पता नहीं, मैने ही इस ग्रंथ की चौपाइयों को अनुसन्धान का विषय बनाया है या अन्य व्यक्ति भी इस कार्य में संलग्न हैं, परन्तु मैं जिस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं, उसे जनसाधारण के लिये प्रस्तुत करना मैंने अपना पुनीत कर्तव्य समझा।
बाल्य काल से ही मेरे मन में यह बात आई थी, कि मानस की चौपाईयां निश्चय ही मंत्र हैं। अगर इनकी सिद्धि प्राप्त की जाये, तो ये बड़ी ही कारगर होंगी और कल्याण का कार्य करेंगी, क्योंकि तुलसी दास ने स्वयं लिखा है –
बरसों के अनुसन्धान के पश्चात् मुझे कुछ मंत्र रूपी इनकी सिद्धि प्राप्त कर अपना कल्याण तो कर ही सकते हैं, समाज का कल्याण भी कर सकते हैं, यह मेरा अटल विश्वास है।
मंत्र-तंत्र भारत की मूल-संस्कृति रही है और आज विश्व-संस्कृति के रूप में उभर रही है। दुनिया के सारे धर्मों, सम्प्रदायों, सभ्यताओं और संस्कृतियों ने मंत्र-तंत्र से ही त्राण पाया है और भविष्य में भी पायेंगे, क्योंकि तंत्र-मंत्र एक ऐसा विशाल विज्ञान है, जिसमें मानव को विश्वव्यापी ब्रह्माण्डीय, असीमित, उच्चतम चेतना में परिवर्तित होने की असंख्य प्रक्रियायें बतला गई हैं। इन्हीं तांत्रिक प्रक्रियाओं का जाने-अनजाने में आंशिक रूप से दुनिया के प्रायः सभी क्षेत्रों में व्यवहार किया जाता है, चाहे वे प्रक्रियायें शारीरिक व मानसिक सन्तुलन के लिये हो या फिर झाड़ फूंक, जादू या टोटका-टोना हों, हर हालत में मंत्र-तंत्र ने सूक्ष्म तात्त्विक अर्थों व रहस्यों को ही अनेक रूपों में उद्घाटित किया है।
मंत्र ही तंत्र का प्राण है, बिना मंत्र के तंत्र की कल्पना करना असम्भव है। मंत्र ईश्वर का नाम नहीं है, यह एक शब्द, एक चेतना का प्रतीक है। कुछ विशिष्ट ध्वनियों के समुच्यय को मंत्र कहते हैं। मंत्र में संकलित विभिन्न ध्वनियों का सम्बन्ध तत्त्वों, ग्रहों, मनः स्थितियों तथा हमारे मस्तिष्क के समूचे तंत्र से होता है।
कुण्डलिनी योग में दर्शाये गये विभिन्न चक्रों के बीच उनके बीज मंत्र होते हैं। श्रद्धा को मंत्र का आधार माना गया है।
मंत्र-शक्ति से कितने ही प्रकार के चमत्कार एवं वरदान उपलब्ध हो सकते हैं, यदि उसे सिद्ध कर लिया जाय और सिद्धि के लिये साधना आवश्यक है। साधना में निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक है –
1- मानसिक एकाग्रता, 2- चारित्रिक श्रेष्ठता
3- अपने इष्ट में अटूट श्रद्धा, 4- शब्द-शक्ति
अब मैं मानस की सिद्ध चौपाइयों का उल्लेख करता हूं, फिर सिद्ध करने की विधि का वर्णन करूंगा।
प्रविसि नगर कीजै सब काजा।
हृदय राखि कौशलपुर राजा।।
राम कथा सुन्दर करतारी।
संशय विहंग उड़ावन हारी।।
छिति जल पावक गगन समीरा।
पंच रचित यह अधम शरीरा।।
सुमिरि पवन सुत पावन नामू।
अपने बस करि राखे रामू।।
नाम पाहरू दिवस निसि ध्यान तुम्हारा कपाट।
लोचन निज पद जंत्रित प्रान केहि बात।।
