साधक भी अपने जीवन को कृष्ण के समान निर्मित कर सकता है। यदि वह ये श्रेष्ठतम साधनायें सम्पन्न कर लें तो शौर्य, प्रेम, मित्रता, सम्पन्नता, सम्मोहन, वशीकरण, आनन्द, योग, कीर्ति, नीति, पराक्रम से युक्त हो जाता है।
आप कहीं भी किसी महात्मा के पास प्रवचन सुनने जायेंगे तो यही सुनने को मिलेगा, कि जगत माया स्वरूप, मिथ्या है, इस जगत को छोड़ कर संन्यास धारण कर लो, तभी पूर्ण शुद्धि, शान्ति प्राप्त हो सकेगी। जो कोई इनकी पूजा अर्चना करते हैं, उन्हें साक्षात् ‘ब्रह्म कहते हैं, उन साक्षात् भगवान कृष्ण ने तो कभी भी जीवन में कर्म की राह नहीं छोड़ी उनके जीवन का उदाहरण, हर घटना, प्रेरणादायक है, इसीलिये उन्हें योगेश्वर कृष्ण कहा गया है।
सबसे बड़ा योगी तो गृहस्थ होता है, जो इतने बन्धनों को संभालते हुये भी जीवन यात्रा करता है और फिर भी साधना, प्रभु का ध्यान रखता है। जिसने अपने जीवन में कृष्ण को समझ लिया, गीता का ज्ञान अपने जीवन में उतार लिया, तो समझ लीजिये कि वह योगी बन गया, गीता में कृष्ण कहते हैं-
तात्पर्य यह है कि जहां कर्म स्वरूप अर्जुन है, वहीं योगी स्वरूप कृष्ण हैं, वहीं विजय, श्रेष्ठता, श्री एवं नीति है। कृष्ण केवल भक्ति स्वरूप ही नहीं हैं, उनके तो जीवन, कर्म, उपदेश, जो गीता में समाहित हैं के साथ-साथ नीति-अनीति, आशा-आकांक्षा, मर्यादा-आचरण प्रत्येक पक्ष को पूर्ण रूप से समझ कर अपने भीतर उतारने का साधन है, कृष्ण की नीति, आदर्श एवं मर्यादा का चरम रूप न होकर व्यावहारिकता से परिपूर्ण होकर ही दुष्टों के साथ दुष्टता का व्यवहार तथा सज्जनों के साथ श्रेष्ठता का व्यवहार, मित्र और शत्रु की पहचान किस नीति से किस प्रकार किया जाये, यह सब आज भी व्यावहारिक रूप में हैं।
कृष्ण का जन्म कृष्ण पक्ष की अष्टमी को अर्धरात्रि में हुआ थी। जो भी अंधकारमय कंस रूपी स्थितियां हैं, उसके समापन के लिये यह श्रेष्ठतम दिवस है। इसीलिये इस दिवस को साधनात्मक दृष्टि से अत्यन्त श्रेष्ठ माना गया है। क्योंकि सामाजिक जीवन जीने के लिये जिन शक्तियों, गुणों की आवश्यकता है, उसके प्रदाता भगवान कृष्ण ही हैं। इस चैतन्य दिवस पर साधना सम्पन्न कर साधक अपनी मनोकामनायें सरलता से पूर्ण करने में समर्थ होते हैं, उच्चकोटि की तांत्रिक साधनायें, सम्मोहन, आकर्षण, विजय प्राप्ति, सफलता, राजयोग सुख, धन, सम्पदा, कार्य पूर्णता के लिये यह अन्यतम श्रेष्ठ दिवस है।
कृष्ण जन्माष्टमी पर गुरु पूजन कर ऐसी विशिष्ट साधनायें सम्पन्न की जाती हैं अथवा किसी भी माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन ये साधनायें सम्पन्न कर सकते हैं।
