जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में लक्ष्मी का प्रभाव है, यह धन के अतिरिक्त यश अर्थात् प्रसिद्धि, उन्नति, कामना पूर्ति की देवी हैं, ये सौभाग्य, सुन्दरता, श्रेष्ठ गृहस्थ जीवन की देवी हैं, जिनकी कृपा बिना गृहस्थ जीवन, पारिवारिक जीवन सही रूप से चल ही नहीं सकता, लक्ष्मी भोग की अधिष्ठात्री देवी हैं। इनकी साधना से ही जीवन में सभी भौतिक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति होती है। गृहस्थ जीवन को सुचारू रूप से गतिशील रखने के लिये नित्य प्रति के क्रम में कई वस्तुओं की आवश्यकता पड़ती है। यह सब मात्र एक तांत्रोक्त चैतन्य नव महालक्ष्मी पूजन से ही साध्य है। जिसमें देवी की नव शक्तियां विभूति, नम्रता, कांति, तुष्टि, कीर्ति, उन्नति, पुष्टि, उत्कृष्टि तथा रिद्धि से जीवन युक्त होता है।
दीपावली पूजन के लिये साधना सामग्री और श्री यंत्र को सद्गुरूदेव के दिव्य सानिध्य में विशिष्ट तांत्रोक्त पद्धति से लक्ष्मी के 108 स्वरूपों की चेतना से युक्त की गई है। लक्ष्मी की नौ कलाओं को साधक के शरीर में स्थापित करने हेतु नव सामग्री मंत्र सिद्ध की गयी है।
श्री सूक्त गणपति मंत्रों से प्राण प्रतिष्ठित पारद श्री यंत्र, अष्ट लक्ष्मी सिद्धि फल, धन-धान्य प्रदायक नारियल, दारिद्रय शमन हेरम्ब, सद्गुरू नारायण चैतन्य लॉकेट, भू-भवन वसुधा गोमती चक्र, रिद्धि-सिद्धि बीज, कामकला दायिनी मुद्रिका, शुभ-लाभ हकीक चिंतक।
दीपावली की रात्रि को स्नानादि कर सांय 6:05 से 08:09 या रात्रि 1:30 से 3:01 बजे तक विशिष्ट मुहूर्त में ही उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख कर पूजा स्थान में आसन पर बैठ जायें। सामने लाल या श्वेत वस्त्र बिछाकर उसके ऊपर तांबे या स्टील की थाली रख कर उस पर कुंकुम से नीचे बने रेखा चित्र अनुसार अंकन करें।
सामने निर्दिष्ट दिशाओं के अनुरूप अलग अलग गोलों में विभिन्न सामग्रियों का स्थापन करें। ईशान कोण में अष्ट लक्ष्मी सिद्धि फल स्थापित करें। पूर्व में धन-धान्य प्रदायक नारियल, अग्नि कोण में दारिद्रय शमन हेरम्ब, दक्षिण कोण में सद्गुरू नारायण चैतन्य लॉकेट, नैऋत्य कोण में भू-भवन वसुधा गोमती चक्र, पश्चिम कोण में रिद्धि-सिद्धि बीज, वायव्य कोण में काम कला दायिनी मुद्रिका, उत्तर कोण सिद्धि शुभ-लाभ हकीक, पाताल में पारद श्री यंत्र। इसके बाद अपने दायीं ओर घी की तथा बायीं ओर तेल का दीपक जलायें। सामने अगरबत्ती जलाकर पूजन प्रारम्भ करें।
पवित्रीकरण
दायें हाथ में जल लेकर मंत्र बोलते हुये स्वयं पर छिड़के-
ऊँ अपवित्रः पवित्रे वा सर्वाऽवस्थां गतोऽपि वा
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं सः बाह्यभ्यन्तरः शुचिः।
आचमन
निम्न मंत्र बोलते हुये तीन बार आचमन करें-
ऊँ केशवाय नमः ऊँ नारायणाय नमः ऊँ माधवाय नमः
संकल्प
दाहिने हाथ में जल लेकर संकल्प करें-
ऊँ विष्णवे नमः। ऊँ विष्णवे नमः। ऊँ
विष्णवे नमः। हरि ऊँ तत्सत् अद्य एतस्य ब्रह्मणो
द्वितीयपरार्द्धे अष्टाविंशति कलियुगे जम्बूदीपे
