इसी जीवन में अपने भीतर एक साधनात्मक भाव पैदा कर यौवन को पुनः जाग्रत करने की आवश्यकता है।
जीवन के दिन बीतते जाते हैं, समय किसी का इन्तजार नहीं करता, लेकिन क्या हम अपने जीवन में सौन्दर्य, अनंग-रति काम भाव स्थायी रख सकते हैं? जीवन में ये स्थितियां प्रत्येक क्षण को आनन्दित बना देती हैं।
जीवन का एक कड़वा सच वृद्धावस्था है। व्यक्ति नहीं चाहते हुए भी इसे ढोने के लिये मजबूर होता है। मानव शरीर के आन्तरिक चिन्ह की शक्ति में कमी तथा शिथिलता आना वृद्धावस्था के प्रारम्भ होने का संकेत है। छोटे-छोटे कोषों से मिलकर बना है मानव शरीर।
इन कोषों के विभाजन के फलस्वरूप ही मानव शरीर का विकास होता है कुछ निश्चित क्रम पूरा होने के बाद कोषों का विभाजन रूक जाता है और मानव शरीर की एक विशेष आकृति निर्धारित हो जाती है। इस निर्माण-प्रक्रिया के साथ ही साथ विनाश क्रम में कुछ ऐसे तत्वों का निर्माण हो जाता है, जो कोषों के आवरण को भेद कर अन्दर प्रवेश कर क्रोमोसोम को नष्ट कर अनेक कोषों को समाप्त कर देते हैं।
इन्हीं कारणों से मानव देह की जैविक शक्ति क्षीण होने लगती है, जो व्यक्ति युवावस्था में ही वृद्ध दिखने लगे उस को अपने आप में ग्लानि महसूस होने लगती है। प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह स्त्री हो या पुरूष, उस की सबसे बड़ी इच्छा रहती है कि वह पूर्ण यौवन युक्त बना रहे। भले ही वह प्रौढ़ावस्था में कदम रख चुका हो किन्तु अपने आप को ज्यादा से ज्यादा आकर्षक व यौवन युक्त प्रदर्शित करने का प्रयास करता है।
इसके लिये कई उपायों का प्रयोग करते हैं, योग कक्षाओं में भाग लेते हैं। इसके अलावा कभी किसी समाचार पत्र या पत्रिका में विज्ञापन (यौवन पुनः प्राप्त करें चेहरे की झुरियां मिटायें) पढ़ता है। तो व्यक्ति उन्हें भी अपनाने में पीछे नहीं रहता। इन सबका परिणाम होता है शरीर में कुछ नयी बीमारियां, चेहरे पर कुछ भद्दे दाग, इन्हें दूर करने के लिये व्यक्ति फिर प्रयासरत होता है। अन्त में हार कर असमय ही बुढ़ापे के चुंगल में फंस जाता है।
सौन्दर्य, आकर्षण, सम्मोहन केवल स्त्री के लिये ही आवश्यक नहीं है। यह तो पुरूष में भी होना ही चाहिए। यह तो जीवन का वास्तविक आभूषण है और यह साधना स्त्री और पुरूष दोनों को ही करनी चाहिए। फि़र देखिये कैसे आता है, जीवन में निखार।
गुलाब का एक पुष्प और कली बनने के बीच का समय, एक ऐसा समय ऐसा स्वरूप जिसे बार-बार निहारने को जी चाहता है उस पुष्प में होती है ताजगी, सुगन्ध। ऐसे पुष्प को तो देख कर ही आनन्द आ जाता है। यौवन काल को प्राप्त करने के बाद भी व्यक्ति के शरीर में ताजगी नहीं है, रूप माधुर्य प्रेम और आनन्द नहीं है तो ऐसे व्यक्ति का जीवन अपनी लाश को अपने ही कंधों पर ढोने के समान है। ‘यौवन’ केवल जवानी के आयु से ही सम्बन्धित नहीं होता, यह तो शरीर के भीतर उत्पन्न हुए विविध भावों का शरीर के माध्यम से प्रकटीकरण है।