भगवती लक्ष्मी की आठ शक्तियां लक्ष्मी, सरस्वती, रति, प्रीति, कीर्ति, कान्ति, तुष्टि एवं पुष्टि को धारण कर ही कृष्ण योगेश्वरमय चेतना से युक्त हो सके थे। उनके योगेश्वर स्वरूप के मूल में यही अष्ट शक्तियां थी। जिनने उन्हें विश्व-विख्यात कर योगेश्वमय बनाया। इस साधना को सम्पन्न कर साधक अपने जीवन में इन्हीं आठ शक्तियों से ओत-प्रोत होता है। साथ ही उसके जीवन में किसी भी प्रकार का कोई अभाव नहीं रहता, भगवती सदैव उसके जीवन में अपने आठ स्वरूपों में विद्यमान रहती हैं। जिससे साधक का जीवन सभी भौतिक सुख-सम्पदा, वाहन, भवन, सुलक्षणा पत्नी, पुत्र-सुख, आर्थिक सम्पन्नता सदैव बना रहता है।
इस साधना हेतु साधक जन्माष्टमी अथवा किसी भी अमावस्या रात्रि के प्रथम प्रहर बीत जाने के पश्चात् साधना प्रारम्भ कर अर्द्ध रात्रि में मंत्र जप पूर्ण करें, इस साधना हेतु अष्ट लक्ष्मी यंत्र, योगेश्वर जीवट तथा 8 शक्ति विग्रह आवश्यक है।
अपने सामने सर्वप्रथम एक बाजोट पर पुष्प बिछा दें और उन पुष्पों के मध्य अष्ट लक्ष्मी यंत्र व योगेश्वर जीवट स्थापित करें, तथा यंत्र व जीवट का पूजन अष्ट स्वरूप में करें। अर्थात् धूप, दीप, चन्दन, केसर, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, वस्त्र, जनेऊ अर्पित करें।
अपने सामने कृष्ण का सुन्दर चित्र फ्रेम में मढ़कर स्थापित करें, चित्र का तिलक कर पंचामृत स्नान करायें जिसमें घी, दूध, दही, शक्कर तथा शहद हो, इसके अतिरिक्त मिश्री मिष्ठान अर्पित करें।। और दोनों हाथ जोड़ कर कृष्ण का ध्यान करें, इसके पश्चात् यंत्र और जीवट के चारों ओर अष्ट शक्ति विग्रह स्थापित करें, ये आठ शक्तियां है, प्रत्येक शक्ति विग्रह को स्थापित करते हुये निम्न मंत्र का उच्चारण करें।
ऊँ लक्ष्म्यै नमः पूर्वदले। ऊँ सरस्वत्यै नमः आग्नेय दले।।
ऊँ रत्यै नमः दक्षिण दले। ऊँ प्रीत्यै नमः नैऋत्य दले।।
ऊँ कीर्त्यै नमः पश्चिम दले। ऊँ कान्त्यै नमः वायव्ये दले।।
ऊँ तुष्टयै नमः उत्तर दले। ऊँ पुष्टयै नमः ईशान दले ।।
शक्ति पूजन के पश्चात् मंत्र का जप प्रारम्भ किया जाता है, इस हेतु लाल गुलाब की पंखुडि़या दायें हाथ में लेकर बायें हाथ से दायें हाथ को स्पर्श कर प्रत्येक मंत्र उच्चारण के साथ यंत्र पर श्रद्धा पूर्वक अर्पित करें।
इस प्रकार 108 बार यह मंत्र उच्चारण इसी विधि से सम्पन्न करना है, यह सम्पूर्ण साधना पूर्ण हो जाने के पश्चात् आरती सम्पन्न कर प्रसाद ग्रहण करें।
कृष्ण का पूरा जीवन शत्रुओं को कभी युद्ध से, कभी नीति से परास्त कर धर्म की स्थापना करने में रहा है। उनका सम्पूर्ण जीवन अपने ही निकट सम्बन्धियों द्वारा रचित षड़यंत्रें से घिरा है, और उन्होंने प्रत्येक षड़यंत्र को विफल कर विजय प्राप्त करने में सफल रहे। साथ ही पांडवों को भी अपनी कौशल नीति से महाभारत जैसे विशाल युद्ध में विजय दिलायी।
सामान्य व्यक्ति भी ऐसे अनेक ज्ञात-अज्ञात शत्रुओं के षड़यंत्रों का शिकार हो जाता है और उसके जीवन में अचानक ऐसी अनेक समस्यायें आ जाती हैं, जिससे व्यक्ति का गृहस्थ जीवन ह्रास की ओर बढ़ता ही जाता है, और वह समझ ही नहीं पाता कि आकस्मिक रूप से इतनी प्रतिकूल परिस्थितियां उसके जीवन कैसे आ गयी। जिनके निदान के लिये वो अपनी ओर से पूरा प्रयास करता है, परन्तु उचित क्रिया ना सम्पन्न होने के कारण वह सफल नहीं हो पाता।