भरतखण्डे पुण्य क्षेत्रे मासानाम् उत्तम मासे कार्तिक
मासे कृष्ण पक्षे अमावस्या तिथौ बुधवासरे अमुक
गोत्र (गोत्र बोलें) अमुक शर्माऽहं (नाम बोलें) श्री
परमेश्वर प्रीत्यर्थ महालक्ष्मी प्रीत्यर्थ सकल दुख
दारिद्रय नाश निमित्तं च ललिताम्बा नव महालक्ष्मी
पूजनं करष्यिे।
दीपक
दीपावली के अवसर पर दो बड़े तेल व घी का दीपक अवश्य प्रज्ज्वलित रखें, जो रात्रि भर जलता रहे। दीपक प्रज्ज्वलित करते हुये निम्न मंत्र का उच्चारण करें और कुंकुंम अक्षत से पूजन करें-
भो दीप देव रूपस्त्वं कर्म साक्षी ह्यविघ्नकृत,
यावत्कर्म समाप्तिः स्यात् तावत त्वं सुस्थिरो भव।
हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर स्वस्ति वाचन पढ़ें।
ऊँ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा
विश्ववेदा स्वस्ति नस्ताक्र्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्तिनो
बृहस्पर्तिदधातु।
गणपति पूजन
इसके बाद गणपति विग्रह के रूप में सुपारी पर मौली बांध कर ताम्र पात्र में स्थापित करें। निम्न मंत्र बोलते हुये गणपति पर कुंकुंम, अक्षत चढ़ायें-
ऊँ लक्ष्मी नारायणभ्यां नमः। ऊँ उमामेश्वराभ्यां
नमः। ऊँ वाणी हिरण्यगर्भाभ्यां नमः।। ऊँ इष्ट
देवताभ्यो नमः। कुल देवताभ्यो नमः।। ग्राम देवताभ्यो
नमः।। सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः।
निम्न ध्यान मंत्र बोलकर गणपति को पुष्प चढ़ायें-
गजाननं गणाधि सेवितं, कपित्थं जम्बू फल चारू भक्षणं
उमासुतं पाप विनाशयै, नमामि गणपते पाद पंकजं।।
गुरू पूजन
अपने सामने गुरू चित्र स्थापित करें और दीपावली के शुभ अवसर पर आशीर्वाद की कामना करें-
गुरू ब्रह्मा गुरूविष्णुः गुरूर्देवो महेश्वरः
गुरूः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरूवे नमः।।
ऊँ मंगलमूर्ति निखिलेश्वराय नमः
पाद्यं, अर्घ्यं, स्नानं, धूपं, दीपं, पुष्पाणि, नैवेद्य
निवेदयामि श्री गुरू चरण कमलेभ्यो नमः।
कलश पूजन
बाजोट पर चावल से स्वस्तिक बनाकर उस पर कलश को स्थापित करें। कलश में शुद्ध जल के साथ गंगाजल मिलायें, उसके बाद उसमें चन्दन अक्षत, सुपारी अर्पित करें। कलश पर मौली बांधे और निम्न मंत्र का पाठ करें-
युवा सुवासा परिवीत आगात्स भवति जायमानः
तं धीरासः उन्नयन्ति साध्यो मनसा देवयन्तः।
इसके बाद नारियल में मौली बांध लें और कुंकुंम का तिलक करें, पांच आम या तुलसी के पत्ते कलश में डाल दें। इसके बाद दाहिने हाथ से कलश का स्पर्श करते हुये निम्न मंत्र का पाठ करें-
कलशस्य मुखे विष्णु कण्ठे रूद्रः समाश्रितः
मूले तत्र स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृ गणास्थिता।
कुक्षौ तु सागरा सर्वे सप्त द्वीपा वसुन्धरा,
ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेदो सामवेदः ह्यथर्वणः।
अंगैश्च सहिताः सर्वे कलशन्तु समाहिताः
अत्र गायत्री सावित्री शान्तिः पुष्टि करस्था।
आयान्तु यजमानस्य दुरितक्षय कारकाः।।
महालक्ष्मी पूजन विधान
