इस दुनिया में इतने विचार हैं, इनमें से तुमने कैसे चुन लिया कि यह विचार तुम्हारा है। तुमने चुना ही नहीं, तुम्हारे मां-बाप ने पकड़ा दिया, तुम्हारे पंडित-पुजारियों ने पकड़ा दिया। तुम पैदा हुए नहीं कि पंडित-पुजारी तुम पर कब्जा करना शुरू कर देते है। लोगों की अपनी समझ है। उस समझ से वे पार नहीं हो पाते। मैं जो कह रहा हूं, उसे केवल वे ही समझ सकते हैं जो सारी धारणाओं को एक तरफ हटा कर बैठे है।
मुझ जैसे व्यक्ति का विरोध अधार्मिक लोग नहीं करते। अधार्मिकों को क्या पड़ी है। धार्मिक ही करते हैं, क्योंकि धार्मिक को ही अड़चन है। असली सिक्के का विरोध, नकली सिक्के जिनके पास हैं वे ही करेंगे। जिनके पास सिक्के ही नहीं है उनको क्या लेना-देना। तुम्हारे पास असली हो कि नकली, उन्हें प्रयोजन ही नहीं है। लेकिन जिनके पास नकली सिक्के हैं, अगर असली सिक्के बाजार में आ जाएं, तो नकली सिक्कों का क्या होगा?
तुम्हारे मस्तिष्क पर पत्थर नहीं है, आवाहगहन बहुत है। विचारों का कितना आवागहन है। कैसा ट्रैफिक! सुबह से सांझ, सांझ से सुबह हो जाती है, लेकिन विचारों का प्रवाह चलता ही रहता है। एक नहीं, दो नहीं, लाखों विचार चल रहे हैं। तुम्हारी खोपड़ी में सदा कुंभ का मेला ही भरा हुआ है। एक तो पत्थर, फिर विचारों के कुंभ का मेला! लाखों की भीड़! सतत चलती रहती है यह धारा। दिन में ही नहीं, रात में भी। सो जाते हो, फिर भी यह धारा बंद नहीं होती। चौबीस घंटे चलती है। अगर कहीं भूल-चूक से कोई बीज उग भी सकता था, तो इस सतत् आवागहन में दब जाता है और मर जाता है। मैं तुम्हें कोई उपदेश नहीं दें रहा हूं। मैं तुम्हें, सिर्फ मैंने जो जाना है, उसमें साझीदार बना रहा हूं। मेरी ज्योति में भागीदार बनो। मेरी सुगंध को अपनी सुगंध मत बनाओ। मेरी सुगंध को देख कर अपनी सुगंध को जगाओ। मेरे शब्दों को मत दोहराने लगना, अन्यथा पंडित हो जाओगे। अपने अनुभव को जगाओ!
जब कोई बुद्ध होता है पृथ्वी पर, फिर वह किस रूप में है इससे फर्क नहीं पड़ता- नानक है कि कबीर है, ये केवल देह के भेद हैं। दीये बहुत ढंग के बन सकते हैं। दीये तो मिट्टी से, धातु से बनते हैं, जैसे चाहो वैसे बनाओ, बड़े बनाओ, छोटे बनाओ, काले बनाओ, गोरे बनाओ, नई-नई आकृतियां दो। लेकिन जब ज्योति जलती है तो ज्योति एक ही है। दीये का आकार, रंग-ढंग कितना ही भिन्न हो, ज्योति का तो एक ही स्वभाव है- अंधेरे को दूर करना। इस पृथ्वी पर कहीं न कहीं, कोई न कोई जगाने वाला सदा मौजूद होता है। इतनी चिंता तो परमात्मा तुम्हारी करता है कि एक जगाने वाला विदा होता है तो कहीं दूसरा जगाने वाला पैदा हो जाता है। यह सिलसिला टूटता नहीं। एक बुद्ध गया कि कही और दूसरा कोई बुद्ध पैदा हो जाता है। यह धारा अनवरत बहती रहती है। तुम्हारी कठिनाई यह है कि तुम मुर्दा बुद्धों से जकड़ जाते हो और इसलिए जिंदा बुद्धों को नहीं देख पाते। बुद्ध को गए पच्चीस सौ साल हो गए, कोई अभी भी बैठा उनकी पूजा कर रहा है। अगर बुद्ध से प्रेम है तो किसी जागे हुए बुद्ध, महावीर, कृष्ण को खोज लो। सद्गुरु किसी दूसरे दीये में रोशनी बना होगा अब। लेकिन तुम पुराने दीये की तस्वीर लिए बैठे हो और इसलिए नये दीये को खोजना तुम्हें मुश्किल हो रहा है। मिल भी जाए तो पहचानना मुश्किल, क्योंकि तुम पुराने दीये से मिलाते हो और कोई नया दीया पुराने दीये से मिलेगा भी नहीं। परमात्मा नित-नूतन बुद्ध पैदा करता है। नई ज्योतियां आकाश में उतरती हैं। जहां भी कभी कोई हृदय ध्यान में शून्य हो जाता है, वहीं परमात्मा की ज्योति उतर जाती है।
