सद्गुरुदेव निखिल की आज्ञा व आशीर्वाद् से प्रारम्भ हुआ पत्रिका रूपी पौधा आज विशाल वृक्ष रूप में विकसित हो रहा है। इस विशालता की अनुभूति का ही एक स्वरूप प्राचीन मंत्र-यंत्र विज्ञान पत्रिका का यह नवीन संस्करण जो आप सभी के समक्ष प्रस्तुत करने में मुझे हार्दिक प्रसन्नता हो रही है।
दादा सदगुरुदेव ने एक प्रवचन में कहा है कि जब कोई निश्चित क्रम टूटता है तो उसे व्यतिक्रम कहते हैं और ये व्यतिक्रम एक बिखराव उत्पन्न करता है, यह बिखराव आगे चलकर विशाल निर्माण का कारण बनता है। यदि किसी जलाशय में एक छोटा पत्थर फेंकेंगे तो लहरे चक्र रूप में बनेगी, वह लहर छोटे स्वरूप से प्रारम्भ होकर विशाल रूप धारण करती है। लेकिन जब तक स्थिर जल में पत्थर नहीं फेकेंगे तब तक उसमें लहरे नहीं बनेंगी। इसी प्रकार स्थिर जीवन में भी कोई परिवर्तन नहीं होता, जब तक प्रयत्न रूपी पत्थऱ उसमें नहीं डाला जायेगा। लहरे प्रवाहित जल में नहीं बनती केवल स्थिर जल में बनती हैं, क्योंकि स्थिर जल भी प्रवाहित होना चाहता है। उसी प्रकार तुम्हें अपने जीवन में भी लहरे उत्पन्न करनी है। इसके लिये तुम्हे ना कोई दिन निश्चित करना है, ना मुहूर्त, ना कोई निश्चित अवधि एकमात्र नवीन निर्माण का चिंतन ही तुम्हें लहरे बनने के लिये प्रेरित करेगा। कल के लिये कुछ ना छोड़ो आज और अभी से प्रारम्भ करो, समस्यायें और कठिनाईयां आयेंगी, लेकिन प्रयत्न रूपी पत्थर और संघर्ष से तुम विशाल स्वरूप बन सकोगे।
सद्गुरुदेव के इन्हीं अमृत वचनों को आत्मसात करते हुये हम प्राचीन मंत्र-यंत्र विज्ञान पत्रिका को नवीन स्वरूप देने का प्रयास कर रहा हैं, सद्गुरुदेव के ज्ञान, चिंतन का विस्तार करने के लिये प्रयत्नशील हूं, जिसमें आप सभी की भागीदारी और सहयोग की आवश्यकता है और मैं ऐसी आकांक्षा भी रखता हूं कि जो निखिलमय शिष्य हैं वे इस विशालतम क्रिया में अवश्य सहयोगी बनेंगे।
सद्गुरुदेव का ज्ञान, चेतना, शक्ति, साधना, प्रेम, आशीर्वाद सदैव से हमारे लिये ही है। वे सदैव अपना सबकुछ प्रदान करने के लिये तत्पर रहें, उनकी तत्परता कुछ प्राप्त करने के लिये नहीं प्रदान करने की थी। लेकिन हम उन महान चेतना को सही स्वरूप में आत्मसात नही कर पाये, उस दिव्यतम ज्ञान को धारण नही किया, उनकी प्राणवान चेतना से परिचित नही हो सके। न्यूनता हम लोगो में ही है, लेकिन अभी भी समय है, शरीर ऊर्जावान है, हम सद्गुरुदेव के ज्ञान, चेतना से सम्पूर्ण भारतवर्ष व विश्व को परिचित करा सकते हैं। हम उनके चिंतन को साकार रूप दे सकते हैं। यह ज्ञात होने पर मुझे अत्यन्त हर्ष हुआ कि सद्गुरुदेव के शिष्य संसार के प्रत्येक छोटे-बड़े शहर-गांव में हैं, लेकिन कुछ शिष्य अपने गृहस्थ जीवन के संघर्षों अथवा किसी कारणवश गुरुदेव की सानिध्यता और सम्पर्क से दूर हैं, हमारा यही लक्ष्य है कि इस विशाल परिवार को एकजुट कर। सद्गुरु निखिल चेतना पुंज से आपूरित कैलाश सिद्धाश्रम साधक परिवार को विश्व का सिद्धाश्रम संस्पर्शित अद्वितीय आध्यात्मिक ज्ञान युक्त केन्द्र के रूप में स्थापित