महालक्ष्मी यंत्र पर दाहिनी हथेली रख कर निम्न मंत्र से यंत्र को अपने प्राणों से सम्बद्ध करने की क्रिया करें-
अस्मै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्मै प्राणा क्षरन्तु च।
अस्मै देवत्व अर्चायै मां अहैति च कश्चन।।
अब महालक्ष्मी यंत्र का पूर्ण पूजन प्रारम्भ करें, इसमें पहले महालक्ष्मी की नौ कलाओं का पूजन, फिर महालक्ष्मी यंत्र का पूजन और फिर मंत्र जप एवं आरती, समर्पण, स्तुति सम्पन्न की जाती है।
1-अष्ट लक्ष्मी सिद्धि फल- सर्वप्रथम थाली में कुंकुम से बनाये स्वस्तिक के ईशान कोण में रखे हुये अष्ट लक्ष्मी सिद्धि फल पर कुंकुंम और अक्षत् चढ़ाते हुये निम्न मंत्र का 11 बार उच्चारण करें।
2-धन-धान्य प्रदायक नारियलः इसी प्रकार थाली के पूर्व में स्थित सौभाग्यवर्धन नारियल पर भी कुंकुम एवं अक्षत चढ़ाते हुये निम्न मंत्र का 11 बार उच्चारण करें।
3-दारिद्रय शमन हेरम्बः थाली के अग्नि कोण में स्थित हेरम्ब पर कुंकुंम एवं अक्षत् अर्पित करते हुये निम्न मंत्र का 11 बार उच्चारण करें।
4- सद्गुरू नारायण चैतन्य लॉकेटः थाली के दक्षिण कोण स्थित लॅाकेट पर कुंकुंम एवं अक्षत चढ़ाते हुये निम्न मंत्र का 11 बार उच्चारण करें।
5- भू-भवन वसुधा गोमती चक्रः थाली के नैऋत्य कोण स्थित गोमती चक्र पर कुंकुंम एवं अक्षत चढ़ाते हुये निम्न मंत्र का 11 बार उच्चारण करें
6- रिद्धि-सिद्धि चैतन्य बीजः थाली के पश्चिम कोण पर स्थित चैतन्य बीज पर कुंकुंम एवं अक्षत चढ़ाते हुये निम्न मंत्र का 11 बार उच्चारण करें।
7- काम कला दायिनी मुद्रिकाः थाली के वायव्य कोण पर स्थित कामदायिनी मुद्रिका पर कुंकुंम एवं अक्षत अर्पित करते हुये निम्न मंत्र का 11 बार उच्चारण करें।
8- शुभ-लाभ हकीकः थाली के उत्तर कोण पर स्थित शुभ-लाभ हकीक पर कुंकुंम एवं अक्षत् चढ़ाते हुये निम्न मंत्र का 11 बार उच्चारण करें।
9- पारद श्री यंत्रः थाली के मध्य अर्थात् पाताल में स्थित पारद श्री यंत्र पर कुंकुम एवं अक्षत समर्पित करते हुये निम्न मंत्र का जप करें।
अब यंत्र का पूर्ण पूजन प्रारम्भ करें।
आसन
आसन के लिये एक पुष्प अर्पित करें।
श्री महालक्ष्म्यै नमः आसनं समर्पयामि नमः।।
पाद्यं अर्घ्यं आचमनीयं स्नानं च समर्पयामि।।
पंचामृत स्नान (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर)
मध्वाज्यशर्करायुक्तं दधिक्षीरसमन्वितम्।
श्री महालक्ष्म्यै नमः पंचामृत स्नानं समर्पयामि।।
शुद्धोदक स्नान इसके बाद उन्हें शुद्ध से स्नान करायें-
परमानन्दबोधाब्धिं निमग्न निजमूर्तये।
शुद्धोदकेस्तव स्नानं कल्पयाभ्यम्ब शंकरि।।
श्री महालक्ष्म्यै नमः शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि।।
वस्त्र – वस्त्र समर्पित करें-
श्री महालक्ष्म्यै नमः वस्त्रं समर्पयामि।।
आभूषण – आभूषण समर्पित करें-
श्री महालक्ष्मै नमः आभूषणं समर्पयामि।।
गंध – इत्र चढ़ावे-
श्री महालक्ष्म्यै नमः गन्धं समर्पयामि।।
अक्षत – अक्षत चढ़ावें-
श्री महालक्ष्म्यै नमः अक्षतान् समर्पयामि।
पुष्प
श्री महालक्ष्म्यै नमः पुष्पाणि समर्पयामि।।
