शुभाशीर्वाद !
हम समस्त मनुष्यों का एक मात्र चरम लक्ष्य आनन्द की उपलब्धि और सुखोपभोग ही है। इसे प्राप्त करना मानव जीवन का नैसर्गिक अधिकार है। यह समूचा जगत आनन्द का उद्भवशील है और आनन्द ही हमारा उदगम् स्थान है। आनन्दातिरेक से ही आत्मा जीवन धारण करता है ।
इस सृष्टि के मार्ग पर अवतीर्ण हो जाने के पश्चात् हम विजयों की तरफ़ आकर्जित हो जाते हैं। जिसके कारण हमारे चित्त में आनन्द का स्थायित्व नहीं हो पाता। इसका कारण केवल यही होता है कि जिन विजयों के लिए हमारा चित्त द्रवित होता है उनमें स्वयं ही धैर्य नहीं है । यही कारण है कि एक विजय में जब चित्त अभाव का अनुभव करता है तब दूसरी आकांक्षा की तरफ़ हो जाया करता है। यह क्रम निरन्तर चलता रहता है जिसके कारण आनन्द और सुखानुभूति की उपलब्धि हो ही नहीं पाती है । क्येांकि हम सांसारिक जीवन के उद्देश्य को पूर्ण नहीं कर पाते है। खाली घड़े में थोड़ा जल घडे़ को बजाया ही करता है और भरे हुए कलश से आवाज नहीं आती बल्कि जल छलका करता है।
जिस रिश्ते में लेने से अधिक देने का ध्यान दिया जाता है वह रिश्ता सर्वश्रेष्ठ होता है। गुरु, मित्र और शिष्य के बीच ऐसा ही रिश्ता होता है । गुरु देता है ज्ञान, मित्र देता है साथ और शिष्य देता है सेवा इसलिये इन तीनों रिश्तों को सर्वश्रेष्ठ माना गया है । श्रेष्ठ गुरु आपको आगे और सिर्फ आगे बढ़ाना चाहता है और वह तो आपकी प्रतिभा को देखना चाहता है और आपको वहां पहुंचाना चाहता है जहां के आप लायक है ।
ऐसी ही पूर्णता के लिए सद्गुरु जन्मोत्सव जगन्नाथ पुरी में और मन्जुल महोत्सव बद्रीनाथ पुरी में सम्पन्न हो रहा है । ऐसे अलम्य अवसर जीवन में बार-बार नहीं मिलते है।
आपका अपना
कैलाश चन्द्र श्रीमाली
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