करना, इस क्रिया को पूर्ण रूप देने के लिये ही मेरे दादा गुरुदेव ने सिद्धाश्रम साधक परिवार की नींव रखी थी, जो अब कैलाश सिद्धाश्रम साधक परिवार के रूप में पहचाना जाता है, इस परिवार की वृद्धि के लिये दादा गुरुदेव के प्रिय शिष्य पुत्र, मेरे पिता जी अपनी पूरी क्षमता से दिन-रात क्रियाशील हैं, उन्हें ना अपने शरीर की चिन्ता है, ना ही अपने परिवार को समय दिया, सिर्फ एक ही लक्ष्य के लिये कार्य करते रहें। लेकिन क्या सम्पूर्ण कार्य का भार उनके लिये ही है। क्या हमारी कोई जिम्मेदारी नही बनती, कि हम भी सद्गुरुदेव निखिल के आदर्शों को स्थापित करें, क्या आपका सद्गुरु निखिल के प्रति, अपने गुरुदेव के प्रति कोई कर्तव्य नहीं बनता, क्या हम अपने दिन के दो घंटे उस ज्ञान चेतना शक्ति के विस्तार में नहीं दे सकते या फिर हम अपने कर्तव्य से विमुख हो गये हैं, हममें सेवा की इच्छा शक्ति ही नहीं रही। मुझे कुछ वर्षों से निखिल शिष्यों में सेवा, समर्पण के प्रति उदासीनता प्रतीत हुई। मन में तो अनेक इच्छायें जागृत हैं, लेकिन जीवन में व्याप्त संघर्षों के कारण आप अपने कर्तव्य से विमुख नहीं हो सकते। संघर्ष तो प्रत्येक के जीवन में बना रहता है, सद्गुरुदेव के सम्पूर्ण जीवन में संघर्ष ही था, उन्होंने संघर्ष कर ही इस विशाल परिवार को स्थापित किया।
हम लक्ष्य प्रतिदिन बनाते हैं, संकल्प तो प्रत्येक श्रेष्ठ दिवस पर लेते हैं। परन्तु क्रिया रूप नही देते, संकल्प को पूर्ण करने की इच्छा शक्ति अपेक्षाकृत कम पड़ जाती है। आप सभी स्वयं को, अपनी शक्ति को पहचानो, अपने चिंतन और कार्य शैली में बदलाव लाओ, आप सभी जीवन के सामान्य कार्यों में विस्मृत हो जाते हैं और छोटा लक्ष्य बनाते हैं, कि मेरा परिवार, मेरा कार्य, व्यापार, विवाह, मेरे बच्चे, मेरी पत्नी, पुत्री की शादी कर लूं, मां-बाप को तीर्थ यात्रा करा दूं, ऐसा इसलिये आप करते हो क्योंकि यह आपके जीवन के कर्तव्य हैं, आपकी जिम्मेदारी है, पुत्री को आपने जन्म दिया तो उसकी शादी करानी होगी, पुत्र के लिये पुत्रवधू लाना ही होगा, क्योंकि यह आपका अपने माता-पिता, पति-पत्नी, पुत्र-पुत्री के प्रति कर्तव्य है, मैं आपसे पूछना चाहूंगा, कि जिन गुरुदेव ने आपको अपने प्राणों से सींचा है, अपनी ज्ञान, चेतना, शक्ति, ऊर्जा दी है, जिन्होंने आपको दीक्षा द्वारा जीवन की दक्षता प्रदान की, जिन्होंने आपको संस्कार दिये, जिन्होंने आपको जीवन में भौतिक और आध्यात्मिक पूर्णता का मार्ग दिया, उनके प्रति आपका क्या कर्तव्य है, आपने अब तक उनके लिये क्या किया? यह आप चिंतन करिये, कि शिष्यता की कौन-सी कसौटी पर आप खड़े हैं। मैं यह बिल्कुल नहीं कह रहा हूं, कि आप अपने परिवार के प्रति कर्तव्य का पालन ना करें या घर-परिवार छोड़ दें। परिवारिक जीवन के कर्तव्य प्राथमिक रूप से सभी के जीवन में होते हैं। मैं तो सिर्फ यह जानना चाहता हूं कि आपका क्या कोई कर्तव्य अपने सद्गुरुदेव के प्रति बनता है और यदि बनता है तो आप कब क्रियाशील होगें। यदि आप ऐसा सोचते हैं कि अमुक कार्य पूर्ण होने पर गुरु सेवा करूंगा, गुरुमय बनूंगा, निखिल ज्ञान का प्रचार-प्रसार करूंगा तो ऐसा संभव नहीं हो पायेगा क्योंकि जीवन प्रतिदिन नवीन कार्यों, इच्छाओं के साथ प्रारम्भ होता है और यह जीवन के अन्तिम क्षण तक चलेगा। आपको अपने गुरु के प्रति कर्तव्य के पालन के लिये शीघ्र ही निर्णय लेना होगा। तभी आप निखिल शिष्य रूप में पूर्ण हों सकेंगे।
