जहां पुरूष अपने विरोचित लक्षणों को उभारने का प्रयत्न करता रहता है, वहीं नारी अपने आप को हर स्वरूप में सौन्दर्य का प्रतिमान बनने का प्रयत्न करती रहती है। जहां हमारे मन मुख से सौन्दर्य शब्द निकला है, वहीं एक नारी प्रतिबिम्ब हमारे नेत्रों में चित्रित होने लगता है, किन्तु वास्तविकता यह नहीं है, सौन्दर्य कोई नारी शरीर नहीं है या किसी अप्सरा का उपनाम भी नहीं है, सौन्दर्य तो सभी के पास होता है, केवल फर्क इतना है कि किसी के पास तन का सौन्दर्य होता है किसी के पास मन का, सौन्दर्यवान तो वही हो सकता है जिसका तन और मन दोनों सौन्दर्य के सभी गुणों से आपूरित हों। फिर तो उस सौन्दर्य का अनुमान नहीं लगाया जा सकता।
आज व्यक्ति सौन्दर्य की सही परिभाषा उसके सही अर्थ को भूल चुके हैं। अब तो सौन्दर्य हमारे जीवन में रहा ही नहीं, आधुनिकता के पीछे भागते हुये हमारा जीवन तनाव, चिंताओं के फलस्वरूप अव्यस्थित सा हो गया है, जिससे जीवन की अन्य वृत्तियां लुप्त सी हो गई है। भारतीय शास्त्रों में सौन्दर्य को जीवन का उल्लास, उमंग और उत्साह माना जाता है, यदि जीवन में सौन्दर्य ही नहीं, तो वह जीवन नीरस और उदास हो जाता है, हम में से अधिकांश व्यक्ति ऐसा ही जीवन जी रहें हैं, हमारे होठों से मुस्कराहट समाप्त हो गई है, जिसके फलस्वरूप हम प्रयत्न करके भी खिलखिला कर उन्मुक्त भाव से हंस नहीं सकते, एक प्रकार से हमारा जीवन रूग्ण सा हो गया है। जिस प्रकार एक जगह रूके पानी में सड़ांध पैदा हो जाती है, उसी प्रकार रूका हुआ जीवन भी निराश और बेजान सा हो जाता है।
सौन्दर्य केवल दो ही प्रकार का होता है- बाह्य सौन्दर्य और आन्तरिक सौन्दर्य। बाह्य सौन्दर्य जो हमारी सुन्दर देह, गौर वर्ण, एक ऐसा चुम्बकीय व्यक्तित्व, जिसे पाने के लिये हर कोई उत्सुक हो उठता है। आज के इस आधुनिक युग में चुम्बकीय शक्ति का होना अत्यन्त आवश्यक है। क्योंकि यही वह ऊर्जा शक्ति है जिससे अपने आकर्षण के फलस्वरूप ही व्यक्ति किसी से भी कुछ भी कार्य सम्पन्न करवा सकता है। जिस भी क्षेत्र में चाहे वह सफल हो सकता है। व्यक्ति अपने प्रयत्नों से हर पल सुन्दर और आकर्षण युक्त बनने के लिये प्रयत्नशील रहता है, और इसके लिये वह भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रसाधनों का उपयोग करता रहता है। किन्तु फिर भी वास्तविक सौन्दयको जुटा नहीं पाता, उसके द्वारा किये गये सभी उपाय निष्फल हो जाते हैं।
सौन्दर्य की प्राप्ति के लिये मानव हर क्षण उद्विग्न रहता है, जिसे देखकर उसकी आंखों को ठंडक मिले, सुकून मिले, वह उस सौन्दर्य को देखने, उसे पाने की लालसा बनी रहती है। सौन्दर्य कुछ व्यक्तियों के अनुसार मनुष्य के भाव-जगत् की उपज है। सौन्दर्य मन की वस्तु है, वास्तव में सुन्दर वस्तु से पृथक सौन्दर्य कोई चीज नहीं है, कोई रूप रंग होता है, तो हमारे हृदय को प्रभावित कर लेता है वास्तविक सौन्दर्य आंतरिक मन की आनन्दानुभूति को कहते हैं, किन्तु आन्तरिक सौन्दर्य को प्रदर्शित करने के लिये बाह्य सौन्दर्य की आवश्यकता भी होती है। इसी के प्रभाव से अपनी ओर आकर्षित करता है। सौन्दर्य शब्द से ही प्रेम शब्द बना है और प्रेम ही जीवन है, वस्तुतः सौन्दर्य सम्पूर्ण जीवन का आधार है। तभी तो कहा गया है, जिसे देखकर दिल धड़कना बंद कर दे, नाड़ी का स्पन्दन रूक जाये, वही सौन्दर्य है।
