शुभाशीर्वाद !
सद्गुरुदेव के दिव्यतम तेजोमय स्वामी सच्चिदानन्दजी महाराज के सान्निध्य में सैकड़ो-सैकड़ो साधकों ने सप्तपुरी बद्रीनाथ धाम में आकर अपने जीवन को अमृतमय और आनन्द से सरोबार किया। 11 हजार फ़ुट की ऊंचाई पर अलकनन्दा की तीव्र पवित्र धारा में श्रेष्ठतम दीक्षाऐं, सरस्वती उद्गम स्थल पर कपाल कुण्डला क्रिया और मंदिर प्रागण में विशेष रूप से रुद्राभिषेक और नवग्रह शान्ति वेदोमंत्रोचारण से युक्त यज्ञ व सिद्धाश्रम गमन दीक्षा में सभी साधकों ने भाग लेकर इन पांच दिवसों में साक्षीभूत रूप में भगवान नारायण और माता लक्ष्मी को आत्मसात किया। सही अर्थों में बद्रीनाथ धाम आकर साधकों ने यह पूर्ण रूप से एहसास किया कि ज्ञानी, साधनारत अलौकिक गुरु के सानिध्य में ही योग, ध्यान और तपस्या से जीवन श्रेष्ठतम बनता है।
गुरुदेव ने हरिद्वार व बद्रीनाथ में ओजस्वी वाणी में साधकों से आह्वान किया कि उठो जागों और आगे बढ़ों और आप भी महाशक्ति के पुंज है। आपके भीतर महान व्यक्तित्व छिपा हुआ है आप भी महान बन सकते है। आपके अन्दर सोई हुई महान प्रतिभा और शक्ति जो अभी तक व्यर्थ पड़ी हुई है वह जाग उठे। दुनिया में वे ही गुरु महान होते है जो ऐसा मार्गदशर्न ही नहीं देते वरन् सदैव अपने शिष्यों और साधकों के साथ निरन्तर-निरन्तर सहयोगी रहते है।
गुरु साधक के लिए सूरज के समान है जो सोये हुए को जगाता है वह पवन की भांति है जो जीवन में सुगन्धमय स्थितियाँ लाते है तथा गुरु पंछी की तरह मधुर आत्मिक वाणी में ज्ञान धारा के माध्यम से चेतना प्रदान करते है मनुष्य स्वयं अपने विषय-वस्तु आप को पहचान सके, हमारे व्यक्तित्व का सही विकास तभी सम्भव है जब श्रेष्ठ गुरु के निरन्तर सरंक्षण में रहे क्योंकि गुरु ही साधक की योग्यता साहस और अन्दर की शक्तियां को न केवल क्रियाशील करता है। बल्कि अन्वरत जाग्रत भी बनाये रखता है। ऐसी हर स्थिति में संघर्ष करने में ही नहीं वरन् पूर्ण-पूर्ण सफ़लता अपने भक्तों को प्रदान करने के लिए तत्पर रहता है।
हरिद्वार से बद्रीनाथ की 430 किमी- की दुर्गम यात्रा लगभग 14 घंटों में पूर्ण की पांच हजार से अधिक साधक शिष्य-शिष्याऐं, बालक-बालिकाऐं और बुजुर्ग साधकों ने शिविर में कडाके की ठण्ड और पल-पल बदलते धूप-वर्षा और बफर्बारी में बहुत आनन्द व उत्साह से अपने आप को सरोबार किया। पांच दिवसीय शिविर में सद्गुरुदेव की पूर्ण कृपा और वरद आशीर्वाद के फ़लस्वरूप शारीरिक-मानसिक रूप से पूर्ण स्वस्थ रहे रोमांचमय और आनन्दमय यात्रा रही शिविर में भी सभी साधकों ने प्रत्येक साधना और दीक्षा में बढ़ चढ़ कर भाग लिया।
गुरु-शिष्य का रिश्ता देहगत न होकर भावों और विचारों का होता है और भावों-विचारों के अनुरूप ही जीवन में स्थितियां निर्मित होती है। दिव्यतम मन्जुल महोत्सव में कार्यकर्ताओं और आत्मिक सहयोगियों ने जो सेवा प्रदान की और उसी फ़लस्वरूप यह साधनात्मक आयोजन प्रत्येक साधक के जीवन में श्रेष्ठतम स्थितियों को प्राप्त करने के लिए मील का पत्थर साबित होगी। ऐसे कार्यकर्ता और सहयोगी साधुवाद के पात्र है।
आपका अपना
कॅलाश चन्द्र श्रीमाली
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