यह एक जन्म-मरण में डूबने की क्रिया है, जन्म और मृत्यु के बीच में समाप्त होने की क्रिया है, जन्म मृत्यु के बीच में निरन्तर भटकने की क्रिया है, पर इस बीच यदि गुरु मिल जायें, तो फिर जीवन का रास्ता मृत्यु की ओर अग्रसर नही हों सकता, तब तुम्हारी ब्रह्म में लीन होने की क्रिया प्रारम्भ हो सकती हैं, तब तुम्हारी ब्रह्म में लीन होने की क्रिया का तात्पर्य है एक नवीन जन्म और गुरु वह है जो शिष्य को हर बार एक नवीन जन्म देता है और वह ऐसा करता है अपनी तेजस्विता प्रदान कर दीक्षा के द्वारा, शक्तिपात के द्वारा, तपोरश्मियों को शिष्य के भ्रू-मध्य में उतार कर।
एक हाड़-मांस के व्यक्ति को गुरु नहीं कहते, भगवे वस्त्र धारण किये हुये किसी साधु को भी गुरु नहीं कहते, गुरु तत्व का अथाह भण्डार जिसमें हिलोरे ले रहा हो, और जो उस तत्व को शिष्य के हृदय में भी स्थापित कर सके। जो सारभूत वस्तु होती है उसी को तत्व कहते हैं। इस तत्व को जीवन में उतारने से ही निश्चय ही व्यक्ति जीवित तो रह सकता है, मगर ठीक वैसे ही जीवित रह सकता है जैसे एक प्राणविहीन शरीर-एक ऐसा शरीर जिसका कोई लक्ष्य नहीं है। जिस हृदय में गुरु तत्व का स्थापन ही नहीं हुआ हो, वह धड़क तो सकता है, पर उसमे उमंग नहीं हो सकती? उत्साह नहीं हो सकता, उछाह नहीं हो सकता, लहर नहीं हो सकती और ऐसा इसलिए क्योंकि गुरु तत्व को आत्मसात करने की कला हम सीख ही नहीं सके है, गुरु तो देखा है, गुरु के चरण स्पर्श तो किये हैं, उनके दिये मंत्र को भी जपा है, परन्तु उस गुरु तत्व को हृदय में उतारने की कला नहीं जान सके है।
यह गुरु तत्व ही परम तत्व है, जिसे चर्म चक्षुओं से तो नहीं देखा जा सकता, परन्तु ज्ञान चक्षुओं से जाग्रत होने पर अवश्य अनुभव किया जा सकता है। इसीलिए ब्रह्म और गुरु में कोई भेद नहीं है। और सकल ब्रह्माण्ड उसी ब्रह्म का माया विस्तार ही है, इसलिए समस्त ब्रह्माण्ड का आधार ही ब्रह्म या गुरु तत्व है। उस गुरु तत्व का अभिषेक हो पाना और वह भी पूर्णता के साथ यह किसी भी मनुष्य के जीवन में युगान्तरकारी घटना है।
गुरु, गुरु तत्व, पूर्णता अभिषेक का जब एक साथ शिष्य के जीवन में संयोग होता है, और इस संयोग को गुरु अपने शिष्य के ललाट पर अंकित करते हैं, तो गुरु की इस देने की क्रिया को ही दीक्षा कहते हैं या गुरु तत्व पूर्णाभिषेक दीक्षा कहते है, जो कि नवीन सहस्त्राब्दि की प्रथम संध्या वेला को शिष्यों के जीवन में घटित होने जा रही है, एक युग निर्माण की नींव के रूप में। यह अभिषेक दीक्षा मात्र एक दीक्षा ही नहीं होती अपितु कई उच्चकोटि की दीक्षाओं को सम्मिलित स्वरूप होती है। सिद्धाश्रम दर्शन, सूक्ष्म शरीर धारण, क्रीं, ह्लीं, श्रीं शक्तियां एक साथ ही प्राप्त हो जाती है। इस प्रकार का सौभाग्य स्वयं ही दस्तक देकर आपके द्वार खटखटा रहा हो तो फिर भला कौन शिष्य सोया रह सकता है।
पांच पत्रिका सदस्य बनाने पर ‘गुरू तत्व पूर्णाभिषेक शक्ति दीक्षा’ उपहार स्वरूप प्रदान की जायेगी।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,