आपने अपनी क्षमता को पूर्ण रूप से पहचाना नही हैं, आप में कौन-सी शक्ति का प्रादुर्भाव गुरुदेव ने किया है, इस क्रिया से आप अपरिचित हैं, आप सभी अपने कर्तव्य के प्रति जागरुक नहीं हो पा रहें हैं। आपको निद्रा से उठाने के लिये, आपमें जागृति लाने के लिये सद्गुरु निखिल ज्ञान ज्योति को पुनः प्रज्ज्वलित कर रहा हूं, एक प्रयत्न कर रहा हूं, जिससे निखिल शिष्यों में चेतना की ज्वाला जागृत हो सके और सद्गुरुदेव के ज्ञान के प्रकाश से सम्पूर्ण विश्व प्रकाशवान हो सके, पथ हमारा निश्चित है, सिर्फ आपके चिंतन का विलम्ब है साथ ही इस सद्गुरु निखिल ज्ञान ज्योति में आहूति स्वरूप आपके कर्मरूपी घी की आवश्यकता है।
दादा सद्गुरूदेव ने अपने प्रवचन में कहा है- याद रखो जीवन में अवसर बार-बार नहीं आते हैं, जब मैं पुकारता हूं, उस पुकार के पीछे भी कई कारण होते हैं और जब तुम मुझे पुकारते हो तो यदि मैं आता हूं, तो उसके पीछे भी कई कारण होते हैं, यदि तुम्हें अपने अनुभूतियों को, अपनी चेतनाओं को तीव्र बनाना है, तो उसके लिये अपने आपको नये स्वरूप में देखना प्रारम्भ कर दो। इसी का अनुसरण करते हुये मैंने प्राचीन मंत्र-यंत्र-विज्ञान पत्रिका को एक नये रूप में देखा है, कैलाश सिद्धाश्रम साधक परिवार को विश्व के अद्वितीय आध्यात्मिक संगठन के रूप में स्थापित करने का संकल्प जो गुरुदेव ने कुछ वर्षों पहले लिया था, उसकी पूर्णता की जिम्मेदारी मुझे सौंपी गयी है। जो उनकी ही चेतना, शक्ति से पूर्ण होनी है, यह उनका स्नेह, प्रेम और करूणा का ही स्वरूप है कि उन्होंने ऐसे श्रेष्ठतम कार्य के लिये हम सभी शिष्यों का चयन किया है। हमें अपने निमित्त रूप में चुना है। गुरू पूर्णिमा ही इस क्रिया को प्रारम्भ करने का अन्यतम श्रेष्ठतम अवसर है, क्योंकि यही वह पर्व है जब हम अपनी श्रद्धा, निष्ठा, समर्पण, प्रेम को अपने सद्गुरुदेव के चरणों में समर्पित कर सकते हैं। गुरुदेव में ऊर्जा, चेतना का अक्षय भंडार है, उसे किसी भी ईधन की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि गुरु की ऊर्जा दिव्यतम है और वह दिव्यता जो मंद पड़ गयी है, जो बुझ रही है, उसे जागृत करना ही है।
एक प्रवाह प्रारम्भ कर दिया गया है और इस प्रवाह से हम सभी के भीतर हलचल अवश्य होगी। इसी हलचल में निरन्तरता बनाते हुये, प्रवाह को तीव्रता प्रदान करनी है और जब इसमें बहना प्रारम्भ कर दोगे तो गहरे पानी की फिक्र ना करना, गुरुदेव पार तो उतारेंगे ही, नवीन बनायेंगे, पूर्ण बनायेंगे, इस क्रिया का शुभारम्भ हो चुका है।
आपका अपना
विनीत श्रीमाली
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,