साथ ही यह भी सत्य है कि पृथ्वी कभी परमात्मा से खाली नहीं होती। अप्रकट परमात्मा तो सब तरफ मौजूद रहता है, लेकिन कहीं न कहीं परमात्मा प्रकट भी होता है। तुम्हारी आंखें अगर पुराने की तस्वीरों से न लदी हो तो तुम सद्गुरु को जरूर पहचान लोगे! और सद्गुरु जादू है, तिलिस्म है। उसका स्पर्श भी जगा सकता है। जागे हुए के द्वारा ही सोए हुए को जगाया जा सकता है। सोया हुआ दूसरे सोए हुए को कैसे जगाएगा। हजारों सोए हुए भी संगठित हो जाएं तो भी एक-दूसरे को जगा नहीं सकते। यहां पांच सौ लोग रात को सो जाएं एक-दूसरे से कह कर कि हम जगा देंगे एक-दूसरे को। मगर पांच सौ ही सो जाएंगे। कौन किसको जगाएगा। कोई जागा हुआ ही जगा सकता है, हिला सकता है, डुला सकता है, पानी के छीटे आंखों पर दे सकता है, कोई उपाय खोज लेगा, पुकार सकता है। कोई विधि खोज लेगा। सीधे-सीधे न उठोगे तो खींचेगा-तानेगा। तुम्हारे योग्य कोई न कोई मार्ग तलाश लेगा। अगर बिल्कुल न माने, तो बार-बार चेतना हेतु ठक ठक करेगा और ये ठक ठक तब तक जारी रहेगी, जब तक तुम जाग खडे़ नहीं हो जाओगे। सद्गुरु सब कुछ कर सकता है। क्योंकि जागना परम धर्म है, उसके लिए कुछ भी गंवाया जा सकता है। लेकिन बस जागा हुआ ही सोए हुए के लिए सहायक हो सकता है।
ऐसा प्रेम करे कि गुरु और शिष्य दो न रह जाएं, एक हो जाएं और जिस दिन गुरु और शिष्य एक हो जाते हैं उसी दिन परमात्मा का प्रमाण मिलता है, और कोई प्रमाण नहीं है। तर्क से, विचार से, शास्त्र से परमात्मा का कोई प्रमाण नहीं मिलता। जहां गुरु और शिष्य एक हो जाते हैं, वहां परमात्मा का प्रमाण मिलता है। उस एक में ही परम एकता का बोध होता है। जैसे शिष्य और गुरु एक हो गये है।
गुरु पूर्णिमा के पर्व पर अपने आप को अहम् ब्रह्मास्मि शक्ति से युक्त करने हेतु इन्द्राक्षी धन वैभव लक्ष्मी दीक्षा, प्रत्यांगिरा ऊर्वशी आकर्षण दीक्षा, सर्व पीड़ा हरण संहार दीक्षा प्राप्त कर अपने आप को प्रेम, हर्ष, आनन्द और रस युक्त बनाने हेतु जीवन्त जाग्रत क्रियायें सम्पन्न होगी। साथ ही वन्दनीय माता जी के सानिध्य में अपने आप को शिव-गौरी मय परिवार युक्त बनाने हेतु प्रत्येक साधक द्वारा स्व रूद्राभिषेक सम्पन्न होगा जिससे जीवन में पूर्णमदः की स्थितियाँ प्राप्त हो सके और श्रावण मास का फल जीवन में अक्षुण्ण बना रहे। 10,11,12 जुलाई 2014 को इन्डोर स्टेडियम, बूढ़ा तालाब, रायपुर (छ-ग) में सम्पन्न होगा। गुरु पूर्णिमा का यह महापर्व तो वास्तव में शिष्य पूर्णिमा ही है और गुरुमय चेतना की पूर्णता प्राप्ति के लिए इसका इंतजार सभी साधकों-शिष्यों को होता ही है।
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