यह तो सद्गुरु की करूणा ही है कि वह अपने शिष्यों में साधकों में चेतना देने के लिये इस धरा पर अवतरित होते है क्योंकि उनकी इच्छा होती है कि जो आनन्द मैने प्राप्त किया है वह आनन्द सभी को प्राप्त हो इसीलिये वे बार-बार शिष्यों का आह्वान करते है।
शिष्यों का यह परम कर्त्तव्य है कि वे निरन्तर गुरु का सानिध्य प्राप्त कर जीवन को श्रेष्ठता की ओर अग्रसर करने के प्रत्येक अवसर से लाभान्वित हों, साथ ही जीवन के कुछ क्षण ऐसे होते हैं, जिनको साक्षीभूत रूप अनुभव व अपने अन्तः करण के रोम-रोम में उतारने की क्रिया होती है। यह क्षण तो ऐसा होता है जब अपने सद्गुरु के चरणों में बैठे तथा उनके सानिध्यता में साधनात्मक शक्तियों को अपने देह में सदा के लिये स्थापित कर लें और साधना के सूक्ष्म ज्ञान को, चिंतन को आत्मसात करें तथा साधना शिविरों में भाग लेते हुये जीवन के सभी लक्ष्यों को प्राप्त करें। कुण्डलिनी जागरण क्रिया को अपना कर मृत्यु से अमृत्यु की ओर अग्रसर हो, सिद्धाश्रम में प्रवेश पा सके।
यह व्यक्ति का सौभाग्य होता है कि उसके जीवन में जीवन्त जाग्रत गुरु मिल जाये। तुम्हारी ऐसी कई पीढि़यां बीत गई हैं, जिनको कोई जीवित गुरु नहीं मिल पाये, यदि मिले भी तो पाखण्ड मिले, साधु मिले, सन्यासी मिले जो लूटने की क्रिया करने वाले थे मगर सन्मार्ग पर चलाने वाला कोई सद्गुरु नहीं मिला। जन्म-जन्म के साथी नहीं मिले जो हर जीवन में तुम्हारे साथ रहे, वह तो कभी-कभी संयोग से ही मिलता है।
और आज के समय में आप इसीलिये परेशान तथा दुःखी हैं, व्याकुल और व्यथित हैं कि हम ब्रह्म से निकले हुये हैं लेकिन हमें ये ज्ञान नहीं है कि ब्रह्मतत्व क्या है और किस तरह से उसकी प्राप्ति की जा सकती है। यही हमारी जड़-चेतना है, आपको सन्मार्ग का पता नहीं है, आप डांवाडोल स्थिति में भटक रहे हो। कभी हम पिता में सुख देखते हैं, कभी पत्नी में, तो कभी भोग विलास में सुख देखने की कोशिश करते हैं, मगर यह सब तो छल है। इसमें सुख या तृप्ति नहीं मिल सकती।
यह तृप्ति की यात्रा, यह आनन्द की यात्रा, यह पूर्णता प्राप्ति की यात्रा ही कुण्डलिनी की यात्रा कही जाती है। इन्हीं क्रियाओं से जीवन का बोध आनन्द रस प्राप्ति का भाव है। जिस स्त्री और पुरूष ने जन्म लिया है, जिस व्यक्ति ने एक प्राणश्चेतना प्राप्त की है, वह चाहे तो पुनः मल-मूत्र में, राख की ढे़री में समाप्त हो सकता है, यह भी एक रास्ता है। मगर इस रास्ते में केवल रुदन है, दुःख है, इस रास्ते में आनन्द नहीं है, और जहां आनन्द नहीं है वह ब्रह्म नहीं है।
