महाभारत में युद्ध भूमि में बाणों की सैया पर पड़े हुये भीष्म पितामह भगवान श्रीकृष्ण से यह पूछे जाने पर कि हे केशव! मेरी यह दशा किन पाप कर्मों के कारण हुई है, तो भगवान श्रीकृष्ण उनके कुछ जन्म पहले का बचपन उन्हें दिखाते है और जिसमें उन्होंने एक सर्प को घडे़ में डालकर उपर से घडे़ को बन्द कर दिया था। लेकिन वह घड़ा चींटियों से भरा हुआ था। उसका फल इस जन्म में मिला है।
इस प्रकार हम यह निर्णय लेने में समर्थ नहीं है कि कब क्या कर्म अच्छा है क्या बुरा। कर्मों का फल भगवान शनि के द्वारा दिया जाता है वह न्यायाधीश है और जीव के अच्छे-बुरे कर्मों का फल देना उन्हीं के पास रहता है लेकिन शनि बुरे कर्मों का फल देते है तो अच्छे कर्मों का भी देते है इसी प्रकार यदि मनुष्य ने कभी बुरा कर्म किया हो तो उसको सच्चे पश्चाताप से तथा अच्छे कर्मों को कर, बुरे कर्मों के फल को कम किया जा सकता है इसके लिये साधनाओं का सहारा लेना ही एक मात्र उपाय है।
पता नहीं मनुष्य का कौन सा पापकर्म कब उसके सामने आकर खड़ा हो जाये तथा मिलती हुई सभी सफलताओं पर कुठाराघात कर दें। भगवान शिव ही है जो मनुष्य के सभी पापकर्मों को भस्मीभूत करने की शक्ति रखते हैं। तथा जो शनि के गुरु भी है। उन्ही का शक्ति पुंज बटुक भैरव का तेजस्वी रूप मनुष्यों के पापों का नाश करने वाला है। इस शनि जयंती पर इस साधना को सम्पन्न कर अपने इस जीवन तथा विगत जीवन के पापों पर अंकुश लगा सकते है तथा सद्मार्ग पर चलते हुये अपनी रक्षा कर, सफलताओं के शिखर पर पहुंचा जा सकता है तथा आने वाली परेशानियों से बचा जा सकता है। यह साधना शनि जयन्ती, शनि अमावस्या अथवा कालाष्टमी को भी की जा सकती है। हो सकता है मनुष्य का कोई पाप, शत्रु रूप में आकर उसकी हत्या करने की अथवा उसके विरूद्ध कोई षड्यंत्र रच रहा हो यह साधना इन सब से बचने का तथा शत्रु पर वज्र प्रहार की तरह प्रभावी है।
जीवन अनेक प्रकार के संयोगों से भरा हुआ है, अनेक प्रकार की विषमताओं से युक्त है। वर्तमान युग में पग-पग पर इतनी बाधायें हैं, इतनी परेशानियां हैं, इतने शत्रु हैं, कि ऐसी स्थिति में व्यक्ति के लिये एक ही मार्ग रह जाता है, जिसके द्वारा वह पूर्ण रूप से विजयी हो सकता है और अपने जीवन की प्रत्येक समस्या पर विजय प्राप्त कर सकता है, वह मार्ग है- ‘साधना’।
प्राचीन काल से अब तक साधनाओं का आश्रय लेकर अनेकों कार्य सफलता पूर्वक सम्पन्न होते रहे हैं। साधनाओं के अनुसंधान कर्ताओं ने कुछ ऐसी साधनाओं का अनुसंधान किया, जो कि व्यक्ति के दैनिकचर्या के संकट और छोटी-बड़ी परेशानियों का सहज निदान बन सकें। इस प्रकार की साधनाओं में बटुक भैरव की साधना श्रेष्ठतम साधना मानी गई है, जिसका फल तत्क्षण मिलता है।
शास्त्रों में भी बटुक भैरव की महिमा वर्णित है। शास्त्रानुसार भैरव को रूद्र, विष्णु का स्वरूप माना गया है। इस प्रकार से भैरव के अनेक रूप वर्णित हैं- ‘ब्रह्म रूप’, ‘पर ब्रह्म रूप’, ‘पूर्ण रूप’, ‘निष्कल रूप’ में वांगमनसा- गोचर, विश्वातीत, स्वप्रकाश, पूर्णाहंभाव, एवं सकल रूप में- क्षोभण, मन्यु, तत्पुरूष आदि।
शिव पुराण में वर्णित है- एक बार समस्त ऋषिगणों में परमतत्व को जानने की जिज्ञासा उत्पन्न हुई, वे परब्रह्म को जानकर उसकी तपस्या करना चाहते थे। यह जिज्ञासा लेकर वे समस्त ऋषिगण देवलोक पहुंचे, वहां उन्होंने ब्रह्मा से विनम्र स्वर से निवेदन किया, कि हम सब ऋषिगण उस परमतत्व को जानने की जिज्ञासा से आपके पास आये हैं कृपा करके हमें बताइये, कि वह कौन है, जिसकी तपस्या कर सकें? इस पर ब्रह्मा ने स्वयं को ही इंगित करते हुये कहा- मैं ही वह परमतत्व हूं।
