नाभि एक ऐसा केन्द्रीय स्थान है, जहाँ से हजारों नाडि़यां चतुर्दिक निकलती हैं और हजारों ही नाडि़यां यहां आकर समाहित होती हैं, जिससे नाडि़यों का एक चक्र-सा बन जाता है जो कि रश्मियां निकलते हुये सूर्य के समान होता है। इसका स्वरूप अग्निवत् होता है। गर्भस्थ बालक को प्राण-ऊष्मा यहीं से प्राप्त होती है। यहाँ पर ध्यान केन्द्रित करने से एक दिव्य आभा दिखाई देती है, जिससे शरीर का अन्तरंग पूरी तरह से ज्योर्तिमय हो जाता है। इसके अभ्यास से ही अन्श्चेतना के उद्बोधन में पूरी-पूरी सहायता मिलती है।
यह अग्नि तत्व प्रधान चक्र है। मणिपुर चक्र शरीर का केन्द्र बिन्दु है। यह नीले रंग का दस दलों वाला कमल चक्र है, इस चक्र का मूल बीज मंत्र है ‘रं’। इस में निहित शक्तियों द्वारा दस उपलब्धियाँ प्राप्त होती है। इन उपलब्धियों को प्राप्त करने के लिये क्रमशः निम्न बीज मंत्रें का जप करना होता है-
‘डं’, ‘ढं’, ‘णं’, ‘तं’, ‘थं’, ‘दं’, ‘धं’, ‘नं’, ‘पं’, ‘फं’।
इस चक्र के जागरण पर साधक के पेट के संबन्धित रोगों का नाश हो जाता है, पूर्ण शारीरिक स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है। घंटों एक ही आसन पर बैठने की क्षमता प्राप्त होती है। श्वास पर नियंत्रण प्राप्त होता है, बिना भोजन, वायु के कई दिनों तक रहा जा सकता है, अर्थात् पूर्ण शारीरिक नियंत्रण प्राप्त हो जाता है। आकाश मार्ग से आने-जाने की क्षमता मिलती है। पशु-पक्षी तथा पेड़-पौधों से वार्तालाप करने का ज्ञान प्राप्त होता है।
मणिपुर चक्र के सम्पूर्ण जाग्रत हो जाने से वनस्पतियों से बात करने की क्षमता मिलती है, इस बात का ज्ञान प्राचीन काल में प्रत्येक आयुर्वेदज्ञ को था और वे आयुर्वेद का सम्यक्तः ज्ञान प्राप्त करने के लिये मणिपुर चक्र को जाग्रत करते थे। उनके गुरु एक विशिष्ट औषधि करकिटी का लेप मणिपुर चक्र पर लगाते थे, जिससे उन्हें यह क्षमता प्राप्त होती थी।
मणिपुर चक्र के स्वामी भगवान रूद्र हैं व बीज मंत्र ‘रं’ है, जो साधक निरंतर स्वास-प्रस्वास स्वरूप साधना में लगा रहता है उसी की कुण्डलिनी शक्ति मणिपुर चक्र तक पहुँच पाती है। आलसियों या प्रमादियों की नहीं। मणिपुर चक्र एक ऐसा चक्र है, जो एक तेज युक्त मणि के समान है, जो शरीर के सभी अंगों-उपांगों के लिये एक आपूर्ति-अधिकारी के रूप में कार्य करता है। मणिपुर चक्र पर सभी अंगों व उपांगों की यथोचित पूर्ति का भार होता है। इसके कार्य भार को देखते हुये सहयोगार्थ समन वायु नियत की गई, ताकि बिना सर्वत्र परेशानी और असुविधा के ही अतिसुगमता पूर्वक सर्वत्र पहुंच जाये।