केसरि कटि पट पीत धर, सुषमा सील निधान।
देखि भानु कुल भूषण हि, विसरा सरिवन्ह ऊपान।।
सब नर करहिं परस्पर प्रीति।
चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती।।
हरन कठिन कलि कलुष कलेसू।
माया मोह निसि दलन दिनेसू।।
जौं प्रभु दीन दयाल कहावा।
आरति हरन वेद जसु गावा।।
जपहिं नाम जनु आरत भारी।
मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी।।
दीन दयाल विरदु संभारी।
हरहु नाथ मम संकट भारी।।
सकल विघ्न व्यापहिं नहिं तेही।
राम सुकृपा विलोकहिं जेही।।
जय रघुवंश बनज बन भानू।
गहन दनुज कुल दहन कृशानू।।
दैहिक दैविक भौतिक तापा।
राम काज नहिं काहुंहिं व्यापा।।
ताके युग पद कमल मनावऊं।
जासु कृपा निरमल मन पावऊ।।
प्रनवऊं पवनकुमार, खल बन पावक ग्यान धुन।
जासु हृदय आगार, बसहिं राम सर चाप घर।।
स्याम गौर सुन्दर दोऊ जोड़ी।
निरखहिं छवि जननी तृन तोरी।।
गई बहोरि गरीब नेवाजू।
सरल नवल साहिब रघुराजू।।
विश्व भरन-पोषण कर जोई।
ताकर नाम भरत अस होई।।
अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के।
कामद घन दारिद दवारि के।।
प्रेम मगन कौशल्या, निसिदिन जात न जान।
सुत सनेह बस माता, बाल चरित कर गान।।
जे सकाम नर सुनहिं जे गावहिं।
सुख-सम्पति नाना विधि पावहिं।
पवन तनय बल पवन समाना।
बुद्धि विवेक विग्यान निधाना
श्रीराम जय राम जय जय राम।।
जेहि पर कृपा करहिं जनु जानी।
कवि उर अजिर नचावहिं बानी।।
मोरि सुधारिहिं सो सब भांती।
जासु कृपा नहिं कृपा अघाती।।
जाके सुमिरन ते रिपुनाशा।
नाम शत्रुहन वेद प्रकाशा।।
श्रीराम जय राम जय जय राम।।
जन-मन मंजु मुकुर मन हरनी।
किये तिलक गुन-गन वश करनी।।
श्रीराम जय राम जय जय राम।।
राम-राम कहि जे जमुहाहीं।
तिन्हहिं न पाप पुंज समुहाहीं।।
श्रीराम जय राम जय जय राम।।
पाहि पाहि रघुवीर गोसाईं।
यह खल खाई काल की नाईं।।
श्रीराम जय राम जय जय राम।।
श्रीराम नवमी 04 अप्रैल या किसी भी मंगलवार को प्रातः काल स्नान आदि से निवृत्त होकर सफेद या पीली धोती पहन कर पश्चिम की ओर मुंह कर बैठें। सामने लकड़ी के बाजोट पर शुद्ध सफेद वस्त्र बिछाकर गुरु चित्र स्थापित कर अक्षत, कुंकुम, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से पंचोपचार गुरु पूजन सम्पन्न करे। फिर 1 माला गुरु मंत्र जप कर साधना में सफलता हेतु प्रार्थना कीजिये।
उसके बाद तांबे या स्टील की ताली में रामरक्षा कवच व संजीविनी माला को स्थापित कर पंचोपचार पूजन सम्पन्न करे। फिर अपनी इच्छानुसार ऊपर दिये गये मानस की सिद्ध चौपाइयों में से किसी एक अथवा जिस समस्या का निवारण करना चाहते है उस अभीष्ट मंत्र का 108 बार जप करे। तथा आम की लकडियों में अग्नि प्रज्वलित कर उसी मंत्र से 108 बार शुद्ध घी की आहुति दें। उसके बाद राम रक्षा कवच को गले या बायी बांह में बांध लीजिये और माला को नदी में विसर्जित कीजिये।
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