इस साधना से साधक जीवन के किसी भी ज्ञात-अज्ञात शत्रु बाधा, तंत्र बाधा, षड़यंत्र पर विजय प्राप्त कर सकता है। साथ ही प्रगति का मार्ग प्रशस्त होकर, वह समाज में प्रतिष्ठित व सम्मानित होता है। जिन बाधाओं के कारण साधक के कौशल व क्षमता पर लोगों का भरोसा उठने लगता है, वहां शीघ्र ही साधक पुनः अपना वर्चस्व स्थापित कर लेता है।
जन्माष्टमी की रात्रि 07:36 से 10 बजे के मध्य महेन्द्र, अमृत काल कृतिका नक्षत्र के श्रेष्ठतम अवसर पर या किसी भी अष्टमी को यह साधना सम्पन्न कर सकते हैं। दैनिक रूप से शुद्ध होकर साधक दक्षिण दिशा की मुंह कर पीले आसन पर बैठ जायें। एक बड़ा दीपक जला लें, सर्वप्रथम मंत्र सिद्ध श्रीकृष्ण सुदर्शन यंत्र एक चावल की ढेरी पर स्थापित कर पूजन सम्पन्न करें, पश्चात् सामने तथा चारों ओर कृष्ण के अस्त्र शस्त्र प्रतीक आठ सुपारी स्थापित करें, ये आठ सुपारी आठ हाथों में स्थित शंख, चक्र, गदा, पदम्, पाश, अंकुश, धनुष तथा शर की प्रतीक हैं, तथा प्रत्येक सुपारी पर कुंकुम, केसर, चावल चढ़ाते हुये निम्न मंत्र का उच्चारण करें-
ऊँ शंखाय नमः ऊँ चक्राय नमः
ऊँ गदायै नमः ऊँ पदमाय नमः
ऊँ पाशाय नमः ऊँ अंकुशाय नमः
ऊँ धनुषे नमः ऊँ शराय नमः
अब सभी ज्ञात-अज्ञात रचित षड़यंत्रों, बाधाओं, यदि किसी विशेष शत्रु से पीडि़त हों तो शत्रु या बाधा का नाम उच्चारित कर संकल्प लें, फिर मंत्र का जप सम्पन्न करें।
इस मंत्र की पांच माला शत्रु मर्दन वैजन्ती माला से जप करें। इस साधना से सभी प्रकार की बाधा, षड़यंत्र, शत्रु निस्तेज हो जाते हैं।
कृष्ण तो सर्व सम्मोहन, वशीकरण के साक्षात् स्वरूप हैं, इनकी ही साधना वशीकरण साधना में सर्वोत्तम कही गयी है, जिससे सम्पूर्ण जनमानस, कार्यक्षेत्र अथवा किसी भी विशेष कार्य को सफलता पूर्वक अपने अधीन किया जा सकता है। साथ ही व्यक्ति श्रेष्ठ सफलता प्राप्त कर सभी सुखों से युक्त होता है।
भाद्रपद कृष्ण अष्टमी या किसी भी कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन सायंकाल यह साधना सम्पन्न की जाती है, सर्वप्रथम अपने सामने एक तांबे की प्लेट में क्लीं मुद्रिका स्थापित करें, साधक अथवा साधिका सुन्दर वस्त्र धारण करें, सुगन्धित द्रव्यों व पुष्पों का प्रयोग करें, वातावरण अत्यन्त प्रसन्नतामय एवं सुगन्धित होना चाहिये, पूर्व दिशा की ओर मुंह कर केसर से पूजन कर एक पुष्प माला यंत्र को चढ़ायें तथा दूसरी पुष्प माला स्वयं पहनें।
अब सर्व प्रथम आठ महीषियों का पूजन आठ चावल की ढ़ेरियां बना कर प्रत्येक पर एक-एक सुपारी स्थापित कर पूजन सम्पन्न करें, कृष्ण की ये आठ महिषीयां हैं- रूक्मिणी, सत्यभामा, नग्नजित, कालिन्दी, मित्रविन्दा, लक्ष्मणा, जामवन्ती एवं सुशीला।