जीवन को जीना एक व्यवस्थित क्रम के अनुसार यदि जीया जाये तो ही जीवन है। इन जीवन की सभी विसंगतियों को समाप्त कर पूर्णतया भोग एवं मोक्ष को प्राप्त करने के लिये दीक्षाओं का क्रम भी बनाना आवश्यक है। इसीलिये बद्रीनाथ धाम में सहस्त्र चक्र कुण्डलिनी जागरण साधना महोत्सव में आना ही है। जो सोचते रहोगे तो कुछ ना मिलेगा।
ऐसा कोई मनुष्य नहीं होगा जिसका कोई शत्रु न हो यदि प्रत्यक्ष में कोई शत्रु दिखलाई नहीं पड़ता तो हमारी पीठ पीछे या गुप्त रूप से शत्रु भाव रख कर, षड्यंत्र रच कर हमें नीचा दिखाने का प्रयत्न गुप्त रूप से करते रहते है। ऐसे घात-प्रतिघात हमारे जीवन में अनेकों प्रकार से शत्रु बाधा हम पर हावी रहती है। जो दिल में जलोगे तो अरमान जलेंगे। अर्थात् कामनाओं की पूर्ति की शक्ति होते हुये भी उस शक्ति का उपयोग नहीं कर पाते है। जीवन को शत्रुओं पर पूर्ण विजयश्री साथ ही पारिवारिक बाधायें से विवाह बाधा हो या व्यापार बाधा अथवा अन्य सांसारिक, बाधा हो यह सब जीवन के शत्रु ही हैं। इन सभी बाधाओं को कर्णपिशाचिनी विद्या द्वारा विध्वंस कर सभी प्रकार की उन्नति की ओर अग्रसर हो सकेंगे।
ब्रह्मानन्दं परम सुखदम् केवलं ज्ञान मूर्तिम् यदि ज्ञान अनुभव करना है, अगर ज्ञान की पूर्णता प्राप्त करनी है तो केवल एक ही रास्ता है कि वह कुण्डलिनी के उन सात द्वारों से गुजरें और इन सात द्वारों से गुजरने की एकमात्र क्रिया केवल गुरु ही साक्षीभूत स्वरूप में प्रदान कर सकता है, केवल एकमात्र गुरु ही सहायक होता है।
क्योंकि गुरु ने कुण्डलिनी को पूर्ण रूप से जीवन्त- जाग्रत किया है। गुरु उन सात द्वारों से गुजरा है, क्योंकि गुरु स्वयं ब्रह्ममय बन सका है और उसने कुण्डलिनी के द्वारों का अनुभव किया है। इसीलिये जीवन में गुरु को पूर्ण कहा गया है। पहले मनुष्य अपने आप में एक बूंद है तो गुरु अपने आप में एक सम्पूर्ण सागर है और इस बूंद से सागर तक की यात्रा को कुण्डलिनी कहा गया है।
इन मुख्य सात द्वारों की यात्रा तभी संभव हो पाती है जब इन एक-एक द्वारों के हजारों-हजारों रोम चक्र जाग्रत हो जाते है तभी हम एक द्वार से गुजरते हुये दूसरे, तीसरे और अन्त में सातवें द्वार तक पहुंच पायेंगे और ब्रह्ममय बन सकेंगे। मैं इसी आनन्द का साक्षीभूत बद्रीनाथ की पावन भूमि में आप सबसे मिल कर होना चाहता हूं। तथा हम सभी को आनन्द की उपलब्धि हो, इसके लिये इस विराट महोत्सव का, इस अद्वितीय यात्रा का आयोजन किया गया है।
सभी साधकों को निष्कण्टक जीवन जीते हुये उन्नति के पथ पर, जीवन के निर्माण के लिये, सभी भोगों को निर्लिप्त भाव से भोगने के लिये समृद्धि वैभव प्राप्ति हेतु वैभव धन लक्ष्मी साधना स्वयं सद्गुरुदेव जी सम्पन्न करायेंगे तथा साधना की वह गुप्त चेतना प्रदान करेंगे जो जीवन की उन्नति की कुंजी होगा। चार धाम के पवित्र बद्रीनाथ की चैतन्य भूमि लक्ष्मी तत्व से ओत-प्रोत होने के कारण इस साधना की अद्वितीयता हजार-हजार गुणा अधिक है।
