इस सृष्टि के समस्त जड़-चेतन पदार्थ अपूर्ण हैं, क्योंकि पूर्ण तो केवल वह ब्रह्म ही है जो सर्वत्र व्याप्त है। अपूर्ण रह जाने पर ही जीवन को ‘पुनरपि जननं पुनरपि मरणं’ के चक्र में बार-बार संसार में आना पड़ता है और फिर उन्हीं क्रिया-कलापों में संलग्न होना पड़ता है। शिशु जब मां के गर्भ से जन्म लेता है, तो ब्रह्म स्वरूप ही होता है, उसी पूर्ण का रूप होता है, परन्तु गर्भ के बाहर आने के बाद उसके अन्तर्मन पर अन्य लोगों का प्रभाव पड़ता है और इस कारण धीरे-धीरे नवजात शिशु अपनी पूर्णता से अपूर्णता की ओर अग्रसर होने लगता है। और इस तरह एक अन्तराल बीत जाता है, वह छोटा शिशु अब वयस्क हो चुका होता है। नित्य नई समस्याओं से जूझता हुआ वह अपने आप को अपने ही आत्मजनों की भीड़ में भी नितान्त अकेला अनुभव करने लगता है। रोज-रोज की भाग-दौड़ से एक तरह से वह थक जाता है और जब उसे याद आती है प्रभु की तो कभी-कभी पत्थर की मूर्तियों के आगे दो आंसू भी ढुलका देता है।
लोगों की अपनी समझ है। उस समझ के वे पार नहीं हो पाते। मैं जो कह रहा हूं, उसे केवल वे ही समझ पाते हैं जो सारी धारणाओं को एक तरफ हटा कर बैठे हैं। लेकिन तुम्हारा भगवान भय का भगवान है। तुम्हारे सब भगवान तुम्हारे भय से निर्मित हैं। मैं तुम्हें उस भगवान की याद दिलाना चाहता हूं जो प्रेम में प्रकट होता है, भय में नहीं, जो प्रेम और प्रार्थना में प्रकट होता है! तुम्हारी तो प्रार्थना भी भय है। तुम्हारे पैर कांप रहे हैं। इसलिए तुम प्रार्थना तब करते हो जब तुम दुख में होते हो। तुम्हें दुख में भगवान की याद आती है। और चाहता हूं कि तुम्हें सुख में उसकी याद आए। दुख में तो किसी को भी आ जाती है। सुख में याद आनी चाहिए। परन्तु उसे कोई हल मिलता नहीं। चलते-चलते कभी पुण्यों का उदय होने पर सद्गुरु से मुलाकात होती है, तब उसके जीवन में प्रकाश की नई किरण फूटती है। क्योंकि मात्र सद्गुरु ही उसे बोध कराते हैं, कि वह अपूर्ण था नहीं अपितु बन गया है। गुरुदेव उसे बोध कराते हैं कि वह असहाय नहीं, अपितु स्वयं उसी के अन्दर अनन्त सम्भावनाएं भरी पड़ी हैं, असम्भव को भी सम्भव कर दिखाने की क्षमता छुपी हुई है। गुरु की इसी क्रिया को दीक्षा कहते हैं, जिसमें गुरु अपने प्राणों से भरी अपनी ऊर्जा को व्यक्ति के जीवन में प्रवाहित करते हैं।
तुम्हारा जीवन क्या है? तुम्हारा जीवन तो कोल्हू के बैल जैसा है, चक्कर खा रहे हो। वही-वही रोज करते हो, साक्षी नहीं होते। कल भी क्रोध किया था, परसों भी क्रोध किया था, आज भी क्रोध किया है। और डर है कि कल भी करोगे, परसों भी करोगे। वही क्रोध, वहीं कारण साक्षी होने के लिए परमात्मा कितने मौके देता है! रोज-रोज देता है! मगर तुम हो कि चूके जाते हो। तुम्हारी आदतें जड़ हो गई हैं। हां, मेरी बात सुन लेते हो। मेरी इस बगिया में गंध से पूरित हो जाते हो। ज्योर्तिमय लगते हो भीतर! शिविर के द्वार से बाहर हुए कि फिर वहीं कोल्हू के बैल बन जाते हो। मैं जो कह रहा हूं इसे हृदय में डूब जाने दो। जीवन में कदम-कदम पर आने वाली तकलीफों और बाधाओं से मुक्ति भी प्राप्त हो सके और जीवन में सुस्थितियाँ स्थायी रूप से बनी रहे। इस तरह की पूर्णता प्राप्ति के लिए सही मार्ग दर्शन की और सम्बल युक्त सहारे की आवश्यकता साधक को रहती है और ये स्थितियां केवल सही गुरु ही प्रदान कर सकता है।