चाहे संस्कृत के काव्य हों अथवा तंत्र के ग्रन्थ, उपनिषद् हो या पुराण प्रत्येक में स्त्री स्वरूप को ‘रति’ तथा पुरूष स्वरूप को ‘कामदेव’ की शक्ति के रूप में वर्णित किया गया है। यह आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक पुरूष और स्त्री जन्म से ही आकर्षक और सौन्दर्य युक्त हों, लेकिन क्या ऐसा संभव है कि ‘रति-प्रिया’ साधना द्वारा कामदेव व रति के समान बना जा सकता है? असम्भव को संभव करना ही तो साधना सिद्धि करने का मूल उद्देश्य होता है। काम, सौन्दर्य, आकर्षण तो जीवन में कोई घृणा की वस्तु नहीं है।
1- जब अपने आप में उदास रहने लगें, हर समय सुस्ती छायी रहे, किसी काम को करने में मन न लगे। जब आप चालीस वर्ष में ही सत्तर वर्ष के लगने लगे।
2- जब आप सामने वाले को आकर्षित करने में अपने आप को असमर्थ महसूस करने लगें।
3- जब बिना कारण के जीवन नीरस लगने लगे। जब जीवन का सुखद सम्बन्ध और सौन्दर्य बिखरने लगे। ऐसी अन्य अनेक परिस्थितियां जहां दवा या योग के द्वारा लाभ नहीं मिलता है तब एक मात्र उपाय रति-प्रिया साधना सम्पन्न करना ही शेष रह जाता है।
इस हेतु आप ‘रति अनंग यंत्र’, कामदेव गुटिका तथा ‘रति प्रिया माला’ प्राप्त कर लें। इसका विशिष्ट मुहुर्त में सिद्ध व प्राण प्रतिष्ठित होना आवश्यक है। शुक्रवार को रात्रि 9 बजे के बाद स्नान करके अपनी इच्छानुसार सुन्दर व आरामदायक वस्त्र पहन लें।
साधना कक्ष का वातावरण अगरबत्ती जलाकर सुगन्धित बना लें। एक चौकी पर गुलाब के फूल की पंखुडि़यों से स्वस्तिक बना कर रति प्रिया यंत्र स्थापित करें। दोनों हाथों में इत्र लगा कर माला पर इत्र मलें और रति प्रिया यंत्र के चारों तरफ रख दें।
दोनों हाथ जोड़ कर कामदेव व रति के रूप का ध्यान करें। फिर रति प्रिया माला से निम्न मंत्र की 7 माला मंत्र जप करें। ऐसा 3 दिन तक करें। प्रत्येक दिन यंत्र के नीचे रखी पंखुडि़यों को बदलते रहें।
साधना समाप्ति पर यदि पुरूष हों तो कामदेव गुटिका को धारण कर लें, अन्य सभी सामग्री को पवित्र जल में विसर्जित कर दें, यदि स्त्री हो तो रति प्रिया माला को धारण कर अन्य सामग्री को जल में विसर्जित कर दें, माला को 3 माह पश्चात् विसर्जित करें।
जीवन का आधार गृहस्थ है और गृहस्थ का आधाार काम रति शक्ति है, इस शक्ति को धारण कर स्त्री-पुरूष भोग, दृष्टि, माया, इच्छा, भावना, कामना, विचार की चेतना से आपूरित होते हैं, इन सप्त भावों से ही जीवन में सौन्दर्य, आकर्षण, आनन्द, उत्साह, उमंग का संचार होता है। जीवन में हर वस्तु जिसे आप प्राप्त करना चाहते हैं, काम का ही स्वरूप है। काम तत्व का जागरण होने पर ही उत्साह, उमंग, जोश उत्पन्न होता है।
कामदेव रति प्रिया रूप माधुर्य दीक्षा से जीवन आकर्षण, सम्मोहन, ऊर्जा, ताजगी, ज्ञान, सौन्दर्य, पराक्रम, बल, बुद्धि, काम से आपूरित होने पर गृहस्थ जीवन हर स्वरूप में आनन्दप्रद होता है, मनोनुकूल जीवन साथी, काम शक्ति वृद्धि, पौरूषता से पति-पत्नी के मध्य आत्मीय प्रेम बढ़ता है, जिससे परिवार में वृद्धि, सुख-सम्पन्नता, प्रेम और मधुर वातावरण निर्मित हो सकेगा।
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