समस्त जगत जिस शक्ति से चलित है, उसी शक्ति के दस स्वरूप हैं, ये दस स्वरूप हैं, ये दस महाविद्यायें, जिनके नौवें क्रम में भगवती मातंगी का नाम आता है। भगवान शिव के मतंग रूप में उनकी अर्द्धांगिनी होने के कारण ही उनकी संज्ञा मातंगी रूप में विख्यात हुई।
कामदेव को शिव ने अपने तीसरे नेत्र से भले ही भस्म कर दिया हो लेकिन कामदेव रूप, रस, दृश्य, भोग, इच्छा के रूप में आज भी कलियुग में पूर्णरूप से विद्यमान हैं, क्योंकि जीवन के चर्तुवर्ग में धर्म और अर्थ के बाद काम को स्थान दिया गया है, इसके बिना सृष्टि चल ही नहीं सकती है।
काम की अधिष्ठात्री देवी हैं मातंगी रूप, रस, यौवन, विलास, ऐश्वर्य, गृहस्थ सुख एवं भोग को प्रदान करने वाली दस महाविद्याओं में श्रेष्ठ मातंगी साधना जीवन के भौतिक पक्ष को पूर्ण कर देती है। इस साधना को सम्पन्न करना एक तीर से कई निशाने लगाने जैसा है।
जीवन में भगवती मातंगी की साधना प्राप्त होना ही सौभाग्य का प्रतीक माना गया है। विश्वामित्र ने तो यहां तक कहा है- बाकी नौ महाविद्याओं का भी समावेश मातंगी साधना में स्वतः ही हो गया है। चाहे हम बाकी नौ साधनायें न भी करें और केवल मातंगी साधना को ही सम्पन्न कर लें तो भी अपने आप में पूर्णता प्राप्त हो सकती है।
इसीलिये तो शास्त्रों में मातंगी साधना की प्रशंसा में कहा गया है- मातंगी मेवत्वं पूर्ण, मातंगी पूर्णत्व उच्चते अर्थात् मातंगी एकमात्र श्रेष्ठतम स्वरूप में पूर्णता दे सकती है।
मातंगी शब्द जीवन के प्रत्येक पक्ष को उजागर करने की क्रिया का नाम है, जिससे जीवन के दोनों ही पक्षों को पूर्णता मिलती है, परन्तु मातंगी साधना साधकों के मध्य विशेष रूप से जीवन के भौतिक पक्ष को सुधारने के लिये ही की जाती रही है।
जहां भौतिक पक्ष हैं- स्वास्थ्य, आयु, धन, कुटुंब सुख, पत्नी, पुत्र, पुत्रियां, गृहस्थ सुख पूर्णायु, भवन सुख, अकाल मृत्यु निवारण, शत्रु निवारण, भाग्योदय, राज्य सुख, और अनेक प्रकार की इच्छाओं की पूर्ति। वैसे ही आध्यात्मिक पक्ष भी हैं- कुण्डलिनी जागरण, ध्यान, धारणा, समाधि, अपने इष्ट के दर्शन, आने वाले भविष्य को देख सकने की क्षमता, किसी भी व्यक्ति के भूतकाल को परखने की पहचान युक्त योगमय स्थितियों की प्राप्ति होती है।
ये सभी क्रियायें, ये सभी स्थितियां केवल मातंगी साधना की सिद्धि से ही प्राप्त हो सकती हैं। यदि हम मातंगी साधना को भली प्रकार से सम्पन्न कर लें, तो निश्चय ही ये सारी स्थितियां स्वतः ही प्राप्त हो जाती हैं।
भगवती मातंगी की मंत्र साधना से पूर्ण गृहस्थ सुख की प्राप्ति होती है। यदि पति- पत्नी के मध्य सम्बन्धों में मधुरता नहीं रह गई हो, तो इस साधना के माध्यम से सम्बन्ध मधुर हो जाते हैं। साधक को कुटुम्ब सुख, पुत्र, पुत्रियां, पत्नी, स्वास्थ्य, पूर्णायु आदि सभी की प्राप्ति होती है, जिससे उसका गृहस्थ जीवन पूर्ण माना जा सकता है।
यह साधना वस्तुतः रस एवं सौन्दर्य की साधना है, इसको सम्पन्न करने से व्यक्ति के अन्दर गजब का सम्मोहन एवं सौन्दर्य व्याप्त हो जाता है, जिसके प्रभाव से लोग उससे आकर्षित और सम्मोहित होते हैं।
मातंगी साधना से साधक के जीवन में ऐश्वर्य की पूर्ण प्रधानता हो जाती है। स्वास्थ्य, आयु, धन, भवन, वाहन, राज्य सुख, यात्रायें और विविध इच्छाओं की पूर्ति मातंगी अपने साधको को प्रदान कर देती हैं।
मातंगी को भोग एवं विलास की देवी भी कहा गया है, अतः इस साधना से व्यक्ति के अन्दर यौवन पुनः अंगड़ाई लेने लगता है और वृद्धावस्था दूर होने लगती है। यह कई साधकों को प्रत्यक्ष अनुभव रहा है, कि इस साधना को सम्पन्न करने के पश्चात् चेहरे पर एक तेज आ गया है और सफेद पड़ गये बाल पुनः काले हो गये हैं।
