आज के इस कलियुग में जीना कोई आसान बात नहीं होती, हर व्यक्ति एक-दूसरे पर हावी होने की कोशिश करता है और अपने को शक्तिमान घोषित करने का प्रयास करता रहता है। आये दिन की परेशानियाँ, आपदायें, जो गृहस्थ जीवन में सम्बन्धित होती हैं, प्रत्येक मनुष्य को झेलनी पड़ती है और एक ऐसी शक्ति की, जिससे वह अपने जीवन को भली-भांति विभिन्न विपदाओं और बाधाओं से सुरक्षित रख सके वह उसको प्राप्त करना चाहता है। किन्तु मां के आशीर्वाद से बढ़कर उसके लिए कोई शक्ति नहीं होती और एक मां ही हर पल-हर क्षण अपने पुत्र की देखभाल कर सकती है, इसलिए उसे अपने इस भौतिक जीवन को सुरक्षित एवं श्रेष्ठ बनाने के लिए ‘मां’ की अर्थात उस ‘दैवी शक्ति’ की पूजा-आराधना करनी ही चाहिए।
अपने भौतिक जीवन को श्रेष्ठता पूर्ण बनाने के साथ-साथ उसे अपने आध्यात्मिक जीवन को भी श्रेष्ठ बनाना चाहिए, क्योंकि मात्र भौतिक जीवन में पूर्णता प्राप्त करना ही सब कुछ नहीं होता। एक मनुष्य के लिए उसका श्रेष्ठ जीवन तो गृहस्थ के उन्नति पथ पर बढ़ते हुए आध्यात्मिक स्तर की ऊंचाई को प्राप्त कर लेना और उस ब्रह्म में लीन हो जाना है, जिसका वह अंश है।
गृहस्थ जीवन को पूर्णता के साथ जीते हुए अध्यात्म की ओर बढ़ना तो तलवार की धार पर चलने के समान ही होता है, जिस पर चलकर पैर लहूलुहान हो जाते हैं, किन्तु ‘विंध्यवासिनी’ जो कि अपने दिव्य स्वरूप से सुशोभित पूर्ण शक्तिमान स्वरूपा है, साधक या व्यक्ति को उस पथ की ओर गतिशील होने के लिए ऐसा वृहद् अस्त्र प्रदान करती हैं, जिससे वह जीवन की सर्वोच्चता को (जहां पहुंचना मानव-जीवन का ध्येय होता है) प्राप्त कर लेता है।
‘विंघ्यवासिनी’ अत्यन्त गोपनीय साधनाओं में से एक है, यह अपने-आप में इतनी पूर्ण है, कि महाविद्याओं की साधना से साधक को जो शक्ति प्राप्त होती है, वैसी ही शक्ति इस साधना को सिद्ध करके प्राप्त की जा सकती है। विश्वामित्र ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ दिव्य शक्ति चरित संहिता में बताया है कि ‘विंध्यवासिनी जीवन की श्रेष्ठ साधनाओं में से एक है।’
‘त्रिजटा अघोरी’ के शब्दों में ‘सिद्धाश्रम से सीधा सम्बन्ध स्थापित करने की सर्वश्रेष्ठ साधना है।’ आद्य शंकराचार्य जैसे योगी और गोरखनाथ आदि उच्चकोटि के साधकों ने इस साधना को गोपनीय एवं अद्वितीय बताया है और इस साधना को सम्पन्न कर विशेष प्रकार की शक्ति को प्राप्त किया है।
‘विंध्यवासिनी’ मां दुर्गा का ही रक्षा स्वरूप हैं, जो अपने साधक की हर क्षण रक्षा करती हैं, उसको जीवन की विभिन्न उलझनों से, परेशानियों से मुक्ति दिलाती हैं और यदि साधक इस सिद्धि को प्राप्त कर ले, तो उस पर किसी प्रकार की बाधा का प्रकोप-प्रभाव नहीं पड़ सकता, यहां तक कि कोई तांत्रिक ‘कृत्या वार’ भी हो तो, वह भी निष्फल हो जाता है।
‘कृत्या वार’ एक प्रकार का तीव्र तांत्रिक प्रयोग होता है, जिसका वार कभी खाली नहीं जाता, उस वार को निष्फल करना कोई आसान बात नहीं होती।