ऋषिगण उनके इस उत्तर से सन्तुष्ट न हो सके, तब यही प्रश्न लेकर वे क्षीर सागर में विष्णु के पास गये, परन्तु उन्होंने भी कहा, कि वे ही परमतत्व हैं, अतः उनकी आराधना करना श्रेष्ठ हैं, किन्तु उनके भी उत्तर से ऋषि समूह सन्तुष्ट न हो सका, अंत में उन्होंने वेदों के पास जाने का निश्चय किया। वेदों के समक्ष जा कर उन्होंने यही जिज्ञासा प्रकट की, कि हमें परमतत्व के बारे में ज्ञान दीजिये।
इस पर वेदों ने उत्तर दिया- शिव ही परम तत्व हैं, वे ही सर्वश्रेष्ठ और पूजन के योग्य हैं। इसी समय एक तेज पुंज प्रकट हुआ और धीरे-धीरे एक पुरूष आकृति को धारण कर लिया। यह देख ब्रह्मा का पंचम सिर क्रोधोन्मत हो उठा और उस आकृति से बोला- पूर्व काल में मेरे भाल से ही तुम उत्पन्न हुये हो, मैंने ही तुम्हारा नाम रूद्र रखा था, तुम मेरे पुत्र हो, मेरी शरण में आओ।
ब्रह्मा की इस गर्वोक्ति से भगवान रूद्र कुपित हो गये उनकी क्रोधाग्नि से एक अत्यन्त भीषण पुरूष उत्पन्न हुआ, तब रूद्र ने कहा- आप कालराज हैं, क्योंकि काल की भांति शोभित हैं। आप भैरव हैं, क्योंकि आप अत्यन्त भीषण हैं, आप काल भैरव हैं, क्योंकि काल भी आप से भयभीत होगा। आप आमर्दक है, क्योंकि आप दुष्टात्माओं का नाश करेंगे। भैरव ने अपने नखाग्र से ब्रह्मा के अपराधकर्ता पंचम सिर का विच्छेदन कर दिया। लोक मर्यादा रक्षक शिव ने ब्रह्म हत्या मुक्ति के लिये भैरव को कापालिक व्रत धारण कराया और काशी में निवास करने की आज्ञा दे दी।
भैरव का एक नाम बटुक भी है। बटुक शब्द का अभिप्राय है-
वट्यते वेष्टयते सर्वं जगत् प्रलयेऽनेनेति बटुकः
अर्थात् प्रलयकाल में सम्पूर्ण जगत को आवेष्टित करने के कारण अथवा सर्वव्यापी होने से भैरव कहलाये।
बटून ब्रह्मचारिणः कार्यमुपदिशतीति बटुको गुरुरूपः
अर्थात् ब्रह्मचारियों को उपदेश देने वाले गुरु रूप होने से भैरव ‘बटुक’ कहे गये।
अनेकार्थग्विलास में कहा गया है वटुः वर्णी बटुः विष्णुः बटुक का एक अर्थ विष्णु भी होता है, जो वामनावतार की और संकेत है।
इस प्रकार स्पष्ट है, कि सर्वव्यापी, गुरु रूप एवं विष्णु रूप इन तीनों के सम्मिलित स्वरूप होने से भैरव का बटुक स्वरूप पूर्ण फलप्रद एवं विजयप्रद है।
भैरव साधना के विषय में लोगों में अनेक प्रकार के भ्रम हैं, लेकिन भैरव साधना सरल एवं प्रत्येक गृहस्थ व्यक्ति के लिये आवश्यक है, यह साधना निडर होकर सम्पन्न की जा सकती है, इसमें किसी प्रकार का कोई भय अथवा हानि नहीं है। यह अत्यन्त फलदायक साधना है।
यह साधना सकाम्य साधना है, अतः साधक जिस कामना की पूर्ति के लिये यह साधना करता है, वह कामना पूर्ण होती ही है-
इस साधना को सम्पन्न करने से साधक के अन्दर तेजस्विता उत्पन्न होती है, जिसके कारण यदि उसके शत्रु हैं, तो वे उसके सामने आते ही कांतिहीन हो जाते हैं और शक्तिहीन होकर साधक के सम्मुख खड़े नहीं रह पाते हैं।
यदि साधक चुनाव लड़ रहा है या मुकदमा कई वर्षों से चल रहा है, तो वह उसमें पूर्ण रूप से विजय प्राप्त होता है। उसके विरोधी उसके सम्मुख टिक नहीं पाते, विपक्षी प्रभावहीन होकर उसके सम्मुख पराजय स्वीकार कर लेते हैं। यदि उसके जीवन में अनेक प्रकार की समस्यायें आ रही हों और उनका समाधान नहीं मिल रहा हो, तो इस साधना को सम्पन्न करने से समाधान प्राप्त होता है।
