फाल्गुन पूर्णिमा अथवा होलिका पूर्णिमा का समय निकट है। शीघ्र ही होलाष्टक का सिद्धि प्रदायक काल खण्ड प्रारम्भ होने वाला है। जिस समय अनेक साधनाओं को अल्प प्रयास, मंत्र जप से सिद्ध कर अपनी मनोकामनाओं को पूर्ण किया जा सकता है। वास्तविक रूप से होलाष्टक का पूरा काल खण्ड तंत्र साधनाओं में सिद्धि प्राप्त करने का चैतन्य क्षण है। तंत्र का अपना पूरा व्यापक क्षेत्र है, जिसे सात्विक रूप से आत्मसात कर जीवन की अनेक दुरूह स्थितियों पर विजय प्राप्त की जा सकती है।
होलिका दहन की रात्रि में सम्पन्न की जाने वाली साधनाओं की महत्ता शास्त्रों में आज भी जीवन्त रूप में विद्यमान है। जिन्हें आत्मसात कर साधक अपने जीवन को पूर्णत्व की ओर अग्रसर कर सकता है। इसी दिवस पर अनेक जन्मों के दोष-पाप, भविष्य में घटित होने वाले अनिष्टों और भौतिक अभावों का दहन करना चाहिये। होलिका दहन का तात्पर्य ही यही है, कि हम अपने जीवन के न्यून पक्षों का दहन कर सके और जो भी स्वर्ण है, वह दैदीप्यमान हो जाये।
मैंने कुछ वर्षों से यह अनुभव किया कि हम एक ही बनी बनायी लीक पर चले जा रहे हैं। कोई परिवर्तन, नवीनता हमारे जीवन में नहीं आ रही है। सद्गुरुदेव निखिल का यह वक्तव्य नही है, कि हम एक ही घिसा-पिटा जीवन व्यतीत करने को विवश हो। हमारे भीतर वह क्षमता, शक्ति, ऊर्जा विद्यमान है, जिससे जीवन को सही रूप में जीवन कहा जा सके, पशुत्व से पूर्णत्व की ओर अग्रसर होने की क्रिया हमारे भीतर ही विद्यमान है। आवश्यकता केवल यही है कि हम उस शक्ति तत्व को, उस ऊर्जा को चैतन्य कर सके, जाग्रत कर सके और ऐसा संभव है, हमारे प्रयत्नों से। यदि हम प्रयास करें, तो उस चेतना को आत्मसात कर पूर्णता प्राप्त कर सकते हैं। जीवन में नवीनता अनुभव कर सकते हैं।
होली का पर्व हमारे समक्ष इन्हीं संकेतो के साथ उपस्थित है, जब हम स्वयं को अग्नि के माध्यम से और अधिक ऊर्जावान बना सकते हैं। हमारा यह दायित्व है कि हम इसकी महत्ता को समझें, उससे भी अधिक महत्वपूर्ण है कि हम इस क्षण का सही उपयोग कर सकें। क्योंकि अधिकांश साधक ऐसे क्षणों को भौतिक रूप-रेखा के अनुरूप ही समझ पाते हैं। जबकि इसका सबसे महत्वपूर्ण पक्ष अध्यात्म पर आधारित है। भौतिक पक्ष तो केवल औपचारिकता निभाने का विषय है। इससे जीवन के किसी भी कारण का कोई सम्बन्ध नहीं होता। लेकिन शास्त्रों के अनुरूप सनातन धर्म के प्रत्येक पर्व की अपनी एक अलग ही महत्ता है। जिसका मूल रूप अवश्य धूमिल हो चुका है, पर समाप्त नहीं।
हमें इसी मूल रूप की महत्ता को समझकर, उसे आत्मसात करना है, स्वयं में धारण करना है। तब ही जीवन की सार्थकता तक हम पहुंच पायेंगे और हमारा जीवन सभी रंगो से पूर्ण हो सकेगा। प्रत्येक व्यक्ति की यह इच्छा होती है कि उसका जीवन सभी रंगो से पूर्ण हो। वह जीवन के नवरंगों से स्वयं को ओत-प्रोत कर सके। ऐसा संभव भी है, यदि हम उन रंगो को धारण करने की विधि से परिचित हो सके।
यह क्रिया परम पूज्य सद्गुरुदेव जी के सानिध्य व माता जी के आशीर्वाद तले कैलाश सिद्धाश्रम जोधपुर में पूरे उत्साह व उमंग के साथ सम्पन्न होगी। साथ ही चैत्र नवरात्रि के पूर्व आद्या शक्ति स्वरूपा वन्दनीय माता जी का आशीर्वाद प्राप्त कर विक्रम संवत् नववर्ष के दिवसो को पूर्ण जीवन्त जाग्रत स्वरूप में शक्ति तत्व को आत्मसात कर सकेंगे।
आप सभी को शक्ति पर्व के पूर्व दस महाविद्याओ में एक धूमावती महाविद्या की तेजस्वी चेतना व नृसिंह भैरव शक्ति के द्वारा होली पर्व की चैतन्यता में जीवन के प्रत्येक पक्ष पर विजय प्राप्त करने की चेतना परम पूज्य सद्गुरूदेव द्वारा प्रदान की जायेगी।
आपका अपना
विनीत श्रीमाली
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