पुरूषों में जहां मातंगी साधना पूर्ण पौरूषता प्रदान कर व्यक्ति को निर्भय और यौवनवान बना देती है, तो वहीं स्त्रियों को रूप, लावण्य, सौन्दर्य एवं कोमलता से परिपूर्ण कर देती है।
प्रायः देखा गया है, कि धन-धान्य से व्यक्ति परिपूर्ण तो होता है, परन्तु उसके जीवन में इतना अधिक तनाव व्याप्त हो जाता है, कि सब कुछ होते हुये भी उसके पास कुछ नहीं होता। इस साधना के बाद जीवन में उमंग और उल्लास का वातावरण सदैव बना रहता है।
शीघ्र विवाह हेतु भी मातंगी की साधना को करते हुये प्रायः साधकों को देखा गया है। पुत्र अथवा पुत्री के विवाह में यदि बाधा आ रही हो, तो वह शीघ्र ही समाप्त हो जाती है तथा योग्य वर, वधु प्राप्त होता है।
भगवती मातंगी मनोकामना पूर्ति अधिष्ठात्री देवी हैं, अतः साधक कितना भी दुरुह मनोकामना हेतु इनकी साधना सम्पन्न करे, वह अवश्य ही पूर्ण होती है।
इस साधना को मनोकामना (उत्त्पन्ना) सिद्धि दिवस 25 नवम्बर अथवा किसी भी शुक्रवार को सम्पन्न करें। प्रातः काल उठकर स्नान करने के पश्चात् दैनिक साधना विधि पुस्तक से गुरु पूजन सम्पन्न करें तथा इस साधना में सफलता के लिये प्रार्थना करें। तत्पश्चात् दखिणाभिमुख होकर बैठ जायें। सर्वप्रथम मातंगी यंत्र को हाथ में लेकर जल से स्नान कराये, तत्पश्चात् उसे पोंछ कर किसी ताम्र पात्र में स्थापित करें। यंत्र का कुंकुम अक्षत से पूजन करें तथा धूप-दीपक लगा दें। इसके पश्चात् दोनों हाथ जोड़कर भगवती मातंगी का ध्यान करें-
श्याम रंग से सुशोभित भगवती मातंगी, जिनका मस्तक तेज से युक्त है, तीन नेत्रों वाली, कोमल हृदय वाली देवी जो रत्न के सिंहासन पर विराजमान है। अपने भक्तों को अभीष्ट फल प्रदान करने वाली है, देवगण भी जिनके दोनों चरणों की पूजा करते हैं, नील कमल के समान, कान्ति से पूरित राक्षसों के लिये राक्षस रूपी, अरण्य के लिये दावाग्नि के समान है, जिनके चारों हाथों में पाश, खड्ग, अंकुश, कमल है, जिनसे वे शत्रुओं का नाश कर साधक को अभीष्ट फल देती हैं, ऐसी आनन्ददात्री भगवती मातंगी को मैं नमस्कार करता हूं।
इस प्रकार मातंगी का ध्यान सम्पन्न करने के पश्चात् मातंगी का विनियोग करें।
विनियोग-
हाथ में थोड़ा सा जल लें और यह मंत्र उच्चारण करके विनियोग करें –
ऊँ ह्रीं मातंग्यै नमः।
ध्यान एवं विनियोग सम्पन्न करने के पश्चात् साधक मातंगी यंत्र का विधिवत् पूजन सम्पन्न करें।
आवाहन-
ऊँ मातंग्यै नमः ध्यानं समर्पयामि नमः।
आसन-
आसन के लिये पुष्प रखें –
श्री मातंग्यै नमः पुष्पासनं समर्पयामि नमः।
पाद्य-
दो आचमनी जल चरण धोने के लिये समर्पित करें –
श्री मातंग्यै नमः पादयोः पाद्यं समर्पयामि नमः।
अर्घ्य
अर्घ्य पात्र में जल, अक्षत और कुंकुम अर्पित करें –
श्री मातंग्यै नमः अर्घ्यं समर्पयामि नमः।
मधुपर्क
दही, घी एवं शहद मिला कर अर्पित करें-
श्री मातंग्यै मधुपर्कं समर्पयामि नमः।
आचमन
तीन आचमनी जल चढ़ावें-
श्री मातंग्यै नमः इदमाचनीयं समर्पयामि नमः।
शुद्ध जल स्नान
मंत्र का उच्चारण करते हुये तीन आचमनी जल चढ़ावें –
श्री मातंग्यै नमः सांग स्नानं समर्पयामि नमः।
इसके बाद मनोकामना पूर्ति माला से निम्न मंत्र की 11 माला मंत्र जप 16 दिन तक नित्य करें।
साधना समाप्ति के बाद साधक यंत्र व माला को नदी अथवा तालाब में विसर्जित कर दें। इस साधना से निश्चय ही साधक को भगवती मातंगी की कृपा प्राप्त होती है और उसके सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
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