श्रावण मास के पुण्य पर्व में शिव आराधना की गूंज से सारा वातावरण शिवमय हो जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भक्तिमय और सुन्दर आच्छादित प्राकृतिक माहौल में भक्त के साथ-साथ उससे जुड़े परिजनों और आसपास के वातावरणों पर भी शुभ्र प्रभाव डालता है। श्रावण मास का तात्पर्य ही भगवान शिव और गौरी के आशीर्वाद की वर्षा से भक्त को सरोबार करने का दिव्यतम मास है। श्रावण मास में प्रातः व रात्रि के आठों पहर शिव शक्ति व शिवगणों तथा भगवान विघ्नविनाशक गणपति रिद्धि-सिद्धि, शुभ-लाभ, कार्तिकेय की उपासना अर्चना व दर्शन के लिये यह मास पुण्य फ़लों से भरपूर रहता है। श्रावण मास शिव-पार्वती के सांसारिक मनुष्यों के जीवन में अभिवृद्धि के कारण प्रचलित है। शिव-शक्ति व शिव गणों की उपासना, अर्चन व दर्शन के लिये पुण्य फ़लों से भरपूर है, क्योंकि पार्वती की तपस्या का फ़ल शिव को सौभाग्य के रूप में शास्त्रोक्त रीति से विवाह होने पर प्राप्त हुआ।
शिव-शक्ति एक दूसरे के पूरक है। अतः शिवलिंग के पूजन-अर्चना का इस मास का विशेष महत्व है। शिवपुराणादि में कई प्रकार के शिवलिगों का विवरण है। इनमें जो शिवलिंग, जो पूजा-अर्चना के लिए विद्वानों द्वारा श्रेष्ठ माना गया है, वह है स्फ़टिक मणि शिवलिंग अथवा नरमदेश्वर शिवलिंग। यह भी मान्यता है कि शालिग्राम शिला व शिवलिंग के ऊपर किसी भी देव तत्व का निरुपण या प्रतिष्ठा को मानकर यदि पूजन-अर्चन या अभिषेक आदि करे, तो वह देवता उसे स्वीकार कर लेते हे।
शिवलिंग पर चढ़ाए जाने वाले द्रव्यों में तीर्थ जल, दूध, दही, घी, शहद, शक्कर, गन्ने का रस, इत्र, फ़लों का रस, नारियल पानी, गंधोदक जल आदि शामिल है। पूजन के दौरान शिवलिंग पर धारापूर्वक जल अर्पित करना पुण्य कारक माना जाता है। यह जल तीर्थ स्थान या पवित्र नदियों का हो, तो और भी उत्तम होगा। शिव के श्रृंगार के लिए भस्म, पुष्प, चंदन, धूप, नैवेद्य में भांग व धतूरा, फ़ल में नारियल या ऋतु प्रधान फ़ल, अन्न के गेहूं की बाली या तिल-जव का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
सिंदूर सौभाग्य का प्रतीक है, इसलिए जलहरी में शक्ति प्रधान द्रव्य जैसे श्रृंगार सामग्री वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, रोली का सिंदूर आदि अर्पित कर सकते है। शिव उपासना कलिकाल में विशिष्ट मानी जाती है, क्येाकि शिव के अधीनस्थ शिवगण जैसे गणेश, भैरव, कार्तिकेय, सर्प, कुबेर, नंदी, भृंगी व श्रृंगी आदि हे। कहते है शिव पूजन से यह सभी गण प्रसन्न होकर कृपा प्रदान करते है। इसलिए शिवार्चन के पूर्व अलग-अलग दिशाओं में सभी शिवगणों का पूजन आव्हान किया जाता है।
शास्त्रानुसार शिवलिंग प्रतीकात्मक है, जो शिव को शक्ति तथा शक्ति को शिवतत्व के अधीनस्थ होने का दर्शन प्रस्तुत करता है। शक्ति को जलहरी तथा लिंग को शिव रूप माना जाता है। इसलिए शिवलिंग परिक्रमा आधी ही की जाती है।
4 जुलाई से 2 अगस्त के बीच पूरे श्रावण मास में जोधपुर कैलाश सिद्धाश्रम और दिल्ली में पूर्ण दिव्यत्म, चेतना युक्त पारदेश्वर शिवलिंग पर प्रतिदिन श्रेष्ठ मुहूर्त में रूद्राभिषेक सम्पन्न किया जायेगा। योग्य और प्रकाण्ड विद्वान पण्डितों और गुरु के सान्निध्य में ही पूर्ण विधि विधान से रुद्राभिषेक सम्पन्न करना ही श्रेष्ठ माना गया है। इस तरह की पूजा अर्चना से भक्त का जीवन ऐश्वर्य धर्म, यश, लक्ष्मी, ज्ञान और वैराग्य की चेतना से अभिभूत होता है। पारद शिवलिंग को समस्त ज्योर्तिलिंगों से भी श्रेष्ठ माना गया है। इसका पूजन सर्व कामप्रद शिव स्वरूप मोक्षप्रद और शिवस्वरूप बनाने वाला है। यह समस्त पापों का नाश करने भक्त को संसार के सम्पूर्ण सुख और पूर्णता प्रदान करता है।
जो भी साधक या परिवार के सदस्य श्रावण मास के रूद्राभिषेक की चेतना को पूर्ण आत्मसात करना चाहते है वे अपना फ़ोटो और अपनी समस्याऐं लिख कर भेजें। उन साधकों के लिए विशेष रूप से शिव तत्व युक्त महामृत्युजंय रूद्राभिषेक सम्पन्न किया जायेगा। जिससे कि साधक असत् से सत् की ओर, तमस से प्रकाश की ओर, मृत्यु से अमृत्यु की ओर अग्रसर हो सके वह अपने जीवन में धर्म, अर्थ और काम, ऐश्वर्य, धर्म, यश, लक्ष्मी और ज्ञान की पूर्णता को पूर्ण रूप से प्राप्त कर सके साथ ही रुद्राभिषेक के बाद शक्तिपात दीक्षा फ़ोटो पर प्रदान की जायेगी।
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