यह एक तांत्रोक्त साधना है और प्रत्येक तांत्रिक उसकी महत्ता अवश्य ही समझता होगा, क्योंकि यह तंत्र का बेजोड़ एवं अचूक सफलतादायक तीव्र प्रयोग है, जिसे सम्पन्न करने पर वह साधक, जिसने इस विद्या को सिद्ध कर लिया हो, विशिष्ट शक्तिशाली बन जाता है। ‘विंध्यवासिनी यंत्र’ के द्वारा पूजन सम्पन्न करने पर उस साधक को एक विशेष प्रकार की तेजस्विता, ऊर्जा-शक्ति प्राप्त होने लगती है, जो एक कवच की भांति ही उसके चारों ओर रक्षक के रूप में हर क्षण कार्य करती रहती है।
विंध्यवासिनी तीव्र से तीव्र प्रहारों को भी निष्फल करने की अचूक साधना है, जो बड़े-बड़े ऋषियों-मुनियों के लिए भी दुर्लभ है, इस विद्या को सिद्ध कर लेने के बाद, अन्य साधनाओं में स्वयं ही शीघ्र सफलता मिलने लग जाती है। व्यक्ति या साधक इस विद्या में सिद्धहस्त हो जाने से अपनी सभी मनो इच्छाओं को मन ही मन स्मरण कर के, विंध्यवासिनी देवी का ध्यान कर लेने मात्र से ही पूर्ण कर लेता है। इस प्रकार वह शत्रु बाधा, राज्य बाधा, व्यापार बाधा आदि विभिन्न आपदाओं से मुक्ति पा लेता है।
यह साधना सूर्य सिद्धान्त की आधारभूत साधना है, इससे सूर्य की किरणों द्वारा पदार्थ परिवर्तन क्रिया स्वतः सिद्ध हो जाती है, इसके द्वारा साधक अपनी इच्छानुसार आयु प्राप्त कर सकता है और सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है, कि इसके द्वारा सिद्धाश्रम में भी प्रवेश पाया जा सकता है।
सामग्री- विंध्यवासिनी यंत्र, विजय माला, चार लघु नारियल।
समय-4 जून बुधवार विंध्यवासिनी सिद्धि दिवस या किसी भी रविवार को रात्रि में 9 बजे के बाद।
विधि- साधक स्नान कर, लाल धोती पहिन कर गुरु चादर ओढ़ लें तथा काले आसन पर दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके बैठ जाये। अपने सामने लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाये तथा तांबे की प्लेट में कुंकुंम से ‘क्लीं’ मंत्र लिखें, ‘विंध्यवासिनी यंत्र’ को दूसरे पात्र में स्नान करवा कर, तांबे के प्लेट में लिखे ‘क्लीं’ मंत्र के ऊपर स्थापित करें। ‘लघु नारियलों’ को यंत्र की चारों दिशाओं में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के प्राप्ति स्वरूप स्थापित कर दें।
इसके पश्चात यंत्र व नारियलो पर कुंकुंम से तिलक करे तथा अक्षत, पुष्प एवं धूप व दीप से पूजन कर ‘विजय माला’ से निम्न मंत्र की 11 माला जप करें-
जप समाप्ति के पश्चात् सारी सामग्री माला सहित एक लाल कपड़े में बांध कर किसी नदी या तालाब में विसर्जित कर दें। साधना प्रारम्भ करने से पूर्व गुरु पूजन एवं गुरु मंत्र अवश्य ही जप लेना चाहिए और इसकी समाप्ति के पश्चात गुरु आरती अवश्य करें। यह एक दिन की साधना है, साधना के समय में साधक को कई प्रकार के अनुभव होंगे, इससे विचलित व घबराने की आवश्यकता नहीं है। प्रत्येक साधक को इस साधना को निश्चित मनोकामना सिद्धि हेतु अवश्य ही सम्पन्न करना चाहिए।
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