मनुष्य के जीवन में चार मुख्य साधन माने गये हैं- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। इन्ही के आधार पर जीवन पूर्ण कहा गया है शत्रु रहित जीवन में धर्म कार्य तथा आर्थिक सुदृढ़ता, पारिवारिक सौहार्दता से जीवन बिताते हुये उस अमृत रस की, ईश्वर की प्राप्ति को, मोक्ष को प्राप्त कर लेने की क्रिया कुण्डलिनी जागरण होता है तथा कुण्डलिनी जागरण में साधक को अमृतमय प्राप्ति साधना कराकर उसके शरीर में स्थित सहस्त्रों रोम चक्र कुण्डलिनी जागरण दीक्षा प्रदान करके साधकों को आध्यात्मिक पथ पर अग्रसर करेंगे।
आपके लिये जीवन का सर्वोत्तम अवसर है थोड़ा सा स्वयं को जाग्रत कर अमृत रस ग्रहण कर सकेंगे। तो निश्चिन्त रूप से जीवन की असीम चिरनिद्रा समाप्त हो सकेगी और साथ ही साथ जीवन की मलिनता, रूग्णता, पीड़ा, संताप, दोष सभी विषमतायें त्रिवेणी संगम में सद्गुरु से सम्पर्कित होकर विलगित हो सकेगी। अब विचार का समय नहीं है। केवल और केवल आकाश को पूर्ण रूप से अपनी बांहों में समेटने हेतु कदम बढ़ाने की आवश्यकता है।
सर्व प्रथम पंजीकृत साधकों के लिये 17 मई को हरिद्वार में पहुंचने के बाद ठहरने, विश्राम, भोजन की व्यवस्था स्वामी नारायण मंदिर, निकट सप्तऋषि आश्रम, पावन धाम, भूपतवाला, हरिद्वार में की गयी है।
इस यात्रा का प्रबन्ध शिविर आयोजन से बहुत पहले से व्यवस्थित करना होता है। इस स्वरूप में साधकों के ठहरने, भोजन, आने-जाने के लिये बसों की व्यवस्था, टेंट, होटल, गरम बिस्तर आदि अनेक-अनेक तरह की सामग्री हरिद्वार से ही संभव हो पाती है, अतः जो भी साधक-शिष्य सद्गुरुदेव नारायण का दिव्यपात प्राप्त करना चाहें और अपने जीवन को सर्व भौतिक सुखमय बनाने के इच्छुक हों वे ही पंजीकरण करायें। इस हेतु अपना व अपने पिता का नाम जन्म तारीख, जन्म स्थान अवश्य लिखे जिससे उसकी गणना कर पूर्ण व्यक्तिगत रूप से चैतन्य मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त साधनात्मक सामग्री निर्मित हो सकेगी ।
सरकारी नियमानुसार अपना परिचय पत्र और उसकी दो फ़ोटो कापी अवश्य साथ रखें ।
सर्वप्रथम यह ध्यान रखें कि आप कितने भी श्रेष्ठ आयोजक, कार्यकर्ता या समर्पित शिष्य रहें हों परन्तु ऐसे दिव्यतम स्थान पर आप केवल साधक ही हैं, अतः प्रत्येक का पंजीकरण अनिवार्य है, धार्मिक व साधनात्मक यात्रा हेतु परिवार के सभी सदस्यों के साथ पंजीकरण कराने से सांसारिक सुखों को पूर्ण रूपेण समवेत स्वरूप में प्राप्त कर सकेंगे।
