आकाश मंडल में स्थित ग्रहों की गति के अनुसार ही जीवन में भाग्योदय, उतार-चढ़ाव इत्यादि घटित होता है। जिस प्रकार आकाश मंडल में नवग्रह सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरू, शुक्र, शनि, राहु और केतु स्थित है उसी प्रकार मनुष्य के शरीर में भी ये नवग्रह स्थित है। जहां सूर्य का अधिकार पेट पर, चन्द्रमा का सीने पर, मंगल का सिर पर, बुध का कन्धे और ग्रीवा पर, गुरू का यकृत और मूत्रशय पर, शुक्र का चेहरे पर, शनि का जंघाओं पर, राहु का पैरों पर तथा केतु का तलवों पर विशेष रूप से प्रभाव पड़ती है।
शनि ग्रह कांति हीन अत्यन्त धीरे चलने वाला तथा वात प्रकृति प्रधान ग्रह है। इस ग्रह के द्वारा शारीरिक बल, विपत्ति योग, ऐश्वर्य के साथ-साथ मानसिक चिंतन, धोखा, छल, कपट, क्रूरता का विचार भी इसी ग्रह से किया जाता है।
इसके अलावा सबसे प्रधान बात यह है कि जीवन में शनि का प्रभाव ही सर्वाधिक पड़ता है। व्यक्ति के चिंतन का योग शनि के द्वारा ही बनता है। शनि सूर्य का पुत्र है और यम का भाई है, अतः दुर्घटना, मृत्यु आकस्मिक घटना का विवेचन भी इसी ग्रह से किया जाता है। यदि आप किसी ज्योतिषी के पास अपनी जन्म कुंडली लेकर जाते है तो सबसे पहले वह शनि की स्थिति का विवेचन करता है और शनि की महादशा जीवन में 19 वर्ष तक रहती है। विंशोतरी महादशा के अनुसार सारे ग्रहों की दशायें कुल 120 वर्षों की मानी गई है। इसमें सूर्य महादशा 6, चन्द्र महादशा 10, मंगल महादशा 7, राहु महादशा 18, गुरु महादशा 16, शनि महादशा 19, बुध महादशा 17, केतु 7 और शुक्र महादशा 20 वर्ष रहती है। इसमें भी प्रत्येक महादशा में इन्हीं नवग्रहों की अन्तर दशा भी आती है।
शनि दशा का विवेचन केवल शनि महादशा का विवेचन नहीं है अपितु किसी अन्य ग्रह की महादशा में भी जब शनि की अन्तर दशा आती है तो उसके प्रभाव को चार भागों में बांटा जा सकता है। मानव पर ग्रहों का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है, उन ग्रहों में भी शनि एक प्रबल ग्रह माना गया है। शनि ग्रह प्रधान व्यक्ति, उच्च श्रेणी के दिमागी कार्य किया करते हैं। शनि प्रधान लेखक, संगीतकार, ज्योतिष, राजनेता, तांत्रिक, अभिनेता, पुलिस तथा अच्छे शासक हुआ करते है। ऐसे व्यक्ति बड़े उद्योगपति तथा खतरनाक, विस्फोटक सामग्री के निर्माणकर्त्ता हुआ करते है।
शनि की दशा के प्रारम्भिक दौर में ऐसे व्यक्ति के हाथ में पैसा आया राम, गया राम ही रहता है, आमदनी से खर्च अधिक होने लगता है, घर परिवार में मतभेद हो जाता है, पुत्रों की मां बाप से नहीं बनती, छोटी-छोटी बातों पर मनमुटाव हो जाता है, रिश्तों में दरार पड़ जाती है। प्रारम्भिक दौर में ऐसे व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा होता है, उसकी आमदनी भी अच्छी होती है, रोजगार पूर्ण रूप से सफल रहता है, परन्तु खर्च भी बढ़ जाता है। मित्रों की संख्या अधिक होती है तथा कई प्रशासनिक स्तर के अधिकारियों से सम्पर्क बन जाता है। इस दौर में गैरकानूनी ढंग से भी आय होती है।