यूं तो पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, कीट-पतंगे और मनुष्य सभी ईश्वर की बनाई हुई सुन्दर कृतियां हैं, किन्तु वह सौन्दर्य तब तक फीका है, जब तक वह सम्पूर्णता लिये हुये न हो, फूल बगिया में खिलकर, कोयल पेड़ पर स्वर गान करते हुये और नारी अपने पूर्ण यौवन को प्राप्त कर ही सम्पूर्ण सौन्दर्य के प्रतिमान कहलाती हैं।
ऋषियों-मुनियों द्वारा प्रदत्त इस विशिष्ट साधना के माध्यम से असुन्दरता के कारण व्याप्त हीन भावना को मन से हमेशा-हमेशा के लिये दूर किया जा सकता है, और वापिस अपने मूल सौन्दर्य को, जो नकली प्रसाधनों के उपयोग से समाप्त हो गया था, उसे प्राप्त कर पूर्ण यौवनवान सौन्दर्यता को प्राप्त किया जा सकता है।
गरिमामयी सौन्दर्य साधना के माध्यम से कुरूप को भी सौन्दर्यवान बनाया जा सकता है। जिस प्रकार चन्द्रमा अपनी चांदनी के प्रकाश से घोर अंधकार को दूर हटाकर अपनी शुभ्र ज्योत्सना से विश्व को प्रकाशवान करता है, उसे रोशनी प्रदान करता है, उसी प्रकार इस साधना के माध्यम से कैसी भी कुरूपता हो, इस साधना द्वारा शरीर का मानों पूर्ण कायाकल्प होता ही है। वह स्वयं कुछ ही दिनों के भीतर अपने अन्दर आश्चर्यजनक व अद्भुत परिवर्तन महसूस करने लग जाता है और बाह्य, आंतरिक दोनों प्रकार के सौन्दर्य में निखार आने लग जाता है, इसी के माध्यम से जीवन की वे प्रमुख वृत्तियां, जो जीवन में आनन्द और सम्मोहन का निर्माण करती हैं, वे उजागर होती हैं और मनुष्य एक सुन्दर, मोहक, तेजस्वी एवं ओज पूर्ण व्यक्तित्व प्राप्त कर लेता है, जिसे प्राप्त करने की प्रबल इच्छा को वह अपने अन्दर संजोये रहता है।
रूप चतुदर्शी की ये अद्वितीय साधना सम्मोहन, आकर्षण सुन्दर अलौकिक सौन्दर्य प्रदान करने में सक्षम है। यह साधना कोई भी उम्र के पुरूष-स्त्री सम्पन्न कर सकते हैं।
सामग्री- रूप अनंग मंत्रों से चैतन्य सौन्दर्य यंत्र, श्रृंगाटिका, गरिमा माला।
दिवस- कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी गुरूवार 10 नवम्बर या अन्य किसी भी चतुर्दशी को।
समय- प्रातः 6 बजे या रात्रि 9:15 पर साधना करें।
स्नानादि से निवृत्त होकर नित्य पूजन क्रम यथावत् पूर्ण करें, फिर उसी आसन पर बैठे हुये ही अपने सामने किसी ताम्र प्लेट पर कुंकुंम से स्वास्तिक अंकित कर उस पर रूप अनंग सौन्दर्य यंत्र को स्थापित कर दें। तथा स्वस्तिक के चारों कोनों पर ‘श्रृंगाटिका’ को स्थापित कर पूजन सम्पन्न करें। फिर गरिमा माला से 11 माला निम्न मंत्र का जप करें।
मंत्र जप समाप्ति के उपरांत यंत्र, श्रृंगटिका तथा माला को किसी नदी या पवित्र सरोवर में प्रवाहित कर दें।
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