इसके बाद कुंकुंम, अक्षत तथा पुष्प मिला कर
निम्न मंत्रों का उच्चारण करते हुये यंत्र पर चढ़ायें।
ऊँ आद्य लक्ष्म्यै नमः, ऊँ विद्या लक्ष्म्यै नमः
ऊँ सौभाग्य लक्ष्म्यै नमः, ऊँ अमृत लक्ष्म्यै नमः
ऊँ कमलाक्ष्यै नमः, ऊँ सत्य लक्ष्म्यै नमः
ऊँ भोग लक्ष्म्यै नमः, ऊँ योग लक्ष्म्यै नमः
धूप- श्री महालक्ष्म्यै नमः धूपं आघ्रापयामि।।
दीप- श्री महालक्ष्म्यै नमः दीपं दर्शयामि।।
नैवेद्य
नाना विधानि भक्ष्याणि व्यंजनानि हरिप्रिये।
श्री महालक्ष्म्यै नमः नैवेद्यं निवेदयामि।।
ताम्बूल
लौंग इलायची युक्त पान समर्पित करें-
श्री महालक्ष्म्यै नमः ताम्बूलं समर्पयामि।।
दक्षिणा दक्षिणा द्रव्य समर्पित करें-
श्री महालक्ष्म्यै नमः दक्षिणां समर्पयामि।।
इसके बाद निम्न मंत्र का 1 माला गुरू माला से जप करें।
इसके बाद गुरू आरती, लक्ष्मी आरती, समर्पण स्तुति करें।
पुष्पांजलि
नाना सुगन्ध पुष्पाणि यथा कालोद् भवानि च।
पुष्पांजलिर्मया दत्ता गृहाण जगदम्बिके।।
श्री महालक्ष्म्यै नमः पुष्पांजलि समर्पयामि।।
प्रणामांजलि
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः।।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम।।
श्री महालक्ष्म्यै नमः नमस्करोमि समर्पण।
इसके बाद निम्न सर्मपण मंत्र का उच्चारण करते
हुये पूजन व जप भगवती पारद श्री लक्ष्मी को समर्पित
करें, जिससे कि पूर्ण फल आपको प्राप्त हो सके।
ऊँ तत्सत् ब्रह्मार्पणमस्तु अनेन कृतेन पूजाराधन कर्मणा।
श्री महालक्ष्मी देवता परासंवित स्वरूपिणी प्रीयन्ताम्।।
एक आचमनी जल लेकर पूजन की पूर्णता हेतु भूमि पर छोड़ दें। इसके बाद वहां उपस्थित परिवार के सभी सदस्यों एवं स्वजनों को प्रसाद वितरित करें।
इस प्रकार यह सम्पूर्ण पूजन व साधना सम्पन्न होती है। साधना समाप्ति के पश्चात् लॉकेट को धारण कर लें व पारद श्री यंत्र को पूजा स्थान में ही स्थापित रहने दें और शेष सामग्री को अगले दिन जल में विसर्जित कर दें।
ऐश्वर्य, सौन्दर्य, धन-सम्पदा, पूर्ण सुखद वैभव और जीवन में स्थायित्व लक्ष्मी के लिये दीपावली महारात्रि के श्रेष्ठतम दिवस पर साधना, दीक्षा, हवन, पूजन की क्रिया प्रत्येक साधक सम्पन्न करता ही है।
जिससे उसके जीवन में सभी प्रकार की सम्पन्नता, आर्थिक सुदृढ़ता के साथ लक्ष्मी सभी स्वरूपों में पूर्ण रूप से स्थापित होकर सभी मनोरथों की पूर्ति करें। द्रव्यों में श्रेष्ठतम श्री विद्या नवलक्ष्मी ललिताम्बा गौरी शक्तिपात दीक्षा इन्हीं अभिलाषाओं के को पूर्ण करते हुये, रिद्धि-सिद्धि, शुभ-लाभ, नवनिधि, सम्पन्नता,समृद्धि, धन लक्ष्मी से युक्त होता ही है। कालरात्रि के दिव्य दिवस पर फ़ोटो दीक्षा द्वारा नवलक्ष्मी को स्थायित्व रूप से अपने घर में स्थापित करने हेतु सांय 8:24 बजे से 11:40 के बीच समय में पूजा स्थान में आसन पर ध्यानावस्था में बैठें, उपरोक्त समय पर मानस शक्तिपात दीक्षा के माधयम से पूज्य सद्गुरूदेव सभी समर्पित शिष्यों को दीक्षा प्रदान करेंगे।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,