जगत की विसंगतियों के मध्य रह कर भी निरन्तर गरल पान करते हुये भी उस आनन्द की अनुभूति की जा सकती है। भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न होने वाले देव हैं, जहां शिव स्वरूप में भक्तों के समस्त पाप-ताप का निवारण करते हैं, वहीं मृत्युंजय स्वरूप में वे रोग निवारण, अकाल मृत्यु भय से मुक्ति दिलाकर साधक को दीर्घायु प्रदान करते हैं। अज्ञान दूर कर ज्ञान की पूर्णता प्रदान करते हैं। उमंग एवं आनन्द का भाव पैदा करते हैं। साधक के दुःख व दुःखों के कारणों को समाप्त कर उनकी मनोकामना पूर्ण कर देते है। हमारा संसार तो ब्रह्माण्ड का छोटा सा भाग है, और मानव स्वयं उस ब्रह्माण्ड का ही एक अंश है, और उस मानव की विशेषता है कि वह छोटा सा अंश पूरे ब्रह्माण्ड को नाप सकता है, देख सकता है, समझ सकता है। जीवन की सफलता इसी में है कि हम सामान्य मनुष्य होकर भी उस ब्रह्माण्ड के रहस्यों को समझें, अन्य लोकों की यात्रा कर उसके रहस्यों को समझें, और यह सब कुछ संभव है, कुछ विशेष दीक्षाओं के माध्यम से ऐसा सम्भव हो सकता है।
समाज व्यक्तियों से गठित होता है, समाज से व्यक्ति नहीं गठित होता और जो समाज के अनुरूप गठित होने पर विवश हो गया, वह साधना के क्षेत्र में कर भी क्या सकेगा? दीक्षा और साधना तो विपरीत क्रम में चलने की क्रिया है। न केवल सामाजिक मान्यताओं के विपरीत क्रम में वरन् जो दुख, दैन्य, अभाव, दारिद्रय, भाग्यहीनता व तनाव किन्हीं कारणवश स्वयं की भाग्यलिपी में अंकित हो गया हो, उसके भी विपरीत क्रम में चलने का। दीक्षा तो जीवन के नवनिर्माण की क्रिया ही होती है। जिसका साधक स्वयं साक्षात् कर सकता है।
उचित साधना पद्धति का चयन करके, अपने जीवन की आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं का निर्णय करके। उचित माध्यम तथा उपाय के द्वारा इसी युग को स्वर्ण युग बनाने की चेष्टा में रत हों। न केवल अपने जीवन के विविध द्वन्द्व, वृथा, मोह, तनावों को समाप्त कर आत्मरूपेण परिपूर्ण हो सकें।
महादेवोहऽम् चन्द्रघण्टेति शक्ति दीक्षा तो जीवन का सौभाग्य है जिसको प्राप्त कर साधक अपने जीवन को आनन्दप्रद, ममत्व, स्नेह, धन, ऐश्वर्य, भोग, विलास, सौभाग्य, शत्रु बाधा, कष्ट, पीड़ा व रोग, समस्त सिद्धियों से युक्त होकर महादेवोहऽम् और चन्द्रघण्टेति की शक्तियों से युक्त कर सकेगा और पूर्ण समृद्धिमय, ऐश्वर्यमय, बाधा, अभाव, कष्ट, पीड़ा, तनाव, चिन्ता और समस्याओं को दूर कर, तीनों लोकों को अपने वशीभूत कर सर्व कार्य करने में समर्थ हो जाता है।
पांच पत्रिका सदस्य बनाने पर ‘महादेवोहऽम् चन्द्रघण्टेति शक्ति दीक्षा’ उपहार स्वरूप प्रदान की जायेगी।
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