शंकराचार्य के जीवन की एक घटना-अपने भ्रमण के दौरान शंकराचार्य एक बार काशी पहुंचे। वहां वे किसी रोग से ग्रस्त हो गये, जिसके कारण उनमें अत्यधिक कमजोरी आ गई। उस समय तक वे शक्ति साधनाओं से विमुख थे। उसी अवस्था में वे गंगा तट पर गये, जहां एक स्त्री ने उनसे टोकरी उठाने हेतु मदद मांगी, तो शंकराचार्य ने कहा- ‘हे मां! मेरे अन्दर इस क्षण सामर्थ्य नहीं है, कि मैं आपकी सहायता कर सकूं। प्रत्युत्तर में उस स्त्री ने कहा- ‘कि सामर्थ्य कहां से होगी, शक्ति साधना करोगे, तभी तो शक्ति आ पायेगी।’ और इतना कह कर वह अदृश्य हो गई। शंकराचार्य इस घटना से स्तम्भित रह गये। वे विचार करने लगे, कि उनमें शायद यही न्यूनता रह गई होगी, जिस कारण वे पूर्णता का अनुभव नहीं कर पा रहे थे। इस घटना के पश्चात शंकराचार्य ने शक्ति साधनाएं सम्पन्न की और फिर सौन्दर्य लहरी तथा शक्ति उपासना हेतु अन्य ग्रंथों की रचना की।
साधना के जगत में इस ‘सिंहत्व’ का अर्थ होता है, कि साधक अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए किसी भी चुनौती को स्वीकार करने को तत्पर हो गया है अर्थात उन दुर्गम पथों पर भी चलने के लिए सन्नद्ध हो गया है, जिन्हें सर्व सामान्य ने कठिन मान कर हार स्वीकार कर ली हो। गुरुदेव ने सिंहत्व की परिभाषा इसी प्रकार दी है, उन्होंने एक अवसर पर स्पष्ट किया था, जो सिंह होता है उसे चुनौतियों से भिड़ने में ही आनन्द आता है—- और उन्होंने इस तथ्य को एक उदाहरण से स्पष्ट किया था। उन्होंने बताया- जब जंगल में शिकारी सामने आकर खड़ा हो जाता है, तब अन्य जानवर तो मुंह मोड़कर पीछे लौट जाते है, किन्तु सिंह ठीक उसी शिकारी के सिर पर छलांग लगाकर आगे बढ़ जाता है।
सिंहत्व शक्ति दीक्षा प्राप्त करने के बाद साधक का मार्ग साधना के क्षेत्र में खुल जाता है। सिंहत्व शक्ति दीक्षा का नाम सबसे ऊपर आता है। प्रत्येक महाविद्या का अपने आप में एक अलग ही महत्व है। लाखों में कोई एक ही ऐसा होता है जिसे सद्गुरु से सिंहत्व शक्ति सिद्ध हो पाती है। इस दीक्षा को प्राप्त करने के बाद सिद्धियों के द्वार एक के बाद एक कर साधक के लिए खुलते चले जाते हैं।
सिंहत्व शक्ति दीक्षा अपने आप में ही अद्वितीय है। साधक अपने पूर्व जन्म के संस्कारों से प्रेरित होकर या गुरुदेव से निर्देश प्राप्त कर इनमें से कोई भी दीक्षा प्राप्त कर सकते हैं। वस्तुतः मात्र सिंहत्व शक्ति दीक्षा प्राप्त हो जाने पर ही साधक के लिए सिद्धियों का मार्ग खुल जाता है और एक-एक करके सभी साधनाओं में सफल होता हुआ वह पूर्णत की ओर अग्रसर हो जाता है।
जीवन में सर्वांगीण और श्रेष्ठतम उन्नति हेतु जो अनेकों-अनेक साधक और शिष्य पूर्ण रूपेण सिंहत्व शक्ति दीक्षा को सांगोपांग रूप में पूर्ण रूप से आत्मसात करना चाहते हैं, उनके लिए यह श्रेष्ठ रहेगा कि सिद्धाश्रम प्रणीत सिंहत्व शक्ति दीक्षा पूर्ण रूपेण रोम-रोम में स्थापित हो और जिससे सभी शक्तियों का चिन्तन और पूर्ण रूपेण आशीर्वाद श्रेष्ठता से जीवन भर बना रह सके। वे मानसिक, आत्मिक, शारीरिक रूप से श्रेष्ठ और बलिष्ठ हो सकें। साथ ही साथ जीवन के सब मनोरथों को पूर्णता से आत्मसात कर सकें। उनके लिए पूर्ण रूपेण सिद्धाश्रम प्रणीत सिंहत्व शक्ति दीक्षा श्रेष्ठतम रहती है।
पांच पत्रिका सदस्य बनाने पर सिंहत्व शक्ति दीक्षा उपहार स्वरूप प्रदान की जायेगी।
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