द्वितीय दौर में शनि व्यक्ति को खर्चीला बना देता है, आज नहीं होगा, तो कल होगा, पैसे खर्च करता रहता है, शराब जरूरत से ज्यादा पीने लगता है, घर में कलह का कोई न कोई सूत्र हमेशा मौजूद रहता है, प्रेमिका को पाने के लिये दिन रात एक कर देता है, ऐसे समय में प्रेम पत्र लेखन, शायरी आदि भी की जाती है। व्यापार के प्रति मोह कुछ कम रहता है, समय पर काम नहीं बनता, विभागीय तनाव भी बना रहता है, तबादले आदि की समस्या से मन खिन्न रहता है, प्रमोशन के मामले में भी निराशा का ही सामना करना पड़ता है, पढाई में भी कष्टों का सामना करना पड़ता है।
इस दौर में व्यक्ति को आर्थिक कष्टों का सामना करना पड़ता है, घर-परिवार में तनाव बढ़ जाता है, लड़ाई-झगड़े, पुलिस, कोर्ट, कचहरी, डॉक्टर आदि का चक्कर पड़ जाता है, भाई-भाई में नफरत हो जाती है, परिवार में दरारें पड़ जाती है, पति-पत्नी के बीच सम्बन्धों में दरार आ जाती है और घर छोड़ने की भी स्थिति बन जाती है, अगर कोई प्रेम सम्बन्ध हो, तो वह भी कष्टदायक होता है, शराब, जुआ आदि खेलने की आदत सी हो जाती है, संचित धन भी खत्म हो जाता है, और किसी कारणवश जेल जाने तक की नौबत आ जाती है, सामाजिक बदनामी होती है तथा समाज में भी ऐसा व्यक्ति चर्चा का विषय बन जाता है। धन का सदा अभाव रहता है, लेकिन ऐसे समय में कर्ज भी आसानी से मिल जाता है।
शनि के अंतिम दौर को भी दो भागों में बांटा गया है अधिक कष्टों को सामना करना पड़ता है, दौड़-धूप की स्थिति बनी रहती है, प्रशासनिक स्तर के अधिकारियों से सम्पर्क टूट जाता है, आय का मार्ग भी लगभग कष्टदायक बन जाता है, व्यापार में घाटा होता है तथा जमा पूंजी भी खो बैठता है, नौकरी हाथ से निकल जाती है, विद्यार्थी जीवन संकट में होता है तथा परीक्षा में असफलता मिलती है, स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ जाता है, वैवाहिक जीवन कष्टदायक होता है, स्वास्थ्य गिर जाता है, सर्वत्र बदनामी का सामना करना पड़ता है। व्यक्ति को किसी भी कार्य में सफलता नहीं मिलती, मन अस्थिर रहता है, विचारों और कार्यों के बीच कोई तादात्मय स्थापित नहीं हो पाता और सदैव असफल और चिन्तित सा रहते हैं। ऐसे व्यक्ति को अंत में अपने आप को दिवालिया घोषित करना पड़ता है।
आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण ऐसे व्यक्ति गलत रास्ते पर चलने के लिये मजबूर हो जाते हैं, घर-परिवार का सहयोग नहीं मिल पाता और हमेशा अपने आप में अकेलापन महसूस करते हैं, मित्र स्वजन सम्बन्ध तोड़ लेते हैं, ऐसे में आत्महत्या के विचार भी आते हैं, इसके सिवा दूसरा कोई मार्ग ही नहीं दिखता।
शनि अकारक होने पर जहां एक ओर इंसान के अन्दर आत्महत्या की भावना को प्रबल करता है, वही कारक होने पर यह व्यक्ति को झोपड़ी से महल में भी पहुंचा देता है। अंतिम चारण में शनि दो ही कार्य करता है – या तो झकझोर कर रख देना या बना देना। व्यक्ति के इस समय में एक्सीडेंट तथा मृत्यु की भी सम्भावनायें बनी रहती है या शरीर के किसी हिस्से को नुकसान पहुंच सकता है।
