हो सकते हैं, मगर वह गुरु नहीं होते हैं । जो आपको निश्चछल भाव से रास्ता बता सकते हैं, वे गुरु होते हैं, ऐसे ही जीवन में आपको गुरु मिलें । हमारे राजस्थान में यदि किसी को गाली देनी होती है, तो उसको कहते हैं, निगुरा, जिसका कोई गुरु ही नहीं जिन्दगी में, वह अपने आप में गाली है उसको, ऐसी गाली जैसी मां की गाली होती है, कि तू निगुरा है, तेरी जिन्दगी में कोई गुरु ही नहीं है, फि़र रास्ता कैसे पार होगा तेरा ? आपके जीवन में कोई सच्चा गुरु प्राप्त हो सके, जीवन में पूर्णता प्राप्त हो सके, मैं आपको ऐसा ही आशीर्वाद दे रहा हूं जिससे कि आपके जीवन में पूर्णता आ सके, ऐश्वर्य आ सके ।
एक बार आपको फि़र हृदय से आशीर्वाद दे रहा हूं ।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,