सोया हुआ या अजाग्रत मणिपुर चक्र लिप्सा, कपट, तोड़-फोड़, कुतर्क, चिन्ता, मोह, घमंड, अविवेक, अहंकार से भरा रहता है। जागरण होने पर यह सब दुर्गुण हट जाते हैं। इस चक्र के जाग्रत हो जाने पर व्यक्ति सर्वशक्ति संपन्न हो जाता है। प्रकृति के बारे में ज्ञान प्राप्त होता है, जीवों की उत्पत्ति कैसे हुई इसका ज्ञान होता है। यहां तक कि यह चक्र पूर्व जन्म का ज्ञान भी देता है, भाषा का ज्ञान देता है, अग्नि तत्व की सिद्धि देता है।
असंतुलित मणिपुर चक्र के शारीरिक लक्षण- पाचन क्रिया में गड़बड़ी व अपच, वजन की समस्या, अल्सर, मधुमेह, गठिया, खाने में अरूचि, अग्न्याशय ((pancreas) में समस्या, ब्लड शुगर समस्या आदि।
धीमी गति या अक्रियाशील मणिपुर चक्र गंभीर भावनात्मक समस्याओं का कारण बन सकता है। इससे लोगों के प्रति संदेह, अविश्वास व दूसरे हमारे बारे में क्या सोचते हैं, इसकी चिंता हमेशा लगी रहती है, निष्क्रिय मणिपुर चक्र दूसरों पर निर्भरता बढ़ाता है।
मणिपुर चक्र के अतिक्रियाशील होने पर हम आलोचनात्मक या अति विवेचनात्मक हो जाते हैं, सदा दूसरों की गलतियों पर ही हमारा ध्यान केन्द्रित रहने लगता है। आक्रामक या हठी व्यवहार भी अतिक्रियाशील मणिपुर चक्र के सूचक हैं, ऐसी अवस्था में अपना कार्य नियमित समय पर नहीं कर पाते हैं।
संतुलित मणिपुर चक्र होने पर हम भावनात्मक रूप से परिपक्व बनते हैं, विचारों पर पूर्णतया नियंत्रण प्राप्त होता है। सम्पूर्ण आत्मबोध व आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है क्योंकि यह चक्र दृढ़ इच्छा शक्ति का केन्द्र है। यह चक्र जागृत होने पर हमें अपनी क्षमता का एहसास होने लगता है।
प्रकृति द्वारा चिकित्सा- जैसा कि यह चक्र अग्नि तत्व प्रधान चक्र है, इसलिये दिन में थोड़ा समय धूप में बिताना चक्र को संतुलित करने में लाभकारी है, आग का अलाव या हवन अग्नि लगाकर कुछ देर उसके पास बैठना भी प्रभावी है।
संतुलित आहार द्वारा- भोजन में अदरक, हल्दी, जीरा, पुदीना, आदि को शामिल कर भी चक्र को दृढ़ बनाया जाता है।
योगाभ्यास द्वारा- वज्रासन, भस्त्रिका प्राणायाम, वीरभद्रासन, सत्स्येन्द्रासन, सूर्य नमस्कार के नियमित अभ्यास शारीरिक क्षमतानुसार करने से मणिपुर चक्र संचालित रहता है।
ध्यान (Meditaion) द्वारा- ध्यान मन की एक सहज अवस्था है, जिससे हमारे भीतर का खालीपन दूर होता है और मन शांत होता है, मन के शांत होने से हमारी एकाग्रता बढ़ती है और हम अपनी समस्याओं को सफलता पूर्वक हल कर पाते हैं ठीक इसी तरह असंतुलित चक्र को जाग्रत करने हेतु ध्यान आवश्यक है।
मणिपुर चक्र के लिये ध्यान करते समय पीले रंग (जो मणिपुर चक्र का रंग है) या फिर पीले रंग के फूल को नाभि पर महसूस करते हुये उस पर ध्यान लगाना चाहिये।
क्रोध आने पर कमर सीधी करके बैठे, ऐसा करने से ऊर्जा को रीढ से नीचे से ऊपर जाने में सुविधा होगी और यही शक्ति संकल्प में बदल जायेगी।
विनीत श्रीमाली
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