यदि ऐसे समय में बृहस्पति प्रबल और सहायक रहा तो व्यक्ति पूर्ण सुख, भोग, ऐश्वर्य प्राप्त करता है, धन की वर्षा सी होने लग जाती है, वाहन सुख, व्यापार वृद्धि, चुनाव में पूर्ण सफलता, सरकारी नौकरी लगना, नौकरी में प्रमोशन प्राप्त होता है, उसके जीवन में परिवर्तन आ जाता है। ऐसे व्यक्ति की उन्नति भी समाज में चर्चा का विषय होती है एवं सुखद यात्राओं का योग बनता है। शनि ग्रह की दशा आने पर प्रत्येक व्यक्ति पर इसका अशुभ प्रभाव पड़ता ही है, भले ही उस व्यक्ति की कुण्डली में शनि कारक ग्रह ही क्यों न हो। यह अशुभ प्रभाव जीवन की खुशियों में जहर घोल देता है और जीवन अस्त-व्यस्त सा हो जाता है।
इस अशुभ प्रभाव को दूर करने के अनेकों उपाय हमारे ऋषियों द्वारा बताये गये है, जिनके द्वारा शनि ग्रह के विनाशक प्रभाव को नष्ट किया जा सकता है, साथ ही साथ इस ग्रह को पूर्णतः अनुकूल एवं शुभ प्रभावयुक्त बनाया जा सकता है। ऐसा होने पर शनि ग्रह के कारण आने वाली विपरीत और दुखदायी स्थितियों से व्यक्ति का बचाव तो होता ही है, साथ ही शनि का शुभ प्रभाव उसे जीवन में अत्यधिक ऊंचाई पर पहुंचाने और श्रेष्ठता दिलाने में सक्षम होता है।
यह साधना शनि जयंती, ज्येष्ठ माह कृष्ण पक्ष अमावस्या 05 जून को रात्रि 09 बजे के पश्चात् प्रारम्भ करें। स्नान कर काले रंग के वस्त्र धारण करें। गुरू पीताम्बर ओढ़ कर पूर्व दिशा की ओर मुख कर बैठ जायें। पंचोपचार गुरु पूजन सम्पन्न कर 1 माला गुरु मंत्र जप करें, साधना में सफलता के लिये गुरुदेव से प्रार्थना करें और अपने सामने भूमि पर काजल से त्रिभुज बनायें और उस पर ताम्र पत्र रखें ताम्र पात्र पर काजल से ही अष्टदल कमल बनायें और उस पर ‘शनि यंत्र’ स्थापित करें। यंत्र पर काजल से रंगे हुये चावल चढ़ाते हुये ‘ऊँ शं ऊँ’ मंत्र का उच्चारण करते रहें, इसके पश्चात् निम्न करन्यास तथा हृदयादिन्यास सम्पन्न करें-
करन्यासः-
शनैश्चरायं अंगुष्ठाभ्यां नमः। मन्दगतये तर्जनीभ्यां
नमः। अक्षजाय मध्यमाभ्यां नमः कृष्णंगाय
अनामिकाभ्यां नमः। शुष्कोदराय कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
छायात्मजाय करतल कर पृष्ठाभ्यां नमः।
हृदयादिन्यासः-
शनैश्चराय हृदयाय नमः। मन्दगतये शिरसे स्वाहा।
अक्षजाय शिखायै वषट्। शुष्कदराय नेत्रत्रयाय वौषट्।
छायात्मजाय अस्त्रय फट्।।
इसके पश्चात् हाथ में जल लेकर संकल्प करें तथा ‘शनि वशीकरण माला’ से निम्न मंत्र की 5 माला जप करें।
मंत्र जप पूर्ण होने के बाद यंत्र पर तीन गहरे अथवा पीले रंग के फूल चढायें, फूल नहीं मिले तो (काजल को तिल के तेल में घोल कर) फूल को रंग लें। साधना के पश्चात् शनि देव की प्रार्थना इन दस नामों से करनी चाहिये!
कोणस्थः पिंगलो वभ्रुः कृष्णो रौद्रान्तको यमः
सौरिः शनिश्चरो मन्दः पिप्पलादेन संस्तुतः।
एतानि दश नामानि प्रातरूत्थाय यः पठेत्
शनिश्चर कृता पीड़ा न कदाचित भविष्यति।।
अब हाथ जोड़कर श्रद्धापूर्वक निम्न वन्दना करें।
नीलद्युतिं शूलधरं किरीटिनं, ग्रधस्थितं त्रसकरं
धनुर्द्धरम्। चतुर्भुजं सूर्यसुतं प्रशान्तं, वन्दे
सदाऽभीष्टकरं वरेण्यम्।।
साधना समाप्ति के बाद यंत्र तथा माला को उसी स्थान पर रहने दीजिये तथा अगले दिन सायं काल यंत्र के सम्मुख हाथ जोड़कर पुनः उपरोक्त श्लोक का उच्चारण करें तथा ‘ऊँ शं ऊँ’ मंत्र बोलते हुये यंत्र व माला को किसी काले वस्त्र में लपेट कर वस्त्र सहित जल में प्रवाहित कर दें।
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