न्यून मानसिकता, ओछी सोच व सदैव अनिर्णय के भाव से ग्रसित शिष्य नहीं आये। जिस साधक में सजगता, चेतना, ठोस निर्णय लेने की क्षमता होगी वे ही शिष्य अपने आपको अहम् ब्रह्मस्मि युक्त करने हेतु पंजीकरण करायेंगे।
वैशाख मास की अक्षय एकादशी के दिव्यतम अवसर पर जीवन अमृतमय प्राप्ति साधना व कर्ण पिशाचिनी शत्रुहन्ता दीक्षा तथा सिद्धाश्रम शक्ति दिवस पर वैभव धन लक्ष्मी साधना, सहस्त्र चक्र कुण्डलिनी जागरण दीक्षा, दिव्यतम पवित्र अलकनन्दा नदी, ब्रह्म कपाल मंदिर, गणेश गफ़ुा व चैतन्य स्थानों पर प्रदान की जायेगी। उक्त साधनात्मक क्रियायें बस यात्रा, भोजन, बद्रीनाथ में ठहरने की व्यवस्था पंजीकरण शुल्क में सम्मिलित है।
17 मई 2017 बुधवार को हरिद्वार पहुंचना अनिवार्य हैं, पंजीकृत साधकों के लिये ही ठहरने और भोजन की व्यवस्था हरिद्वार में 17 मई सांय 04 बजे से 18 मई प्रातः 4 बजे तक ही संभव हो सकेगी।
18 मई 2017 को प्रातः 04 बजे से आराम दायक बसों से बद्रीनाथ धाम की यात्रा प्रारम्भ करना आवश्यक होगा तब ही सांय 06 बजे तक बद्रीनाथ पहुंचना संभव हो सकेगा। रूद्र प्रयाग के पास रतूड़ा स्थान पर भोजन, चाय प्रदान की जायेगी।
प्रातः 04 बजे के बाद बद्रीनाथ की यात्रा के लिये रवाना होने पर किसी भी स्थिति में उस दिन बद्रीनाथ पहुचना संभव नहीं होगा और बीच में ही साधक को स्वयं की व्यवस्था से ही ठहरना होगा और दूसरे दिन बद्रीनाथ पहुंच सकेंगे।
बहन, बेटियां, मातायें किसी भी स्थिति में अकेली नहीं आये। अस्थमा, हृदय रोगी, गठिया रोगी व अन्य बीमारी से युक्त साधक इस शिविर में भाग नहीं लें। पूरी यात्रा में सामान की और स्वयं की सुरक्षा की जिम्मेदारी साधक की स्वयं की रहेगी।
अकाल मृत्यु, दोषो, क्लिष्ट रोगो से निवृत्ति हेतु महामृत्युज्ंय रूद्राभिषेक, दुर्गति नाशक सौभाग्य प्रदायक निखिल शक्ति व शिव गौरी नारायण दीक्षा, हवन, अंकन का न्यौछावर अलग से न्यूनतम रूप में प्रदान कर सिद्धाश्रम शक्ति युक्त हो सकेंगे।
बद्रीनाथ धाम में ठहरने हेतु Dormitory में अलग-अलग पलंग की व्यवस्था की गयी है।
22 मई 2017 को प्रातः 5 बजे से हरिद्वार लौटने की व्यवस्था बसों द्वारा होगी। हरिद्वार पहुंचने पर वंहा ठहरना या अपने घर को लौटने की व्यवस्था साधक को स्वयं ही करनी होगी।
पंजीकरण शुल्क केवल कैलाश सिद्धाश्रम जोधपुर या गुरुधाम दिल्ली में व्यक्तिगत रूप से जमा करायें। ड्रॉफ़ट या सीधे खाते में जमा कर पंजीकरण REGISTRATION कराना होगा। पंजीकरण शुल्क J 11000 ( Eleven Thousand Only)
पंजीकरण शुल्क भेजने के लिए आप प्राचीन मंत्र यंत्र विज्ञान जोधपुर कार्यालय के फोन नं- 0291-2517025, 2517028, साथ ही मोबाईल नं- 7895727019, 8010088551 पर संपर्क कर विस्तार से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,