साधक साधना सम्पन्न कर पूर्ण पौरूषवान होकर समस्त समस्याओं को अपने साधनात्मक पुरूषार्थ से हल कर लेता है।
इस साधना में बटुक भैरव यंत्र तथा शत्रुहन्ता शनि माला की आवश्यकता होती है। यह रात्रिकालीन साधना है। यह साधना 25 मई (रविवार) से प्रारम्भ कर 04 जून तक करें अथवा किसी भी रविवार को अथवा नवरात्रि के प्रथम दिवस को ही साधना सम्पन्न करना ही श्रेष्यकर है। साधक स्नान करके उत्तर दिशा की ओर मुंह करके बैठें तथा पीले वस्त्र धारण करें। बाजोट पर पीला वस्त्र बिछाकर उस पर बटुक भैरव यंत्र को स्थापित करें। बटुक भैरव यंत्र के सामने तेल का दीपक लगायें तथा सुगंधित धूप जलायें, पश्चात् बटुक भैरव यंत्र पर पुष्प, कुंकुम, अक्षत, हल्दी से पूजन करें।
सर्वप्रथम बटुक भैरव ध्यान करें, दोनों हाथ जोड़कर-
भैरव ध्यान के पश्चात शत्रुहन्ता शनि माला को अपने बायें हाथ में लेकर दाहिने हाथ से उस पर अक्षत चढाते हुये मंत्रोच्चारण करें-
तत्पश्चात शत्रुहन्ता माला से निम्न मंत्र का 3 माला मंत्र जप करें-
भोग अर्पित करें, पर जो भी भोग अर्पण करें, उसे वहीं पर बैठकर स्वयं ग्रहण करें।
वस्तुतः बटुक भैरव प्रयोग अत्यन्त सरल और सौम्य है तथा कलियुग में शीघ्र सफलतादायक भी है। साधना समाप्ति के बाद इसे किसी लाल कपड़े में बांधकर जल में विसर्जित कर दें।
बटुक भैरव विश्वातीत ब्रंह्म शक्ति दीक्षा से जीवन के सभी बाधाओं और विषमताओं पर पूर्णता विजय प्राप्त कर सभी क्षेत्रे में सफलता अर्जित करने में सफल होंगे। साथ ही भैरव के ब्रंह्म स्वरूप होने के कारण धन का आगमन निरन्तर अविरल रूप से बना रहेगा। सुख, शांति, समृद्धि, वर्चस्थ स्थापित करने में सफल हो सकेंगे।
यं यं यं यक्ष रूपं दशदिशिवदनं भूमिकम्पायमानं।
सं सं सं संहारमूर्ति शुभ मुकुट जटाशेखरम् चन्द्रबिम्बम्।।
दं दं दं दीर्घकायं विकृतनख मुखं चौर्ध्वरोयं करालं।
पं पं पं पापनाशं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्र पालम्।।1।।
रं रं रं रक्तवर्ण कटक कटितनुं तीक्ष्णदंष्ट्राकवशालम्।
घं घं घं घोर घोष घ घ घ घ घर्घरा घोर नादम्।।
कं कं कं काल रूपं घगघग घगितं ज्वालितं कामदेहं।
दं दं दं दिव्यदेहं प्रणमतसततं भैरवं क्षेत्र पालम्।।2।।
लं लं लं लम्बदंतं लललललुलितं दीर्घ जिह्नकरालं।
धूं धूं धूं धूम्र वर्ण स्फुट विकृत मुखं मासुरं भीमरूपम्।।
रूं रूं रूं रूण्डमालं रूधिरमय मुखं ताम्रनेत्रं विशालम्।
नं नं नं नग्नरूपं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम्।।3।।
वं वं वं वायुवेगम प्रलय परिमितं ब्रह्मरूपं स्वरूपम्।
खं खं खं खड्ग हस्तं त्रिभुवननिलयं भास्करम् भीमरूपम्।
चं चं चं चालयन्तं चलचल चलितं चालितं भूत चक्रम।।
मं मं मं मायकायं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम्।।4।।
खं खं खं खड्गभेदं विषममृतमयं काल कालांधकारम्।
क्षि क्षि क्षि क्षिप्रवेग दहदह दहन नेत्र संदीप्यमानम्।।
हुं हुं हुं हुंकार शब्दं प्रकटित गहनगर्जित भूमिकम्पं।
बं बं बं बाललीलं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्र पालम्।।5।।
It is mandatory to obtain Guru Diksha from Revered Gurudev before performing any Sadhana or taking any other Diksha. Please contact Kailash Siddhashram, Jodhpur through Email , Whatsapp, Phone or Submit Request to obtain consecrated-energized and mantra-sanctified Sadhana material and further guidance,