इसी हेतु हमारे ऋषियों एवं महायोगियों ने ऐसी दीक्षा एवं साधनायें भी प्रतिपादित की हैं, जो कि उनके तप से पूर्णतः आपूरित हैं और जो अत्यन्त ही कम समय में सिद्ध हो जाती है। अगर अटूट विश्वास हो और गुरु पर पूर्ण श्रद्धा हो, तो यह साधना शीघ्र ही सिद्ध हो जाती है और व्यक्ति को न तो हिमालय की ओर जाना पड़ता है, न ही अपने सम्पूर्ण जीवन को ताक पर रखना पड़ता है। उसे तो बस, ‘विश्वास और श्रद्धा’, इन दोनों की सीढ़ी बनाकर निरन्तर ऊपर की ओर गतिशील होना होता है।
इन्हीं स्वयं सिद्ध साधनाओं में से एक हैं ‘अपरा शक्ति साधना’। यह साधना अपने आप में प्रचण्ड तेजस्वी एवं दिव्य होने के साथ-साथ अत्यधिक सरल भी है।
‘परा’ का अर्थ है – बाहर, अलग। ‘अपरा’ का अर्थ है – अन्दर, विलग। अतः अपने शरीर में स्थित शक्ति की साधना को अपनी ही आन्तरिक चेतना, आन्तरिक शक्ति को पूर्णतः जाग्रत करने की साधना को ‘अपरा शक्ति साधना’ कहा गया है। यह दीक्षा वास्तव पूर्णतः अद्वितीय दीक्षा है, क्योंकि इससे व्यक्ति की सारी आन्तरिक शक्ति, ऊर्जा, चेतना, एक विस्फोट की तरह जाग उठती है और वह अपने आपको बिल्कुल ही एक नवीन व्यक्तित्व में पाता है। पहली बार उसे एहसास होता है कि सौन्दर्य वास्तव में क्या होता है, उसके शरीर का एक-एक अंग सांचे में ढल जाता है, उसका आकर्षण कई सौ गुणा बढ़ जाता है, उसके शरीर में अपरा शक्ति का संचरण होने लग जाता है, एक आभा मण्डल उसके चारों ओर निर्मित हो जाता है और जो कोई भी उससे एक बार मिल लेता है, वह हमेशा उसके सम्पर्क में रहना चाहता है।
उसकी वाणी में एक ओज स्थापित हो जाता है, उसकी वाणी अत्यन्त मधुर एवं कर्ण प्रिय हो जाती है और उसमें एक प्रकार से वाक् सिद्धि का निवास हो जाता है। वह जो कुछ भी कहता है, निकट भविष्य में सत्य हो जाता है। फलस्वरूप सभी व्यक्ति उसे आदर भाव से देखते हैं, उसे सम्मान देते हैं और वह संसार में पूर्ण सम्मान, यश, लक्ष्मी एवं सम्पदा का भागी होता है।
इस साधना की सबसे बड़ी विशेषता है, कि इसमें व्यक्ति का अचेतन मन – ‘समग्र अचेतन’ हो जाता है। फलस्वरूप वह जब चाहे ब्रह्माण्ड के किसी भी लेाक के किसी भी प्राणी से मानसिक सम्पर्क स्थापित कर सकता है और विचारों का आदान प्रदान कर सकता है। इस प्रकार से उन अपूर्व रहस्यों का ज्ञाता हो जाता है, उस अद्वितीय ज्ञान को प्राप्त कर लेता है, जो बहुत ही बिरले व्यक्तियों के भाग्य में होता है।
जब वह अपने ज्ञान को विद्वत परिषद के सामने रखता है, जब वह धारा प्रवाह रहस्यों की परतें उघाड़ता हैं, तो समस्त विद्वत समाज मूक रह जाता है और उसके सामने पराजित हो जाता है।
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