अब 16 कला युक्त कृष्ण यंत्र व क्लीं मुद्रिका का पूजन सम्पन्न करें, शास्त्रों के अनुसार इस पूजन में सिन्दूर का प्रयोग विशेष रूप से होता है, इसके अतिरिक्त इसमें पुष्प, मौली, सुपारी, चन्दन, केसर यंत्र व मुद्रिका पर अर्पित करें। यह पूजन पूर्ण होने के पश्चात् साधक सर्व सम्मोहन शक्ति माला से 11 माला जप सम्पन्न करें।
पश्चात् मुद्रिका को दायें हाथ में धारण कर लें व अन्य सामग्री को जल में विसर्जित करे।
गौतमीय तंत्र में लिखा है कि पूजन में चढ़ाई गई सामग्री का चूर्ण बना कर यदि थोड़ी सी मात्रा में जिसे दे दिया जाय वह साधक के पूर्ण वश में हो जाता है।
यह साधना 25 अगस्त की रात्रि को पति-पत्नी साथ करें तो अत्यधिक श्रेष्ठ होगा अथवा कोई एक सम्पन्न कर सकता है। अपने सामने दीपक तथा अगरबत्ती जलायें, थाली में मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त गोविन्दं पुत्रदा यंत्र स्थापित कर उसका पूर्ण विधि से पूजन करें तथा घी, शहद, शक्कर, तिल में मिला कर चढ़ायें, पति-पत्नी दोनों पूर्ण श्रद्धा भक्ति से अपनी कामना पूर्ति की प्रार्थना करें, अपने हाथ में जल ले कर सर्वप्रथम निम्न संकल्प लें।
तत्पश्चात् कृष्ण का ध्यान कर कृष्णमय पुत्र व श्रेष्ठ संतान प्राप्ति की प्रार्थना करें। संतान प्राप्ति माला से पांच माला मंत्र जप सम्पन्न करें।
साधना समाप्ति के पश्चात् कृष्ण आरती सम्पन्न कर इस यंत्र को दूसरे दिन प्रातः स्नान कर अपने शयन कक्ष में स्थापित कर दें व माला को विसर्जित कर दें तो साधक को निश्चय ही सफलता प्राप्त होती है।
कहा जाता है कि जिसके पास वाक् सिद्धि है, वह कभी भूखा नहीं मरता, अर्थात् यह है जिसे यह ज्ञात है, कि उसे कहां, क्या बोलना है, किस प्रकार लोंगो को प्रभावित करना है। ऑफिस, व्यापार, मार्केटिंग, शिक्षा, नेतृत्व करने के लिये वाक् चातुर्यता अत्यन्त आवश्यक है, तभी व्यक्ति सफलता के उच्चतम स्थान पर पहुंचता है। इस साधना से युवकों और बालको में ज्ञान वृद्धि, बुद्धि वृद्धि, मेधा शक्ति वृद्धि, वाक् चार्तुयता और दूर दृष्टि प्राप्त होती है। ऐसे साधक पूर्व में ही कार्य का आकलन, समस्याओं का अनुमान लगा लेते हैं, जिससे वे हर तरह से सफल होते हैं।
यह साधना प्रातः काल ब्रह्म मुहुर्त में ही सम्पन्न की जाती है। इस साधना को किसी अपने पुत्र-पुत्री अथवा किसी व्यक्ति के लिये संकल्प लेकर सम्पन्न कर सकते हैं। पूर्व दिशा की ओर मुंह कर अपने सामने षोड़श शक्ति सिद्धि सरस्वती यंत्र स्थापित कर दें। अक्षत, कुंकुम, गुलाल इत्यादि से पूजन करें। कृष्ण के विग्रह अथवा चित्र पर त्राटक करते हुये 5 माला मेधा शक्ति शारदा माला से जप करें।
इस प्रकार यह 3 दिवसीय साधना सम्पन्न होती है। साधना पश्चात् सभी सामग्री को जल में विसर्जित कर दें।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,