होली महापर्व पर प्रत्येक साधक को अपने जीवन के पाप-ताप-सन्ताप, रोग-शोक, कष्ट-बाधा, दुखों को पूर्णरूपेण भष्मीभूत करने हेतु मृत्युसंहारक बाहु को पूर्ण बाहरी और अन्तस देह को चैतन्य कर विग्रह प्रदान किया जाएगा और साथ ही साधक के जीवन की नूतनता और श्रेष्ठता के निर्माण के लिए बगलामुखी-धूमावती सामुज्य नृसिंह दीक्षा और ललिताम्बा धन प्रदायनी दीक्षा रंगोत्सव महापर्व 15-16 मार्च को कैलाश सिद्धाश्रम जोधपुर में प्रदान की जायेगी। रात्रि के बाद ही सूर्य का तेज पृथ्वी को प्रकाशवान करता है। अतः नवरात्रि समस्त साधकों एवं शिष्यों के जीवन को आलोकित करने का पर्व है, पूर्ण कर देने का पर्व है, क्योंकि तब वह पावन बेला प्रत्येक जीवन को प्रकाशवान, सौन्दर्यवान, ऐश्वर्यवान, धनवान, हर दृष्टि से समर्थवान बना देने में सहायक सिद्ध होती है और तब व्यक्ति उस शक्ति स्वरूपा की शक्ति प्राप्त कर अपने भाग्य को भी परिवर्तित करने की सामर्थ्य प्राप्त कर लेता है।
नवरात्रि ऐसा ही शक्ति पर्व है, जो व्यक्ति को शक्तिहीन से शक्तिवान बना देता है, मां अपने बालक को असहाय और कमजोर नहीं देख सकती, वह उसकी परेशानियों में, विपत्तियों में हमेशा ढाल बनकर खड़ी रहती है, अतः महामया स्वरूप रूपी मां दुर्गा अपने भक्तों को जीवन की अनेक विपत्तियों से उन्हें सुरक्षा प्रदान करती है। विक्रम सवत् 2071 को पूर्ण आरोग्यमय, मंगलमय शक्तियुक्त बनाने और ब्रह्मा विष्णु महेश के भाव को पूर्णतः भौतिक जीवन में प्राप्त करने हेतु चैत्रीय नवरात्रि त्रिपुर भैरवी शक्ति महोत्सव साधको के महाकुंभ छतीसगढ़ की चेतनामय महामाया शक्ति स्थल दल्ली राजहरा (बालोद) में 30-31 मार्च को तथा शक्ति स्वरूपा माता चन्द्रहासिनी नवरात्रि पर्व की पूर्णता को साक्षीभूत स्वरूप में नवरात्रि को पूर्ण चैतन्यमय बनाने और शाश्वत रूप में जगत् जननी माता भगवती और मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जन्मोत्सव को पूर्णरूपेण गृहस्थ जीवन में आत्मसात करने का महोत्सव चन्द्रहासिनी की तप स्थली डभरा (जांजगीर) में 7-8 अप्रैल को सम्पन्न होगा।
21 अप्रैल सद्गुरुदेव जन्मदिवस जो प्रत्येक शिष्य के लिए सर्वोपरि श्रेष्ठतम दिवस है, यह सद्गुरुदेव का अवतरण दिवस है, यही रामनवमी है, यही कृष्ण जन्माष्टमी है, यह महा उत्सव है। जीवन का मर्म क्या है उद्देश्य क्या है और लक्ष्य क्या है इसे गुरु रूपी ज्ञान चक्षु के माध्यम से जानना और पूर्ण रूप से प्राप्त करने के लिए लखनऊ में सद्गुरु नारायण आत्म शक्ति जन्मोत्सव के शुभ अवसर पर परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्द जी महाराज के पूर्ण दिव्यतम अवतरण दिवस पर अपने जीवन को भौतिक सुखों से निर्मित करने और पूर्णरूपेण इन्द्राक्षी वैभव लक्ष्मी से युक्त बनाने हेतु चौसठ कला युक्त जीवन निर्माण की साधनायें और धर्म, अर्थ, काम शक्ति से अपने जीवन को युक्त करने हेतु दीक्षायें एवं प्रत्येक साधक द्वारा स्व रूद्राभिषेक वन्दनीय माताजी के सानिध्य में सम्पन्न होगा। इस महोत्सव में तो किसी भी शिष्य के पाँव ठिठकेंगे नहीं क्योंकि यह गुरु रूपी शिष्य का जन्मोत्सव है और शिष्य को गुरुमय बनने की ओर अग्रसर होने का भाष उत्पन्न करना है साथ ही अपने जीवन को जो कि लद्यु रूप में चल रहा है उसे विशाल-विशाल गुरुरूपी सागर में विस्तृत कर अपने जीवन में पूर्णरूपेण सद्गुरुदेव को समाहित कर सकें।
श्रेष्ठमय माघ मास की गुप्त नवरात्रि में शिव और शक्ति से युक्त विशिष्ठ लॉकेट निर्मित किये गये है। होली महोत्सव से पूर्व धारण करने से जीवन की सर्व अपूर्ण स्थितियों का क्षय होता है और जीवन में धन, वैभव, सुख-सम्पन्नता की ओर साधक अग्रसर होता है।
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