-और गुरुदेव से मिलकर दूसरे दिन वह परिवार चला गया, अत्यन्त व्यस्तता के कारण मैं उनसे मिल भी नहीं पाया। उन्हें न जानते हुये भी उनके विषय में जानने की आकांक्षा थी। अचानक छः महीने बाद उन्हें पुनः वापिस देख कर उनसे मिलने की इच्छा प्रबल हो उठी, इस बार उस परिवार के प्रत्येक सदस्य के चेहरे पर प्रसन्नता झलक रही थी। मैंने उनसे ‘जय गुरुदेव’ कर उनकी स्थिति के बारे में पूछा, तो उनकी मां बोली – ‘पूज्य गुरुदेव की कृपा से हमारा पूरा परिवार बच गया।’ बातचीत के दौरान उनसे ज्ञात हुआ, कि उनके परिवार मे सिर्फ तीन लोग ही हैं, वे स्वयं, उनका पुत्र व उनकी बहू। उनका परिवार एक अत्यन्त विकट अवस्था से गुजर रहा था। उनके विरोधियों ने उनके पुत्र को मार कर उनके वंश को समाप्त करने की धमकी दी थी।
उसके अलावा उनके परिवार में एक दुःखद स्थिति यह भी थी- यदि पहला पुत्र उत्पन्न होता था, तो वह पांच या छः वर्ष की अवस्था में मृत्यु हो जाती है, उनकी बहू को भी पहला बच्चा पुत्र है, जिसकी अवस्था छः वर्ष की होने को आई थी। घर में अत्यधिक तनाव की स्थिति बनने लगी थी, एक तरफ पुत्र की चिंता दूसरी तरफ पौत्र की, घर की स्थितियां डांवाडोल हो रही थीं, पिछली बार जब हम पूज्य गुरुदेव से मिलने आये थे, तो इसी समस्या से हम सभी अत्यन्त व्यथित थे, इसका कोई उचित व सटीक हल नहीं मिल रहा था। पूज्य गुरुदेव से मिलने से पूर्व लगा, कि शायद अब कोई हल मिल जायेगा, पर समय ऐसा चल रहा था, कि किसी भी प्रकार से कोई राहत अनुभव नहीं हो रही थी।
पूज्य गुरुदेव ने अत्यन्त कृपा कर ‘कुटुम्ब रक्षा’ और ‘अकाल मृत्यु निवारण’ साधना प्रदान की। यदि इसे पूर्ण श्रद्धा और विश्वास से किया जाये, तो यह अत्यन्त शीघ्र फलदायी है। ‘ऐसे ही साधना के माध्यम से सावित्री सत्यवान को यम के पाश से छुड़ाकर वापस ला सकीं।’ इतना कह कर वह पूज्य गुरुदेव के प्रति अत्यन्त विनम्र भाव से बोली- ‘गुरुदेव की कृपा से मेरा पौत्र अपनी छः वर्ष की आयु पूरी कर चुका है और पूर्णतः स्वस्थ है, उसे किसी प्रकार की मृत्यु बाधा नहीं है और मेरे पुत्र के पीछे जो लोग पड़े थे, सब शांत हो गये हैं वे मेरे पुत्र से क्षमा मांग कर सहायतार्थ प्रस्ताव भी दिया है।’ उसकी यह बात सुन कर मैं भी गुरुदेव के प्रति कृतज्ञ हो उठा, कि अत्यन्त सामान्य रहकर भी वे न जाने कितनों का कल्याण कर देते हैं।
इसके बाद एक दिन गुरुदेव से साधारण सी चर्चा में ही पूछा बैठा- वट सावित्री साधना क्या है? इसके द्वारा क्या सम्भव है तथा इसे किस प्रकार से सिद्ध कर सकते हैं? पूज्य गुरुदेव ने उत्तर दिया- ‘यह तो वैसी ही साधना है, जिसे सम्पन्न कर सावित्री यम के पाश से सत्यवान को बचा कर ले आई थी। जिस दिन सावित्री सत्यवान को लेकर आई थी, वह दिन ‘वट सावित्री दिवस’ के नाम से मान्य हुआ।’ ऊपर तो मैंने संतप्त परिवार का एक ही उदाहरण दिया है, जबकि वर्तमान समय में प्रायः सभी परिवारों में अनेक प्रकार की समस्यायें उत्पन्न होती रहती है। जिससे परिवार का प्रत्येक व्यक्ति छुटकारा चाहता है और गृहस्थ सुख का पूर्ण आनन्द प्राप्त करना चाहता है। परन्तु इन समस्याओं के कारणों से वह इसका सुख प्राप्त नहीं कर पाता।
यह साधना सम्पन्न करने पर घर के सदस्यों के बीच आपसी तारतम्यता बनने लगती है तथा उनकी मानसिकता में परिवर्तन आने लगता है, उनके मध्य प्रेम और सौहार्द का वातावरण उपस्थित होने लगता है, जिससे पूरा परिवार फिर से संगठित हो जाता है।
इस साधना से-
1- पति या पुत्र की विरोधियों से रक्षा।
2- कुटुम्ब की पूर्ण रक्षा के लिये।
3- घर के सभी सदस्यों की अकाल मृत्यु से रक्षा।
4- अखण्ड सुहाग सुख-सौभाग्य की प्राप्ति।
1- साधना हेतु- 5 सौभाग्य सावित्री जीवट, दीर्घायु जीवन प्राप्ति माला तथा पूर्णत्व प्राप्ति यंत्र (धारण)।
यह साधना 01 जून अथवा किसी गुरुवार के सांय को प्रारम्भ करें। साधक स्नान कर पूर्ण रूप से स्वच्छ होकर, उत्तराभिमुख बैठ कर साधना सम्पन्न करें। साधक पीला या लाल वस्त्र धारण करें। साथ ही पीला वस्त्र बाजोट पर बिछाकर यंत्र को स्थापित करें। घी का दीपक प्रज्ज्वलित करें। यंत्र का पूजन करें। गुलाब के पुष्प चढ़ायें। जिस कामना हेतु यह प्रयोग सम्पन्न कर रहे हैं, वह कामना बोलें। निम्न मंत्र का 9 माला मंत्र जप करें-
दूसरे दिन प्रातः वट वृक्ष के पेड़ को मौली से लपेटते हुये 5 परिक्रमा करें। परिक्रमा करते समय अपने हाथ में पांचों काम्य गुटिका रखें तथा कामना बोलें, दूध और गंगाजल युक्त जल वृक्ष में अर्पित करें। लगातार 5 दिवस तक यह क्रम पूर्ण करें। साधना पूर्ण होने के बाद सभी सामग्री पेड़ की जड़ में रख दें।
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